Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )

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Sr No : 1003427
Scripture Name( English ): Samavayang Translated Scripture Name : समवयांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Translated Chapter :

समवाय प्रकीर्णक

Section : Translated Section :
Sutra Number : 327 Category : Ang-04
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा धीरपुरिसा जुद्ध-कित्तिपुरिसा विउलकुल-समुब्भवा महारयण-विहाडगा अद्धभरहसामी सोमा रायकुल-वंस-तिलया अजिया अजियरहा हल-मुसल-कणग-पाणी संख-चक्क-गय-सत्ति-नंदगधरा पवरुज्जल-सुक्कंत-विमल-गोथुभ-तिरीडधारी कुंडल-उज्जोइ-याणणा पुंडरीय-णयणा एकावलि-कंठलइय-वच्छा सिरिवच्छ-सुलंछणा वरजसा सव्वोउय-सुरभि-कुसुम-सुरइत-पलंबसोभंत-कंत-विकसंतचित्त-वरमाल-रइयवच्छा अट्ठसय-विभत्त-लक्खण-पसत्थ -सुंदर-विरइयंगमंगा मत्तगयवरिंद-ललिय-विक्कम-विलसियगई सारय-नवथणियमधुर-गंभीर-कोंच-निग्घोस-दुंदुभिसरा कडिसुत्तगनील-पीय-कोसेयवाससा पवरदित्त-तेया नरसीहा नरवई नरिंदा नर-वसभा मरुयवसभकप्पा अब्भहियं राय-तेय-लच्छीए दिप्पमाणा नीलग-पीतग-वसणा दुवे-दुवे रामकेसवा भायरो होत्था, तं जहा–
Sutra Meaning : इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य जनों के बल की अपेक्षा अधिक बलशाली होने से वे मध्यम पुरुष थे। अपने समय के पुरुषों के शौर्यादि गुणों की प्रधानता की अपेक्षा वे प्रधान पुरुष थे। मानसिक बल से सम्पन्न होने के कारण ओजस्वी थे। देदीप्यमान शरीरों के धारक होने से तेजस्वी थे। शारीरिक बल से संयुक्त होने के कारण वर्चस्वी थे, पराक्रम के द्वारा प्रसिद्धि को प्राप्त करने से यशस्वी थे। शरीर की छाया (प्रभा) से युक्त होने के कारण वे छायावन्त थे। शरीर की कान्ति से युक्त होने से कान्त थे, चन्द्र के समान सौम्य मुद्रा के धारक थे, सर्वजनों के वल्लभ होने से वे सुभग या सौभाग्यशाली थे। नेत्रों को अतिप्रिय होने से वे प्रियदर्शन थे। समचतुरस्र संस्थान के धारक होने से वे सुरूप थे। शुभ स्वभाव होने से वे शुभशील थे। सुखपूर्वक सरलता से प्रत्येक जन उनसे मिल सकता था, अतः वे सुखाभिगम्य थे। सर्व जनों के नयनों के प्यारे थे। कभी नहीं थकने वाले अविच्छिन्न प्रवाहयुक्त बलशाली होने से वे ओधबली थे, अपने समय के सभी पुरुषों के बल का अति – क्रमण करने से अतिबली थे, और महान्‌ प्रशस्त या श्रेष्ठ बलशाली होने से वे महाबली थे। निरुपक्रम आयुष्य के धारक होने से अनिहत अर्थात्‌ दूसरे के द्वारा होने वाले घात या मरण से रहित थे, अथवा मल्ल – युद्ध में कोई उनको पराजित नहीं कर सकता था, इसी कारण वे अपराजित थे। बड़े – बड़े युद्धों में शत्रुओं का मर्दन करने से वे शत्रु – मर्दन थे, सहस्त्रों शत्रुओं के मान का मथन करने वाले थे। आज्ञा या सेवा स्वीकार करने वालों पर द्रोह छोड़कर कृपा करने वाले थे। वे मात्सर्य – रहित थे, क्योंकि दूसरों के लेशमात्र भी गुणों के ग्राहक थे। मन, वचन, काय की स्थिर प्रवृत्ति के कारण वे अचपल (चपलता – रहित) थे। निष्कारण प्रचण्ड क्रोध से रहित थे, मंजुल वचनालाप और मृदु हास्य से युक्त थे। गम्भीर, मधुर और परिपूर्ण सत्य वचन बोलते थे। अधीनता स्वीकार करने वालों पर वात्सल्य भाव रखते थे। शरण में आने वाले के रक्षक थे। वज्र, स्वस्तिक, चक्र आदि लक्षणों से और तिल, मशा आदि व्यंजनों के गुणों से संयुक्त थे। शरीर के मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण थे, वे जन्म – सात सर्वाङ्ग सुन्दर शरीर के धारक थे। चन्द्र के सौम्य आकार वाले, कान्त और प्रियदर्शन थे। ‘अमसृण’ अर्थात्‌ कर्तव्य – पालन में आलस्य – रहित थे अथवा ‘अणर्षण’ अर्थात्‌ अपराध करने वालों पर भी क्षमाशील थे। उद्दंड पुरुषों पर प्रचंड दंडनीति के धारक थे। गम्भीर और दर्शनीय थे। बलदेव ताल वृक्ष के चिह्न वाली ध्वजा के और वासुदेव गरुड़ के चिह्न वाली ध्वजा के धारक थे। वे दशारमंडल कर्ण – पर्यन्त महाधनुषों को खींचने वाले, महासत्त्व (बल) के सागर थे। रण – भूमि में उनके प्रहार का सामना करना अशक्य था। वे महान्‌ धनुषों के धारक थे, पुरुषों में धीर – वीर थे, युद्धों में प्राप्त कीर्ति के धारक पुरुष थे, विशाल कुलों में उत्पन्न हुए थे, महारत्न वज्र (हीरा) को भी अंगूठे और तर्जनी दो अंगुलियों से चूर्ण कर देते थे। आधे भरतक्षेत्र के अर्थात्‌ तीन खंड के स्वामी थे। सौम्यस्वभावी थे। राज कुलों और राजवंशों के तिलक थे। अजित थे (किसी से भी नहीं जीते जाते थे) और अजितरथ (अजेय रथ वाले) थे। बलदेव हल और मूशल रूप शस्त्रों के धारक थे, तथा वासुदेव शार्ङ्ग धनुष, पाञ्चजन्य शंख, सुदर्शन चक्र, कौमोदकी गदा, शकत्सिनन्दकनमा खङ्ग के धारक थे। प्रवर, उज्ज्वल, सुकान्त, विमल कौस्तुभ मणि युक्त मुकुट के धारी थे। उनका मुख कुण्डलों में लगे मणियों के प्रकाश से युक्त रहता था। कमल के समान नेत्र वाले थे। एकावली हार कंठ से लेकर वक्षःस्थल तक शोभित रहता था। उनका वक्षःस्थल श्रीवत्स के सुलक्षण से चिह्नित था। वे विश्व – विख्यात यश वाले थे। सभी ऋतुओं में उत्पन्न होने वाले, सुगन्धित पुष्पों से रची गई, लम्बी, शोभायुक्त, कान्त, विकसित, पंचवर्णी श्रेष्ठ माला से उनका वक्षःस्थल सदा शोभायमान रहता था। उनके सुन्दर अंग – प्रत्यंग एक सौ आठ प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न थे। वे मद – मत्त गजराज के समान ललित, विक्रम और विलास – युक्त गति वाले थे। शरद ऋतु के नव – उदित मेघ के समान मधुर, गंभीर, क्रौंच पक्षी के निर्घोष और दुन्दुभि के समान स्वर वाले थे। बलदेव कटिसूत्र वाले नील कौशेयक वस्त्र से तथा वासुदेव कटिसूत्र वाले पीत कौशेयक वस्त्र से युक्त रहते थे (बलदेवों की कमर पर नीले रंग का और वासुदेवों की कमर पर पीले रंग का दुपट्टा बंधा रहता था)। वे प्रकृष्ट दीप्ति और तेज से युक्त थे, प्रबल बलशाली होने से वे मनुष्यों में सिंह के समान होने से नरसिंह, मनुष्यों के पति होने से नरपति, परम ऐश्वर्यशाली होने से नरेन्द्र तथा सर्वश्रेष्ठ होने से नर – वृषभ कहलाते थे। अपने कार्यभार का पूर्ण रूप से निर्वाह करने से वे मरुद्‌ – वृषभकल्प अर्थात्‌ देवराज की उपमा को धारण करते थे। अन्य राजा – महाराजाओं से अधिक राजतेज रूप लक्ष्मी से देदीप्यमान थे। इस प्रकार नील – वसन वाले नौ राम (बलदेव) और नव पीत – वसन वाले केशव (वासुदेव) दोनों भाई – भाई हुए हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] jambuddive nam dive bharahe vase imae osappinie nava dasaramamdala hottha, tam jaha–uttamapurisa majjhimapurisa pahanapurisa oyamsi teyamsi vachchamsi jasamsi chhayamsi kamta soma subhaga piyadamsana suruva suhasila suhabhigama savvajana-nayana-kamta ohabala atibala mahabala anihata aparaiya sattumaddana ripusahassamana-mahana sanukkosa amachchhara achavala achamda miyamamjula-palava-hasiya gambhira-madhura-padipunna-sachchavayana abbhuvagaya-vachchhala saranna lakkhana-vamjana-gunovaveya manummana-pamana-padipunna-sujata-savvamga-sumdaramga sasi-somagara-kamta-piya-damsana amasana payamdadamdappayara-gambhira-darisanijja taladdhao-vviddha-garula-keu mahadhanu-vikaddhaga mahasattasagara duddhara dhanuddhara dhirapurisa juddha-kittipurisa viulakula-samubbhava maharayana-vihadaga addhabharahasami