Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 2000213 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र | Translated Section : | १७. रत्नत्रयसूत्र |
Sutra Number : | 213 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | विशेषावश्यकभाष्य 1165 | ||
Mool Sutra : | संजोअसिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा।।६।। | ||
Sutra Meaning : | कहा जाता है कि ज्ञान और क्रिया के संयोग से ही फल की प्राप्ति होती है, जैसे कि वन में पंगु और अन्धे के मिलने पर पारस्परिक सम्प्रयोग से (वन से निकलकर) दोनों नगर में प्रविष्ट हो जाते हैं। एक पहिये से रथ नहीं चलता। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Samjoasiddhii phalam vayamti, na hu egachakkena raho payai. Amdho ya pamgu ya vane samichcha, te sampautta nagaram pavittha..6.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Kaha jata hai ki jnyana aura kriya ke samyoga se hi phala ki prapti hoti hai, jaise ki vana mem pamgu aura andhe ke milane para parasparika samprayoga se (vana se nikalakara) donom nagara mem pravishta ho jate haim. Eka pahiye se ratha nahim chalata. |