Sutra Navigation: Anuyogdwar ( अनुयोगद्वारासूत्र )

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Sr No : 1024311
Scripture Name( English ): Anuyogdwar Translated Scripture Name : अनुयोगद्वारासूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Translated Chapter :

अनुयोगद्वारासूत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 311 Category : Chulika-02
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] से किं तं संखप्पमाणे? संखप्पमाणे अट्ठविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. नामसंखा २. ठवणसंखा ३. दव्वसंखा ४. ओवम्मसंखा ५. परिमाणसंखा ६. जाणणासंखा ७. गणणासंखा ८. भावसंखा। से किं तं नामसंखा? नामसंखा–जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदु भयाण वा संखा ति नामं कज्जइ। से तं नामसंखा। से किं तं ठवणसंखा? ठवणसंखा–जण्णं कट्ठकम्मे वा चित्तकम्मे वा पोत्थकम्मे वा लेप्पकम्मे वा गंथिमे वा वेढिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे वा वराडए वा एगो वा अनेगा वा सब्भावठवणाए वा असब्भावठवणाए वा संखा ति ठवणा ठविज्जइ। से तं ठवणसंखा। नाम-ट्ठवणाणं को पइविसेसो? नामं आवकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा। से किं तं दव्वसंखा? दव्वसंखा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–आगमओ य नोआगमओ य। से किं तं आगमओ दव्वसंखा? आगमओ दव्वसंखा–जस्स णं संखा ति पदं सिक्खियं ठियं जियं मियं परिजियं नामसमं घोससमं अहीणक्खरं अणच्चक्खरं अव्वाइद्धक्खरं अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपुण्णं पडिपुन्नघोसं कंटोट्ठविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं, से णं तत्थ वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्मकहाए, नो अनुप्पेहाए। कम्हा? अनुवओगो दव्वमिति कट्टु। नेगमस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगा दव्वसंखा, दोन्नि अनुवउत्ता आगमओ दोन्नीओ दव्वसंखाओ, तिन्नि अनुवउत्ता आगमओ तिन्नीओ दव्वसंखाओ, एवं जावइया अनुवउत्ता तावइयाओ ताओ नेगमस्स आगमओ दव्वसंखाओ। एवमेव ववहारस्स वि। संगहस्स एगो वा अनेगा वा अनुवउत्तो वा अनुवउत्ता वा आगमओ दव्वसंखा वा दव्वसंखाओ वा सा एगा दव्वसंखा। उज्जुसुयस्स एगो अनुवउत्तो आगमओ एगा दव्वसंखा, पुहत्तं नेच्छइ। तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अनुवउत्ते अवत्थू। कम्हा? जइ जाणए अनुवउत्ते न भवइ। से तं आगमओ दव्वसंखा। से किं तं नोआगमओ दव्वसंखा? नोआगमओ दव्वसंखा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–जाणगसरीरदव्वसंखा भवि-यसरीरदव्वसंखा जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वसंखा। से किं तं जाणगसरीरदव्वसंखा? जाणगसरीरदव्वसंखा– संखा ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरयं ववगय-चुय-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं सेज्जागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिद्धसिलातलगयं वा पासित्ता णं कोइ वएज्जा–अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं आघवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उवदंसियं। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी। से तं जाणगसरीरदव्वसंखा। से किं तं भवियसरीरदव्वसंखा? भवियसरीरदव्वसंखा–जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिट्ठेणं भावेणं संखा ति पयं सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को दिट्ठंतो? अयं महुकुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ। से तं भवियसरीरदव्वसंखा। से किं तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वसंखा? जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वसंखा तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगभविए बद्धाउए अभिमुहनामगोत्ते य। एगभविए णं भंते! एगभविए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। बद्धाउए णं भंते! बद्धाउए