soma rayakula-vamsa-tilaya ajiya ajiyaraha hala-musala-kanaga-pani samkha-chakka-gaya-satti-namdagadhara pavarujjala-sukkamta-vimala-gothubha-tiridadhari kumdala-ujjoi-yanana pumdariya-nayana ekavali-kamthalaiya-vachchha sirivachchha-sulamchhana varajasa savvouya-surabhi-kusuma-suraita-palambasobhamta-kamta-vikasamtachitta-varamala-raiyavachchha atthasaya-vibhatta-lakkhana-pasattha -sumdara-viraiyamgamamga mattagayavarimda-laliya-vikkama-vilasiyagai saraya-navathaniyamadhura-gambhira-komcha-nigghosa-dumdubhisara kadisuttaganila-piya-koseyavasasa pavaraditta-teya narasiha naravai narimda nara-vasabha maruyavasabhakappa abbhahiyam raya-teya-lachchhie dippamana nilaga-pitaga-vasana duve-duve ramakesava bhayaro hottha, tam jaha–
Sutra Meaning Transliteration : Isa jambudvipa mem isa bharatavarsha ke isa avasarpinikala mem nau dasharamamdala (baladeva aura vasudeva samudaya) hue haim. Sutrakara unaka varnana karate haim – Ve sabhi baladeva aura vasudeva uttama kula mem utpanna hue shreshtha purusha the, tirthamkaradi shalaka – purushom ke madhya – varti hone se madhyama purusha the, athava tirthamkarom ke bala ki apeksha kama aura samanya janom ke bala ki apeksha adhika balashali hone se ve madhyama purusha the. Apane samaya ke purushom ke shauryadi gunom ki pradhanata ki apeksha ve pradhana purusha the. Manasika bala se sampanna hone ke karana ojasvi the. Dedipyamana sharirom ke dharaka hone se tejasvi the. Sharirika bala se samyukta hone ke karana varchasvi the, parakrama ke dvara prasiddhi ko prapta karane se yashasvi the. Sharira ki chhaya (prabha) se yukta hone ke karana ve chhayavanta the. Sharira ki kanti se yukta hone se kanta the, chandra ke samana saumya mudra ke dharaka the, sarvajanom ke vallabha hone se ve subhaga ya saubhagyashali the. Netrom ko atipriya hone se ve priyadarshana the. Samachaturasra samsthana ke dharaka hone se ve surupa the. Shubha svabhava hone se ve shubhashila the. Sukhapurvaka saralata se pratyeka jana unase mila sakata tha, atah ve sukhabhigamya the. Sarva janom ke nayanom ke pyare the. Kabhi nahim thakane vale avichchhinna pravahayukta balashali hone se ve odhabali the, apane samaya ke sabhi purushom ke bala ka ati – kramana karane se atibali the, aura mahan prashasta ya shreshtha balashali hone se ve mahabali the. Nirupakrama ayushya ke dharaka hone se anihata arthat dusare ke dvara hone vale ghata ya marana se rahita the, athava malla – yuddha mem koi unako parajita nahim kara sakata tha, isi karana ve aparajita the. Bare – bare yuddhom mem shatruom ka mardana karane se ve shatru – mardana the, sahastrom shatruom ke mana ka mathana karane vale the. Ajnya ya seva svikara karane valom para droha chhorakara kripa karane vale the. Ve matsarya – rahita the, kyomki dusarom ke leshamatra bhi gunom ke grahaka the. Mana, vachana, kaya ki sthira pravritti ke karana ve achapala (chapalata – rahita) the. Nishkarana prachanda krodha se rahita the, mamjula vachanalapa aura mridu hasya se yukta the. Gambhira, madhura aura paripurna satya vachana bolate the. Adhinata svikara karane valom para vatsalya bhava rakhate