[सूत्र] जे भिक्खू दारुदंडयं पायपुंछणं गेण्हति, गेण्हंतं वा सातिज्जति।
Sutra Meaning :
जो साधु – साध्वी इस तरह निषद्यादि दो वस्त्र रहित का केवल लकड़ी की दंड़ीवाला पादप्रोछनक अर्थात् रजोहरण ग्रहण करे, धारण करे अर्थात् रखे, वितरण करे यानि कि दूसरों को दे दे, परिभोग करे यानि कि उससे प्रमार्जन आदि कार्य करे, किसी विशेष कारण या हालात की कारण से ऐसा रजोहरण रखना पड़े तो भी देढ़ मास से ज्यादा वक्त रखे, ताप देने के लिए खोलकर अलग रखे। इन सर्व दोष का खुद सेवन करे, अन्य से सेवन करवाए या सेवन करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
सूत्र – ६०–६६
Mool Sutra Transliteration :
[sutra] je bhikkhu darudamdayam payapumchhanam genhati, genhamtam va satijjati.
Sutra Meaning Transliteration :
Jo sadhu – sadhvi isa taraha nishadyadi do vastra rahita ka kevala lakari ki damrivala padaprochhanaka arthat rajoharana grahana kare, dharana kare arthat rakhe, vitarana kare yani ki dusarom ko de de, paribhoga kare yani ki usase pramarjana adi karya kare, kisi vishesha karana ya halata ki karana se aisa rajoharana rakhana pare to bhi derha masa se jyada vakta rakhe, tapa dene ke lie kholakara alaga rakhe. Ina sarva dosha ka khuda sevana kare, anya se sevana karavae ya sevana karanevale ki anumodana kare to prayashchitta.
Sutra – 60–66