त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी-तिभागं। अभिमुहनामगोत्ते णं भंते! अभिमुहनामगोत्ते त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। इयाणिं को नओ कं संखं इच्छइ? नेगम-संगह-ववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तं जहा–एगभवियं बद्धाउयं अभिमुहनामगोत्तं च। उज्जुसुओ दुविहं संखं इच्छइ, तं जहा–बद्धाउयं च अभिमुहनामगोत्तं च। तिन्नि सद्दनया अभिमुहनामगोत्तं संखं इच्छंति। से तं जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्ता दव्वसंखा। से तं नोआगमओ दव्वसंखा। से तं दव्वसंखा। से किं तं ओवम्मसंखा? ओवम्मसंखा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–१. अत्थि संतयं संतएणं उवमिज्जइ २. अत्थि संतयं असंतएणं उवमिज्जइ ३. अत्थि असंतयं संतएणं उवमिज्जइ ४. अत्थि असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ। तत्थ १. संतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहा–संता अरहंता संतएहिं पुरवरेहिं, संतएहिं कवाडेहिं संतएहिं वच्छेहिं उवमिज्जंति, जहा–
Sutra Meaning : संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है। यथा – नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाण – संख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या। नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते हैं। जिस काष्ठकर्म में, पुस्तकर्म में या चित्रकर्म में या लेप्यकर्म में अथवा ग्रन्थिकर्म में अथवा वेढित में अथवा पूरित में अथवा संघातिम में अथवा अक्ष में अथवा वराटक में अथवा एक या अनेक में सद्‌भूतस्थापना या असद्‌भूतस्थापना द्वारा ‘संख्या’ इस प्रकार का स्थापन कर लिया जाता है, वह स्थापनासंख्या है। नाम और स्थापना में क्या अन्तर है ? नाम यावत्कथित होता है लेकिन स्थापना इत्वरिक भी होती है और यावत्कथिक भी होती है। द्रव्यशंख का क्या तात्पर्य है ? दो प्रकार का – आगमद्रव्यशंख, नोआगमद्रव्यशंख। आगमद्रव्यशंख (संख्या) का स्वरूप इस प्रकार है – जिसने शंख (संख्या) यह पद सीखा लिया, हृदय में स्थिर किया, जित किया, मित किया, अधिकृत कर लिया यावत्‌ निर्दोष स्पष्ट स्वर से शुद्ध उच्चारण किया तथा गुरु से वाचना ली, जिससे वाचना, पृच्छना, परावर्तना एवं धर्मकथा से युक्त भी हो गया परन्तु जो अर्थ का अनुचिन्तन करने रूप अनुप्रेक्षा से रहित हो, उपयोग न होने से वह आगम से द्रव्यशंख (संख्या) कहलाता है। क्योंकि सिद्धान्त में ‘अनुपयोगो द्रव्यम्‌’ – उपयोग से शून्य को द्रव्य कहा है। (नैगमनय की अपेक्षा) एक अनुपयुक्त आत्मा एक आगमद्रव्यशंख, दो अनुपयुक्त आत्मा दो आगमद्रव्यशंख, तीन अनुपयुक्त आत्मा तीन आगमद्रव्यशंख हैं। इस प्रकार जितनी अनुपयुक्त आत्माऍं हैं उतने ही द्रव्यशंख हैं। व्यवहारनय नैगमनय के समान ही मानता है। संग्रहनय एक अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यशंख और अनेक अनुपयुक्त आत्माऍं अनेक आगमद्रव्यशंख, ऐसा स्वीकार नहीं करता किन्तु सभी को एक ही आगमद्रव्यशंख मानता है। ऋजुसूत्रनय की अपेक्षा एक आगमद्रव्यशंख है। तीनों शब्द नय अनुपयुक्त ज्ञायक को अवस्तु मानते हैं। क्योंकि यदि ज्ञायक है तो अनुपयुक्त नहीं होता है और यदि अनुपयुक्त हो तो वह ज्ञायक नहीं होता है। इसलिए आगमद्रव्यशंख संभव नहीं है। नोआगमद्रव्यसंख्या क्या है ? तीन भेद हैं – ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या, भव्यशरीरद्रव्यसंख्या, ज्ञायकशरीर – भव्यशरीर – व्यतिरिक्तद्रव्यसंख्या। संख्या इस पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का वह शरीर, जो व्यपगत हो गया हो, त्यक्त देह यावत्‌ जीवरहित शरीर को देखकर कहना – अहो ! इस शरीर रूप पुद्‌गलसंघात ने संख्या पद को ग्रहण किया था, पढ़ा था यावत्‌ उपदर्शित किया था – समझाया था, (उसका वह ज्ञायकशरीर द्रव्यसंख्या है।) इसका कोई दृष्टान्त है ? हाँ, है। यह घी का घड़ा है। यह ज्ञायकशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है। जन्म समय प्राप्त होने पर जो जीव योनि से बाहर निकला और भविष्य