Sutra Navigation: Acharang ( आचारांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1000139 | ||
Scripture Name( English ): | Acharang | Translated Scripture Name : | आचारांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ सम्यक्त्व |
Section : | उद्देशक-१ सम्यक्वाद | Translated Section : | उद्देशक-१ सम्यक्वाद |
Sutra Number : | 139 | Category : | Ang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से बेमि–जे अईया, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमेस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे</em> एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेंति, एवं परूवेंति–सव्वे</em> पाणा सव्वे</em> भूता सव्वे</em> जीवा सव्वे</em> सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परिघेतव्वा, न परितावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा। एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए। तं जहा–उट्ठिएसु वा, अणुट्ठिएसु वा। उवट्ठिएसु वा, अणुवट्ठिएसु वा। उवरयदंडेसु वा, अणुवरयदंडेसु वा। सोवहिएसु वा, अणोवहिएसु वा। संजोगरएसु वा, असंजोगरएसु वा। तच्चं चेयं तहा चेयं, अस्सिं चेयं पवुच्चइ। | ||
Sutra Meaning : | मैं कहता हूँ – जो अर्हन्त भगवान अतीत में हुए हैं, जो वर्तमान में हैं और जो भविष्य में होंगे – वे सब ऐसा आख्यान करते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसा प्रज्ञापन करते हैं, ऐसा प्ररूपण करते हैं – समस्त प्राणियों, सर्व भूतों, सभी जीवों और सभी सत्त्वों का हनन नहीं करना चाहिए, बलात् उन्हें शासित नहीं करना चाहिए, न उन्हें दास बनाना चाहिए, न उन्हें परिताप देना चाहिए और न उनके प्राणों का विनाश करना चाहिए। यह अहिंसा धर्म शुद्ध, नित्य और शाश्वत है। खेदज्ञ अर्हन्तों ने लोक को सम्यक् प्रकार से जानकर इसका प्रतिपादन किया है। जैसे कि – जो धर्माचरण के लिए उठे हैं, अथवा अभी नहीं उठे हैं; जो धर्मश्रवण के लिए उपस्थित हुए हैं, या नहीं हुए हैं; जो दण्ड देने से उपरत हैं, अथवा अनुपरत हैं; जो उपधि से युक्त हैं, अथवा उपधि से रहित हैं, जो संयोगों में रत हैं, अथवा संयोगों में रत नहीं हैं। वह (अर्हत्प्ररूपित धर्म) सत्य है, तथ्य है यह इस में सम्यक् प्रकार से प्रतिपादित है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se bemi–je aiya, je ya paduppanna, je ya agamessa arahamta bhagavamto te savve evamaikkhamti, evam bhasamti, evam pannavemti, evam paruvemti–savve pana savve bhuta savve jiva savve satta na hamtavva, na ajjaveyavva, na parighetavva, na paritaveyavva, na uddaveyavva. Esa dhamme suddhe niie sasae samichcha loyam kheyannehim paveie. Tam jaha–utthiesu va, anutthiesu va. Uvatthiesu va, anuvatthiesu va. Uvarayadamdesu va, anuvarayadamdesu va. Sovahiesu va, anovahiesu va. Samjogaraesu va, asamjogaraesu va. Tachcham cheyam taha cheyam, assim cheyam pavuchchai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Maim kahata hum – jo arhanta bhagavana atita mem hue haim, jo vartamana mem haim aura jo bhavishya mem homge – ve saba aisa akhyana karate haim, aisa bhashana karate haim, aisa prajnyapana karate haim, aisa prarupana karate haim – samasta praniyom, sarva bhutom, sabhi jivom aura sabhi sattvom ka hanana nahim karana chahie, balat unhem shasita nahim karana chahie, na unhem dasa banana chahie, na unhem paritapa dena chahie aura na unake pranom ka vinasha karana chahie. Yaha ahimsa dharma shuddha, nitya aura shashvata hai. Khedajnya arhantom ne loka ko samyak prakara se janakara isaka pratipadana kiya hai. Jaise ki – Jo dharmacharana ke lie uthe haim, athava abhi nahim uthe haim; jo dharmashravana ke lie upasthita hue haim, ya nahim hue haim; jo danda dene se uparata haim, athava anuparata haim; jo upadhi se yukta haim, athava upadhi se rahita haim, jo samyogom mem rata haim, athava samyogom mem rata nahim haim. Vaha (arhatprarupita dharma) satya hai, tathya hai yaha isa mem samyak prakara se pratipadita hai. |