Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003760
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-५

Translated Chapter :

शतक-५

Section : उद्देशक-७ पुदगल कंपन Translated Section : उद्देशक-७ पुदगल कंपन
Sutra Number : 260 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] नेरइया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा? गोयमा! नेरइया णं पुढविकायं समारंभंति, आउकायं समारंभंति, तेउकायं समारंभंति, वाउकायं समारंभंति, वणस्सइकायं समारंभंति तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–नेरइया सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। असुरकुमारा णं भंते! किं सारंभा? पुच्छा। गोयमा! असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। से केणट्ठेणं? गोयमा! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा देवीओ मनुस्सा मनुस्सीओ तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहिया भवंति, आसन-सयन-भंड-मत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–असुरकुमारा सारंभा सपरिग्गहा, नो अनारंभा अपरिग्गहा। एवं जाव थणियकुमारा। एगिंदिया जहा नेरइया। बेइंदिया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा? तं चेव बेइंदिया णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, बाहिरा भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। एवं जाव चउरिंदिया। पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा? उदाहु अनारंभा अपरिग्गहा? तं चेव जाव कम्मा परिग्गहिया भवंति, टंका कूडा सेला सिहरी पब्भारा परिग्गहिया भवंति, जल-थल-बिल-गुह-लेणा परिग्गहिया भवंति, उज्झर-निज्झर चिल्लल-पल्लल-वप्पिणा परिग्गहिया भवंति, अगड-तडाग-दह-नईओ वावी-पुक्खरिणीदीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ सरसर-पंतियाओ बिलपंतियाओ परिग्गहियाओ भवंति, आरामुज्जाण-कानणा वणा वनसंडा वणराईओ परिग्गहियाओ भवंति, देवउल-सभ-पव-थूभ-खाइय-परिखाओ परिग्गहियाओ भवंति, पागार-अट्टालग-चरिय-दार-गोपुरा परिग्ग-हिया भवंति, पासाद-घर-सरण-लेण-आवणा परिग्गहिया भवंति, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहा परिग्गहिया भवंति, सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि-थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ भवंति, लोही-लोहकडाह-कडुच्छया परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति, देवा देवीओ मनुस्सा मनुस्सीओ तिरिक्खजोणिया तिरिक्ख-जोणिणीओ परिग्गहिया भवंति, आसन-सयन-खंभ-भंड-सचित्ताचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति। से तेणट्ठेणं। जहा तिरिक्खजोणिया तहा मनुस्सा वि भाणियव्वा। वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया जहा भवनवासी तहा नेयव्वा।
Sutra Meaning : भगवन्‌ ! क्या नैरयिक आरम्भ और परिग्रह से सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम! नैरयिक सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरिग्रही नहीं होते। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! नैरयिक पृथ्वीकाय का यावत्‌ त्रसकाय का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, कर्म परिगृहीत किये हुए हैं और सचित्त एवं मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हुए हैं, इस कारण से नैरयिक आरंभ एवं परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। भगवन्‌ ! असुरकुमार क्या आरम्भयुक्त एवं परिग्रह – सहित होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं? गौतम ! असुरकुमार भी सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं, किन्तु अनारम्भी एवं अपरीग्रही नहीं होते। