Sutra Navigation: Sutrakrutang ( सूत्रकृतांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1001660 | ||
Scripture Name( English ): | Sutrakrutang | Translated Scripture Name : | सूत्रकृतांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 660 | Category : | Ang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] अहावरे बारसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिज्जइ–जे इमे भवंति आरण्णिया आवसहिया गामंतिया कण्हुई-रहस्सिया नो बहुसंजया, नो बहुपडिविरया सव्वपाणभूयजीवसत्तेहिं, ते अप्पणा सच्चामोसाइं एवं विउंजंति–अहं न हंतव्वो अन्ने हंतव्वा, अहं न अज्जावेयव्वो अन्ने अज्जावेयव्वा, अहं न परिघेतव्वो अन्ने परिघेतव्वा, अहं न परितावेयव्वो अन्ने परितावेयव्वा अहं न उद्दवेयव्वो अन्ने उद्दवेयव्वा। एवामेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववण्णा जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा भुंजित्तु भोगभोगाइं कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु आसुरिएसु किब्बिसिएसु ठाणेसु उववत्तारो भवंति। तओ विप्पमुच्चमाणा भुज्जो ‘एलमूयत्ताए तमूयत्ताए जाइमूयत्ताए’ पच्चायंति। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ। दुवालसमे किरियट्ठाणे लोभवत्तिए त्ति आहिए। इच्चेताइं दुवालस किरियट्ठाणाइं दविएणं समणेणं वा माहणेणं वा सम्मं सुपरिजाणियव्वाणि भवंति। | ||
Sutra Meaning : | इसके पश्चात् बारहवा क्रियास्थान लोभप्रत्ययिक है। वह इस प्रकार है – ये जो वन में निवास करने वाले हैं, जो कुटी बनाकर रहते हैं, जो ग्राम के निकट डेरा डाल कर रहते हैं, कईं एकान्त में निवास करते हैं, अथवा कोई रहस्यमयी गुप्त क्रिया करते हैं। ये आरण्यक आदि न तो सर्वथा संयत हैं और न ही विरत हैं, वे समस्त प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों की हिंसा से स्वयं विरत नहीं हैं। वे स्वयं कुछ सत्य और कुछ मिथ्या वाक्यों का प्रयोग करते हैं, जैसे कि – मैं मारे जाने योग्य नहीं हूँ, अन्य लोग मारे जाने योग्य हैं, मैं आज्ञा देने योग्य नहीं हूँ, किन्तु दूसरे आज्ञा देने योग्य हैं, मैं परिग्रहण या निग्रह करने योग्य नहीं हूँ, दूसरे परिग्रह या निग्रह करने योग्य हैं, मैं संताप देने योग्य नहीं हूँ, किन्तु अन्य जीव संताप देने योग्य हैं, मैं उद्विग्न करने या जीवरहित करने योग्य नहीं हूँ, दूसरे प्राणी उद्विग्न, भयभीत या जीवरहित करने योग्य हैं। इस प्रकार परमार्थ से अनभिज्ञ वे अन्यतीर्थिक स्त्रियों और शब्दादि कामभोगों में आसक्त, गृद्ध सतत विषयभोगों में ग्रस्त, गर्हित एवं लीन रहते हैं। वे चार, पाँच, छह या दस वर्ष तक थोड़े या अधिक कामभोगों का उपभोग करके मृत्यु के समय मृत्यु पा कर असुरलोक में किल्बिषी असुर के रूप में उत्पन्न होते हैं। उस आसुरी योनि से विमुक्त होने पर बकरे की तरह मूक, जन्मान्ध एवं जन्म से मूक होते हैं। इस प्रकार विषय – लोलुपता की क्रिया के कारण लोभप्रत्ययिक पापकर्म का बन्ध होता है। इन पूर्वोक्त बारह क्रियास्थानों को मुक्तिगमन योग्य श्रमण या माहन को सम्यक् प्रकार से जान लेना चाहिए, और त्याग करना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ahavare barasame kiriyatthane lobhavattie tti ahijjai–je ime bhavamti aranniya avasahiya gamamtiya kanhui-rahassiya no bahusamjaya, no bahupadiviraya savvapanabhuyajivasattehim, te appana sachchamosaim evam viumjamti–aham na hamtavvo anne hamtavva, aham na ajjaveyavvo anne ajjaveyavva, aham na parighetavvo anne parighetavva, aham na paritaveyavvo anne paritaveyavva aham na uddaveyavvo anne uddaveyavva. Evameva te itthikamehim muchchhiya giddha gadhiya ajjhovavanna java vasaim chaupamchamaim chhaddasamaim appayaro va bhujjayaro va bhumjittu bhogabhogaim kalamase kalam kichcha annayaresu asuriesu kibbisiesu thanesu uvavattaro bhavamti. Tao vippamuchchamana bhujjo ‘elamuyattae tamuyattae jaimuyattae’ pachchayamti. Evam khalu tassa tappattiyam savajjam ti ahijjai. Duvalasame kiriyatthane lobhavattie tti ahie. Ichchetaim duvalasa kiriyatthanaim davienam samanenam va mahanenam va sammam suparijaniyavvani bhavamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Isake pashchat barahava kriyasthana lobhapratyayika hai. Vaha isa prakara hai – ye jo vana mem nivasa karane vale haim, jo kuti banakara rahate haim, jo grama ke nikata dera dala kara rahate haim, kaim ekanta mem nivasa karate haim, athava koi rahasyamayi gupta kriya karate haim. Ye aranyaka adi na to sarvatha samyata haim aura na hi virata haim, ve samasta pranom, bhutom, jivom aura sattvom ki himsa se svayam virata nahim haim. Ve svayam kuchha satya aura kuchha mithya vakyom ka prayoga karate haim, jaise ki – maim mare jane yogya nahim hum, anya loga mare jane yogya haim, maim ajnya dene yogya nahim hum, kintu dusare ajnya dene yogya haim, maim parigrahana ya nigraha karane yogya nahim hum, dusare parigraha ya nigraha karane yogya haim, maim samtapa dene yogya nahim hum, kintu anya jiva samtapa dene yogya haim, maim udvigna karane ya jivarahita karane yogya nahim hum, dusare prani udvigna, bhayabhita ya jivarahita karane yogya haim. Isa prakara paramartha se anabhijnya ve anyatirthika striyom aura shabdadi kamabhogom mem asakta, griddha satata vishayabhogom mem grasta, garhita evam lina rahate haim. Ve chara, pamcha, chhaha ya dasa varsha taka thore ya adhika kamabhogom ka upabhoga karake mrityu ke samaya mrityu pa kara asuraloka mem kilbishi asura ke rupa mem utpanna hote haim. Usa asuri yoni se vimukta hone para bakare ki taraha muka, janmandha evam janma se muka hote haim. Isa prakara vishaya – lolupata ki kriya ke karana lobhapratyayika papakarma ka bandha hota hai. Ina purvokta baraha kriyasthanom ko muktigamana yogya shramana ya mahana ko samyak prakara se jana lena chahie, aura tyaga karana chahie. |