Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003142 | ||
Scripture Name( English ): | Samavayang | Translated Scripture Name : | समवयांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवाय-१७ |
Translated Chapter : |
समवाय-१७ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 42 | Category : | Ang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सत्तरसविहे असंजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायअसंजमे आउकायअसंजमे तेउकायअसंजमे वाउकायअसंजमे वणस्सइकायअसंजमे बेइंदियअसंजमे तेइंदियअसंजमे चउरिंदियअसंजमे पंचिं-दियअसंजमे अजीवकायअसंजमे पेहाअसंजमे उपेहाअसंजमे अवहट्टुअसंजमे अप्पमज्जणा असंजमे मणअसंजमे वइअसंजमे कायअसंजमे। सत्तरसविहे संजमे पन्नत्ते, तं जहा–पुढवीकायसंजमे आउकायसंजमे तेउकायसंजमे वाउकायसंजमे वणस्सइकायसंजमे बेइंदियसंजमे तेइंदियसंजमे चउरिंदियसंजमे पंचिंदियसंजमे अजीवकायसंजमे पेहासंजमे उपेहासंजमे अवहट्टुसंजमे पमज्ज-णासंजमे मणसंजमे वइसंजमे कायसंजमे। मानुसुत्तरे णं पव्वए सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते। सव्वेसिंपि णं वेलंधर-अनुवेलंधर-नागराईणं आवासपव्वया सत्तरस-एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता लवणे णं समुद्दे सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सातिरेगाइं सत्तरस जोयणसहस्साइं उड्ढं उप्पतित्ता ततो पच्छा चारणाणं तिरियं गति पवत्तति। चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयण-सयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते। बलिस्स णं वतिरोयणिंदस्स वतिरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पायपव्वए सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते। सत्तरसविहे मरणे पन्नत्ते, तं जहा–आवीईमरणे ओहिमरणे आयंतियमरणे वलायमरणे वसट्टमरणे अंतोसल्लमरणे तब्भवमरणे बालमरणे पंडितमरणे बालपंडितमरणे छउमत्थमरणे केवलिमरणे वेहासमरणे गिद्धपट्ठमरणे भत्तपच्चक्खाणमरणे इंगिनीमरणे पाओवगमणमरणे। सुहुमसंपराए णं भगवं सुहुमसंपरायभावे वट्टमाणे सत्तरस कम्मपगडीओ निबंधति, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणे सुयनाणावरणे ओहिनाणावरणे मनपज्जवनाणावरणे केवलनाणावरणे चक्खुदंसणावरणे अचक्खुदंसणावरणे ओहीदंसणावरणे केवलदंसणावरणे सायावेयणिज्जं जसो-कित्तिनामं उच्चागोयं दानंतरायं लाभंतरायं भोगंतरायं उवभोगंतरायं वीरिअअंतरायं। इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। पंचमाए पुढवीए नेरइयाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। छट्ठीए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। सोहम्मीसानेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं सत्तरस पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। महासुक्के कप्पे देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। सहस्सारे कप्पे देवाणं जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। जे देवा सामाणं सुसामाणं महासामाणं पउमं महापउमं कुमुदं महाकुमुदं नलिनं महानलिनं पोंडरीअं महापोंडरीअं सुक्कं महासुक्कं सीहं सीहोकंतं सीहवीअं भाविअं विमानं देवत्ताए उववन्ना, तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं सत्तरस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता। ते णं देवा सत्तरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा। तेसि णं देवाणं सत्तरसहिं वाससहस्सेहिं आहारट्ठे समुप्पज्जइ। संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति। | ||
Sutra Meaning : | सत्तरह प्रकार का असंयम है। पृथ्वीकाय – असंयम, अप्काय – असंयम, तेजस्काय – असंयम, वायुकाय – असंयम, वनस्पतिकाय – असंयम, द्वीन्द्रिय – असंयम, त्रीन्द्रिय – असंयम, चतुरिन्द्रिय – असंयम, पंचेन्द्रिय – असंयम, अजीवकाय – असंयम, प्रेक्षा – असंयम, उपेक्षा – असंयम, अपहृत्य – असंयम, अप्रमार्जना – असंयम, मनःअसंयम, वचन – असंयम, काय – असंयम। सत्तरह प्रकार का संयम कहा गया है। जैसे – पृथ्वीकाय – संयम, अप्काय – संयम, तेजस्काय – संयम, वायुकाय – संयम, वनस्पतिकाय – संयम, द्वीन्द्रिय – संयम, त्रीन्द्रिय – संयम, चतुरिन्द्रिय – संयम, पंचेन्द्रिय – संयम, अजीवकाय – संयम, प्रेक्षा – संयम, उपेक्षा – संयम, अपहृत्य – संयम, प्रमार्जना – संयम, मनःसंयम, वचन – संयम, काय – संयम। मानुषोत्तर पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचा कहा गया है। सभी वेलन्धर और अनुवेलन्धर नागराजों के आवास पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचे कहे गए हैं। लवणसमुद्र की सर्वाग्र शिखा सत्तरह हजार योजन ऊंची कही गई है। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमि भाग से कुछ अधिक सत्तरह हजार योजन ऊपर जाकर तत्प – श्चात् चारण ऋद्धिधारी मुनियों की नन्दीश्वर, रुचक आदि द्वीपों में जाने के लिए तिरछी गति होती है। असुरेन्द्र असुरराज चमर का तिगिंछिकूट नामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचा कहा गया है। असुरेन्द्र बलि का रुचकेन्द्र नामक उत्पात पर्वत सत्तरह सौ इक्कीस योजन ऊंचा कहा गया है। मरण सत्तरह प्रकार का है। आवीचिमरण, अवधिमरण, आत्यन्तिकमरण, वलन्मरण, वशार्तमरण, अन्तः – शल्यमरण, तद्भवमरण, बालमरण, पंडितमरण, बालपंडितमरण, छद्मस्थमरण, केवलिमरण, वैहायसमरण, गृद्ध – स्पृष्ट या गृद्धपृष्ठमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण, पादपोपगमनमरण। सूक्ष्मसम्पराय भाव में वर्तमान सूक्ष्मसम्पराय भगवान केवल सत्तरह कर्म – प्रकृतियों को बाँधते हैं। जैसे – आभिनिबोधिकज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यवज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुर्दर्शनावरण अचक्षुर्दर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण, केवलदर्शनावरण, सातावेदनीय, यशस्कीर्तिनामकर्म, उच्चगोत्र, दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय। सहस्रार कल्प में देवों की जघन्य स्थिति सत्तरह सागरोपम है। वहाँ जो देव, सामान, सुसामान, महासामान पद्म, महापद्म, कुमुद, महाकुमुद, नलिन, महानलिन, पौण्डरीक, महापौण्डरीक, शुक्र, महाशुक्र, सिंह, सिंहकान्त, सिंहबीज और भावित नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति सत्तरह सागरोपम की होती है। वे देव साढ़े आठ मासों के बाद आन – प्राण या उच्छ्वास – निःश्वास लेते हैं। उन देवों के सत्तरह हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है। कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो सत्तरह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परिनिर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] sattarasavihe asamjame pannatte, tam jaha–pudhavikayaasamjame aukayaasamjame teukayaasamjame vaukayaasamjame vanassaikayaasamjame beimdiyaasamjame teimdiyaasamjame chaurimdiyaasamjame pamchim-diyaasamjame ajivakayaasamjame pehaasamjame upehaasamjame avahattuasamjame appamajjana asamjame manaasamjame vaiasamjame kayaasamjame. Sattarasavihe samjame pannatte, tam jaha–pudhavikayasamjame aukayasamjame teukayasamjame vaukayasamjame vanassaikayasamjame beimdiyasamjame teimdiyasamjame chaurimdiyasamjame pamchimdiyasamjame ajivakayasamjame pehasamjame upehasamjame avahattusamjame pamajja-nasamjame manasamjame vaisamjame kayasamjame. Manusuttare nam pavvae sattarasa-ekkavise joyanasae uddham uchchattenam pannatte. Savvesimpi nam velamdhara-anuvelamdhara-nagarainam avasapavvaya sattarasa-ekkavisaim joyanasayaim uddham uchchattenam pannatta Lavane nam samudde sattarasa joyanasahassaim savvaggenam pannatte. Imise nam rayanappabhae pudhavie bahusamaramanijjao bhumibhagao satiregaim sattarasa joyanasahassaim uddham uppatitta tato pachchha charananam tiriyam gati pavattati. Chamarassa nam asurimdassa asurakumararanno tigimchhikude uppayapavvae sattarasa ekkavisaim joyana-sayaim uddham uchchattenam pannatte. Balissa nam vatiroyanimdassa vatiroyanaranno ruyagimde uppayapavvae sattarasa ekkavisaim joyanasayaim uddham uchchattenam pannatte. Sattarasavihe marane pannatte, tam jaha–aviimarane ohimarane ayamtiyamarane valayamarane vasattamarane amtosallamarane tabbhavamarane balamarane pamditamarane balapamditamarane chhaumatthamarane kevalimarane vehasamarane giddhapatthamarane bhattapachchakkhanamarane imginimarane paovagamanamarane. Suhumasamparae nam bhagavam suhumasamparayabhave vattamane sattarasa kammapagadio nibamdhati, tam jaha–abhinibohiyananavarane suyananavarane ohinanavarane manapajjavananavarane kevalananavarane chakkhudamsanavarane achakkhudamsanavarane ohidamsanavarane kevaladamsanavarane sayaveyanijjam jaso-kittinamam uchchagoyam danamtarayam labhamtarayam bhogamtarayam uvabhogamtarayam viriaamtarayam. Imise nam rayanappabhae pudhavie atthegaiyanam neraiyanam sattarasa paliovamaim thii pannatta. Pamchamae pudhavie neraiyanam ukkosenam sattarasa sagarovamaim thii pannatta. Chhatthie pudhavie neraiyanam jahannenam sattarasa sagarovamaim thii pannatta. Asurakumaranam