Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2011884 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन) |
Translated Chapter : |
16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन) |
Section : | 1. नयवाद | Translated Section : | 1. नयवाद |
Sutra Number : | 381 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | विशेषावश्यक भाष्य । २२६२; तुलना: गोमट्टसार कर्मकाण्ड । ८९४-८९५ | ||
Mool Sutra : | यावन्तो वचनपथास्तावन्तो, वा नया अपि शब्दात्। त एव च परसमयाः, सम्यक्त्वं समुदिता सर्वे ।। | ||
Sutra Meaning : | जगत् में जो कुछ भी बोलने में आता है वह सब वास्तव में किसी न किसी नय में गर्भित है। पृथक् पृथक् रहे हुए ये सभी पर-समय अर्थात् मिथ्यादृष्टि हैं, और परस्पर में समुदित हो जाने पर सभी सम्यग्दृष्टि हैं। (कारण अगली गाथा में बताया गया है।) | ||
Mool Sutra Transliteration : | Yavanto vachanapathastavanto, va naya api shabdat. Ta eva cha parasamayah, samyaktvam samudita sarve\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jagat mem jo kuchha bhi bolane mem ata hai vaha saba vastava mem kisi na kisi naya mem garbhita hai. Prithak prithak rahe hue ye sabhi para-samaya arthat mithyadrishti haim, aura paraspara mem samudita ho jane para sabhi samyagdrishti haim. (karana agali gatha mem bataya gaya hai.) |