Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2004263 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | २०. सम्यक्चारित्रसूत्र | Translated Section : | २०. सम्यक्चारित्रसूत्र |
Sutra Number : | 263 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | द्रव्यसंग्रह 45 | ||
Mool Sutra : | अशुभाद्विनिवृत्तिः, शुभे प्रवृत्तिश्च जानीहि चारित्रम्। व्रतसमितिगुप्तिरूपं, व्यवहारनयात् तु जिनभणितम्।।२।। | ||
Sutra Meaning : | अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति ही व्यवहारचारित्र है, जो पाँच व्रत, पाँच समिति व तीन गुप्ति के रूप में जिनदेव द्वारा प्ररूपित है। [इस तेरह प्रकार के चारित्र का कथन आगे यथास्थान किया गया है।] | ||
Mool Sutra Transliteration : | Ashubhadvinivrittih, shubhe pravrittishcha janihi charitram. Vratasamitiguptirupam, vyavaharanayat tu jinabhanitam..2.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Ashubha se nivritti aura shubha mem pravritti hi vyavaharacharitra hai, jo pamcha vrata, pamcha samiti va tina gupti ke rupa mem jinadeva dvara prarupita hai. [isa teraha prakara ke charitra ka kathana age yathasthana kiya gaya hai.] |