devanam atthegaiyanam sattarasa paliovamaim thii pannatta. Sohammisanesu kappesu atthegaiyanam devanam sattarasa paliovamaim thii pannatta. Mahasukke kappe devanam ukkosenam sattarasa sagarovamaim thii pannatta. Sahassare kappe devanam jahannenam sattarasa sagarovamaim thii pannatta. Je deva samanam susamanam mahasamanam paumam mahapaumam kumudam mahakumudam nalinam mahanalinam pomdariam mahapomdariam sukkam mahasukkam siham sihokamtam sihaviam bhaviam vimanam devattae uvavanna, tesim nam devanam ukkosenam sattarasa sagarovamaim thii pannatta. Te nam deva sattarasahim addhamasehim anamamti va panamamti va usasamti va nisasamti va. Tesi nam devanam sattarasahim vasasahassehim aharatthe samuppajjai. Samtegaiya bhavasiddhiya jiva, je sattarasahim bhavaggahanehim sijjhissamti bujjhissamti muchchissamti parinivvaissamti savvadukkhanamamtam karissamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sattaraha prakara ka asamyama hai. Prithvikaya – asamyama, apkaya – asamyama, tejaskaya – asamyama, vayukaya – asamyama, vanaspatikaya – asamyama, dvindriya – asamyama, trindriya – asamyama, chaturindriya – asamyama, pamchendriya – asamyama, ajivakaya – asamyama, preksha – asamyama, upeksha – asamyama, apahritya – asamyama, apramarjana – asamyama, manahasamyama, vachana – asamyama, kaya – asamyama. Sattaraha prakara ka samyama kaha gaya hai. Jaise – prithvikaya – samyama, apkaya – samyama, tejaskaya – samyama, vayukaya – samyama, vanaspatikaya – samyama, dvindriya – samyama, trindriya – samyama, chaturindriya – samyama, pamchendriya – samyama, ajivakaya – samyama, preksha – samyama, upeksha – samyama, apahritya – samyama, pramarjana – samyama, manahsamyama, vachana – samyama, kaya – samyama. Manushottara parvata sattaraha sau ikkisa yojana umcha kaha gaya hai. Sabhi velandhara aura anuvelandhara nagarajom ke avasa parvata sattaraha sau ikkisa yojana umche kahe gae haim. Lavanasamudra ki sarvagra shikha sattaraha hajara yojana umchi kahi gai hai. Isa ratnaprabha prithvi ke bahusama ramaniya bhumi bhaga se kuchha adhika sattaraha hajara yojana upara jakara tatpa – shchat charana riddhidhari muniyom ki nandishvara, ruchaka adi dvipom mem jane ke lie tirachhi gati hoti hai. Asurendra asuraraja chamara ka tigimchhikuta namaka utpata parvata sattaraha sau ikkisa yojana umcha kaha gaya hai. Asurendra bali ka ruchakendra namaka utpata parvata sattaraha sau ikkisa yojana umcha kaha gaya hai. Marana sattaraha prakara ka hai. Avichimarana, avadhimarana, atyantikamarana, valanmarana, vashartamarana, antah – shalyamarana, tadbhavamarana, balamarana, pamditamarana, balapamditamarana, chhadmasthamarana, kevalimarana, vaihayasamarana, griddha – sprishta ya griddhaprishthamarana, bhaktapratyakhyanamarana, imginimarana, padapopagamanamarana. Sukshmasamparaya bhava mem vartamana sukshmasamparaya bhagavana kevala sattaraha karma – prakritiyom ko bamdhate haim. Jaise – abhinibodhikajnyanavarana, shrutajnyanavarana, avadhijnyanavarana, manahparyavajnyanavarana, kevalajnyanavarana, chakshurdarshanavarana achakshurdarshanavarana, avadhidarshanavarana, kevaladarshanavarana, satavedaniya, yashaskirtinamakarma, uchchagotra, danantaraya, labhantaraya, bhogantaraya, upabhogantaraya aura viryantaraya. Sahasrara kalpa mem devom ki jaghanya sthiti sattaraha sagaropama hai. Vaham jo deva, samana, susamana, mahasamana padma, mahapadma, kumuda, mahakumuda, nalina, mahanalina, paundarika, mahapaundarika, shukra, mahashukra, simha, simhakanta, simhabija aura bhavita nama ke vishishta vimanom mem devarupa se utpanna hote haim, una devom ki utkrishta sthiti sattaraha sagaropama ki hoti hai. Ve deva sarhe atha masom ke bada ana – prana ya uchchhvasa – nihshvasa lete haim. Una devom ke sattaraha hajara varshom ke bada ahara ki ichchha utpanna hoti hai. Kitaneka bhavyasiddhika jiva aise haim jo sattaraha bhava grahana karake siddha homge, buddha homge, karmom se mukta homge, parinirvana ko prapta homge aura sarva duhkhom ka anta karemge. |