Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1000450 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
Section : | उद्देशक-१ | Translated Section : | उद्देशक-१ |
Sutra Number : | 450 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, नो विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं– ते णं बाला ‘अयं तेणे’ ‘अयं उवचरए’ ‘अयं तओ आगए’ त्ति कट्टु तं भिक्खुं अक्कोसेज्ज वा, बंधेज्ज वा, रुंभेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। वत्थं पडिग्गहं कंबलं पायपुंछणं अच्छिंदेज्ज वा, अवहरेज्ज वा, परिभवेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा– एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो, जं नो तहप्पगाराणि अरायाणि वा, गणरायाणि वा, जुवरायाणि वा, दोरज्जाणि वा, वेरज्जाणि वा, विरुद्धरज्जाणि वा सति लाढे विहाराए, संथरमाणेहिं जणवएहिं, विहार-वत्तियाए पवज्जेज्ज गमणाए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | साधु या साध्वी ग्रामानुग्राम विहार करते हुए मार्ग में यह जाने कि ये अराजक प्रदेश है, या यहाँ केवल युवराज का शासन है, जो कि अभी राजा नहीं बना है, अथवा दो राजाओं का शासन है, या परस्पर शत्रु दो राजाओं का राज्याधिकार है, या धर्मादि – विरोधी राजा का शासन है, ऐसी स्थिति में विहार के योग्य अन्य आर्य जनपदों के होते, इस प्रकार के प्रदेशों में विहार करने की दृष्टि से गमन करने का विचार न करे। केवली भगवान ने कहा है – ऐसे अराजक आदि प्रदेशों में जाना कर्मबन्ध का कारण है। क्योंकि वे अज्ञानी जन साधु के प्रति शंका कर सकते हैं कि ‘यह चोर है, यह गुप्तचर है, यह हमारे शत्रु राजा के देश से आया है’ तथा इस प्रकार की कुशंका से ग्रस्त होकर वे साधु को अपशब्द कह सकते हैं, मार – पीट सकते हैं, यहाँ तक कि उसे जान से भी मार सकते हैं। इसके अतिरिक्त उसके वस्त्र, पात्र, कंबल, पाद – प्रोंछन आदि उपकरणों को तोड़फोड़ सकते हैं, लूँट सकते हैं और दूर फेंक सकते हैं। इन सब आपत्तियों की संभावना से तीर्थंकर आदि आप्त पुरुषों द्वारा साधुओं के लिए पहले से ही यह प्रतिज्ञा, हेतु, कारण और उपदेश निर्दिष्ट है कि साधु अराजक आदि प्रदेशों में जाने का संकल्प न करे। अतः साधु को इन प्रदेशों को छोड़कर यतनापूर्वक ग्रामानुग्राम विहार करना चाहिए। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bhikkhu va bhikkhuni va gamanugamam duijjamane amtara se arayani va, ganarayani va, juvarayani va, dorajjani va, verajjani va, viruddharajjani va sati ladhe viharae, samtharamanehim janavaehim, no vihara-vattiyae pavajjejja gamanae. Kevali buya ayanameyam– te nam bala ‘ayam tene’ ‘ayam uvacharae’ ‘ayam tao agae’ tti kattu tam bhikkhum akkosejja va, bamdhejja va, rumbhejja va, uddavejja va. Vattham padiggaham kambalam payapumchhanam achchhimdejja va, avaharejja va, paribhavejja va. Aha bhikkhunam puvvovadittha– esa painna, esa heu, esa karanam, esa uvaeso, jam no tahappagarani arayani va, ganarayani va, juvarayani va, dorajjani va, verajjani va, viruddharajjani va sati ladhe viharae, samtharamanehim janavaehim, vihara-vattiyae pavajjejja gamanae, tao samjayameva gamanugamam duijjejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Sadhu ya sadhvi gramanugrama vihara karate hue marga mem yaha jane ki ye arajaka pradesha hai, ya yaham kevala yuvaraja ka shasana hai, jo ki abhi raja nahim bana hai, athava do rajaom ka shasana hai, ya paraspara shatru do rajaom ka rajyadhikara hai, ya dharmadi – virodhi raja ka shasana hai, aisi sthiti mem vihara ke yogya anya arya janapadom ke hote, isa prakara ke pradeshom mem vihara karane ki drishti se gamana karane ka vichara na kare. Kevali bhagavana ne kaha hai – aise arajaka adi pradeshom mem jana karmabandha ka karana hai. Kyomki ve ajnyani jana sadhu ke prati shamka kara sakate haim ki ‘yaha chora hai, yaha guptachara hai, yaha hamare shatru raja ke desha se aya hai’ tatha isa prakara ki kushamka se grasta hokara ve sadhu ko apashabda kaha sakate haim, mara – pita sakate haim, yaham taka ki use jana se bhi mara sakate haim. Isake atirikta usake vastra, patra, kambala, pada – promchhana adi upakaranom ko toraphora sakate haim, lumta sakate haim aura dura phemka sakate haim. Ina saba apattiyom ki sambhavana se tirthamkara adi apta purushom dvara sadhuom ke lie pahale se hi yaha pratijnya, hetu, karana aura upadesha nirdishta hai ki sadhu arajaka adi pradeshom mem jane ka samkalpa na kare. Atah sadhu ko ina pradeshom ko chhorakara yatanapurvaka gramanugrama vihara karana chahie. |