Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1003670
Scripture Name( English ): Bhagavati Translated Scripture Name : भगवती सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

शतक-३

Translated Chapter :

शतक-३

Section : उद्देशक-२ चमरोत्पात Translated Section : उद्देशक-२ चमरोत्पात
Sutra Number : 170 Category : Ang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासनंसि, चउसट्ठीए सामानियसाहसहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अत्थि णं भंते! ईसिप्पब्भाराए पुढवीए अहे असुर-कुमारा देवा परिवसंति? नो इणट्ठे समट्ठे। से कहिं खाइ णं भंते! असुरकुमारा देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीतुत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए एवं असुरकुमारदेव-वत्तव्वया जाव दिव्वाइं भोग-भोगाइं भुंजमाणा विहरंति। अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसए? हंता अत्थि। केवतियण्णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! जाव अहेसत्तमाए पुढवीए। तच्चं पुण पुढविं गया य गमिस्संति य। किंपत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य? गोयमा! पुव्ववेरियस्स वा वेदणउदीरणयाए, पुव्वसंगतियस्स वा वेदणउवसामणयाए–एवं खलु असुरकुमारा देवा तच्चं पुढविं गया य गमिस्संति य। अत्थि णं भंते? असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पन्नत्ते? हंता अत्थि। केवतियण्णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं तिरियं गतिविसए पन्नत्ते? गोयमा! जाव असंखेज्जा दीव-समुद्दा, नंदिस्सरवरं पुण दीवं गया य गमिस्संति य। किंपत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया य गमिस्संति य? गोयमा! जे इमे अरहंता भगवंतो, एएसि णं जम्मणमहेसु वा, निक्खमणमहेसु वा, नाणुप्पायमहिमासु वा, परिनिव्वाणमहिमासु वा–एवं खलु असुरकुमारा देवा नंदिस्सरवरं दीवं गया य गमिस्संति य। अत्थि णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए? हंता अत्थि। केवतियण्णं भंते! असुरकुमाराणं देवाणं उड्ढं गतिविसए? गोयमा! जाव अच्चुतो कप्पो, सोहम्मं पुण कप्पं गया य गमिस्संति य। किंपत्तियण्णं भंते! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य? गोयमा! तेसि णं देवाणं भवपच्चइए वेराणुबंधे, ते णं देवा विकुव्वेमाणा परियारेमाणा वा आयरक्खे देवे वित्तासेंति अहालहुसगाइं रयणाइं गहाय आया। एगंतमंतं अवक्कमंति। अत्थि णं भंते! तेसिं देवाणं अहालहुसगाइं रयणाइं? हंता अत्थि। से कहमिदाणिं पकरेंति? तओ से पच्छा कायं पव्वहंति। पभू णं भंते! असुरकुमारा देवा तत्थ गया चेव समाणा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। ते णं ततो पडिनियत्तंति, ततो पडिनियत्तित्ता इहमागच्छंति। जइ णं ताओ अच्छराओ आढायंति परियाणंति पभू णं ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए। अह णं ताओ अच्छराओ नो आढंति, नो परियाणंति, नो णं पभू ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरित्तए। एवं खलु गोयमा! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य।
Sutra Meaning : उस काल, उस समय में राजगृह नामका नगर था। यावत्‌ भगवान वहाँ पधारे और परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी। उस काल, उस समय में चौंसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत्त और चमरचंचा नामक राजधानी में, सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठे असुरेन्द्र असुरराज चमर ने (राजगृह में विराजमान भगवान को अवधिज्ञान से देखा); यावत्‌ नाट्यविधि दिखलाकर जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस लौट गया। ‘हे भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन्‌ ! क्या असुरकुमार देव इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे रहते हैं ? हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। इसी प्रकार यावत्‌ सप्तम पृथ्वी के नीचे भी वे नहीं रहते; और न सौधर्मकल्प – देवलोक के नीचे, यावत्‌ अन्य सभी कल्पों के नीचे वे रहते हैं। भगवन्‌ ! क्या वे असुरकुमार देव ईषत्प्राग्भारा (सिद्धशिला) पृथ्वी के नीचे रहते हैं ? (हे गौतम !) यह अर्थ भी समर्थ नहीं। भगवन्‌ ! तब ऐसा वह कौन – सा स्थान है, जहाँ असुरकुमार देव निवास करते हैं ? गौतम! