Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011560 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग) |
Translated Chapter : |
4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग) |
Section : | 7. निर्विचिकित्सत्व (अस्पृश्यता-निवारण) | Translated Section : | 7. निर्विचिकित्सत्व (अस्पृश्यता-निवारण) |
Sutra Number : | 59 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | परमात्म प्रकाश । २.१०७; तुलना: आचारांग। १.२.३ सूत्र १-३ | ||
Mool Sutra : | एकं कुरु मा द्वौ कार्षीः मा कार्षीं वर्णविशेषम्। एकेन देवेन येन वसति त्रिभुवनं एतत् अशेषम् ।। | ||
Sutra Meaning : | हे आत्मन्! तू जाति की अपेक्षा सब जीवों को एक जान। इसलिए राग और द्वेष मत कर। अभेद नय से त्रिलोकवर्ती सकल जीव-राशि शुद्धात्मस्वरूप होने के कारण समान हैं। (उच्च जाति का गर्व मत कर।) | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ekam kuru ma dvau karshih ma karshim varnavishesham. Ekena devena yena vasati tribhuvanam etat ashesham\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He atman! Tu jati ki apeksha saba jivom ko eka jana. Isalie raga aura dvesha mata kara. Abheda naya se trilokavarti sakala jiva-rashi shuddhatmasvarupa hone ke karana samana haim. (uchcha jati ka garva mata kara.) |