Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )

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Sr No : 1024310
Scripture Name( English ): Anuyogdwar Translated Scripture Name : अनुयोगद्वारासूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Translated Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 310 Category : Chulika-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं नयप्पमाणे? नयप्पमाणे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–पत्थगदिट्ठंतेणं वसहिदिट्ठंतेणं पएसदिट्ठंतेणं। से किं तं पत्थगदिट्ठंतेणं? पत्थगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे परसुं गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता वएज्जा–कहिं भवं गच्छसि? अविसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगस्स गच्छामि। तं च केइ छिंदमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं छिंदसि? विसुद्धो नेगमो भणति–पत्थगं छिंदामि। तं च केइ तच्छेमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं तच्छेसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं तच्छेमि। तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं उक्किरसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं उक्किरामि। तं च केइ लिहमाणं पासित्ता वएज्जा–किं भवं लिहसि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पत्थगं लिहामि। एवं विसुद्धतरागस्स नेगमस्स नामाउडिओ पत्थओ। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स चिओ मिओ मेज्जसमारूढो पत्थओ उज्जुसुयस्स पत्थओ वि पत्थओ, मेज्जं पि पत्थओ। तिण्हं सद्दनयाणं पत्थगाहिगारजाणओ पत्थओ, जस्स वा वसेणं पत्थओ निप्फज्जइ। से तं पत्थगदिट्ठंतेणं। से किं तं वसहिदिट्ठंतेणं? वसहिदिट्ठंतेणं– से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वएज्जा–कहिं भवं वससि? अविसुद्धो नेगमो भणति–लोगे वसामि। लोगे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढलोए अहेलोए तिरियलोए, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धो नेगमो भणति–तिरियलोए वसामि। तिरियलोए जंबुद्दीवाइया सयंभुरमनपज्जवसाणा असंखेज्जा दीव-समुद्दा पन्नत्ता, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–जंबुद्दीवे वसामि। जंबुद्दीवे दस खेत्ता पन्नत्ता, तं जहा–भरहे एरवए हेमवए हेरन्नवए हरिवस्से रम्मगवस्से देवकुरा उत्तरकुरा पुव्वविदेहे अवरविदेहे, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–भरहे वसामि। भरहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–दाहिणड्ढभरहे य उत्तरड्ढभरहे य, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–दाहिणड्ढभरहे वसामि। दाहिणड्ढभरहे अनेगाइं गामागर-नगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासम-संबाह-सन्निवेसाइं, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–पाडलिपुत्ते वसामि। पाडलिपुत्ते अनेगाइं गिहाइं तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति–देवदत्तस्स घरे वसामि। देवदत्तस्स घरे अनेगा कोट्ठगा, तेसु सव्वेसु भवं वससि? विसुद्धतराओ नेगमो भणति– गब्भघरे वसामि। एवं विसुद्धतरागस्स नेगमस्स वसमाणो वसइ। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स संथारसमारूढो वसइ। उज्जुसुयस्स जेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ। तिण्हं सद्दनयाणं आयभावे वसइ। से तं वसहिदिट्ठंतेणं। से किं तं पएसदिट्ठंतेणं? पएसदिट्ठंतेणं–नेगमो भणति–छण्हं पएसो, तं जहा–धम्मपएसो अधम्मपएसो आगास-पएसो जीवपएसो खंधपएसो देसपएसो। एवं वयंतं नेगमं संगहो भणति–जं भणसि छण्हं पएसो तं न भवइ। कम्हा? जम्हा जो देसपएसो सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को दिट्ठंतो? दासेण मे खरो कीओ दासो वि मे खरो वि मे, तं मा भणाहि–छण्हं पएसो, भणाहि पंचण्हं पएसो, तं जहा–धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो। एवं वयंतं संगहं ववहारो भणसि–जं भणति पंचण्हं पएसो तं न भवइ। कम्हा? जइ पंचण्हं गोट्ठियाणं केइ दव्वजाए सामन्ने, तं जहा –हिरन्ने वा सुवन्ने वा धणे वा धन्ने वा तो जुत्तं वत्तुं जहा पंचण्हं पएसो, तं मा भणाहि–पंचण्हं पएसो, भणाहि–पंचविहो पएसो, तं जहा–धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपएसो जीवपएसो खंधपएसो। एवं वयंतं ववहारं उज्जुसुओ भणति–जं भणसि पंचविहो पएसो, तं न भवइ। कम्हा? जइ ते पंचविहो पएसो–एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो–एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि–पंच-विहो पएसो, भणाहि–भइयव्वो पएसो–सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो एवं वयंतं उज्जुसुयं संपइ सद्दो भणति–जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं न भवइ। कम्हा? जइ ते भइयव्वो पएसो, एवं ते–१. धम्मपएसो वि–सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, २. अधम्मपएसो वि– सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, ३. आगासपएसो वि– सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, ४. जीवपएसो वि–सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो, ५. खंधपएसो वि–सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगासपएसो सिय जीवपएसो सिय खंधपएसो। एवं ते अणवत्था भविस्सइ, तं मा भणाहि–भइयव्वो पएसो, भणाहि–धम्मे पएसे से पएसे धम्मे, अधम्मे पएसे से पएसे अधम्मे, आगासे पएसे से पएसे आगासे, जीवे पएसे से पएसे नोजीवे, खंधे पएसे से पएसे नोखंधे। एवं वयंतं सद्दं संपइ समभिरूढो भणति–जं भणसि धम्मे पएसे से पएसे धम्मे जाव खंधे पएसे से पएसे नोखंधे, तं न भवइ। कम्हा? एत्थ दो समासा भवंति, तं जहा–तप्पुरिसे य कम्मधारए य। तं न नज्जइ कयरेणं समासेणं भणसि? किं तप्पुरिसेणं? किं कम्मधारएणं? जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, अह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसओ भणाहि–धम्मे य से पएसे य सेसे पएसे धम्मे, अधम्मे य से पएसे य सेसे पएसे अधम्मे, आगासे य से पएसे य सेसे पएसे आगासे, जीवे य से पएसे य सेसे पएसे नोजीवे, खंधे य से पएसे य सेसे पएसे नोखंधे। एवं वयंतं समभिरूढं संपइ एवंभूओ भणति–जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुण्णं निरवसेसं एगग्गहणगहीयं। देसे वि मे अवत्थू, पएसे वि मे अवत्थू। से तं पएसदिट्ठंतेणं। से तं नयप्पमाणेणं।
Sutra Meaning : नयप्रमाण क्या है ? वह तीन दृष्टान्तों द्वारा स्पष्ट किया गया है। जैसे कि – प्रस्थक के, वसति के और प्रदेश के दृष्टान्त द्वारा। भगवन्‌ ! प्रस्थक का दृष्टान्त क्या है ? जैसे कोई पुरुष परशु लेकर वन की ओर जाता है। उसे देखकर किसीने पूछा – आप कहाँ जा रहे हैं ? तब अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उसने कहा – प्रस्थक लेने के लिए जा रहा हूँ। फिर उसे वृक्ष को छेदन करते देखकर कोई कहे – आप क्या काट रहे हैं ? तब उसने विशुद्धतर नैगमनय के मतानुसार उत्तर दिया – मैं प्रस्थक काट रहा हूँ। कोई उस लकड़ी को छीलते देखकर पूछे – आप यह क्या छील रहे हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय की अपेक्षा उसने कहा – प्रस्थक छील रहा हूँ। कोई काष्ठ के मध्यभाग को उत्कीर्ण करते देखकर पूछे – आप यह क्या उत्कीर्ण कर रहे हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय के अनुसार उसने उत्तर दिया – मैं प्रस्थक उत्कीर्ण कर रहा हूँ। उस उत्कीर्ण काष्ठ पर प्रस्थक का आकार लेखन करते देखकर