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बीच में (असुरकुमार देव रहते हैं।) यहाँ असुरकुमार – सम्बन्धी समस्त वक्तव्यता कहनी चाहिए; यावत्‌ वे दिव्य भोगों का उपभोग करते हुए विचरण करते हैं। भगवन्‌ ! क्या असुरकुमार देवों का अधोगमन – विषयक (सामर्थ्य) है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन्‌ ! असुर – कुमार देवों का अधोगमन – विषयक सामर्थ्य कितना है ? गौतम ! सप्तमपृथ्वी तक नीचे जाने की शक्ति उनमें है। वे तीसरी पृथ्वी तक गये हैं, जाते हैं और जायेंगे। भगवन्‌ ! किस प्रयोजन से असुरकुमार देव तीसरी पृथ्वी तक गए हैं, (जाते हैं) और भविष्य में जायेंगे ? हे गौतम ! अपने पूर्व शत्रु को दुःख देने अथवा अपने पूर्व साथी की वेदना का उपशमन करने के लिए असुरकुमार देव तृतीय पृथ्वी तक गए हैं, (जाते हैं), और जाएंगे। भगवन्‌ ! क्या असुरकुमारदेवों में तिर्यग्‌ (तीरछे) गमन करने का सामर्थ्य कहा गया है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन्‌ ! असुरकुमार देवों में तीरछा जाने की कितनी शक्ति है ? गौतम ! असुरकुमार देवों में, यावत्‌ असंख्येय द्वीप – समुद्रों तक किन्तु वे नन्दीश्वर द्वीप तक गए हैं, (जाते हैं,) और भविष्य में जायेंगे। भगवन्‌ ! असुरकुमार देव, नन्दीश्वरद्वीप किस प्रयोजन से गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे ? हे गौतम ! अरिहंत भगवान के जन्म – महोत्सव में, निष्क्रमण महोत्सव में, ज्ञानोत्पत्ति होने पर तथा परिनिर्वाण पर महिमा करने के लिए नन्दीश्वरद्वीप गए हैं, जाते हैं और जाएंगे। भगवन्‌ ! क्या असुरकुमार देवों में ऊर्ध्व गमनविषयक सामर्थ्य है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन्‌ ! असुरकुमार देवों की ऊर्ध्वगमनविषयक शक्ति कितनी है ? गौतम ! असुरकुमार देव अपने स्थान से यावत्‌ अच्युतकल्प तक ऊपर जाने में समर्थ हैं। अपितु वे सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे। भगवन्‌ ! असुरकुमारदेव किस प्रयोजन से सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे ? हे गौतम ! उन (असुर – कुमार) देवों का वैमानिक देवों के साथ भवप्रत्ययिक वैरानुबन्ध होता है। इस कारण वे देव क्रोधवश वैक्रिय शक्ति द्वारा नानारूप बनाते हुए तथा परकीय देवियों के साथ (परिचार) संभोग करते हुए (वैमानिक) आत्मरक्षक देवों को त्रास पहुँचाते हैं, तथा यथोचित छोटे – मोटे रत्नों को ले (चूरा) कर स्वयं एकान्त भाग में चले जाते हैं। भगवन्‌ ! क्या उन देवों के पास यथोचित छोटे – मोटे रत्न होते हैं ? हाँ, गौतम ! होते हैं। भगवन्‌ ! जब वे असुरकुमार देव रत्न चूराकर भाग जाते हैं, तब वैमानिक देव उनका क्या करते हैं ? वैमानिक देव उनके शरीर को अत्यन्त व्यथा पहुँचाते हैं। भगवन्‌ ! क्या वहाँ (सौधर्मकल्प में) गए हुए वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोगने योग्य भोगों को भोगने में समर्थ हैं ? (हे गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं। वे वहाँ से वापस लौट जाते हैं। वहाँ से लौटकर वे यहाँ (अपने स्थान में) आते हैं। यदि वे (वैमानिक) अप्सराएं उनका आदर करें, उन्हें स्वामीरूप में स्वीकारे तो, वे असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य भोग भोग सकते हैं – यदि आदर न करे, उनका स्वामीरूप में स्वीकार न करे तो, असुरकुमार देव उन अप्सराओं के साथ दिव्य एवं भोग्य भोगों को नहीं भोग सकते। हे गौतम ! इस कारण से असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक गए हैं, (जाते हैं) और जाएंगे।