Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003809 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-६ |
Translated Chapter : |
शतक-६ |
Section : | उद्देशक-७ शाली | Translated Section : | उद्देशक-७ शाली |
Sutra Number : | 309 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अनंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदय-समिति-समागमेणं सा एगा उस्सण्हसण्हिया इ वा, सण्हसण्हिया इ वा, उड्ढरेणू इ वा, तसरेणू इ वा, रहरेणू इ वा, वालग्गे इ वा, लिक्खा इ वा, जूया इ वा, जवमज्झे इ वा, अंगुले इ वा। अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सण्हसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्ढरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मनुस्साणं वालग्गे; एवं हरिवास-रम्मग-हेमवय-एरन्नवयाणं, पुव्वविदेहाणं मनुस्साणं अट्ठ वालग्गा सा एगा लिक्खा, अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमज्झे, अट्ठ जवमज्झा से एगे अंगुले। एएणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाणि पादो, बारस अंगुलाइं विहत्थी, चउवीसं अंगुलाइं रयणी, अडयालीसं अंगुलाइं कुच्छी, छन्नउत्तिं अंगुलाणि से एगे दंडे इ वा, धणू इ वा, जूए इ वा, नालिया इ वा, अक्खे इ वा, मुसले इ वा। एएणं धणुप्पमाणेणं दो धनुसहस्साइं गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं। एएणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयणं आयाम-विक्खंभेणं, जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, तं तिउणं, सविसेसं परिरएणं– से णं एगा-हिय-बेहिय-तेहिय, उक्कोसं सत्तरत्तप्परूढाणं संमट्ठे संनिचिए भरिए वालग्गकोडीणं। ते णं वालग्गे नो अग्गी दहेज्जा, नो वातो हरेज्जा, नो कुच्छेज्जा, नो परिविद्धंसेज्जा, नो पूतित्ताए हव्वमागच्छेज्जा। तओ णं वाससए-वाससए गते एगमेगं वालग्गं अवहाय जावतिएणं कालेणं से पल्ले खीणे निरए निम्मले निट्ठिए निल्लेवे अवहडे विसुद्धे भवइ। से त्तं पलिओवमे। | ||
Sutra Meaning : | ऐसे अनन्त परमाणुपुद्गलों के समुदाय की समितियों के समागम से एक उच्छ्लक्ष्णलक्ष्णिका, श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु, रथरेणु, बालाग्र, लिक्षा, यूका, यवमध्य और अंगुल होता है। आठ उच्छ्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका के मिलने से एक श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्ण – श्लक्ष्णिका के मिलने से एक ऊर्ध्वरेणु, आठ ऊर्ध्वरेणु मिलने से एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं के मिलने से एक रथरेणु और आठ रथरेणुओं के मिलने से देवकुरु – उत्तरकुरु क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है, तथा उस आठ बालाग्रों से हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। उस आठ बालाग्रों से हैमवत और हैरण्यवत के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। उस आठ बालाग्रों से पूर्वविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है। पूर्वविदेह के मनुष्यों के आठ बालाग्रों से एक लिक्षा, आठ लिक्षा से एक यूका, आठ यूका से एक यवमध्य और आठ यवमध्य से एक अंगुल होता है। इस प्रकार के छह अंगुल का एक पाद, बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल का एक हाथ, अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि, छियानवे अंगुल का दण्ड, धनुप, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है। दो हजार धनुष का एक गाऊ होता है और चार गाऊ का एक योजन होता है। इस योजन के परिणाम से एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा और एक योजन गहरा, तिगुणी से अधिक परिधि वाला एक पल्य हो, उस पल्य में एक दिन के उगे हुए, दो दिन के उगे हुए, तीन दिन के उगे हुए, और अधिक से अधिक सात दिन के उगे हुए करोड़ों बालाग्र किनारे तक ऐसे ठूंस – ठूंस कर भरे हों, इकट्ठे किये हों, अत्यन्त भरे हों कि उन बालाग्रों को अग्नि न जला सके और हवा उन्हें उड़ा कर न ले जा सके; वे बालाग्र सड़े नहीं, न ही नष्ट हों, और न ही वे शीघ्र दुर्गन्धित हों। इसके पश्चात् उस पल्य में सौ – सौ वर्ष में एक – एक बालाग्र को नीकाला जाए। इस क्रम से तब तक नीकाला जाए, जब तक कि वह पल्य क्षीण हो, नीरज हो, निर्मल हो, पूर्ण हो जाए, निर्लेप