कहे – आप यह क्या लेखन कर रहे हैं ? तो विशुद्धतर नैगमनयानुसार उसने उत्तर दिया – प्रस्थक अंकित कर रहा हूँ। इसी प्रकार से जब तक संपूर्ण प्रस्थक निष्पन्न न हो जाए, तब तक प्रस्थक संबंधी प्रश्र्नोत्तर करना चाहिए। इसी प्रकार व्यवहारनय से भी जानना। संग्रहनय के मत से धान्यपरिपूरित प्रस्थक को ही प्रस्थक कहते हैं ऋजुसूत्रनय के मतसे प्रस्थक भी प्रस्थक है और मेय वस्तु भी प्रस्थक है। तीनों शब्द नयों के मतानुसार प्रस्थक के अर्थाधिकार का ज्ञाता अथवा प्रस्थककर्ता का वह उपयोग जिससे प्रस्थक, निष्पन्न होता है उसमें वर्तमान कर्ता प्रस्थक है। वह वसति – दृष्टान्त क्या है ? वसति के दृष्टान्त द्वारा नयों का स्वरूप इस प्रकार जानना – जैसे किसी पुरुष ने किसी अन्य पुरुष से पूछा – आप कहाँ रहते हो ? तब उसने अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उत्तर दिया – मैं लोक में रहता हूँ। प्रश्नकर्ता ने पुनः पूछा – लोक के तो तीन भेद हैं। तो क्या आप इन सब में रहते हैं ? तब – विशुद्ध नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा – मैं तिर्यग्‌लोक में रहता हूँ। इस पर पुनः प्रश्न तिर्यग्‌लोक में जम्बूद्वीप आदि स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप – समुद्र हैं, तो क्या आप उन सभी में रहते हैं ? प्रत्युत्तर में विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा – मैं जम्बूद्वीप में रहता हूँ। तब प्रश्नकर्ता ने प्रश्न किया – जम्बूद्वीप में दस क्षेत्र हैं। तो क्या आप इन दसों क्षेत्रों में रहते हैं ? उत्तर में विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा – भरतक्षेत्र में रहता हूँ। प्रश्नकर्ता ने पुनः पूछा – भरतक्षेत्र के दो विभाग हैं तो क्या आप उन दोनों विभागों में रहते हैं ? विशुद्धतर नैगमनय की दृष्टि से उसने उत्तर दिया – दक्षिणार्धभरत में रहता हूँ। दक्षिणार्धभरत में तो अनेक ग्राम, नगर, खेड, कर्वट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आकर, संबाह, सन्निवेश हैं, तो क्या आप उन सबमें रहते हैं ? इसका विशुद्धतर नैगमनयानुसार उसने उत्तर दिया – मैं पाटलिपुत्र में रहता हूँ। पाटलिपुत्र में अनेक घर हैं, तो क्या आप उन सभी में निवास करते हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय की दृष्टि से उसने उत्तर दिया – देवदत्त के घर में बसता हूँ। देवदत्त के घर में अनेक प्रकोष्ठ हैं, तो क्या आप उन सबमें रहते हैं ? उत्तर में उसने विशुद्धतर नैगमनय के अनुसार कहा – गर्भगृह मे रहता हूँ। इस प्रकार विशुद्ध नैगमनय के मत से बसते हुए को बसता हुआ माना जाता है। व्यवहारनय का मंतव्य भी इसी प्रकार का है। संग्रहनय के मतानुसार शैया पर आरूढ़ हो तभी वह बसता हुआ कहा जा सकता है। ऋजुसूत्रनय के मत से जिन आकाश – प्रदेशों में अवगाढ़ – अवगाहनयुक्त – विद्यमान हैं, उनमें ही बसता हुआ माना जाता है। तीनों शब्दनयों के अभिप्राय से आत्मभाव में ही निवास होता है। प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयों के स्वरूप का प्रतिपादन किस प्रकार है ? नैगमनय के मत से – छह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं। धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश, स्कन्ध का प्रदेश और देश का प्रदेश। ऐसा कथन करने वाले नैगमनय से संग्रहनय ने कहा – जो तुम कहते हो कि छहों के प्रदेश हैं, वह उचित नहीं है। क्योंकि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है। इसके लिए कोई दृष्टान्त है? हाँ दृष्टान्त है। जैसे मेरे दास ने गधा खरीदा और दास मेरा है तो गधा भी मेरा है। इसलिए ऐसा मत कहो कि छहों के प्रदेश हैं, यह कहो कि पाँच के प्रदेश हैं। यथा – धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश। इस