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tenam kalenam tenam samaenam rayagihe namam nagare hottha java parisa pajjuvasai. Tenam kalenam tenam samaenam chamare asurimde asuraraya chamarachamchae rayahanie, sabhae suhammae, chamaramsi sihasanamsi, chausatthie samaniyasahasahim java nattavihim uvadamsetta jameva disim paubbhue tameva disim padigae. Bhamteti! Bhagavam goyame samanam bhagavam mahaviram vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Atthi nam bhamte! Imise rayanappabhae pudhavie ahe asurakumara deva parivasamti? Goyama! No inatthe samatthe. Evam java ahesattamae pudhavie, sohammassa kappassa ahe java atthi nam bhamte! Isippabbharae pudhavie ahe asura-kumara deva parivasamti? No inatthe samatthe. Se kahim khai nam bhamte! Asurakumara deva parivasamti? Goyama! Imise rayanappabhae pudhavie asituttarajoyanasayasahassabahallae evam asurakumaradeva-vattavvaya java divvaim bhoga-bhogaim bhumjamana viharamti. Atthi nam bhamte! Asurakumaranam devanam ahe gativisae? Hamta atthi. Kevatiyannam bhamte! Asurakumaranam devanam ahe gativisae pannatte? Goyama! Java ahesattamae pudhavie. Tachcham puna pudhavim gaya ya gamissamti ya. Kimpattiyannam bhamte! Asurakumara deva tachcham pudhavim gaya ya gamissamti ya? Goyama! Puvvaveriyassa va vedanaudiranayae, puvvasamgatiyassa va vedanauvasamanayae–evam khalu asurakumara deva tachcham pudhavim gaya ya gamissamti ya. Atthi nam bhamte? Asurakumaranam devanam tiriyam gativisae pannatte? Hamta atthi. Kevatiyannam bhamte! Asurakumaranam devanam tiriyam gativisae pannatte? Goyama! Java asamkhejja diva-samudda, namdissaravaram puna divam gaya ya gamissamti ya. Kimpattiyannam bhamte! Asurakumara deva namdissaravaram divam gaya ya gamissamti ya? Goyama! Je ime arahamta bhagavamto, eesi nam jammanamahesu va, nikkhamanamahesu va, nanuppayamahimasu va, parinivvanamahimasu va–evam khalu asurakumara deva namdissaravaram divam gaya ya gamissamti ya. Atthi nam bhamte! Asurakumaranam devanam uddham gativisae? Hamta atthi. Kevatiyannam bhamte! Asurakumaranam devanam uddham gativisae? Goyama! Java achchuto kappo, sohammam puna kappam gaya ya gamissamti ya. Kimpattiyannam bhamte! Asurakumara deva sohammam kappam gaya ya gamissamti ya? Goyama! Tesi nam devanam bhavapachchaie veranubamdhe, te nam deva vikuvvemana pariyaremana va ayarakkhe deve vittasemti ahalahusagaim rayanaim gahaya aya. Egamtamamtam avakkamamti. Atthi nam bhamte! Tesim devanam ahalahusagaim rayanaim? Hamta atthi. Se kahamidanim pakaremti? Tao se pachchha kayam pavvahamti. Pabhu nam bhamte! Asurakumara deva tattha gaya cheva samana tahim achchharahim saddhim divvaim bhogabhogaim bhumjamana viharittae? No inatthe samatthe. Te nam tato padiniyattamti, tato padiniyattitta ihamagachchhamti. Jai nam tao achchharao adhayamti pariyanamti pabhu nam te asurakumara deva tahim achchharahim saddhim divvaim bhogabhogaim bhumjamana viharittae. Aha nam tao achchharao no adhamti, no pariyanamti, no nam pabhu te asurakumara deva tahim achchharahim saddhim divvaim bhogabhogaim bhumjamana viharittae. Evam khalu goyama! Asurakumara deva sohammam kappam gaya ya gamissamti ya.
