Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003642 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२ |
Translated Chapter : |
शतक-२ |
Section : | उद्देशक-१० अस्तिकाय | Translated Section : | उद्देशक-१० अस्तिकाय |
Sutra Number : | 142 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कति णं भंते! अत्थिकाया पन्नत्ता? गोयमा! पंच अत्थिकाया पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए। धम्मत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे; अरूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगे दव्वे, खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे। भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। गुणओ गमणगुणे। अधम्मत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे; अरूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं अधम्मत्थिकाए एगे दव्वे। खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे। भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। गुणओ ठाणगुणे। आगासत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे; अरूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं आगासत्थिकाए एगे दव्वे। खेत्तओ लोयालोयप्पमाणमेत्ते–अनंते। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे। भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। गुणओ अवगाहणागुणे। जीवत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे; अरूवी, जीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं जीवत्थिकाए अनंताइं जीवदव्वाइं। खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे। भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। गुणओ उवओगगुणे। पोग्गलत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! पंचवण्णे, पंचरसे, दुगंधे, अट्ठफासे; रूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए, लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं पोग्गलत्थिकाए अनंताइं दव्वाइं। खेत्तओ लोयप्पमाणमेत्ते। कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, निच्चे। भावओ वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते। गुणओ गहणगुणे। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! अस्तिकाय कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्ति – काय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय। भगवन् ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? गौतम ! धर्मास्ति – काय वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है, अर्थात् – धर्मास्तिकाय अरूपी है, अजीव है, शाश्वत है, अवस्थित लोक (प्रमाण) द्रव्य है। संक्षेप में, धर्मास्तिकाय पाँच प्रकार का कहा गया है – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से और गुण से। धर्मास्तिकाय द्रव्य से एक द्रव्य है, क्षेत्र से लोकप्रमाण है; काल की अपेक्षा कभी नहीं था, ऐसा नहीं; कभी नहीं है, ऐसा नहीं; और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भी नहीं; किन्तु वह था, है और रहेगा, यावत् वह नित्य है। भाव की अपेक्षा वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है। गुण की अपेक्षा धर्मास्तिकाय गति – गुणवाला है। जिस तरह धर्मास्तिकाय का कथन किया गया है, उसी तरह अधर्मास्तिकाय के विषय में भी कहना। विशेष यह कि अधर्मास्तिकाय गुण की अपेक्षा स्थितिगुण वाला है। आकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए, किन्तु इतना अन्तर है कि क्षेत्र की अपेक्षा आकाशास्तिकाय लोकालोक – प्रमाण है और गुण की अपेक्षा अवगाहना गुण वाला है। भगवन् ! जीवास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? गौतम ! जीवास्ति – काय वर्ण – गन्ध – रस – स्पर्शरहित है वह अरूपी है, जीव है, शाश्वत है, अवस्थित लोकद्रव्य है। संक्षेप में, जीवास्ति – काय के पाँच प्रकार कहे गए हैं। वह इस प्रकार – द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण की अपेक्षा जीवास्तिकाय। द्रव्य की अपेक्षा – जीवास्तिकाय अनन्त जीवद्रव्यरूप है। क्षेत्र की अपेक्षा – लोक – प्रमाण है। काल की अपेक्षा – वह कभी नहीं था, ऐसा नहीं, यावत् वह नित्य है। भाव की अपेक्षा – जीवास्तिकाय में वर्ण नहीं, गन्ध नहीं, रस नहीं और स्पर्श नहीं है। गुण की अपेक्षा – जीवास्तिकाय उपयोगगुण वाला है। भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? गौतम ! पाँच वर्ण, पाँच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श हैं। वह रूपी है, अजीव है, शाश्वत और अवस्थित लोकद्रव्य है। संक्षेप में उसके पाँच प्रकार कहे हैं; यथा – द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण से। द्रव्य की अपेक्षा – पुद्गलास्तिकाय अनन्तद्रव्यरूप है; क्षेत्र की अपेक्षा – पुद्गलास्तिकाय लोक – प्रमाण है, काल की अपेक्षा – वह कभी नहीं था ऐसा नहीं, यावत् नित्य है। भाव की अपेक्षा – वह वर्णवाला, गन्धवाला, रसवाला, स्पर्शवाला है। गुण की अपेक्षा – वह ग्रहण गुणवाला है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kati nam bhamte! Atthikaya pannatta? Goyama! Pamcha atthikaya pannatta, tam jaha–dhammatthikae, adhammatthikae, agasatthikae, jivatthikae, poggalatthikae. Dhammatthikae nam bhamte! Kativanne? Katigamdhe? Katirase? Katiphase? Goyama! Avanne, agamdhe, arase, aphase; Aruvi, ajive, sasae, avatthie logadavve. Se samasao pamchavihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao, gunao. Davvao nam dhammatthikae ege davve, Khettao logappamanamette, Kalao na kayai na asi, na kayai