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा है ? गौतम ! असुरकुमार पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने शरीर परीगृहीत किये हुए हैं, कर्म परीगृहीत किये हुए हैं, भवन परीगृहीत किये हुए हैं, वे देव – देवियों, मनुष्य पुरुष – स्त्रियों, तिर्यंच नर – मादाओं को परिगृहीत किये हुए हैं, तथा वे आसन, शयन, भाण्ड मात्रक, एवं विविध उपकरण परीगृहीत किये हुए हैं, एवं सचित्त, अचित्त तथा मिश्र द्रव्य परीगृहीत किये हुए हैं। इस कारण से वे आरम्भयुक्त एवं परिग्रहसहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। इसी प्रकार यावत्‌ स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। नैरयिकों के समान एकेन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए। भगवन्‌ ! द्वीन्द्रिय जीव क्या समारम्भ – सपरिग्रह होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ? गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव भी आरम्भ – परिग्रह से युक्त हैं, वे अनारम्भी – अपरिगृही नहीं हैं; इसका कारण भी वही पूर्वोक्त है। (वे षट्‌काय का आरम्भ करते हैं) तथा यावत्‌ उन्होंने शरीर परीगृहीत किये हुए हैं, उनके बाह्य भाण्ड, मात्रक तथा विविध उपकरण परीगृहीत किये हुए होते हैं; एवं सचित्त, अचित्त तथा मिश्र द्रव्य भी परीगृहीत किये हुए होते हैं। इसलिए वे यावत्‌ अनारम्भी, अपरिग्रही नहीं होते। इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में कहना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या आरम्भ – परिग्रहयुक्त हैं, अथवा आरम्भ – परिग्रहरहित हैं ? गौतम ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव, आरम्भ – परिग्रह – युक्त हैं, किन्तु आरम्भपरिग्रहरहित नहीं हैं; क्योंकि उन्होंने शरीर यावत्‌ कर्म परीगृहीत किये हैं। तथा उनके टंक, कूट, शैल, शिखरी, एवं प्राग्भार परीगृहीत होते हैं। इसी प्रकार जल, स्थल, बिल, गुफा, लयन भी परीगृहीत होते हैं। उनके द्वारा उज्झर, निर्झर, चिल्लल, पल्लल तथा वप्रीण परीगृहीत होते हैं। उनके द्वारा कूप, तड़ाग, द्रह, नदी, वापी, पुष्करिणी, दीर्घिका, सरोवर, सर – पंक्ति, सरसरपंक्ति, एवं बिलपंक्ति परीगृहीत होते हैं। तथा आराम, उद्यान, कानन, वन, वनखण्ड, वनराजि, ये सब परीगृहीत किये हुए होते हैं। फिर देवकुल, सभा, आश्रम, प्याऊ, स्तूभ, खाई, खाई, ये भी परीगृहीत की होती है; तथा प्राकार, अट्टालक, चरिका, द्वार, गोपुर ये सब परीगृहीत किये होते हैं। इनके द्वारा प्रासाद, घर, सरण, लयन, आपण परीगृहीत किये जाते हैं। शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ परिगृहीत होते हैं। शकट, रथ, यान, युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका आदि परि – गृहीत किये होते हैं। लौही, लोहे की कड़ाही, कुड़छी आदि चीजें परिग्रहरूप में गृहीत होती है। इनके द्वारा भवन भी परीगृहीत होते हैं। देवदेवियाँ, मनुष्य नरनारियाँ, एवं तिर्यंच नर – मादाएं, आसन, शयन, खण्ड, भाण्ड एवं सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य परीगृहीत होते हैं। इस कारण से ये पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव आरम्भ और परीग्रह से युक्त होते हैं, किन्त अनारम्भी – अपरिग्रही नहीं होते। तिर्यंचयोनिक जीवों के समान मनुष्यों के विषय में भी कहना। जिस प्रकार भवनवासी देवों के विषय में कहा, वैसे ही वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के (आरम्भ – परिग्रहयुक्त होने के) विषय में (सहेतुक) कहना चाहिए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] neraiya nam bhamte! Kim sarambha sapariggaha? Udahu anarambha apariggaha? Goyama! Neraiya sarambha sapariggaha, no anarambha apariggaha. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–neraiya sarambha sapariggaha, no anarambha apariggaha? Goyama! Neraiya nam pudhavikayam samarambhamti, aukayam samarambhamti, teukayam samarambhamti, vaukayam samarambhamti, vanassaikayam samarambhamti tasakayam samarambhamti, sarira pariggahiya bhavamti, kamma pariggahiya bhavamti, sachittachitta-misayaim davvaim pariggahiyaim bhavamti. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–neraiya sarambha sapariggaha, no anarambha apariggaha. Asurakumara nam bhamte! Kim sarambha? Puchchha. Goyama! Asurakumara sarambha sapariggaha, no anarambha apariggaha. Se kenatthenam? Goyama! Asurakumara nam pudhavikayam samarambhamti java tasakayam samarambhamti, sarira pariggahiya bhavamti, kamma pariggahiya bhavamti, bhavana pariggahiya bhavamti, deva devio manussa manussio tirikkhajoniya tirikkhajoninio pariggahiya bhavamti, asana-sayana-bhamda-mattovagarana pariggahiya bhavamti, sachittachitta-misayaim davvaim pariggahiyaim bhavamti. Se tenatthenam goyama! Evam vuchchai–asurakumara sarambha sapariggaha, no anarambha apariggaha. Evam java thaniyakumara. Egimdiya jaha neraiya. Beimdiya nam bhamte! Kim sarambha sapariggaha? Udahu anarambha apariggaha? Tam cheva beimdiya nam pudhavikayam samarambhamti java tasakayam samarambhamti, sarira pariggahiya bhavamti, kamma pariggahiya bhavamti, bahira bhamdamattovagarana pariggahiya bhavamti, sachittachitta-misayaim davvaim pariggahiyaim bhavamti. Evam java chaurimdiya. Pamchimdiyatirikkhajoniya nam bhamte! Kim sarambha sapariggaha? Udahu anarambha apariggaha? Tam cheva java kamma pariggahiya bhavamti, tamka kuda sela sihari pabbhara pariggahiya bhavamti, jala-thala-bila-guha-lena pariggahiya bhavamti, ujjhara-nijjhara chillala-pallala-vappina pariggahiya bhavamti, agada-tadaga-daha-naio vavi-pukkharinidihiya gumjaliya sara sarapamtiyao sarasara-pamtiyao bilapamtiyao pariggahiyao bhavamti, aramujjana-kanana vana vanasamda vanaraio pariggahiyao bhavamti, devaula-sabha-pava-thubha-khaiya-parikhao pariggahiyao bhavamti, pagara-attalaga-chariya-dara-gopura parigga-hiya bhavamti, pasada-ghara-sarana-lena-avana pariggahiya bhavamti, simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapaha-paha pariggahiya bhavamti, sagada-raha-jana-jugga-gilli-thilli-siya-samdamaniyao pariggahiyao bhavamti, lohi-lohakadaha-kaduchchhaya pariggahiya bhavamti, bhavana pariggahiya bhavamti, deva devio manussa manussio tirikkhajoniya tirikkha-joninio pariggahiya bhavamti, asana-sayana-khambha-bhamda-sachittachitta-misayaim davvaim pariggahiyaim bhavamti. Se tenatthenam. Jaha tirikkhajoniya taha manussa vi bhaniyavva. Vanamamtara-joisa-vemaniya jaha bhavanavasi taha neyavva.