Sutra Meaning Transliteration : Usa kala, usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Yavat bhagavana vaham padhare aura parishad paryupasana karane lagi. Usa kala, usa samaya mem chaumsatha hajara samanika devom se parivritta aura chamarachamcha namaka rajadhani mem, sudharmasabha mem chamara namaka simhasana para baithe asurendra asuraraja chamara ne (rajagriha mem virajamana bhagavana ko avadhijnyana se dekha); yavat natyavidhi dikhalakara jisa disha se aya tha, usi disha mem vapasa lauta gaya. ‘He bhagavan !’ yom kahakara bhagavana gautama ne shramana bhagavana mahavira ko vandana – namaskara karake puchha – bhagavan ! Kya asurakumara deva isa ratnaprabhaprithvi ke niche rahate haim\? He gautama ! Yaha artha samartha nahim hai. Isi prakara yavat saptama prithvi ke niche bhi ve nahim rahate; aura na saudharmakalpa – devaloka ke niche, yavat anya sabhi kalpom ke niche ve rahate haim. Bhagavan ! Kya ve asurakumara deva ishatpragbhara (siddhashila) prithvi ke niche rahate haim\? (he gautama !) yaha artha bhi samartha nahim. Bhagavan ! Taba aisa vaha kauna – sa sthana hai, jaham asurakumara deva nivasa karate haim\? Gautama! Eka lakha assi hajara yojana moti isa ratnaprabha prithvi ke bicha mem (asurakumara deva rahate haim.) yaham asurakumara – sambandhi samasta vaktavyata kahani chahie; yavat ve divya bhogom ka upabhoga karate hue vicharana karate haim. Bhagavan ! Kya asurakumara devom ka adhogamana – vishayaka (samarthya) hai\? Ham, gautama ! Hai. Bhagavan ! Asura – kumara devom ka adhogamana – vishayaka samarthya kitana hai\? Gautama ! Saptamaprithvi taka niche jane ki shakti unamem hai. Ve tisari prithvi taka gaye haim, jate haim aura jayemge. Bhagavan ! Kisa prayojana se asurakumara deva tisari prithvi taka gae haim, (jate haim) aura bhavishya mem jayemge\? He gautama ! Apane purva shatru ko duhkha dene athava apane purva sathi ki vedana ka upashamana karane ke lie asurakumara deva tritiya prithvi taka gae haim, (jate haim), aura jaemge. Bhagavan ! Kya asurakumaradevom mem tiryag (tirachhe) gamana karane ka samarthya kaha gaya hai\? Ham, gautama ! Hai. Bhagavan ! Asurakumara devom mem tirachha jane ki kitani shakti hai\? Gautama ! Asurakumara devom mem, yavat asamkhyeya dvipa – samudrom taka kintu ve nandishvara dvipa taka gae haim, (jate haim,) aura bhavishya mem jayemge. Bhagavan ! Asurakumara deva, nandishvaradvipa kisa prayojana se gae haim, (jate haim) aura jaemge\? He gautama ! Arihamta bhagavana ke janma – mahotsava mem, nishkramana mahotsava mem, jnyanotpatti hone para tatha parinirvana para mahima karane ke lie nandishvaradvipa gae haim, jate haim aura jaemge. Bhagavan ! Kya asurakumara devom mem urdhva gamanavishayaka samarthya hai\? Ham, gautama ! Hai. Bhagavan ! Asurakumara devom ki urdhvagamanavishayaka shakti kitani hai\? Gautama ! Asurakumara deva apane sthana se yavat achyutakalpa taka upara jane mem samartha haim. Apitu ve saudharmakalpa taka gae haim, (jate haim) aura jaemge. Bhagavan ! Asurakumaradeva kisa prayojana se saudharmakalpa taka gae haim, (jate haim) aura jaemge\? He gautama ! Una (asura – kumara) devom ka vaimanika devom ke satha bhavapratyayika vairanubandha hota hai. Isa karana ve deva krodhavasha vaikriya shakti dvara nanarupa banate hue tatha parakiya deviyom ke satha (parichara) sambhoga karate hue (vaimanika) atmarakshaka devom ko trasa pahumchate haim, tatha yathochita chhote – mote ratnom ko le (chura) kara svayam ekanta bhaga mem chale jate haim. Bhagavan ! Kya una devom ke pasa yathochita chhote – mote ratna hote haim\? Ham, gautama ! Hote haim. Bhagavan ! Jaba ve asurakumara deva ratna churakara bhaga jate haim, taba vaimanika deva unaka kya karate haim\? Vaimanika deva unake sharira ko atyanta vyatha pahumchate haim. Bhagavan ! Kya vaham (saudharmakalpa mem) gae hue ve asurakumara deva una apsaraom ke satha divya bhogane yogya bhogom ko bhogane mem samartha haim\? (he gautama !) yaha artha samartha nahim. Ve vaham se vapasa lauta jate haim. Vaham se lautakara ve yaham (apane sthana mem) ate haim. Yadi ve (vaimanika) apsaraem unaka adara karem, unhem svamirupa mem svikare to, ve asurakumara deva una apsaraom ke satha divya bhoga bhoga sakate haim – yadi adara na kare, unaka svamirupa mem svikara na kare to, asurakumara deva una apsaraom ke satha divya evam bhogya bhogom ko nahim bhoga sakate. He gautama ! Isa karana se asurakumara deva saudharmakalpa taka gae haim, (jate haim) aura jaemge.