Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011869 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत) |
Translated Chapter : |
15. अनेकान्त-अधिकार - (द्वैताद्वैत) |
Section : | 2. विरोध में अविरोध | Translated Section : | 2. विरोध में अविरोध |
Sutra Number : | 366 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | आप्त मीमांसा । ५७; तुलना: =देखो गाथा ३९८। | ||
Mool Sutra : | न सामान्यात्मनोदेति, न व्येति व्यक्तमन्वयात्। व्यत्युदेति विशेषात्ते, सहैक्त्रोयादि सत् ।। | ||
Sutra Meaning : | [यहाँ यह शंका हो सकती है कि एक ही द्रव्य में एक साथ उत्पाद, व्यय व ध्रौव्य ये तीन विरोधी बातें कैसे सम्भव हैं? इसका उत्तर देते हैं कि]- अन्वय रूप से सर्वदा अवस्थित रहने वाला सामान्य द्रव्य तो न उत्पन्न होता है न नष्ट, परन्तु पर्यायरूप पूर्वोत्तरवर्ती विशेषों की अपेक्षा वही नष्ट भी होता है और उत्पन्न भी। इस हेतु से सत् के त्रिलक्षणात्मक होने में कोई विरोध नहीं है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Na samanyatmanodeti, na vyeti vyaktamanvayat. Vyatyudeti visheshatte, sahaiktroyadi sat\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | [yaham yaha shamka ho sakati hai ki eka hi dravya mem eka satha utpada, vyaya va dhrauvya ye tina virodhi batem kaise sambhava haim? Isaka uttara dete haim ki]- Anvaya rupa se sarvada avasthita rahane vala samanya dravya to na utpanna hota hai na nashta, parantu paryayarupa purvottaravarti visheshom ki apeksha vahi nashta bhi hota hai aura utpanna bhi. Isa hetu se sat ke trilakshanatmaka hone mem koi virodha nahim hai. |