Sutra Navigation: Nandisutra ( नन्दीसूत्र )

Search Details

Mool File Details

Anuvad File Details

Sr No : 1023620
Scripture Name( English ): Nandisutra Translated Scripture Name : नन्दीसूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

नन्दीसूत्र

Translated Chapter :

नन्दीसूत्र

Section : Translated Section :
Sutra Number : 120 Category : Chulika-01
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] एवं अट्ठावीसइविहस्स आभिनिबोहियनाणस्स वंजणुग्गहस्स परूवणं करिस्सामि–पडि-बोहगदिट्ठंतेण, मल्लगदिट्ठंतेण य। से किं तं पडिबोहगदिट्ठंतेणं? पडिबोहगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वुत्तं पडिबोहेज्जा–अमुगा! अमुग! त्ति। तत्थ चोयगे पन्नवगं एवं वयासी–किं एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? जाव दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति? एवं वदंतं चोयगं पन्नवए एवं वयासी– नो एगसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो दुसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति जाव नो दससमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, नो संखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति, असं-खेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति। से त्तं पडिबोहगदिट्ठंतेणं। से किं तं मल्लगदिट्ठंतेणं? मल्लगदिट्ठंतेणं–से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदग-बिंदुं पक्खिविज्जा से नट्ठे, अन्ने पक्खित्ते से वि नट्ठे। एवं पक्खिप्पमाणेसु-पक्खिप्पमाणेसु होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं रावेहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तंसि मल्लगंसि ठाहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं भरेहिति, होही से उदगबिंदू जेणं तं मल्लगं पवाहेहिति। एवामेव पक्खिप्पमाणेहिं-पक्खिप्पमाणेहिं अनंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरियं होइ, ताहे हुं ति करेइ, नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दाइ। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ णं धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सद्दं सुणिज्जा, तेणं सद्दे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सद्दाइ? तओ ईहं पवि-सइ, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे। तओ णं अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रूवं पासिज्जा, तेणं रूवे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रूवे त्ति? तओ ईहं पवि-सइ, तओ जाणइ अमुगे एस रूवे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं गंधं अग्घाइज्जा, तेणं गंधे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस गंधे त्ति? तओ ईहं पवसइ, तओ जाणइ अमुगे एस गंधे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं रसं आसाइज्जा, तेणं रसे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस रसे त्ति? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस रसे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं फासं पडिसंवेइज्जा, तेणं फासे त्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस फासे त्ति? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस फासे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से जहानामए केइ पुरिसे अव्वत्तं सुमिणं पडिसंवेदेज्जा, तेणं सुमिणेत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणे त्ति? तओ ईहं पविसइ, तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे। तओ अवायं पविसइ, तओ से उवगयं हवइ। तओ धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखेज्जं वा कालं, असंखेज्जं वा कालं। से त्तं मल्लगदिट्ठंतेणं।
