Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002596 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-७ |
Translated Chapter : |
स्थान-७ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 596 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सत्त पिंडेसणाओ पन्नत्ताओ। सत्त पानेसणाओ पन्नत्ताओ। सत्त उग्गहपडिमाओ पन्नत्ताओ। सत्तसतिक्कया पन्नत्ता। सत्त महज्झयणा पन्नत्ता। सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपन्नत्ताए राइंदिएहिं एगेण य छन्नउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति। | ||
Sutra Meaning : | पिण्डैषणा सात प्रकार की कही गई है, यथा – असंसृष्टा – देने योग्य आहार से हाथ या पात्र लिप्त न हो ऐसी भिक्षा लेना। संसृष्टा – देने योग्य आहार से हाथ या पात्र लिप्त हो ऐसी भिक्षा लेना। उद्धृता – गृहस्थ अपने लिए राँधने के वासण में से आहार बाहर नीकाले व ऐसा आहार ले। अल्पलेपा – जिस आहार से पात्र में लेप न लगे ऐसा आहार (चणा आदि) ले। अवगृहीता – भाजन में परोसा हुआ आहार ले। प्रगृहीता – परोसने के लिए हाथ में लिया हुआ अथवा खाने के लिए लिया हुआ आहार ही ले। उज्झितधर्मा – फैंकने योग्य आहार ही भिक्षा में ले। इसी प्रकार पाणैषणा भी सात प्रकार की कही गई है। अवग्रह प्रतिमा सात प्रकार की कही गई है। यथा – ‘‘मुझे अमुक उपाश्रय ही चाहिए’’ ऐसा निश्चय करके आज्ञा माँगे। ‘‘मेरे साथी साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना करूँगा’’ और उनके लिए जो उपाश्रय मिलेगा उसी में मैं रहूँगा। मैं अन्य साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना करूँगा किन्तु मैं उसमें नहीं रहूँगा। मैं अन्य साधुओं के लिए उपाश्रय की याचना नहीं करूँगा किन्तु अन्य साधुओं द्वारा याचित उपाश्रय में मैं रहूँगा। मैं अपने लिए ही उपाश्रय की याचना करूँगा अन्य के लिए नहीं। मैं जिसके घर (उपाश्रय) में ठहरूँगा उसी के यहाँ से संस्तारक भी प्राप्त होगा तो उस पर सोऊंगा अन्यथा बिना संस्तारक के ही रात बिताऊंगा। मैं जिस घर में (उपाश्रय) में ठहरूँगा उसमें पहले से बिछा हुआ संस्तारक होगा तो उसका उपयोग करूँगा। सप्तैकक सात प्रकार का कहा गया है। यथा – स्थान सप्तैकक, नैषेधिकी सप्तैकक, उच्चारप्रश्रवण विधि सप्तैकक, शब्द सप्तैकक, रूप सप्तैकक, परक्रिया सप्तैकक, अन्योन्य क्रिया सप्तैकक। सात महा अध्ययन कहे गए हैं। सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना ४९ अहोरात्रमें होती है उसमें सूत्रानुसार यावत् – १९६ दत्ति ली जाती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] satta pimdesanao pannattao. Satta panesanao pannattao. Satta uggahapadimao pannattao. Sattasatikkaya pannatta. Satta mahajjhayana pannatta. Sattasattamiya nam bhikkhupadima ekunapannattae raimdiehim egena ya chhannauenam bhikkhasatenam ahasuttam ahaattham ahatachcham ahamaggam ahakappam sammam kaenam phasiya paliya sohiya tiriya kittiya arahiya yavi bhavati. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Pindaishana sata prakara ki kahi gai hai, yatha – asamsrishta – dene yogya ahara se hatha ya patra lipta na ho aisi bhiksha lena. Samsrishta – dene yogya ahara se hatha ya patra lipta ho aisi bhiksha lena. Uddhrita – grihastha apane lie ramdhane ke vasana mem se ahara bahara nikale va aisa ahara le. Alpalepa – jisa ahara se patra mem lepa na lage aisa ahara (chana adi) le. Avagrihita – bhajana mem parosa hua ahara le. Pragrihita – parosane ke lie hatha mem liya hua athava khane ke lie liya hua ahara hi le. Ujjhitadharma – phaimkane yogya ahara hi bhiksha mem le. Isi prakara panaishana bhi sata prakara ki kahi gai hai. Avagraha pratima sata prakara ki kahi gai hai. Yatha – ‘‘mujhe amuka upashraya hi chahie’’ aisa nishchaya karake ajnya mamge. ‘‘mere sathi sadhuom ke lie upashraya ki yachana karumga’’ aura unake lie jo upashraya milega usi mem maim rahumga. Maim anya sadhuom ke lie upashraya ki yachana karumga kintu maim usamem nahim rahumga. Maim anya sadhuom ke lie upashraya ki yachana nahim karumga kintu anya sadhuom dvara yachita upashraya mem maim rahumga. Maim apane lie hi upashraya ki yachana karumga anya ke lie nahim. Maim jisake ghara (upashraya) mem thaharumga usi ke yaham se samstaraka bhi prapta hoga to usa para soumga anyatha bina samstaraka ke hi rata bitaumga. Maim jisa ghara mem (upashraya) mem thaharumga usamem pahale se bichha hua samstaraka hoga to usaka upayoga karumga. Saptaikaka sata prakara ka kaha gaya hai. Yatha – sthana saptaikaka, naishedhiki saptaikaka, uchcharaprashravana vidhi saptaikaka, shabda saptaikaka, rupa saptaikaka, parakriya saptaikaka, anyonya kriya saptaikaka. Sata maha adhyayana kahe gae haim. Saptasaptamika bhikshu pratima ki aradhana 49 ahoratramem hoti hai usamem sutranusara yavat – 196 datti li jati hai. |