natthi, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve, niyae, sasae, akkhae, avvae, avatthie nichche. Bhavao avanne, agamdhe, arase, aphase. Gunao gamanagune. Adhammatthikae nam bhamte! Kativanne? Katigamdhe? Katirase? Katiphase? Goyama! Avanne, agamdhe, arase, aphase; Aruvi, ajive, sasae, avatthie logadavve. Se samasao pamchavihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao, gunao. Davvao nam adhammatthikae ege davve. Khettao logappamanamette. Kalao na kayai na asi, na kayai natthi, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve, niyae, sasae, akkhae, avvae, avatthie, nichche. Bhavao avanne, agamdhe, arase, aphase. Gunao thanagune. Agasatthikae nam bhamte! Kativanne? Katigamdhe? Katirase? Katiphase? Goyama! Avanne, agamdhe, arase, aphase; Aruvi, ajive, sasae, avatthie logadavve. Se samasao pamchavihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao, gunao. Davvao nam agasatthikae ege davve. Khettao loyaloyappamanamette–anamte. Kalao na kayai na asi, na kayai natthi, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve, niyae, sasae, akkhae, avvae, avatthie, nichche. Bhavao avanne, agamdhe, arase, aphase. Gunao avagahanagune. Jivatthikae nam bhamte! Kativanne? Katigamdhe? Katirase? Katiphase? Goyama! Avanne, agamdhe, arase, aphase; Aruvi, jive, sasae, avatthie logadavve. Se samasao pamchavihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao, gunao. Davvao nam jivatthikae anamtaim jivadavvaim. Khettao logappamanamette. Kalao na kayai na asi, na kayai natthi, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve, niyae, sasae, akkhae, avvae, avatthie nichche. Bhavao avanne, agamdhe, arase, aphase. Gunao uvaogagune. Poggalatthikae nam bhamte! Kativanne? Katigamdhe? Katirase? Katiphase? Goyama! Pamchavanne, pamcharase, dugamdhe, atthaphase; Ruvi, ajive, sasae, avatthie, logadavve. Se samasao pamchavihe pannatte, tam jaha–davvao, khettao, kalao, bhavao, gunao. Davvao nam poggalatthikae anamtaim davvaim. Khettao loyappamanamette. Kalao na kayai na asi, na kayai natthi, na kayai na bhavissai–bhavimsu ya, bhavati ya, bhavissai ya–dhuve, niyae, sasae, akkhae, avvae, avatthie, nichche. Bhavao vannamamte, gamdhamamte, rasamamte, phasamamte. Gunao gahanagune. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Astikaya kitane kahe gae haim\? Gautama ! Pamcha haim. Dharmastikaya, adharmastikaya, akashasti – kaya, jivastikaya aura pudgalastikaya. Bhagavan ! Dharmastikaya mem kitane varna, kitane gandha, kitane rasa aura kitane sparsha haim\? Gautama ! Dharmasti – kaya varnarahita, gandharahita, rasarahita aura sparsharahita hai, arthat – dharmastikaya arupi hai, ajiva hai, shashvata hai, avasthita loka (pramana) dravya hai. Samkshepa mem, dharmastikaya pamcha prakara ka kaha gaya hai – dravya se, kshetra se, kala se, bhava se aura guna se. Dharmastikaya dravya se eka dravya hai, kshetra se lokapramana hai; kala ki apeksha kabhi nahim tha, aisa nahim; kabhi nahim hai, aisa nahim; aura kabhi nahim rahega, aisa bhi nahim; kintu vaha tha, hai aura rahega, yavat vaha nitya hai. Bhava ki apeksha varnarahita, gandharahita, rasarahita aura sparsharahita hai. Guna ki apeksha dharmastikaya gati – gunavala hai. Jisa taraha dharmastikaya ka kathana kiya gaya hai, usi taraha adharmastikaya ke vishaya mem bhi kahana. Vishesha yaha ki adharmastikaya guna ki apeksha sthitiguna vala hai. Akashastikaya ke vishaya mem bhi isi prakara kahana chahie, kintu itana antara hai ki kshetra ki apeksha akashastikaya lokaloka – pramana hai aura guna ki apeksha avagahana guna vala hai. Bhagavan ! Jivastikaya mem kitane varna, kitane gandha, kitane rasa aura kitane sparsha haim\? Gautama ! Jivasti – kaya varna – gandha – rasa – sparsharahita hai vaha arupi hai, jiva hai, shashvata hai, avasthita lokadravya hai. Samkshepa mem, jivasti – kaya ke pamcha prakara kahe gae haim. Vaha isa prakara – dravya, kshetra, kala, bhava aura guna ki apeksha jivastikaya. Dravya ki apeksha – jivastikaya ananta jivadravyarupa hai. Kshetra ki apeksha – loka – pramana hai. Kala ki apeksha – vaha kabhi nahim tha, aisa nahim, yavat vaha nitya hai. Bhava ki apeksha – jivastikaya mem varna nahim, gandha nahim, rasa nahim aura sparsha nahim hai. Guna ki apeksha – jivastikaya upayogaguna vala hai. Bhagavan ! Pudgalastikaya mem kitane varna, kitane gandha, kitane rasa aura kitane sparsha haim\? Gautama ! Pamcha varna, pamcha rasa, do gandha aura atha sparsha haim. Vaha rupi hai, ajiva hai, shashvata aura avasthita lokadravya hai. Samkshepa mem usake pamcha prakara kahe haim; yatha – dravya, kshetra, kala, bhava aura guna se. Dravya ki apeksha – pudgalastikaya anantadravyarupa hai; kshetra ki apeksha – pudgalastikaya loka – pramana hai, kala ki apeksha – vaha kabhi nahim tha aisa nahim, yavat nitya hai. Bhava ki apeksha – vaha varnavala, gandhavala, rasavala, sparshavala hai. Guna ki apeksha – vaha grahana gunavala hai. |