Sutra Meaning : – चार प्रकार का व्यंजनावग्रह, छह प्रकार का अर्थावग्रह, छह प्रकार की ईहा, छह प्रकार का अवाय और छह प्रकार की धारणा, इस प्रकार अट्ठाईसविध मतिज्ञान के व्यंजन अवग्रह की प्रतिबोधक और मल्लक के उदाहरण से प्ररूपणा करूँगा। कोई व्यक्ति किसी गुप्त पुरुष को – ‘‘हे अमुक ! हे अमुक !’’ इस प्रकार कह कर जगाए। ‘‘भगवन्‌ ! क्या ऐसा संबोधन करने पर उस पुरुष के कानों में एक समय में प्रवेश किए हुए पुद्‌गल ग्रहण करने में आते हैं या दो समय में अथवा दस समयों में, संख्यात समयों में या असंख्यात समयों में प्रविष्ट पुद्‌गल ग्रहण करने में आते हैं ?’’ ‘‘एक समय में प्रविष्ट हुए पुद्‌गल ग्रहण करने में नहीं आते, यावत्‌ न ही संख्यात समय में, अपितु असंख्यात समयों में प्रविष्ट हुए शब्द पुद्‌गल ग्रहण करने में आते हैं।’’ इस तरह यह प्रतिबोधक के दृष्टान्त से व्यंजन अवग्रह का स्वरूप वर्णित किया गया। ’मल्लक के दृष्टान्त से व्यंजनावग्रह का स्वरूप किस प्रकार है ?‌’ जिस प्रकार कोई व्यक्ति आपाकशीर्ष लेकर उसमें पानी की एक बूँद डाले, उसके नष्ट हो जाने पर दूसरी, फिर तीसरी, इसी प्रकार कईं बूँदें नष्ट हो जाने पर भी निरन्तर डालता रहे तो पानी की कोई बूँद ऐसी होगी जो उस प्याले को गीला करेगी। तत्पश्चात्‌ कोई बूँद उसमें ठहरेगी और किसी बूँद से प्याला भर जाएगा और भरने पर किसी बूँद से पानी बाहर गिरने लगेगा। इसी प्रकार वह व्यंजन अनन्त पुद्‌गलों से क्रमशः पूरित होता है, तब वह पुरुष हुंकार करता है, किन्तु यह नहीं जानता कि यह किस व्यक्ति का शब्द है ? तत्पश्चात्‌ ईहा में प्रवेश करता है तब जानता है कि यह अमुक व्यक्ति का शब्द है तत्पश्चात्‌ अवाय में प्रवेश करता है, तब शब्द का ज्ञान होता है। इसके बाद धारणा में प्रवेश करता है और संख्यात अथवा असंख्यातकाल पर्यंत धारण किये रहता है। किसी पुरुष ने अव्यक्त शब्द को सुनकर ‘यह कोई शब्द है’ इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु वह यह नहीं जानता कि ‘यह शब्द किसका है ?’ तब वह ईहा में प्रवेश करता है, फिर जानता है कि ‘यह अमुक शब्द है।’ फिर अवाय में प्रवेश करता है। तत्पश्चात्‌ उसे उपगत हो जाता है और फिर धारणा में प्रवेश करता है, और उसे संख्यातकाल और असंख्यातकाल पर्यन्त धारण किये रहता है। कोई व्यक्ति अस्पष्ट रूप को देखे, उसने यह कोई ‘रूप है’ इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु यह नहीं जान पाया कि ‘किसका रूप है ?’ तब वह ईहा में प्रविष्ट होता है तथा छानबीन करके यह ‘अमुक रूप है’ इस प्रकार जानता है। तत्पश्चात्‌ अवाय में प्रविष्ट होकर उपगत हो जाता है, फिर धारणा में प्रवेश करके उसे संख्यात काल अथवा असंख्यात तक धारण कर रखता है। कोई पुरुष अव्यक्त गंध को सूँघता है, उसने ‘कोई गंध है’ इस प्रकार ग्रहण किया, किन्तु वह यह नहीं जानता कि ‘किस प्रकार की गंध है ?’ तदनन्तर ईहा में प्रवेश करके जानता है कि ‘यह अमुक गंध है।’ फिर अवाय में प्रवेश करके गंध से उपगत हो जाता है। तत्पश्चात्‌ धारणा करके उसे संख्यात व असंख्यात काल तक धारण किये रहता है। कोई व्यक्ति किसी रस का आस्वादन करता है। रस को ग्रहण करता है किन्तु यह नहीं जानता कि ‘कौन सा रस है?’ तब ईहा में प्रवेश करके वह जान लेता है कि ‘यह अमुक प्रकार का रस है।’ तत्पश्चात्‌ अवाय में प्रवेश करता है। तब उसे उपगत हो जाता है। तदनन्तर धारणा करके संख्यात एवं असंख्यात काल तक धारण किये रहता है। – कोई पुरुष अव्यक्त स्पर्श को स्पर्श करता है, ‘कोई स्पर्श है’ इस प्रकार ग्रहण किया किन्तु ‘यह नहीं जाना कि स्पर्श किस प्रकार का है ?’ तब ईहा में प्रवेश करता है और जानता है कि ‘अमुक का स्पर्श है।’ तत्पश्चात्‌ अवाय में प्रवेश करके वह उपगत होता है। फिर धारणा में प्रवेश करने के बाद संख्यात अथवा असंख्यात काल पर्यन्त धारण किये रहता है। – कोई पुरुष अव्यक्त स्वप्न को देखे, ‘स्वप्न है’ इस प्रकार ग्रहण किया, परन्तु यह नहीं जानता कि ‘कैसा स्वप्न है?’ तब ईहा में प्रवेश करके जानता है कि ‘यह अमुक स्वप्न है।’ उसके बाद अवाय में प्रवेश करके उपगत होता है। तत्पश्चात्‌ वह धारणा में प्रवेश करके संख्यात या असंख्यात काल तक धारण करता है। इस प्रकार मल्लक के दृष्टांत से अवग्रह का स्वरूप हुआ।