प्रकार कहनेवाले संग्रहनय से व्यवहारनय ने कहा – तुम कहते हो कि पाँचों के प्रदेश हैं, वह सिद्ध नहीं होता है। क्यों ? प्रत्युत्तर में व्यवहारनयवादी ने कहा – जैसे पाँच गोष्ठिक पुरुषों का कोई द्रव्य सामान्य होता है। यथा – हिरण्य, स्वर्ण आदि तो तुम्हारा कहना युक्त था कि पाँचों के प्रदेश हैं। इसलिए ऐसा मत कहो कि पाँचों के प्रदेश हैं, किन्तु कहो – प्रदेश पाँच प्रकार का है, जैसे – धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश। व्यवहारनय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय ने कहा – तुम भी जो कहते हो कि पाँच प्रकार के प्रदेश हैं, वह नहीं बनता है। क्योंकि यदि पाँच प्रकार के प्रदेश हैं यह कहो तो एक – एक प्रदेश पाँच – पाँच प्रकार का हो जाने से तुम्हारे मत से पच्चीस प्रकार का प्रदेश होगा। यह कहो कि प्रदेश भजनीय है – स्यात्‌ धर्मास्तिकाय का प्रदेश, स्यात्‌ अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, स्यात्‌ आकाशास्तिकाय का प्रदेश, स्यात्‌ जीव का प्रदेश, स्यात्‌ स्कन्ध का प्रदेश है। इस प्रकार कहनेवाले ऋजुसूत्रनय से संप्रति शब्दनय ने कहा – तुम कहते हो कि प्रदेश भजनीय है, यह कहना योग्य नहीं है। क्योंकि प्रदेश भजनीय है, ऐसा मानने से तो धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का भी, आकाशास्तिकाय का भी, जीवास्तिकाय का भी और स्कन्ध का भी प्रदेश हो सकता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है। यावत्‌ स्कन्ध का प्रदेश भी धर्मास्ति – काय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश अथवा जीवास्तिकाय का प्रदेश हो सकता है। इस प्रकार तुम्हारे मत से अनवस्था हो जाएगी। ऐसा कहो – धर्मरूप जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्म है – है, जो अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश आकाशात्मक है, एक जीवास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीव है, इसी प्रकार जो स्कन्ध का प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। इस प्रकार कहते हुए शब्दनय से समभिरूढनय ने कहा – तुम कहते हो कि धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्मास्तिकायरूप है, यावत्‌ स्कन्ध का जो प्रदेश, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है, किन्तु तुम्हारा यह कथन युक्तिसंगत नहीं है। क्योंकि यहाँ तत्पुरुष और कर्मधारय यह दो समास होत हैं। इसलिए संदेह होता है कि उक्त दोनों समासों में से तुम किस समास की दृष्टि से ‘धर्मप्रदेश’ आदि कह रहे हो ? यदि तत्पुरुषसमासदृष्टि से कहते हो तो ऐसा मत कहो और यदि कर्मधारय समास की अपेक्षा कहते हो तब विशेषतया कहना चाहिए – धर्म और उसका जो प्रदेश वही प्रदेश धर्मास्तिकाय है। इसी प्रकार अधर्म और उसका जो प्रदेश वही प्रदेश अधर्मास्तिकाय रूप है, यावत्‌ स्कन्ध और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है। ऐसा कथन करने पर समभिरूढनय से एवंभूतनय ने कहा – जो कुछ भी तुम कहते हो वह समीचीन नहीं, मेरे मत से वे सब कृत्स्न हैं, प्रतिपूर्ण और निरवशेष हैं, एक ग्रहणगृहीत हैं – अतः देश भी अवस्तु रूप है एवं प्रदेश भी अवस्तु रूप हैं।