Sutra Navigation: Sthanang ( स्थानांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1002593 | ||
Scripture Name( English ): | Sthanang | Translated Scripture Name : | स्थानांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
स्थान-७ |
Translated Chapter : |
स्थान-७ |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 593 | Category : | Ang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सत्तविहे विभंगनाणे पन्नत्ते, तं जहा–एगदिसिं लोगाभिगमे, पंचदिसिं लोगाभिगमे, किरियावरणे जीवे, मुदग्गे जीवे, अमुदग्गे जीवे, रूवी जीवे, सव्वमिणं जीवा। तत्थ खलु इमे पढमे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–एगदिसिं लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–पंचदिसिं लोगाभिगमे। जे ते एवमाहंसु– पढमे विभंगनाणे। अहावरे दोच्चे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–पंचदिसिं लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–एगदिसिं लोगाभिगमे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु– दोच्चे विभंगनाणे। अहावरे तच्चे विभंगनाणे–जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति पाणे अतिवातेमाणे, मुसं वयमाणे, अदिन्नमादियमाने, मेहुणं पडिसेवमाने, परिग्गहं परिगिण्हमाने, राइभो-यणं भुंजमाने, पावं च णं कम्मं कीरमाणं नो पासति। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–किरियावरणे जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु– नो किरियावरणे जीवे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु– तच्चे विभंगनाणे। अहावरे चउत्थे विभंगनाणे– जया णं तधारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गले परियाइत्ता पुढेगत्तं नाणत्तं फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विकुव्वित्ता णं चिट्ठित्तए। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–मुदग्गे जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–अमुदग्गे जीवे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु– चउत्थे विभंगनाणे। अहावरे पंचमे विभंगनाणे–जया णं तधारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गलए अपरियाइत्ता पुढेगत्तं नाणत्तं फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विउव्वित्ता णं चिट्ठित्तए। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–अमुदग्गे जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–मुदग्गे जीवे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु– पंचमे विभंगनाणे। अहावरे छट्ठे विभंगनाणे–जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं देवामेव पासति बाहिरब्भंतरए पोग्गले परियाइत्ता वा अपरियाइत्ता वा पुढेगत्तं नाणत्तं फुसित्ता फुरित्ता फुट्टित्ता विकुव्वित्ता णं चिट्ठित्तए। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–रुवी जीवे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–अरूवी जीवे। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु– छट्ठे विभंगनाणे। अहावरे सत्तमे विभंगनाणे–जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से ण तेण विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासई सुहुमेणं वायुकाएणं फुडं पोग्गलकायं एयंतं वेयंतं चलंतं खुब्भंतं फंदंतं घट्टंतं उदीरेंतं तं तं भावं परिणमंतं। तस्स णं एव भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–सव्वमिणं जीवा। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–जीवा चेव, अजीवा चेव। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। तस्स णं इमे चत्तारि जीवणिकाया नो सम्ममुवगता भवंति, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया। इच्चेतेहिं चउहिं जीवणिकाएहिं मिच्छादंडं पवत्तेइ– सत्तमे विभंगनाणे। | ||