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] evam atthavisaivihassa abhinibohiyananassa vamjanuggahassa paruvanam karissami–padi-bohagaditthamtena, mallagaditthamtena ya. Se kim tam padibohagaditthamtenam? Padibohagaditthamtenam–se jahanamae kei purise kamchi purisam vuttam padibohejja–amuga! Amuga! Tti. Tattha choyage pannavagam evam vayasi–kim egasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti? Dusamayapavittha puggala gahanamagachchhamti? Java dasasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti? Samkhejjasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti? Asamkhejjasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti? Evam vadamtam choyagam pannavae evam vayasi– No egasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti, no dusamayapavittha puggala gahanamagachchhamti java no dasasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti, no samkhejjasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti, asam-khejjasamayapavittha puggala gahanamagachchhamti. Se ttam padibohagaditthamtenam. Se kim tam mallagaditthamtenam? Mallagaditthamtenam–se jahanamae kei purise avagasisao mallagam gahaya tatthegam udaga-bimdum pakkhivijja se natthe, anne pakkhitte se vi natthe. Evam pakkhippamanesu-pakkhippamanesu hohi se udagabimdu jenam tam mallagam ravehiti, hohi se udagabimdu jenam tamsi mallagamsi thahiti, hohi se udagabimdu jenam tam mallagam bharehiti, hohi se udagabimdu jenam tam mallagam pavahehiti. Evameva pakkhippamanehim-pakkhippamanehim anamtehim puggalehim jahe tam vamjanam puriyam hoi, tahe hum ti karei, no cheva nam janai ke vesa saddai? Tao iham pavisai, tao janai amuge esa saddai. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao nam dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam saddam sunijja, tenam sadde tti uggahie, no cheva nam janai ke vesa saddai? Tao iham pavi-sai, tao janai amuge esa sadde. Tao nam avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam ruvam pasijja, tenam ruve tti uggahie, no cheva nam janai ke vesa ruve tti? Tao iham pavi-sai, tao janai amuge esa ruve. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam gamdham agghaijja, tenam gamdhe tti uggahie, no cheva nam janai ke vesa gamdhe tti? Tao iham pavasai, tao janai amuge esa gamdhe. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam rasam asaijja, tenam rase tti uggahie, no cheva nam janai ke vesa rase tti? Tao iham pavisai, tao janai amuge esa rase. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam phasam padisamveijja, tenam phase tti uggahie, no cheva nam janai ke vesa phase tti? Tao iham pavisai, tao janai amuge esa phase. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se jahanamae kei purise avvattam suminam padisamvedejja, tenam suminetti uggahie, no cheva nam janai ke vesa sumine tti? Tao iham pavisai, tao janai amuge esa sumine. Tao avayam pavisai, tao se uvagayam havai. Tao dharanam pavisai, tao nam dharei samkhejjam va kalam, asamkhejjam va kalam. Se ttam mallagaditthamtenam.
Sutra Meaning Transliteration : – chara prakara ka vyamjanavagraha, chhaha prakara ka arthavagraha, chhaha prakara ki iha, chhaha prakara ka avaya aura chhaha prakara ki dharana, isa prakara atthaisavidha matijnyana ke vyamjana avagraha ki pratibodhaka aura mallaka ke udaharana se prarupana karumga. Koi vyakti kisi gupta purusha ko – ‘‘he amuka ! He amuka !’’ isa prakara kaha kara jagae. ‘‘bhagavan ! Kya aisa sambodhana karane para usa purusha ke kanom mem eka samaya mem pravesha kie hue pudgala grahana karane mem ate haim ya do samaya mem athava dasa samayom mem, samkhyata samayom mem ya asamkhyata samayom mem pravishta pudgala grahana karane mem ate haim\?’’ ‘‘eka samaya mem pravishta hue pudgala grahana karane mem nahim ate, yavat na hi samkhyata samaya mem, apitu asamkhyata samayom mem pravishta hue shabda pudgala grahana karane mem ate haim.’’ isa taraha yaha pratibodhaka ke drishtanta se vyamjana avagraha ka svarupa varnita kiya gaya. ’mallaka ke drishtanta se vyamjanavagraha ka svarupa kisa prakara hai\?’ jisa prakara koi vyakti apakashirsha lekara usamem pani ki eka bumda dale, usake nashta ho jane para dusari, phira tisari, isi prakara kaim bumdem nashta ho jane para bhi nirantara dalata rahe to pani ki koi bumda aisi hogi jo usa pyale ko gila karegi. Tatpashchat koi bumda usamem thaharegi aura kisi bumda se pyala bhara jaega aura bharane para kisi bumda se pani bahara girane lagega. Isi prakara vaha vyamjana ananta pudgalom se kramashah purita hota hai, taba vaha purusha humkara karata hai, kintu yaha nahim janata ki yaha kisa vyakti ka shabda hai\? Tatpashchat iha mem pravesha karata hai taba janata hai ki yaha amuka vyakti ka shabda hai tatpashchat avaya mem pravesha karata hai, taba shabda ka jnyana hota hai. Isake bada dharana mem pravesha karata hai aura samkhyata athava asamkhyatakala paryamta dharana kiye rahata hai. Kisi purusha ne avyakta shabda ko sunakara ‘yaha koi shabda hai’ isa prakara grahana kiya kintu vaha yaha nahim janata ki ‘yaha shabda kisaka hai\?’ taba vaha iha mem pravesha karata hai, phira janata hai ki ‘yaha amuka shabda hai.’ phira avaya mem pravesha karata hai. Tatpashchat use upagata ho jata hai aura phira dharana mem pravesha karata hai, aura use samkhyatakala aura asamkhyatakala paryanta dharana kiye rahata hai. Koi vyakti aspashta rupa ko dekhe, usane yaha koi ‘rupa hai’ isa prakara grahana kiya, parantu yaha nahim jana paya ki ‘kisaka rupa hai\?’ taba vaha iha mem pravishta hota hai tatha chhanabina karake yaha ‘amuka rupa hai’ isa prakara janata hai. Tatpashchat avaya mem pravishta hokara upagata ho jata hai, phira dharana mem pravesha karake use samkhyata kala athava asamkhyata taka dharana kara rakhata hai. Koi purusha avyakta gamdha ko sumghata hai, usane ‘koi gamdha hai’ isa prakara grahana kiya, kintu vaha yaha nahim janata ki ‘kisa prakara ki gamdha hai\?’ tadanantara iha mem pravesha karake janata hai ki ‘yaha amuka gamdha hai.’ phira avaya mem pravesha karake gamdha se upagata ho jata hai. Tatpashchat dharana karake use samkhyata va asamkhyata kala taka dharana kiye rahata hai. Koi vyakti kisi rasa ka asvadana karata hai. Rasa ko grahana karata hai kintu yaha nahim janata ki ‘kauna sa rasa hai?’ taba iha mem pravesha karake vaha jana leta hai ki ‘yaha amuka prakara ka rasa hai.’ tatpashchat avaya mem pravesha karata hai. Taba use upagata ho jata hai. Tadanantara dharana karake samkhyata evam asamkhyata kala taka dharana kiye rahata hai. – koi purusha avyakta sparsha ko sparsha karata hai, ‘koi sparsha hai’ isa prakara grahana kiya kintu ‘yaha nahim jana ki sparsha kisa prakara ka hai\?’ taba iha mem pravesha karata hai aura janata hai ki ‘amuka ka sparsha hai.’ tatpashchat avaya mem pravesha karake vaha upagata hota hai. Phira dharana mem pravesha karane ke bada samkhyata athava asamkhyata kala paryanta dharana kiye rahata hai. – koi purusha avyakta svapna ko dekhe, ‘svapna hai’ isa prakara grahana kiya, parantu yaha nahim janata ki ‘kaisa svapna hai?’ taba iha mem pravesha karake janata hai ki ‘yaha amuka svapna hai.’ usake bada avaya mem pravesha karake upagata hota hai. Tatpashchat vaha dharana mem pravesha karake samkhyata ya asamkhyata kala taka dharana karata hai. Isa prakara mallaka ke drishtamta se avagraha ka svarupa hua.