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam nayappamane? Nayappamane tivihe pannatte, tam jaha–patthagaditthamtenam vasahiditthamtenam paesaditthamtenam. Se kim tam patthagaditthamtenam? Patthagaditthamtenam–se jahanamae kei purise parasum gahaya adavihutto gachchhejja, tam cha kei pasitta vaejja–kahim bhavam gachchhasi? Avisuddho negamo bhanati–patthagassa gachchhami. Tam cha kei chhimdamanam pasitta vaejja–kim bhavam chhimdasi? Visuddho negamo bhanati–patthagam chhimdami. Tam cha kei tachchhemanam pasitta vaejja–kim bhavam tachchhesi? Visuddhatarao negamo bhanati–patthagam tachchhemi. Tam cha kei ukkiramanam pasitta vaejja–kim bhavam ukkirasi? Visuddhatarao negamo bhanati–patthagam ukkirami. Tam cha kei lihamanam pasitta vaejja–kim bhavam lihasi? Visuddhatarao negamo bhanati–patthagam lihami. Evam visuddhataragassa negamassa namaudio patthao. Evameva vavaharassa vi. Samgahassa chio mio mejjasamarudho patthao Ujjusuyassa patthao vi patthao, mejjam pi patthao. Tinham saddanayanam patthagahigarajanao patthao, jassa va vasenam patthao nipphajjai. Se tam patthagaditthamtenam. Se kim tam vasahiditthamtenam? Vasahiditthamtenam– se jahanamae kei purise kamchi purisam vaejja–kahim bhavam vasasi? Avisuddho negamo bhanati–loge vasami. Loge tivihe pannatte, tam jaha–uddhaloe aheloe tiriyaloe, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddho negamo bhanati–tiriyaloe vasami. Tiriyaloe jambuddivaiya sayambhuramanapajjavasana asamkhejja diva-samudda pannatta, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati–jambuddive vasami. Jambuddive dasa khetta pannatta, tam jaha–bharahe eravae hemavae herannavae harivasse rammagavasse devakura uttarakura puvvavidehe avaravidehe, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati–bharahe vasami. Bharahe duvihe pannatte, tam jaha–dahinaddhabharahe ya uttaraddhabharahe ya, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati–dahinaddhabharahe vasami. Dahinaddhabharahe anegaim gamagara-nagara-kheda-kabbada-madamba-donamuha-pattanasama-sambaha-sannivesaim, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati–padaliputte vasami. Padaliputte anegaim gihaim tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati–devadattassa ghare vasami. Devadattassa ghare anega kotthaga, tesu savvesu bhavam vasasi? Visuddhatarao negamo bhanati– gabbhaghare vasami. Evam visuddhataragassa negamassa vasamano vasai. Evameva vavaharassa vi. Samgahassa samtharasamarudho vasai. Ujjusuyassa jesu agasapaesesu ogadho tesu vasai. Tinham saddanayanam ayabhave vasai. Se tam vasahiditthamtenam. Se kim tam paesaditthamtenam? Paesaditthamtenam–negamo bhanati–chhanham paeso, tam jaha–dhammapaeso adhammapaeso agasa-paeso jivapaeso khamdhapaeso desapaeso. Evam vayamtam negamam samgaho bhanati–jam bhanasi chhanham paeso tam na bhavai. Kamha? Jamha jo desapaeso so tasseva davvassa, jaha ko ditthamto? Dasena me kharo kio daso vi me kharo vi me, tam ma bhanahi–chhanham paeso, bhanahi pamchanham paeso, tam jaha–dhammapaeso adhammapaeso agasapaeso jivapaeso khamdhapaeso. Evam vayamtam samgaham vavaharo bhanasi–jam bhanati pamchanham paeso tam na bhavai. Kamha? Jai pamchanham gotthiyanam kei davvajae samanne, tam jaha –hiranne va suvanne va dhane va dhanne va to juttam vattum jaha pamchanham paeso, tam ma bhanahi–pamchanham paeso, bhanahi–pamchaviho paeso, tam jaha–dhammapaeso adhammapaeso agasapaeso jivapaeso khamdhapaeso. Evam vayamtam vavaharam ujjusuo bhanati–jam bhanasi pamchaviho paeso, tam na bhavai. Kamha? Jai te pamchaviho paeso–evam te ekkekko paeso pamchaviho–evam te panavisativiho paeso bhavai, tam ma bhanahi–pamcha-viho paeso, bhanahi–bhaiyavvo