में उसी शरीरपिंड द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार संख्या पद को सीखेगा ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यसंख्या है। इसका कोई दृष्टान्त है ? यह घृतकुंभ होगा। यह भव्यशरीरद्रव्यसंख्या का स्वरूप है। ज्ञायकशरीर – भव्यशरीर – व्यतिरिक्त द्रव्यशंख के तीन प्रकार हैं – एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र। एकभविक जीव ‘एकभविक’ ऐसा नाम वाला कितने समय तक रहता है ? जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि पर्यन्त रहता है। बद्धायुष्क जीव बद्धायुष्क रूप में जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट एक पूर्वकोटि वर्ष के तीसरे भाग तक रहता है। अभिमुखनामगोत्र (शंख) का अभिमुखनामगोत्र नाम कितने काल तक रहता है ? जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्त – र्मुहूर्त्त काल रहता है। नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय एकभविक, बद्धायुष्क और अभिमुखनामगोत्र तीनों प्रकार के शंखों को शंख मानते हैं। ऋजुसूत्रनय १. बद्धायुष्क और २. अभिमुखनाम – गोत्र, ये दो प्रकार के शंख स्वीकार करता है। तीनों शब्दनय मात्र अभिमुखनामगोत्र शंख को ही शंख मानते हैं। औपम्यसंख्या क्या है ? उपमा देकर किसी वस्तु के निर्णय करने को औपम्यसंख्या कहते हैं। उसके चार प्रकार हैं। सद्‌ वस्तु को सद्‌ वस्तु की उपमा देना। सद्‌ वस्तु को असद्‌ वस्तु से उपमित करना। असद्‌ वस्तु को सद्‌ वस्तु की उपमा देना। असद्‌ वस्तु को असद्‌ वस्तु की उपमा देना। इनमें से जो सद्‌ वस्तु को सद्‌ वस्तु से उपमित किया जाता है, वह इस प्रकार है – सद्‌रूप अरिहंत भगवंतों के प्रशस्त वक्षःस्थल को सद्‌रूप श्रेष्ठ नगरों के सत्‌ कपाटों की उपमा देना, जैसे –
Mool Sutra Transliteration : [sutra] se kim tam samkhappamane? Samkhappamane atthavihe pannatte, tam jaha–1. Namasamkha 2. Thavanasamkha 3. Davvasamkha 4. Ovammasamkha 5. Parimanasamkha 6. Jananasamkha 7. Gananasamkha 8. Bhavasamkha. Se kim tam namasamkha? Namasamkha–jassa nam jivassa va ajivassa va jivana va ajivana va tadubhayassa va tadu bhayana va samkha ti namam kajjai. Se tam namasamkha. Se kim tam thavanasamkha? Thavanasamkha–jannam katthakamme va chittakamme va potthakamme va leppakamme va gamthime va vedhime va purime va samghaime va akkhe va varadae va ego va anega va sabbhavathavanae va asabbhavathavanae va samkha ti thavana thavijjai. Se tam thavanasamkha. Nama-tthavananam ko paiviseso? Namam avakahiyam, thavana ittariya va hojja avakahiya va. Se kim tam davvasamkha? Davvasamkha duviha pannatta, tam jaha–agamao ya noagamao ya. Se kim tam agamao davvasamkha? Agamao davvasamkha–jassa nam samkha ti padam sikkhiyam thiyam jiyam miyam parijiyam namasamam ghosasamam ahinakkharam anachchakkharam avvaiddhakkharam akkhaliyam amiliyam avachchameliyam padipunnam padipunnaghosam kamtotthavippamukkam guruvayanovagayam, se nam tattha vayanae puchchhanae pariyattanae dhammakahae, no anuppehae. Kamha? Anuvaogo davvamiti kattu. Negamassa ego anuvautto agamao ega davvasamkha, donni anuvautta agamao donnio davvasamkhao, tinni anuvautta agamao tinnio davvasamkhao, evam javaiya anuvautta tavaiyao tao negamassa agamao davvasamkhao. Evameva vavaharassa vi. Samgahassa ego va anega va anuvautto va anuvautta va agamao davvasamkha va davvasamkhao va sa ega davvasamkha. Ujjusuyassa ego anuvautto agamao ega davvasamkha, puhattam nechchhai. Tinham saddanayanam janae anuvautte avatthu. Kamha? Jai janae anuvautte na bhavai. Se tam agamao davvasamkha. Se kim tam noagamao davvasamkha? Noagamao davvasamkha tiviha pannatta, tam jaha–janagasariradavvasamkha bhavi-yasariradavvasamkha