Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004042 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | ४. निरूपणसूत्र | Translated Section : | ४. निरूपणसूत्र |
Sutra Number : | 42 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | बृहद्कल्पभाष्य 4506 | ||
Mool Sutra : | निश्चयतः दुर्ज्ञेयं, कः भावः कस्मिन् वर्तते श्रमणः?। व्यवहारतस्तु क्रियते, यः पूर्वस्थितश्चारित्रे।।११।। | ||
Sutra Meaning : | निश्चय ही यह जानना कठिन है कि कौन श्रमण किस भाव में स्थित है। अतः जो पूर्व-चारित्र में स्थित हैं, उनका कृतिकर्म (वन्दना) व्यवहारनय के द्वारा चलता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Nishchayatah durjnyeyam, kah bhavah kasmin vartate shramanah?. Vyavaharatastu kriyate, yah purvasthitashcharitre..11.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Nishchaya hi yaha janana kathina hai ki kauna shramana kisa bhava mem sthita hai. Atah jo purva-charitra mem sthita haim, unaka kritikarma (vandana) vyavaharanaya ke dvara chalata hai. |