हो, अपहृत हो और विशुद्ध हो जाए। उतने काल को एक ‘पल्योपमकाल’ कहते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] anamtanam paramanupoggalanam samudaya-samiti-samagamenam sa ega ussanhasanhiya i va, sanhasanhiya i va, uddharenu i va, tasarenu i va, raharenu i va, valagge i va, likkha i va, juya i va, javamajjhe i va, amgule i va. Attha ussanhasanhiyao sa ega sanhasanhiya, attha sanhasanhiyao sa ega uddharenu, attha uddharenuo sa ega tasarenu, attha tasarenuo sa ega raharenu, attha raharenuo se ege devakuru-uttarakuruganam manussanam valagge; evam harivasa-rammaga-hemavaya-erannavayanam, puvvavidehanam manussanam attha valagga sa ega likkha, attha likkhao sa ega juya, attha juyao se ege javamajjhe, attha javamajjha se ege amgule. Eenam amgulapamanenam chha amgulani pado, barasa amgulaim vihatthi, chauvisam amgulaim rayani, adayalisam amgulaim kuchchhi, chhannauttim amgulani se ege damde i va, dhanu i va, jue i va, naliya i va, akkhe i va, musale i va. Eenam dhanuppamanenam do dhanusahassaim gauyam, chattari gauyaim joyanam. Eenam joyanappamanenam je palle joyanam ayama-vikkhambhenam, joyanam uddham uchchattenam, tam tiunam, savisesam pariraenam– se nam ega-hiya-behiya-tehiya, ukkosam sattarattapparudhanam sammatthe samnichie bharie valaggakodinam. Te nam valagge no aggi dahejja, no vato harejja, no kuchchhejja, no parividdhamsejja, no putittae havvamagachchhejja. Tao nam vasasae-vasasae gate egamegam valaggam avahaya javatienam kalenam se palle khine nirae nimmale nitthie nilleve avahade visuddhe bhavai. Se ttam paliovame. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Aise ananta paramanupudgalom ke samudaya ki samitiyom ke samagama se eka uchchhlakshnalakshnika, shlakshna – shlakshnika, urdhvarenu, trasarenu, ratharenu, balagra, liksha, yuka, yavamadhya aura amgula hota hai. Atha uchchhlakshna – shlakshnika ke milane se eka shlakshna – shlakshnika hoti hai. Atha shlakshna – shlakshnika ke milane se eka urdhvarenu, atha urdhvarenu milane se eka trasarenu, atha trasarenuom ke milane se eka ratharenu aura atha ratharenuom ke milane se devakuru – uttarakuru kshetra ke manushyom ka eka balagra hota hai, tatha usa atha balagrom se harivarsha aura ramyakvarsha ke manushyom ka eka balagra hota hai. Usa atha balagrom se haimavata aura hairanyavata ke manushyom ka eka balagra hota hai. Usa atha balagrom se purvavideha ke manushyom ka eka balagra hota hai. Purvavideha ke manushyom ke atha balagrom se eka liksha, atha liksha se eka yuka, atha yuka se eka yavamadhya aura atha yavamadhya se eka amgula hota hai. Isa prakara ke chhaha amgula ka eka pada, baraha amgula ki eka vitasti, chaubisa amgula ka eka hatha, aratalisa amgula ki eka kukshi, chhiyanave amgula ka danda, dhanupa, yuga, nalika, aksha athava musala hota hai. Do hajara dhanusha ka eka gau hota hai aura chara gau ka eka yojana hota hai. Isa yojana ke parinama se eka yojana lamba, eka yojana chaura aura eka yojana gahara, tiguni se adhika paridhi vala eka palya ho, usa palya mem eka dina ke uge hue, do dina ke uge hue, tina dina ke uge hue, aura adhika se adhika sata dina ke uge hue karorom balagra kinare taka aise thumsa – thumsa kara bhare hom, ikatthe kiye hom, atyanta bhare hom ki una balagrom ko agni na jala sake aura hava unhem ura kara na le ja sake; ve balagra sare nahim, na hi nashta hom, aura na hi ve shighra durgandhita hom. Isake pashchat usa palya mem sau – sau varsha mem eka – eka balagra ko nikala jae. Isa krama se taba taka nikala jae, jaba taka ki vaha palya kshina ho, niraja ho, nirmala ho, purna ho jae, nirlepa ho, apahrita ho aura vishuddha ho jae. Utane kala ko eka ‘palyopamakala’ kahate haim. |