Sutra Navigation: Samavayang ( समवयांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1003111 | ||
Scripture Name( English ): | Samavayang | Translated Scripture Name : | समवयांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवाय-९ |
Translated Chapter : |
समवाय-९ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 11 | Category : | Ang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] नव बंभचेरगुत्तीओ, तं जहा– नो इत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ। नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ। नो इत्थीणं ठाणाइं सेवित्ता भवइ। नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ। नो पणीयरसभोई भवइ। नो पानभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ। नो इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाइं सुमरइत्ता भवइ। नो सद्दाणुवाई नो रूवाणुवाई नो गंधाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई। नो सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ। नव बंभचेरअगुत्तीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– इत्थी-पसु-पंडग-संसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ। इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ। इत्थीणं ठाणाइं सेवित्ता भवइ। इत्थीणं इंदियाइं मनोहराइं मनोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ। पणीयरसभोई भवइ। पानभोयणस्स अतिमायं आहारइत्ता भवइ। इत्थीणं पुव्वरयाइं पुव्वकीलियाइं सुमरइत्ता भवइ। सद्दाणुवाई रूवाणुवाई गंधाणुवाई रसाणुवाई फासाणुवाई सिलोगाणुवाई। सायासोक्खपडिबद्धे यावि भवइ। नव बंभचेरा पन्नत्ता, तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | ब्रह्मचर्य की नौ गुप्तियाँ (संरक्षिकाएं) कही गई हैं। जैसे – स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन नहीं करना, स्त्रियों की कथाओं को नहीं करना, स्त्रीगणों का उपासक नहीं होना, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और रमणीय अंगों का द्रष्टा और ध्याता नहीं होना, प्रणीत – रस – बहुल भोजन का नहीं करना, अधिक मात्रा में खान – पान या आहार नहीं करना, स्त्रियों के साथ की गई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण नहीं करना, कामोद्दीपक शब्दों को नहीं सूनना, कामोद्दीपक रूपों को नहीं देखना, कामोद्दीपक गन्धों को नहीं सूँघना, कामो – द्दीपक रसों का स्वाद नहीं लेना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद नहीं लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श नहीं करना और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध (आसक्त) नहीं होना। ब्रह्मचर्य की नौ अगुप्तियाँ (विनाशिकाएं) कही गई हैं। जैसे – स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शय्या और आसन का सेवन करना १, स्त्रियों की कथाओं को कहना – स्त्रियों सम्बन्धी बातें करना २, स्त्रीगणों का उपासक होना ३, स्त्रियों की मनोहर इन्द्रियों और मनोरम अंगों को देखना और उनका चिन्तन करना ४, प्रणीत – रस – बहुल गरिष्ठ भोजन करना ५, अधिक मात्रा में आहार – पान करना ६, स्त्रियों के साथ की गई पूर्व रति और पूर्व क्रीड़ाओं का स्मरण करना ७, कामोद्दीपक शब्दों को सूनना, कामोद्दीपक रूपों को देखना, कामोद्दीपक गन्धों को सूँघना, कामोद्दीपक रसों का स्वाद लेना, कामोद्दीपक कोमल मृदुशय्यादि का स्पर्श करना ८ और सातावेदनीय के उदय से प्राप्त सुख में प्रतिबद्ध (आसक्त) होना ९। नौ ब्रह्मचर्य अध्ययन कहे गए हैं। जैसे – शस्त्रपरिज्ञा १, लोकविजय २, शीतोष्णीय ३, सम्यक्त्व ४, आवन्ती ५, धूत ६, विमोह ७, उपधानश्रुत ८ और महापरिज्ञा ९। सूत्र – ११, १२ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] nava bambhacheraguttio, tam jaha– No itthi-pasu-pamdaga-samsattani sijjasanani sevitta bhavai. No itthinam kaham kahitta bhavai. No itthinam thanaim sevitta bhavai. No itthinam imdiyaim manoharaim manoramaim aloitta nijjhaitta bhavai. No paniyarasabhoi bhavai. No panabhoyanassa atimayam aharaitta bhavai. No itthinam puvvarayaim puvvakiliyaim sumaraitta bhavai. No saddanuvai no ruvanuvai no gamdhanuvai no rasanuvai no phasanuvai no siloganuvai. No sayasokkhapadibaddhe yavi bhavai. Nava bambhacheraaguttio pannattao, tam jaha– Itthi-pasu-pamdaga-samsattani sijjasanani sevitta bhavai. Itthinam kaham kahitta bhavai. Itthinam thanaim sevitta bhavai. Itthinam imdiyaim manoharaim manoramaim aloitta nijjhaitta bhavai. Paniyarasabhoi bhavai. Panabhoyanassa atimayam aharaitta bhavai. Itthinam puvvarayaim puvvakiliyaim sumaraitta bhavai. Saddanuvai ruvanuvai gamdhanuvai rasanuvai phasanuvai siloganuvai. Sayasokkhapadibaddhe yavi bhavai. Nava bambhachera pannatta, tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Brahmacharya ki nau guptiyam (samrakshikaem) kahi gai haim. Jaise – stri, pashu aura napumsaka se samsakta shayya aura asana ka sevana nahim karana, striyom ki kathaom ko nahim karana, striganom ka upasaka nahim hona, striyom ki manohara indriyom aura ramaniya amgom ka drashta aura dhyata nahim hona, pranita – rasa – bahula bhojana ka nahim karana, adhika matra mem khana – pana ya ahara nahim karana, striyom ke satha ki gai purva rati aura purva kriraom ka smarana nahim karana, kamoddipaka shabdom ko nahim sunana, kamoddipaka rupom ko nahim dekhana, kamoddipaka gandhom ko nahim sumghana, kamo – ddipaka rasom ka svada nahim lena, kamoddipaka rasom ka svada nahim lena, kamoddipaka komala mridushayyadi ka sparsha nahim karana aura satavedaniya ke udaya se prapta sukha mem pratibaddha (asakta) nahim hona. Brahmacharya ki nau aguptiyam (vinashikaem) kahi gai haim. Jaise – stri, pashu aura napumsaka se samsakta shayya aura asana ka sevana karana 1, striyom ki kathaom ko kahana – striyom sambandhi batem karana 2, striganom ka upasaka hona 3, striyom ki manohara indriyom aura manorama amgom ko dekhana aura unaka chintana karana 4, pranita – rasa – bahula garishtha bhojana karana 5, adhika matra mem ahara – pana karana 6, striyom ke satha ki gai purva rati aura purva kriraom ka smarana karana 7, kamoddipaka shabdom ko sunana, kamoddipaka rupom ko dekhana, kamoddipaka gandhom ko sumghana, kamoddipaka rasom ka svada lena, kamoddipaka komala mridushayyadi ka sparsha karana 8 aura satavedaniya ke udaya se prapta sukha mem pratibaddha (asakta) hona 9. Nau brahmacharya adhyayana kahe gae haim. Jaise – shastraparijnya 1, lokavijaya 2, shitoshniya 3, samyaktva 4, avanti 5, dhuta 6, vimoha 7, upadhanashruta 8 aura mahaparijnya 9. Sutra – 11, 12 |