paeso–siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso evam vayamtam ujjusuyam sampai saddo bhanati–jam bhanasi bhaiyavvo paeso, tam na bhavai. Kamha? Jai te bhaiyavvo paeso, evam te–1. Dhammapaeso vi–siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso, 2. Adhammapaeso vi– siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso, 3. Agasapaeso vi– siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso, 4. Jivapaeso vi–siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso, 5. Khamdhapaeso vi–siya dhammapaeso siya adhammapaeso siya agasapaeso siya jivapaeso siya khamdhapaeso. Evam te anavattha bhavissai, tam ma bhanahi–bhaiyavvo paeso, bhanahi–dhamme paese se paese dhamme, adhamme paese se paese adhamme, agase paese se paese agase, jive paese se paese nojive, khamdhe paese se paese nokhamdhe. Evam vayamtam saddam sampai samabhirudho bhanati–jam bhanasi dhamme paese se paese dhamme java khamdhe paese se paese nokhamdhe, tam na bhavai. Kamha? Ettha do samasa bhavamti, tam jaha–tappurise ya kammadharae ya. Tam na najjai kayarenam samasenam bhanasi? Kim tappurisenam? Kim kammadharaenam? Jai tappurisenam bhanasi to ma evam bhanahi, aha kammadharaenam bhanasi to visesao bhanahi–dhamme ya se paese ya sese paese dhamme, adhamme ya se paese ya sese paese adhamme, agase ya se paese ya sese paese agase, jive ya se paese ya sese paese nojive, khamdhe ya se paese ya sese paese nokhamdhe. Evam vayamtam samabhirudham sampai evambhuo bhanati–jam jam bhanasi tam tam savvam kasinam padipunnam niravasesam egaggahanagahiyam. Dese vi me avatthu, paese vi me avatthu. Se tam paesaditthamtenam. Se tam nayappamanenam.
Sutra Meaning Transliteration : Nayapramana kya hai\? Vaha tina drishtantom dvara spashta kiya gaya hai. Jaise ki – prasthaka ke, vasati ke aura pradesha ke drishtanta dvara. Bhagavan ! Prasthaka ka drishtanta kya hai\? Jaise koi purusha parashu lekara vana ki ora jata hai. Use dekhakara kisine puchha – apa kaham ja rahe haim\? Taba avishuddha naigamanaya ke matanusara usane kaha – prasthaka lene ke lie ja raha hum. Phira use vriksha ko chhedana karate dekhakara koi kahe – apa kya kata rahe haim\? Taba usane vishuddhatara naigamanaya ke matanusara uttara diya – maim prasthaka kata raha hum. Koi usa lakari ko chhilate dekhakara puchhe – apa yaha kya chhila rahe haim\? Taba vishuddhatara naigamanaya ki apeksha usane kaha – prasthaka chhila raha hum. Koi kashtha ke madhyabhaga ko utkirna karate dekhakara puchhe – apa yaha kya utkirna kara rahe haim\? Taba vishuddhatara naigamanaya ke anusara usane uttara diya – maim prasthaka utkirna kara raha hum. Usa utkirna kashtha para prasthaka ka akara lekhana karate dekhakara kahe – apa yaha kya lekhana kara rahe haim\? To vishuddhatara naigamanayanusara usane uttara diya – prasthaka amkita kara raha hum. Isi prakara se jaba taka sampurna prasthaka nishpanna na ho jae, taba taka prasthaka sambamdhi prashrnottara karana chahie. Isi prakara vyavaharanaya se bhi janana. Samgrahanaya ke mata se dhanyaparipurita prasthaka ko hi prasthaka kahate haim Rijusutranaya ke matase prasthaka bhi prasthaka hai aura meya vastu bhi prasthaka hai. Tinom shabda