janagasarira-bhaviyasarira-vatiritta davvasamkha. Se kim tam janagasariradavvasamkha? Janagasariradavvasamkha– samkha ti payatthahigarajanagassa jam sarirayam vavagaya-chuya-chaviya-chattadeham jivavippajadham sejjagayam va samtharagayam va nisihiyagayam va siddhasilatalagayam va pasitta nam koi vaejja–aho nam imenam sarirasamussaenam jinaditthenam bhavenam samkha ti payam aghaviyam pannaviyam paruviyam damsiyam nidamsiyam uvadamsiyam. Jaha ko ditthamto? Ayam mahukumbhe asi, ayam ghayakumbhe asi. Se tam janagasariradavvasamkha. Se kim tam bhaviyasariradavvasamkha? Bhaviyasariradavvasamkha–je jive jonijammananikkhamte imenam cheva adattaenam sarirasamussaenam jinaditthenam bhavenam samkha ti payam seyakale sikkhissai, na tava sikkhai. Jaha ko ditthamto? Ayam mahukumbhe bhavissai, ayam ghayakumbhe bhavissai. Se tam bhaviyasariradavvasamkha. Se kim tam janagasarira-bhaviyasarira-vatiritta davvasamkha? Janagasarira-bhaviyasarira-vatiritta davvasamkha tiviha pannatta, tam jaha–egabhavie baddhaue abhimuhanamagotte ya. Egabhavie nam bhamte! Egabhavie tti kalao kevachchiram hoi? Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Baddhaue nam bhamte! Baddhaue tti kalao kevachchiram hoi? Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi-tibhagam. Abhimuhanamagotte nam bhamte! Abhimuhanamagotte tti kalao kevachchiram hoi? Jahannenam ekkam samayam, ukkosenam amtomuhuttam. Iyanim ko nao kam samkham ichchhai? Negama-samgaha-vavahara tiviham samkham ichchhamti, tam jaha–egabhaviyam baddhauyam abhimuhanamagottam cha. Ujjusuo duviham samkham ichchhai, tam jaha–baddhauyam cha abhimuhanamagottam cha. Tinni saddanaya abhimuhanamagottam samkham ichchhamti. Se tam janagasarira-bhaviyasarira-vatiritta davvasamkha. Se tam noagamao davvasamkha. Se tam davvasamkha. Se kim tam ovammasamkha? Ovammasamkha chauvviha pannatta, tam jaha–1. Atthi samtayam samtaenam uvamijjai 2. Atthi samtayam asamtaenam uvamijjai 3. Atthi asamtayam samtaenam uvamijjai 4. Atthi asamtayam asamtaenam uvamijjai. Tattha 1. Samtayam samtaenam uvamijjai, jaha–samta arahamta samtaehim puravarehim, samtaehim kavadehim samtaehim vachchhehim uvamijjamti, jaha–
Sutra Meaning Transliteration : Samkhyapramana kya hai\? Atha prakara ka hai. Yatha – namasamkhya, sthapanasamkhya, dravyasamkhya, aupamyasamkhya, parimana – samkhya, jnyanasamkhya, gananasamkhya, bhavasamkhya. Namasamkhya kya hai\? Jisa jiva ka athava ajiva ka athava jivom ka athava ajivom ka athava tadubhava ka athava tadubhayom ka samkhya aisa namakarana kara liya jata hai, use namasamkhya kahate haim. Jisa kashthakarma mem, pustakarma mem ya chitrakarma mem ya lepyakarma mem athava granthikarma mem athava vedhita mem athava purita mem athava samghatima mem athava aksha mem athava varataka mem athava eka ya aneka mem sadbhutasthapana ya asadbhutasthapana dvara ‘samkhya’ isa prakara ka sthapana kara liya jata hai, vaha sthapanasamkhya hai. Nama aura sthapana mem kya antara hai\? Nama yavatkathita hota hai lekina sthapana itvarika bhi hoti hai aura yavatkathika bhi hoti hai. Dravyashamkha ka kya tatparya hai\? Do prakara ka – agamadravyashamkha, noagamadravyashamkha. Agamadravyashamkha (samkhya) ka svarupa isa prakara hai – jisane shamkha (samkhya) yaha pada sikha liya, hridaya mem sthira kiya, jita kiya, mita kiya, adhikrita kara liya yavat nirdosha spashta svara se shuddha uchcharana kiya tatha guru se