Sutra Meaning Transliteration : Bhagavan ! Kya nairayika arambha aura parigraha se sahita hote haim, athava anarambhi evam aparigrahi hote haim\? Gautama! Nairayika sarambha evam saparigraha hote haim, kintu anarambhi evam aparigrahi nahim hote. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha hai\? Gautama ! Nairayika prithvikaya ka yavat trasakaya ka samarambha karate haim, tatha unhomne sharira parigrihita kiye hue haim, karma parigrihita kiye hue haim aura sachitta evam mishra dravya parigrihita kiye hue haim, isa karana se nairayika arambha evam parigrahasahita haim, kintu anarambhi aura aparigrahi nahim haim. Bhagavan ! Asurakumara kya arambhayukta evam parigraha – sahita hote haim, athava anarambhi evam aparigrahi hote haim? Gautama ! Asurakumara bhi sarambha evam saparigraha hote haim, kintu anarambhi evam aparigrahi nahim hote. Bhagavan ! Kisa karana se aisa kaha hai\? Gautama ! Asurakumara prithvikaya se lekara trasakaya taka ka samarambha karate haim, tatha unhomne sharira parigrihita kiye hue haim, karma parigrihita kiye hue haim, bhavana parigrihita kiye hue haim, ve deva – deviyom, manushya purusha – striyom, tiryamcha nara – madaom ko parigrihita kiye hue haim, tatha ve asana, shayana, bhanda matraka, evam vividha upakarana parigrihita kiye hue haim, evam sachitta, achitta tatha mishra dravya parigrihita kiye hue haim. Isa karana se ve arambhayukta evam parigrahasahita haim, kintu anarambhi aura aparigrahi nahim haim. Isi prakara yavat stanitakumara taka kahana chahie. Nairayikom ke samana ekendriyom ke vishaya mem kahana chahie. Bhagavan ! Dvindriya jiva kya samarambha – saparigraha hote haim, athava anarambhi evam aparigrahi hote haim\? Gautama ! Dvindriya jiva bhi arambha – parigraha se yukta haim, ve anarambhi – aparigrihi nahim haim; isaka karana bhi vahi purvokta hai. (ve shatkaya ka arambha karate haim) tatha yavat unhomne sharira parigrihita kiye hue haim, unake bahya bhanda, matraka tatha vividha upakarana parigrihita kiye hue hote haim; evam sachitta, achitta tatha mishra dravya bhi parigrihita kiye hue hote haim. Isalie ve yavat anarambhi, aparigrahi nahim hote. Isi prakara trindriya aura chaturindriya jivom ke vishaya mem kahana chahie. Pamchendriya tiryagyonika jiva kya arambha – parigrahayukta haim, athava arambha – parigraharahita haim\? Gautama ! Pamchendriya tiryagyonika jiva, arambha – parigraha – yukta haim, kintu arambhaparigraharahita nahim haim; kyomki unhomne sharira yavat karma parigrihita kiye haim. Tatha unake tamka, kuta, shaila, shikhari, evam pragbhara parigrihita hote haim. Isi prakara jala, sthala, bila, gupha, layana bhi parigrihita hote haim. Unake dvara ujjhara, nirjhara, chillala, pallala tatha vaprina parigrihita hote haim. Unake dvara kupa, taraga, draha, nadi, vapi, pushkarini, dirghika, sarovara, sara – pamkti, sarasarapamkti, evam bilapamkti parigrihita hote haim. Tatha arama, udyana, kanana, vana, vanakhanda, vanaraji, ye saba parigrihita kiye hue hote haim. Phira devakula, sabha, ashrama, pyau, stubha, khai, khai, ye bhi parigrihita ki hoti hai; tatha prakara, attalaka, charika, dvara, gopura ye saba parigrihita kiye hote haim. Inake dvara prasada, ghara, sarana, layana, apana parigrihita kiye jate haim. Shrimgataka, trika, chatushka, chatvara, chaturmukha, mahapatha parigrihita hote haim. Shakata, ratha, yana, yugya, gilli, thilli, shivika, syandamanika adi pari – grihita kiye hote haim. Lauhi, lohe ki karahi, kurachhi adi chijem parigraharupa mem grihita hoti hai. Inake dvara bhavana bhi parigrihita hote haim. Devadeviyam, manushya naranariyam, evam tiryamcha nara – madaem, asana, shayana, khanda, bhanda evam sachitta, achitta aura mishra dravya parigrihita hote haim. Isa karana se ye pamchendriya tiryamchayonika jiva arambha aura parigraha se yukta hote haim, kinta anarambhi – aparigrahi nahim hote. Tiryamchayonika jivom ke samana manushyom ke vishaya mem bhi kahana. Jisa prakara bhavanavasi devom ke vishaya mem kaha, vaise hi vanavyantara, jyotishka aura vaimanika devom ke (arambha – parigrahayukta hone ke) vishaya mem (sahetuka) kahana chahie.