nayom ke matanusara prasthaka ke arthadhikara ka jnyata athava prasthakakarta ka vaha upayoga jisase prasthaka, nishpanna hota hai usamem vartamana karta prasthaka hai. Vaha vasati – drishtanta kya hai\? Vasati ke drishtanta dvara nayom ka svarupa isa prakara janana – jaise kisi purusha ne kisi anya purusha se puchha – apa kaham rahate ho\? Taba usane avishuddha naigamanaya ke matanusara uttara diya – maim loka mem rahata hum. Prashnakarta ne punah puchha – loka ke to tina bheda haim. To kya apa ina saba mem rahate haim\? Taba – vishuddha naigamanaya ke abhiprayanusara usane kaha – maim tiryagloka mem rahata hum. Isa para punah prashna tiryagloka mem jambudvipa adi svayambhuramanasamudra paryanta asamkhyata dvipa – samudra haim, to kya apa una sabhi mem rahate haim\? Pratyuttara mem vishuddhatara naigamanaya ke abhiprayanusara usane kaha – maim jambudvipa mem rahata hum. Taba prashnakarta ne prashna kiya – jambudvipa mem dasa kshetra haim. To kya apa ina dasom kshetrom mem rahate haim\? Uttara mem vishuddhatara naigamanaya ke abhiprayanusara usane kaha – bharatakshetra mem rahata hum. Prashnakarta ne punah puchha – bharatakshetra ke do vibhaga haim to kya apa una donom vibhagom mem rahate haim\? Vishuddhatara naigamanaya ki drishti se usane uttara diya – dakshinardhabharata mem rahata hum. Dakshinardhabharata mem to aneka grama, nagara, kheda, karvata, madamba, dronamukha, pattana, akara, sambaha, sannivesha haim, to kya apa una sabamem rahate haim\? Isaka vishuddhatara naigamanayanusara usane uttara diya – maim pataliputra mem rahata hum. Pataliputra mem aneka ghara haim, to kya apa una sabhi mem nivasa karate haim\? Taba vishuddhatara naigamanaya ki drishti se usane uttara diya – devadatta ke ghara mem basata hum. Devadatta ke ghara mem aneka prakoshtha haim, to kya apa una sabamem rahate haim\? Uttara mem usane vishuddhatara naigamanaya ke anusara kaha – garbhagriha me rahata hum. Isa prakara vishuddha naigamanaya ke mata se basate hue ko basata hua mana jata hai. Vyavaharanaya ka mamtavya bhi isi prakara ka hai. Samgrahanaya ke matanusara shaiya para arurha ho tabhi vaha basata hua kaha ja sakata hai. Rijusutranaya ke mata se jina akasha – pradeshom mem avagarha – avagahanayukta – vidyamana haim, unamem hi basata hua mana jata hai. Tinom shabdanayom ke abhipraya se atmabhava mem hi nivasa hota hai. Pradeshadrishtanta dvara nayom ke svarupa ka pratipadana kisa prakara hai\? Naigamanaya ke mata se – chhaha dravyom ke pradesha hote haim. Dharmastikaya ka pradesha, adharmastikaya ka pradesha, akashastikaya ka pradesha, jivastikaya ka pradesha, skandha ka pradesha aura desha ka pradesha. Aisa kathana karane vale naigamanaya se samgrahanaya ne kaha – jo tuma kahate ho ki chhahom ke pradesha haim, vaha uchita nahim hai. Kyomki jo desha ka pradesha hai, vaha usi dravya ka hai. Isake lie koi drishtanta hai? Ham drishtanta hai. Jaise mere dasa ne gadha kharida aura dasa mera hai to gadha bhi mera hai. Isalie aisa mata kaho ki chhahom ke pradesha haim, yaha kaho ki pamcha ke pradesha haim. Yatha – dharmastikaya ka pradesha, adharmastikaya ka pradesha, akashastikaya ka pradesha, jivastikaya ka pradesha