vachana li, jisase vachana, prichchhana, paravartana evam dharmakatha se yukta bhi ho gaya parantu jo artha ka anuchintana karane rupa anupreksha se rahita ho, upayoga na hone se vaha agama se dravyashamkha (samkhya) kahalata hai. Kyomki siddhanta mem ‘anupayogo dravyam’ – upayoga se shunya ko dravya kaha hai. (naigamanaya ki apeksha) eka anupayukta atma eka agamadravyashamkha, do anupayukta atma do agamadravyashamkha, tina anupayukta atma tina agamadravyashamkha haim. Isa prakara jitani anupayukta atmaam haim utane hi dravyashamkha haim. Vyavaharanaya naigamanaya ke samana hi manata hai. Samgrahanaya eka anupayukta atma eka dravyashamkha aura aneka anupayukta atmaam aneka agamadravyashamkha, aisa svikara nahim karata kintu sabhi ko eka hi agamadravyashamkha manata hai. Rijusutranaya ki apeksha eka agamadravyashamkha hai. Tinom shabda naya anupayukta jnyayaka ko avastu manate haim. Kyomki yadi jnyayaka hai to anupayukta nahim hota hai aura yadi anupayukta ho to vaha jnyayaka nahim hota hai. Isalie agamadravyashamkha sambhava nahim hai. Noagamadravyasamkhya kya hai\? Tina bheda haim – jnyayakashariradravyasamkhya, bhavyashariradravyasamkhya, jnyayakasharira – bhavyasharira – vyatiriktadravyasamkhya. Samkhya isa pada ke arthadhikara ke jnyata ka vaha sharira, jo vyapagata ho gaya ho, tyakta deha yavat jivarahita sharira ko dekhakara kahana – aho ! Isa sharira rupa pudgalasamghata ne samkhya pada ko grahana kiya tha, parha tha yavat upadarshita kiya tha – samajhaya tha, (usaka vaha jnyayakasharira dravyasamkhya hai.) isaka koi drishtanta hai\? Ham, hai. Yaha ghi ka ghara hai. Yaha jnyayakashariradravyasamkhya ka svarupa hai. Janma samaya prapta hone para jo jiva yoni se bahara nikala aura bhavishya mem usi sharirapimda dvara jinopadishta bhavanusara samkhya pada ko sikhega aise usa jiva ka vaha sharira bhavyashariradravyasamkhya hai. Isaka koi drishtanta hai\? Yaha ghritakumbha hoga. Yaha bhavyashariradravyasamkhya ka svarupa hai. Jnyayakasharira – bhavyasharira – vyatirikta dravyashamkha ke tina prakara haim – ekabhavika, baddhayushka aura abhimukhanamagotra. Ekabhavika jiva ‘ekabhavika’ aisa nama vala kitane samaya taka rahata hai\? Jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta eka purva koti paryanta rahata hai. Baddhayushka jiva baddhayushka rupa mem jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta eka purvakoti varsha ke tisare bhaga taka rahata hai. Abhimukhanamagotra (shamkha) ka abhimukhanamagotra nama kitane kala taka rahata hai\? Jaghanya eka samaya, utkrishta anta – rmuhurtta kala rahata hai. Naigamanaya, samgrahanaya aura vyavaharanaya ekabhavika, baddhayushka aura abhimukhanamagotra tinom prakara ke shamkhom ko shamkha manate haim. Rijusutranaya 1. Baddhayushka aura 2. Abhimukhanama – gotra, ye do prakara ke shamkha svikara karata hai. Tinom shabdanaya matra abhimukhanamagotra shamkha ko hi shamkha manate haim. Aupamyasamkhya kya hai\? Upama dekara kisi vastu ke nirnaya karane ko aupamyasamkhya kahate haim. Usake chara prakara haim. Sad vastu ko sad vastu ki upama dena. Sad vastu ko asad vastu se upamita karana. Asad vastu ko sad vastu ki upama dena. Asad vastu ko asad vastu ki upama dena. Inamem se jo sad vastu ko sad vastu se upamita kiya jata hai, vaha isa prakara hai – sadrupa arihamta bhagavamtom ke prashasta vakshahsthala ko sadrupa shreshtha nagarom ke sat kapatom ki upama dena, jaise –