Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2004036 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Sanskrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Translated Chapter : |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
Section : | ४. निरूपणसूत्र | Translated Section : | ४. निरूपणसूत्र |
Sutra Number : | 36 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार 7 | ||
Mool Sutra : | व्यवहारेणोपदिश्यते, ज्ञानिनश्चरित्रं दर्शनं ज्ञानम्। नापि ज्ञानं न चरित्रं, न दर्शनं ज्ञायकः शुद्धः।।५।। | ||
Sutra Meaning : | व्यवहारनय से यह कहा जाता है कि ज्ञानी के चारित्र होता है, दर्शन होता है और ज्ञान होता है। किन्तु निश्चयनय से उसके न ज्ञान है, न चारित्र है न दर्शन है। ज्ञानी तो शुद्ध ज्ञायक है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Vyavaharenopadishyate, jnyaninashcharitram darshanam jnyanam. Napi jnyanam na charitram, na darshanam jnyayakah shuddhah..5.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vyavaharanaya se yaha kaha jata hai ki jnyani ke charitra hota hai, darshana hota hai aura jnyana hota hai. Kintu nishchayanaya se usake na jnyana hai, na charitra hai na darshana hai. Jnyani to shuddha jnyayaka hai. |