Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

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Sr No : 1003729
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-५

Translated Chapter :

शतक-५

Section : उद्देशक-४ शब्द Translated Section : उद्देशक-४ शब्द
Sutra Number : 229 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्काओ कप्पाओ, महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं ते देवा समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, मनसा चेव इमं एयारूवं वागरणं पुच्छंति– कति णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति? तए णं समणे भगवं महावीरे तेहिं देवेहिं मनसे पुट्ठे तेसिं देवाणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! ममं सत्त अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति। तए णं देवा समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा हट्ठतुट्ठ चित्तमाणंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता मनसे चेव सुस्सूसमाणा नमंसमाणा अभिमुहा विनएणं पंजलियडा पज्जुवासंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं तस्स भगवओ गोयमस्स ज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया, तं नो खलु अहं ते देवे जाणामि कयराओ कप्पाओ वा सग्गाओ वा विमानाओ वा कस्स वा अत्थस्स अट्ठाए इहं हव्वमागया? तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि नमंसामि जाव पज्जुवासामि, इमाइं च णं एयारूवाइं वागरणाइं पुच्छिस्सामि त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ जाव पज्जुवासइ। गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–से नूनं तव गोयमा! ज्झाणंतरियाए वट्टमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव जेणेव ममं अंतिए तेणेव हव्वमागए, से नूनं गोयमा! अट्ठे समट्ठे? हंता अत्थि। तं गच्छाहि णं गोयमा! एए चेव देवा इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं वागरेहिंति। तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, जेणेव ते देवा तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं ते देवा भगवं गोयमं एज्जमाणं पासंति, पासित्ता हट्ठ तुट्ठचित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाण हियया खिप्पामेव अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता खिप्पा-मेव अब्भुवगच्छंति जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छंति जाव नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु भंते! अम्हे महासुक्काओ कप्पाओ महासामाणाओ विमानाओ दो देवा महिड्ढिया जाव महानुभागा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं पाउब्भूया। तए णं अम्हे समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो, वंदित्ता नमंसित्ता मनसे चेव इमाइं एयारूवाइं वागरणाइं पुच्छामो–कइ णं भंते! देवानुप्पियाणं अंतेवासीसयाइं सिज्झिहिंति जाव अंतं करेहिंति? तए णं समणे भगवं महावीरे अम्हेहिं मनसे पुट्ठे अम्हं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! मम सत्त अंतेवासीसयाइं जाव अंतं करेहिंति। तए णं अम्हे समणेणं भगवया महावीरेणं मनसे चेव पुट्ठेणं मनसे चेव इमं एयारूवं वागरणं वागरिया समाणा समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो जाव पज्जुवासामो त्ति कट्टु भगवं गोयमं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।
Sutra Meaning : उस काल और उस समय में महाशुक्र कल्प से महासामान नामक महाविमान (विमान) से दो महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग देव श्रमण भगवान महावीर के पास प्रगट हुए। तत्पश्चात्‌ उन देवों ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके उन्होंने मन से ही इस प्रकार का ऐसा प्रश्न पूछा – भगवन्‌ ! आपके कितने सौ शिष्य सिद्ध होंगे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ? तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर ने उन देवों को भी मन से ही इस प्रकार का उत्तर दिया – हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत्‌ सब दुःखों का अन्त करेंगे। इस प्रकार उन देवों द्वारा मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान महावीर ने भी मन से ही इस प्रकार दिया, जिससे वे देव हर्षित, सन्तुष्ट (यावत्‌) हृदयवाले एवं प्रफुल्लित हुए। फिर उन्होंने भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया। मन से उनकी शुश्रूषा और नमस्कार करते हुए यावत्‌ पर्युपासना करने लगे। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार यावत्‌ न अतिदूर और न ही अतिनिकट उत्कुटुक आसन से बैठे हुए यावत्‌ पर्युपासना करते हुए उनकी सेवा में रहते थे। तत्पश्चात्‌ ध्यानान्तरिका में प्रवृत्त होते हुए भगवान गौतम के मन में इस प्रकार का इस रूप का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ – निश्चय ही महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग दो देव, श्रमण भगवान महावीर स्वामी के निकट प्रकट हुए; किन्तु मैं तो उन देवों को नहीं जानता कि वे कौन – से कल्प से या स्वर्ग से, कौन – से विमान से और किस प्रयोजन से शीघ्र यहाँ आए हैं ? अतः मैं भगवान महावीर स्वामी के पास जाऊं और वन्दना – नमस्कार करूँ; यावत्‌ पर्युपासना करूँ, और ऐसा करके मैं इन और इस प्रकार के उन प्रश्नो को पूछूँ। यों श्री गौतम स्वामी ने विचार किया और अपने स्थान से उठे। फिर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए यावत्‌ उनकी पर्युपासना करने लगे। इसके पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर ने गौतम से इस प्रकार कहा – गौतम ! एक ध्यान की समाप्त करके दूसरा ध्यान प्रारम्भ करने से पूर्व तुम्हारे मन में इस प्रकार का अध्यवसाय उत्पन्न हुआ कि मैं देवों सम्बन्धी तथ्य जानने के लिए श्रमण भगवान महावीर स्वामी की सेवा में जाकर उन्हें वन्दन – नमस्कार करूँ, यावत्‌ उनकी पर्युपासना करूँ, उसके पश्चात्‌ पूर्वोक्त प्रश्न पूछूँ, यावत्‌ इसी कारण से जहाँ मैं हूँ वहाँ तुम मेरे पास शीघ्र आए हो। हाँ, भगवन्‌ ! यह बात ऐसी ही है। (भगवान महावीर स्वामी ने कहा – ) गौतम ! तुम जाओ। वे देव ही इस प्रकार की जो भी बातें हुई थी, तुम्हें बताएंगे। तत्पश्चात्‌ श्रमण भगवान महावीर द्वारा इस प्रकार की आज्ञा मिलने पर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और फिर जिस तरफ वे देव थे, उसी ओर जाने का संकल्प किया। इधर उन देवों ने भगवान गौतम स्वामी को अपनी ओर आते देखा तो वे अत्यन्त हर्षित हुए यावत्‌ उनका हृदय प्रफुल्लित हो गया; वे शीघ्र ही खड़े हुए, फुर्ती से उनके सामने गए और जहाँ गौतम स्वामी थे, वहाँ उनके पास पहुँचे। फिर उन्हें यावत्‌ वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार बोले – भगवन्‌ ! महाशुक्रकल्प में, महासामान नामक महाविमान से हम दोनों महर्द्धिक यावत्‌ महानुभाग देव यहाँ आए हैं। हमने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया और मन से ही इस प्रकार की ये बातें पूछी कि भगवन्‌ ! आप देवानुप्रिय के कितने शिष्य सिद्ध होंगे यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ? तब हमारे द्वारा मन से ही श्रमण भगवान महावीर स्वामी से पूछे जाने पर उन्होंने हमें मन से ही इस प्रकार का यह उत्तर दिया – हे देवानुप्रियो ! मेरे सात सौ शिष्य सिद्ध होंगे, यावत्‌ सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। इस प्रकार मन से पूछे गए प्रश्न का उत्तर श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा मन से ही प्राप्त करके हम अत्यन्त हृष्ट और सन्तुष्ट हुए यावत्‌ हमारा हृदय उनके प्रति खिंच गया। अतएव हम श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार करके यावत्‌ उनकी पर्युपासना कर रहे हैं। यों कहकर उन देवों ने भगवान गौतम स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया और वे दोनों देव जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam mahasukkao kappao, mahasamanao vimanao do deva mahiddhiya java mahanubhaga samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam paubbhuya. Tae nam te deva samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, manasa cheva imam eyaruvam vagaranam puchchhamti– Kati nam bhamte! Devanuppiyanam amtevasisayaim sijjhihimti java amtam karehimti? Tae nam samane bhagavam mahavire tehim