aura skandha ka pradesha. Isa prakara kahanevale samgrahanaya se vyavaharanaya ne kaha – tuma kahate ho ki pamchom ke pradesha haim, vaha siddha nahim hota hai. Kyom\? Pratyuttara mem vyavaharanayavadi ne kaha – jaise pamcha goshthika purushom ka koi dravya samanya hota hai. Yatha – hiranya, svarna adi to tumhara kahana yukta tha ki pamchom ke pradesha haim. Isalie aisa mata kaho ki pamchom ke pradesha haim, kintu kaho – pradesha pamcha prakara ka hai, jaise – dharmastikaya ka pradesha, adharmastikaya ka pradesha, akashastikaya ka pradesha, jivastikaya ka pradesha aura skandha ka pradesha. Vyavaharanaya ke aisa kahane para rijusutranaya ne kaha – tuma bhi jo kahate ho ki pamcha prakara ke pradesha haim, vaha nahim banata hai. Kyomki yadi pamcha prakara ke pradesha haim yaha kaho to eka – eka pradesha pamcha – pamcha prakara ka ho jane se tumhare mata se pachchisa prakara ka pradesha hoga. Yaha kaho ki pradesha bhajaniya hai – syat dharmastikaya ka pradesha, syat adharmastikaya ka pradesha, syat akashastikaya ka pradesha, syat jiva ka pradesha, syat skandha ka pradesha hai. Isa prakara kahanevale rijusutranaya se samprati shabdanaya ne kaha – tuma kahate ho ki pradesha bhajaniya hai, yaha kahana yogya nahim hai. Kyomki pradesha bhajaniya hai, aisa manane se to dharmastikaya ka pradesha adharmastikaya ka bhi, akashastikaya ka bhi, jivastikaya ka bhi aura skandha ka bhi pradesha ho sakata hai. Isi prakara adharmastikaya ka pradesha dharmastikaya ka pradesha, akashastikaya ka pradesha, jivastikaya ka pradesha evam skandha ka pradesha ho sakata hai. Yavat skandha ka pradesha bhi dharmasti – kaya ka pradesha, adharmastikaya ka pradesha, akashastikaya ka pradesha athava jivastikaya ka pradesha ho sakata hai. Isa prakara tumhare mata se anavastha ho jaegi. Aisa kaho – dharmarupa jo pradesha hai, vahi pradesha dharma hai – hai, jo adharmastikaya ka pradesha hai, vahi pradesha akashatmaka hai, eka jivastikaya ka jo pradesha hai, vahi pradesha nojiva hai, isi prakara jo skandha ka pradesha hai, vahi pradesha noskandhatmaka hai. Isa prakara kahate hue shabdanaya se samabhirudhanaya ne kaha – tuma kahate ho ki dharmastikaya ka jo pradesha hai, vahi pradesha dharmastikayarupa hai, yavat skandha ka jo pradesha, vahi pradesha noskandhatmaka hai, kintu tumhara yaha kathana yuktisamgata nahim hai. Kyomki yaham tatpurusha aura karmadharaya yaha do samasa hota haim. Isalie samdeha hota hai ki ukta donom samasom mem se tuma kisa samasa ki drishti se ‘dharmapradesha’ adi kaha rahe ho\? Yadi tatpurushasamasadrishti se kahate ho to aisa mata kaho aura yadi karmadharaya samasa ki apeksha kahate ho taba visheshataya kahana chahie – dharma aura usaka jo pradesha vahi pradesha dharmastikaya hai. Isi prakara adharma aura usaka jo pradesha vahi pradesha adharmastikaya rupa hai, yavat skandha aura usaka jo pradesha hai, vahi pradesha noskandhatmaka hai. Aisa kathana karane para samabhirudhanaya se evambhutanaya ne kaha – jo kuchha bhi tuma kahate ho vaha samichina nahim, mere mata se ve saba kritsna haim, pratipurna aura niravashesha haim, eka grahanagrihita haim – atah desha bhi avastu rupa hai evam pradesha bhi avastu rupa haim.