Sutra Navigation: Jain Dharma Sar ( जैन धर्म सार )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2011547 | ||
Scripture Name( English ): | Jain Dharma Sar | Translated Scripture Name : | जैन धर्म सार |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग) |
Translated Chapter : |
4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग) |
Section : | 2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता | Translated Section : | 2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता |
Sutra Number : | 46 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | दर्शन पाहुड । १५-१६; तुलना: पिण्ड निर्युक्ति। ९१ | ||
Mool Sutra : | सम्यक्त्वात् ज्ञानं, ज्ञानात् सर्वभावोपलब्धिः। उपलब्धपदार्थे पुनः, श्रेयाऽश्रेयो विजानाति ।। | ||
Sutra Meaning : | [इसका कारण यह है कि] सम्यक्त्व से ज्ञान उदित होता है और ज्ञान से तत्त्वों की यथार्थ उपलब्धि। तत्त्वोपलब्धि हो जाने पर हिताहित का विवेक होता है, जिससे स्वच्छन्द भी पुण्यवन्त हो जाता है। पुण्य के प्रभाव से देवों व मनुष्यों का सुख तथा उससे यथाकाल निर्वाण की प्राप्ति होती है। संदर्भ ४६-४७ | ||
Mool Sutra Transliteration : | Samyaktvat jnyanam, jnyanat sarvabhavopalabdhih. Upalabdhapadarthe punah, shreyashreyo vijanati\.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | [isaka karana yaha hai ki] samyaktva se jnyana udita hota hai aura jnyana se tattvom ki yathartha upalabdhi. Tattvopalabdhi ho jane para hitahita ka viveka hota hai, jisase svachchhanda bhi punyavanta ho jata hai. Punya ke prabhava se devom va manushyom ka sukha tatha usase yathakala nirvana ki prapti hoti hai. Samdarbha 46-47 |