devehim manase putthe tesim devanam manase cheva imam eyaruvam vagaranam vagarei–evam khalu devanuppiya! Mamam satta amtevasisayaim sijjhihimti java amtam karehimti. Tae nam deva samanenam bhagavaya mahavirenam manase putthenam manase cheva imam eyaruvam vagaranam vagariya samana hatthatuttha chittamanamdiya namdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamana hiyaya samanam bhagavam mahaviram vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta manase cheva sussusamana namamsamana abhimuha vinaenam pamjaliyada pajjuvasamti. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare java adurasamamte uddhamjanu ahosire jjhanakotthovagae samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tae nam tassa bhagavao goyamassa jjhanamtariyae vattamanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– evam khalu do deva mahiddhiya java mahanubhaga samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam paubbhuya, tam no khalu aham te deve janami kayarao kappao va saggao va vimanao va kassa va atthassa atthae iham havvamagaya? Tam gachchhami nam samanam bhagavam mahaviram vamdami namamsami java pajjuvasami, imaim cha nam eyaruvaim vagaranaim puchchhissami tti kattu evam sampehei, sampehetta utthae utthei, utthetta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhai java pajjuvasai. Goyamadi! Samane bhagavam mahavire bhagavam goyamam evam vayasi–se nunam tava goyama! Jjhanamtariyae vattamanassa imeyaruve ajjhatthie java jeneva mamam amtie teneva havvamagae, se nunam goyama! Atthe samatthe? Hamta atthi. Tam gachchhahi nam goyama! Ee cheva deva imaim eyaruvaim vagaranaim vagarehimti. Tae nam bhagavam goyame samanenam bhagavaya mahavirenam abbhanunnae samane samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, jeneva te deva teneva paharettha gamanae. Tae nam te deva bhagavam goyamam ejjamanam pasamti, pasitta hattha tutthachittamanamdiya namdiya piimana paramasomanassiya harisavasavisappamana hiyaya khippameva abbhuttheti, abbhutthetta khippa-meva abbhuvagachchhamti jeneva bhagavam goyame teneva uvagachchhamti java namamsitta evam vayasi– Evam khalu bhamte! Amhe mahasukkao kappao mahasamanao vimanao do deva mahiddhiya java mahanubhaga samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam paubbhuya. Tae nam amhe samanam bhagavam mahaviram vamdamo namamsamo, vamditta namamsitta manase cheva imaim eyaruvaim vagaranaim puchchhamo–kai nam bhamte! Devanuppiyanam amtevasisayaim sijjhihimti java amtam karehimti? Tae nam samane bhagavam mahavire amhehim manase putthe amham manase cheva imam eyaruvam vagaranam vagarei–evam khalu devanuppiya! Mama satta amtevasisayaim java amtam karehimti. Tae nam amhe samanenam bhagavaya mahavirenam manase cheva putthenam manase cheva imam eyaruvam vagaranam vagariya samana samanam bhagavam mahaviram vamdamo namamsamo java pajjuvasamo tti kattu bhagavam goyamam vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta jameva disam paubbhuya tameva disim padigaya.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala aura usa samaya mem mahashukra kalpa se mahasamana namaka mahavimana (vimana) se do maharddhika yavat mahanubhaga deva shramana bhagavana mahavira ke pasa pragata hue. Tatpashchat una devom ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake unhomne mana se hi isa prakara ka aisa prashna puchha – bhagavan ! Apake kitane sau shishya siddha homge yavat sarva duhkhom ka anta karemge\? Tatpashchat shramana bhagavana mahavira ne una devom ko bhi mana se hi isa prakara ka uttara diya – he devanupriyo ! Mere sata sau shishya siddha homge, yavat saba duhkhom ka anta karemge. Isa prakara una devom dvara mana se puchhe gae prashna ka uttara shramana bhagavana mahavira ne bhi mana se hi isa prakara diya, jisase ve deva harshita, santushta (yavat) hridayavale evam praphullita hue. Phira unhomne bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya. Mana se unaki shushrusha aura namaskara karate hue yavat paryupasana karane lage. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha antevasi indrabhuti namaka anagara yavat na atidura aura na hi atinikata utkutuka asana se baithe hue yavat paryupasana karate hue unaki seva mem rahate the. Tatpashchat dhyanantarika mem pravritta hote hue bhagavana gautama ke mana mem isa prakara ka isa rupa ka adhyavasaya utpanna hua – nishchaya hi maharddhika yavat mahanubhaga do deva, shramana bhagavana mahavira svami ke nikata prakata hue; kintu maim to una devom ko nahim janata ki ve kauna – se kalpa se ya svarga se, kauna – se vimana se aura kisa prayojana se shighra yaham ae haim\? Atah maim bhagavana mahavira svami ke pasa jaum aura vandana – namaskara karum; yavat paryupasana karum, aura aisa karake maim ina aura isa prakara ke una prashno ko puchhum. Yom shri gautama svami ne vichara kiya aura apane sthana se uthe. Phira jaham shramana bhagavana mahavira svami virajamana the, vaham ae yavat unaki paryupasana karane lage. Isake pashchat shramana bhagavana mahavira ne gautama se isa prakara kaha – gautama ! Eka dhyana ki samapta karake dusara dhyana prarambha karane se purva tumhare mana mem isa prakara ka adhyavasaya utpanna hua ki maim devom sambandhi tathya janane ke lie shramana bhagavana mahavira svami ki seva mem jakara unhem vandana – namaskara karum, yavat unaki paryupasana karum, usake pashchat purvokta prashna puchhum, yavat isi karana se jaham maim hum vaham tuma mere pasa shighra ae ho. Ham, bhagavan ! Yaha bata aisi hi hai. (bhagavana mahavira svami ne kaha – ) gautama ! Tuma jao. Ve deva hi isa prakara ki jo bhi batem hui thi, tumhem bataemge. Tatpashchat shramana bhagavana mahavira dvara isa prakara ki ajnya milane para bhagavana gautama svami ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara kiya aura phira jisa tarapha ve deva the, usi ora jane ka samkalpa kiya. Idhara una devom ne bhagavana gautama svami ko apani ora ate dekha to ve atyanta harshita hue yavat unaka hridaya praphullita ho gaya; ve shighra hi khare hue, phurti se unake samane gae aura jaham gautama svami the, vaham unake pasa pahumche. Phira unhem yavat vandana – namaskara karake isa prakara bole – bhagavan ! Mahashukrakalpa mem, mahasamana namaka mahavimana se hama donom maharddhika yavat mahanubhaga deva yaham ae haim. Hamane shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara kiya aura mana se hi isa prakara ki ye batem puchhi ki bhagavan ! Apa devanupriya ke kitane shishya siddha homge yavat sarva duhkhom ka anta karemge\? Taba hamare dvara mana se hi shramana bhagavana mahavira svami se puchhe jane para unhomne hamem mana se hi isa prakara ka yaha uttara diya – he devanupriyo ! Mere sata sau shishya siddha homge, yavat sarva duhkhom ka anta karemge. Isa prakara mana se puchhe gae prashna ka uttara shramana bhagavana mahavira svami dvara mana se hi prapta karake hama atyanta hrishta aura santushta hue yavat hamara hridaya unake prati khimcha gaya. Ataeva hama shramana bhagavana mahavira svami ko vandana – namaskara karake yavat unaki paryupasana kara rahe haim. Yom kahakara una devom ne bhagavana gautama svami ko vandana – namaskara kiya aura ve donom deva jisa disha se ae the, usi disha mem vapasa lauta gae.