Sutra Navigation: Saman Suttam ( समणसुत्तं )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 2000202 | ||
Scripture Name( English ): | Saman Suttam | Translated Scripture Name : | समणसुत्तं |
Mool Language : | Prakrit | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Translated Chapter : |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
Section : | १६. मोक्षमार्गसूत्र | Translated Section : | १६. मोक्षमार्गसूत्र |
Sutra Number : | 202 | Category : | |
Gatha or Sutra : | Sutra Anuyog : | ||
Author : | Original Author : | ||
Century : | Sect : | ||
Source : | समयसार 147 | ||
Mool Sutra : | तम्हा दु कुसीलेहिं य, रायं मा कुणह मा व संसग्गं। साहीणो हि विणासो, कुसीलसंसग्गरायेण।।११।। | ||
Sutra Meaning : | अतः (परमार्थतः) दोनों ही प्रकार के कर्मों को कुशील जानकर उनके साथ न राग करना चाहिए और न उनका संसर्ग। क्योंकि कुशील (कर्मों) के प्रति राग और संसर्ग करने से स्वाधीनता नष्ट होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | Tamha du kusilehim ya, rayam ma kunaha ma va samsaggam. Sahino hi vinaso, kusilasamsaggarayena..11.. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Atah (paramarthatah) donom hi prakara ke karmom ko kushila janakara unake satha na raga karana chahie aura na unaka samsarga. Kyomki kushila (karmom) ke prati raga aura samsarga karane se svadhinata nashta hoti hai. |