the. Sharana mem ane vale ke rakshaka the. Vajra, svastika, chakra adi lakshanom se aura tila, masha adi vyamjanom ke gunom se samyukta the. Sharira ke mana, unmana aura pramana se paripurna the, ve janma – sata sarvanga sundara sharira ke dharaka the. Chandra ke saumya akara vale, kanta aura priyadarshana the. ‘amasrina’ arthat kartavya – palana mem alasya – rahita the athava ‘anarshana’ arthat aparadha karane valom para bhi kshamashila the. Uddamda purushom para prachamda damdaniti ke dharaka the. Gambhira aura darshaniya the. Baladeva tala vriksha ke chihna vali dhvaja ke aura vasudeva garura ke chihna vali dhvaja ke dharaka the. Ve dasharamamdala karna – paryanta mahadhanushom ko khimchane vale, mahasattva (bala) ke sagara the. Rana – bhumi mem unake prahara ka samana karana ashakya tha. Ve mahan dhanushom ke dharaka the, purushom mem dhira – vira the, yuddhom mem prapta kirti ke dharaka purusha the, vishala kulom mem utpanna hue the, maharatna vajra (hira) ko bhi amguthe aura tarjani do amguliyom se churna kara dete the. Adhe bharatakshetra ke arthat tina khamda ke svami the. Saumyasvabhavi the. Raja kulom aura rajavamshom ke tilaka the. Ajita the (kisi se bhi nahim jite jate the) aura ajitaratha (ajeya ratha vale) the. Baladeva hala aura mushala rupa shastrom ke dharaka the, tatha vasudeva sharnga dhanusha, panchajanya shamkha, sudarshana chakra, kaumodaki gada, shakatsinandakanama khanga ke dharaka the. Pravara, ujjvala, sukanta, vimala kaustubha mani yukta mukuta ke dhari the. Unaka mukha kundalom mem lage maniyom ke prakasha se yukta rahata tha. Kamala ke samana netra vale the. Ekavali hara kamtha se lekara vakshahsthala taka shobhita rahata tha. Unaka vakshahsthala shrivatsa ke sulakshana se chihnita tha. Ve vishva – vikhyata yasha vale the. Sabhi rituom mem utpanna hone vale, sugandhita pushpom se rachi gai, lambi, shobhayukta, kanta, vikasita, pamchavarni shreshtha mala se unaka vakshahsthala sada shobhayamana rahata tha. Unake sundara amga – pratyamga eka sau atha prashasta lakshanom se sampanna the. Ve mada – matta gajaraja ke samana lalita, vikrama aura vilasa – yukta gati vale the. Sharada ritu ke nava – udita megha ke samana madhura, gambhira, kraumcha pakshi ke nirghosha aura dundubhi ke samana svara vale the. Baladeva katisutra vale nila kausheyaka vastra se tatha vasudeva katisutra vale pita kausheyaka vastra se yukta rahate the (baladevom ki kamara para nile ramga ka aura vasudevom ki kamara para pile ramga ka dupatta bamdha rahata tha). Ve prakrishta dipti aura teja se yukta the, prabala balashali hone se ve manushyom mem simha ke samana hone se narasimha, manushyom ke pati hone se narapati, parama aishvaryashali hone se narendra tatha sarvashreshtha hone se nara – vrishabha kahalate the. Apane karyabhara ka purna rupa se nirvaha karane se ve marud – vrishabhakalpa arthat devaraja ki upama ko dharana karate the. Anya raja – maharajaom se adhika rajateja rupa lakshmi se dedipyamana the. Isa prakara nila – vasana vale nau rama (baladeva) aura nava pita – vasana vale keshava (vasudeva) donom bhai – bhai hue haim.