Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004168 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | १३. अप्रमादसूत्र | Translated Section : | १३. अप्रमादसूत्र |
Sutra Number : | 168 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | बृहद्कल्पभाष्य 3382 | ||
Mool Sutra : | जागृत नराः ! नित्यं, जागरमाणस्य वर्द्धते बुद्धिः। यः स्वपिति न सो धन्यः, यः जागर्त्ति स सदा धन्यः।।९।। | ||
Sutra Meaning : | मनुष्यो ! सतत जागृत रहो। जो जागता है उसकी बुद्धि बढ़ती है। जो सोता है वह धन्य नहीं है, धन्य वह है, जो सदा जागता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Jagrita narah ! Nityam, jagaramanasya varddhate buddhih. Yah svapiti na so dhanyah, yah jagartti sa sada dhanyah..9.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Manushyo ! Satata jagrita raho. Jo jagata hai usaki buddhi barhati hai. Jo sota hai vaha dhanya nahim hai, dhanya vaha hai, jo sada jagata hai. |