Sutra Meaning : | विभंग ज्ञान सात प्रकार का है, एक दिशा में लोकाभिगम। पाँच दिशा में लोकाभिगम। क्रियावरण जीव। मुदग्रजीव। अमुदग्रजीव। रूपीजीव। सभी कुछ जीव हैं। प्रथम विभंग ज्ञान – किसी श्रमण ब्राह्मण को एक दिशा का लोकाभिगम ज्ञान उत्पन्न होता है। अतः वह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण या उत्तर दिशा में से किसी एक दिशा में अथवा ऊपर देवलोक पर्यन्त लोक देखता है तो – जिस दिशा में उसने लोक देखा है उसी दिशा में लोक है अन्य दिशा में नहीं है – ऐसी प्रतिती उसे होती है और वह मानने लगता है कि मुझे ही विशिष्ट ज्ञान उत्पन्न हुआ है और वह दूसरों को ऐसा कहता है कि जो लोग ‘‘पाँच दिशाओं में लोक हैं’’ ऐसा कहते हैं वे मिथ्या कहते हैं। द्वीतिय विभंग ज्ञान – किसी श्रमण – ब्राह्मण को पाँच दिशा का लोकाभिगम ज्ञान उत्पन्न होता है। अतः वह पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा में तथा ऊपर सौधर्म देवलोक पर्यन्त लोक देखता है तो उस समय उसे यह अनुभव होता है कि लोक पाँच दिशाओं में ही है। तथा यह भी अनुभव होता है कि मुझे ही अतिशय ज्ञान उत्पन्न हुआ है। और वह यों कहने लगता है कि जो लोग ‘‘एक ही दिशा में लोक है’’ ऐसा कहते हैं वे मिथ्या हैं। तृतीय विभंग ज्ञान – किसी श्रमण या ब्राह्मण को क्रियावरण जीव नाम का विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है तो वह जीवों को हिंसा करते हुए, झूठ बोलते हुए, चोरी करते हुए, मैथुन करते हुए, परिग्रह में आसक्त रहते हुए और रात्रि भोजन करते हुए देखता है किन्तु इन सब कृत्यों से जीवों के पाप कर्मों का बन्ध होता है यह नहीं देख सकता उस समय उसे यह अनुभव होता है कि मुझे ही अतिशय ज्ञान उत्पन्न हुआ है। और वह यों मानने लगता है कि जीव के आवरण (कर्मबन्ध) क्रिया रूप ही हैं। साथ ही यह भी कहने लगता है कि जो श्रमण ब्राह्मण ‘‘जीव के क्रिया से आवरण (कर्मबन्ध) नहीं होता’’ ऐसा कहते हैं वे मिथ्या हैं। चतुर्थ विभंग ज्ञान – किसी श्रमण ब्राह्मण को मुदग्रविभंग ज्ञान उत्पन्न होता है तो वह बाह्य और आभ्यन्तर पुद्गलों को ग्रहण करके तथा उनके नाना प्रकार के स्पर्श करके नाना प्रकार के शरीरों की विकुर्वणा करते हुए देवताओं को देखता है उस समय उसे यह अनुभव होता है कि मुझे ही अतिशय वाला ज्ञान उत्पन्न हुआ है अतः मैं देख सकता हूँ कि जीव मुदग्र अर्थात् बाह्य और आभ्यन्तर पुद्गलों को ग्रहण करके शरीर रचना करने वाला है। ‘‘जो लोग जीव को अमुदग्र कहते हैं वे मिथ्या कहते हैं’’ ऐसा वह कहने लगता है। पंचम विभंग ज्ञान – किसी श्रमण को अमुदग्र विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है तो वह आभ्यन्तर और बाह्य पुद्गलों को ग्रहण किये बिना ही देवताओं को विकुर्वणा करते हुए देखता है। उस समय उसे ऐसा अनुभव होता है कि मुझे ही अतिशय ज्ञान उत्पन्न हुआ है अतः मैं देख सकता हूँ ‘‘जीव अमुदग्र है’’ और वह यों कहने लगता है कि जो लोग जीव को मुदग्र समझते हैं वे मिथ्यावादी हैं। छठा विभंग ज्ञान – किसी श्रमण ब्राह्मण को जब रूपीजीव नाम का विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है तब वह उस ज्ञान से देवताओं को ही बाह्याभ्यन्तर पुद्गल ग्रहण करके या ग्रहण किये बिना विकुर्वणा करके देखता है। उस समय उसे ऐसा अनुभव होता है कि मुझे अतिशय वाला ज्ञान उत्पन्न हुआ है और वह यों मानने लगता है कि जीव तो रूपी है किन्तु जो लोग जीव को अरूपी कहते हैं उन्हें वह मिथ्यावादी कहने लगता है। सप्तम विभंग ज्ञान – किसी श्रमण ब्राह्मण को जब ‘सर्वे जीवा’ नाम का विभंग ज्ञान उत्पन्न होता है तब वह वायु से इधर उधर हिलते चलते काँपते और अन्य पुद्गलों के साथ टकराते हुए पुद्गलों को देखता है उस समय उसे ऐसा अनुभव होता है कि मुझे ही अतिशय वाला ज्ञान उत्पन्न हुआ है अतः वह यों मानने लगता है कि ‘‘लोक में जो कुछ है वह सब जीव ही है’’ किन्तु जो लोग लोक में जीव अजीव दोनों मानते हैं उन्हें वह मिथ्यावादी कहने लगता है। ऐसे विभंग ज्ञानी को पृथ्वी, वायु और तेजस्काय का सम्यग्ज्ञान होता ही नहीं अतः वह उस विषय में मिथ्या भ्रम में पड़ा होता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] sattavihe vibhamganane pannatte, tam jaha–egadisim logabhigame, pamchadisim logabhigame, kiriyavarane jive, mudagge jive, amudagge jive, ruvi jive, savvaminam jiva. Tattha khalu ime padhame vibhamganane– jaya nam taharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam pasati painam va padinam va dahinam va udinam va uddham va java sohamme kappe. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–egadisim logabhigame. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–pamchadisim logabhigame. Je te evamahamsu– padhame vibhamganane. Ahavare dochche vibhamganane– jaya nam taharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam pasati painam va padinam va dahinam va udinam va uddham va java sohamme kappe. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–pamchadisim logabhigame. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–egadisim logabhigame. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu– dochche vibhamganane. Ahavare tachche vibhamganane–jaya nam taharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam pasati pane ativatemane, musam vayamane, adinnamadiyamane, mehunam padisevamane, pariggaham pariginhamane, raibho-yanam bhumjamane, pavam cha nam kammam kiramanam no pasati. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–kiriyavarane jive. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu– no kiriyavarane jive. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu– tachche vibhamganane. Ahavare chautthe vibhamganane– jaya nam tadharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam devameva pasati bahirabbhamtarae poggale pariyaitta pudhegattam nanattam phusitta phuritta phuttitta vikuvvitta nam chitthittae. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–mudagge jive. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–amudagge jive. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu– chautthe vibhamganane. Ahavare pamchame vibhamganane–jaya nam tadharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam devameva pasati bahirabbhamtarae poggalae apariyaitta pudhegattam nanattam phusitta phuritta phuttitta viuvvitta nam chitthittae. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–amudagge jive. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–mudagge jive. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu– pamchame vibhamganane. Ahavare chhatthe vibhamganane–jaya nam taharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se nam tenam vibhamgananenam samuppannenam devameva pasati bahirabbhamtarae poggale pariyaitta va apariyaitta va pudhegattam nanattam phusitta phuritta phuttitta vikuvvitta nam chitthittae. Tassa nam evam bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–ruvi jive. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–aruvi jive. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu– chhatthe vibhamganane. Ahavare sattame vibhamganane–jaya nam taharuvassa samanassa va mahanassa va vibhamganane samuppajjati. Se na tena vibhamgananenam samuppannenam pasai suhumenam vayukaenam phudam poggalakayam eyamtam veyamtam chalamtam khubbhamtam phamdamtam ghattamtam udiremtam tam tam bhavam parinamamtam. Tassa nam eva bhavati–atthi nam mama atisese nanadamsane samuppanne–savvaminam jiva. Samtegaiya samana va mahana va evamahamsu–jiva cheva, ajiva cheva. Je te evamahamsu, michchham te evamahamsu. Tassa nam ime chattari jivanikaya no sammamuvagata bhavamti, tam jaha–pudhavikaiya, aukaiya, teukaiya, vaukaiya. Ichchetehim chauhim jivanikaehim michchhadamdam pavattei– sattame vibhamganane. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vibhamga jnyana sata prakara ka hai, eka disha mem lokabhigama. Pamcha disha mem lokabhigama. Kriyavarana jiva. Mudagrajiva. Amudagrajiva. Rupijiva. Sabhi kuchha jiva haim. Prathama vibhamga jnyana – kisi shramana brahmana ko eka disha ka lokabhigama jnyana utpanna hota hai. Atah vaha purva, pashchima, dakshina ya uttara disha mem se kisi eka disha mem athava upara devaloka paryanta loka dekhata hai to – jisa disha mem usane loka dekha hai usi disha mem loka hai anya disha mem nahim hai – aisi pratiti use hoti hai aura vaha manane lagata hai ki mujhe hi vishishta jnyana utpanna hua hai aura vaha dusarom ko aisa kahata hai ki jo loga ‘‘pamcha dishaom mem loka haim’’ aisa kahate haim ve mithya kahate haim. Dvitiya vibhamga jnyana – kisi shramana – brahmana ko pamcha disha ka lokabhigama jnyana utpanna hota hai. Atah vaha purva, pashchima, dakshina aura uttara disha mem tatha upara saudharma devaloka paryanta loka dekhata hai to usa samaya use yaha anubhava hota hai ki loka pamcha dishaom mem hi hai. Tatha yaha bhi anubhava hota hai ki mujhe hi atishaya jnyana utpanna hua hai. Aura vaha yom kahane lagata hai ki jo loga ‘‘eka hi disha mem loka hai’’ aisa kahate haim ve mithya haim. Tritiya vibhamga jnyana – kisi shramana ya brahmana ko kriyavarana jiva nama ka vibhamga jnyana utpanna hota hai to vaha jivom ko himsa karate hue, jhutha bolate hue, chori karate hue, maithuna karate hue, parigraha mem asakta rahate hue aura ratri bhojana karate hue dekhata hai kintu ina saba krityom se jivom ke papa karmom ka bandha hota hai yaha nahim dekha sakata usa samaya use yaha anubhava hota hai ki mujhe hi atishaya jnyana utpanna hua hai. Aura vaha yom manane lagata hai ki jiva ke avarana (karmabandha) kriya rupa hi haim. Satha hi yaha bhi kahane lagata hai ki jo shramana brahmana ‘‘jiva ke kriya se avarana (karmabandha) nahim hota’’ aisa kahate haim ve mithya haim. Chaturtha vibhamga jnyana – kisi shramana brahmana ko mudagravibhamga jnyana utpanna hota hai to vaha bahya aura abhyantara pudgalom ko grahana karake tatha unake nana prakara ke sparsha karake nana prakara ke sharirom ki vikurvana karate hue devataom ko dekhata hai usa samaya use yaha anubhava hota hai ki mujhe hi atishaya vala jnyana utpanna hua hai atah maim dekha sakata hum ki jiva mudagra arthat bahya aura abhyantara pudgalom ko grahana karake sharira rachana karane vala hai. ‘‘jo loga jiva ko amudagra kahate haim ve mithya kahate haim’’ aisa vaha kahane lagata hai. Pamchama vibhamga jnyana – kisi shramana ko amudagra vibhamga jnyana utpanna hota hai to vaha abhyantara aura bahya pudgalom ko grahana kiye bina hi devataom ko vikurvana karate hue dekhata hai. Usa samaya use aisa anubhava hota hai ki mujhe hi atishaya jnyana utpanna hua hai atah maim dekha sakata hum ‘‘jiva amudagra hai’’ aura vaha yom kahane lagata hai ki jo loga jiva ko mudagra samajhate haim ve mithyavadi haim. Chhatha vibhamga jnyana – kisi shramana brahmana ko jaba rupijiva nama ka vibhamga jnyana utpanna hota hai taba vaha usa jnyana se devataom ko hi bahyabhyantara pudgala grahana karake ya grahana kiye bina vikurvana karake dekhata hai. Usa samaya use aisa anubhava hota hai ki mujhe atishaya vala jnyana utpanna hua hai aura vaha yom manane lagata hai ki jiva to rupi hai kintu jo loga jiva ko arupi kahate haim unhem vaha mithyavadi kahane lagata hai. Saptama vibhamga jnyana – kisi shramana brahmana ko jaba ‘sarve jiva’ nama ka vibhamga jnyana utpanna hota hai taba vaha vayu se idhara udhara hilate chalate kampate aura anya pudgalom ke satha takarate hue pudgalom ko dekhata hai usa samaya use aisa anubhava hota hai ki mujhe hi atishaya vala jnyana utpanna hua hai atah vaha yom manane lagata hai ki ‘‘loka mem jo kuchha hai vaha saba jiva hi hai’’ kintu jo loga loka mem jiva ajiva donom manate haim unhem vaha mithyavadi kahane lagata hai. Aise vibhamga jnyani ko prithvi, vayu aura tejaskaya ka samyagjnyana hota hi nahim atah vaha usa vishaya mem mithya bhrama mem para hota hai. |