Sutra Navigation: Tandulvaicharika ( तंदुल वैचारिक )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1009343 | ||
Scripture Name( English ): | Tandulvaicharika | Translated Scripture Name : | तंदुल वैचारिक |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
उपदेश, उपसंहार |
Translated Chapter : |
उपदेश, उपसंहार |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 143 | Category : | Painna-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जाओ चिय इमाओ इत्थियाओ अनेगेहिं कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहिं कामरागमोहिएहिं वन्नियाओ ताओ विय एरिसाओ, तं जहा– पगइविसमाओ पियरूसणाओ कतियवचडुप्परून्नातो अथक्कहसिय-भासिय-विलास- वीसंभ-पचू(च्च) याओ अविनयवातोलीओ मोहमहावत्तणीओ विसमाओ पियवयणवल्लरीओ कइयवपेमगिरितडीओ अवराहसहस्सघरिणीओ ४, पभवो सोगस्स, विनासो बलस्स, सूणा पुरिसाणं, नासो लज्जाए, संकरो अविणयस्स, निलओ नियडीणं १० खाणी वइरस्स, सरीरं सोगस्स, भेओ मज्जायाणं, आसओ रागस्स, निलओ दुच्चरियाणं १५, माईए सम्मोहो, खलणा नाणस्स, चलणं सीलस्स, विग्घो धम्मस्स, अरी साहूण २०, दूसणं आयारपत्ताणं, आरामो कम्मरयस्स, फलिहो मुक्खमग्गस्स, भवणं दारिद्दस्स २४। अवि आइं ताओ आसीविसो विव कुवियाओ, मत्तगओ विव मयणपरव्वसाओ, वग्घी विव दुट्ठहिययाओ, तणच्छन्नकूवो विव अप्पगासहिययाओ, मायाकारओ विव उवयारसयबंधनपओ- त्तीओ, आयरियसविधं पिव दुग्गेज्झसब्भावाओ ३०, फुंफुया विव अंतोदहनसीलाओ, नग्गयमग्गो विव अणवट्ठियचित्ताओ, अंतोदुट्ठवणो विव कुहियहिययाओ, कण्हसप्पो विव अविस्ससणिज्जाओ, संघारो विव छन्नमायाओ, संझब्भरागो विव मुहुत्तरागाओ, समुद्दवीचीओ विव चलस्सभावाओ, मच्छो विव दुप्परि-यत्तणसीलाओ, वानरो विव चलचित्ताओ, मच्चू विव निव्विसेसाओ ४०, कालो विव निरनुकंपाओ, वरुणो विव पासहत्थाओ, सलिलमिव निन्नगामिणीओ, किविणो विव उत्ताणहत्थाओ, नरओ विव उत्तासणिज्जाओ, खरो विव दुस्सीलाओ, दुट्ठस्सो विव दुद्दमाओ, बालो इव मुहुत्त-हिययाओ, अंधकारमिव दुप्पवेसाओ, विसवल्ली विव अणल्लियणिज्जाओ ५०, दुट्ठगाहा इव वावी अणव-गाहाओ, ठाणमट्ठो विव इस्सरो अप्पसंसणिज्जाओ, किंपागफलमिव मुहमहुराओ, रित्तमुट्ठी विव बाललोभणिज्जाओ, मंसपेसीगहणमिव सोवद्दवाओ, जलियचुडली विव अमुच्चमाणडहणसीलाओ, अरिट्ठमिव दुल्लंघणिज्जाओ, कूडकरिसावणो विव कालविसंवायणसीलाओ, चंडसीलो विव दुक्खरक्खियाओ, अइविसायाओ ६० दुगुंछियाओ दुरुवचाराओ अगंभीराओ अविस्ससणिज्जाओ अण-वत्थियाओ दुक्खरक्खियाओ दुक्खपालियाओ अरतिकराओ कक्कसाओ दढवेराओ ७० रूव-सोहग्गमउम्मत्ताओ भुयगगइकुडिलहिययाओ कंतार-गइट्ठाणभूयाओ कुल-सयण-मित्तभेयणकारियाओ परदोसपगासियाओ कयग्घाओ बलसोहियाओ एगंतहरणकोलाओ चंचलाओ जाइयभंडोवगारो विव मुहरागविरागाओ ८०। अवि याइं ताओ अंतरं भंगसयं, अरज्जुओ पासो, अदारुया अडवी, अणालस्सनिलओ, अइक्खा वेयरणी, अनामिओ वाही, अवियोगो विप्पलावो, अरुओ उवसग्गो, रइवंतो चित्तविब्भमो, सव्वंगओ दाहो ९०, अणब्भपसूया वज्जासणी, असलिलप्पवाहो समुद्दरओ ९२। अवि याइं तासिं इत्थियाणं अणेगाणि नामनिरुत्ताणिपुरिसे कामरागप्पडिबद्धे नाणाविहेहिं उवायसयसहस्सेहिं वह -बंधमाणयंति पुरिसाणं नो अन्नो एरिसो अरी अत्थि त्ति नारीओ, तं जहा– नारीसमा न नराणं अरीओ नारीओ १। नाणाविहेहिं कम्मेहिं सिप्पयाइएहिं पुरिसे मोहंति त्ति महिलाओ २। पुरिसे मत्ते करेंति त्ति पमयाओ ३। महंतं कलिं जणयंति त्ति महिलियाओ ४। पुरिसे हावभावमाइएहिं रमंति त्ति रामाओ ५। पुरिसे अंगानुराए करेंति त्ति अंगनाओ ६। नानाविहेसु जुद्धभंडण-संगामाऽड-वीसु मुहारणगिण्हण-सीउण्ह-दुक्ख-किलेसमाइएसु पुरिसे लालेंति त्ति ललनाओ ७। पुरिसे जोग-निओएहिं वसे ठाविंति त्ति जोसियाओ ८। पुरिसे नाणाविहेहिं भावेहिं वणिंति त्ति वणियाओ ९। काई पमत्तभावं, काई पणयं सविब्भमं, काई ससद्दं सासि व्व ववहरंति, काई सत्तु व्व, रोरो इव काई पयएसु पणमंति, काई उवणएसु उवणमंति, काई कोउयनम्मं ति काउं सुकडक्ख-निरिक्खिएहिं सविलासमहुरेहिं उवहसिएहिं उवगूहिएहिं उवसद्देहिं गुरुगदरिसणेहिं भूमिलिहण-विलिहणेहिं च आरुहण-नट्टणेहि य बालयउवगूहणेहिं च अंगुलीफोडण-थणपीलण-कडित-डजायणाहिं तज्जणाहिं च। अवि याइं ताओ पासो व ववसितुं जे, पंको व्व खुप्पिउं जे, मच्चु व्व मारेउं जे, अगणि व्व डहिउं जे, असि व्व छिज्जिउं जे। | ||
Sutra Meaning : | काम, राग और मोह समान तरह – तरह की रस्सी से बँधे हजारों श्रेष्ठ कवि द्वारा इन स्त्रियों की तारीफ में काफी कुछ कहा गया है। वस्तुतः उनका स्वरूप इस प्रकार है। स्त्री स्वभाव से कुटील, प्रियवचन की लत्ता, प्रेम करने में पहाड़ की नदी की तरह कुटील, हजार अपराध की स्वामिनी, शोक उत्पन्न करवानेवाली, बाल का विनाश करनेवाली, मर्द के लिए वधस्थान, लज्जा को नष्ट करनेवाली, अविनयकी राशि, पापखंड़ का घर, शत्रुता की खान, शोक का घर, मर्यादा तोड़ देनेवाली, राग का घर, दुराचारी का निवास स्थान, संमोहन की माता, ज्ञान को नष्ट करनेवाली, ब्रह्मचर्य को नष्ट करनेवाली, धर्म में विघ्न समान, साधु की शत्रु, आचार संपन्न के लिए कलंक समान, रज का विश्रामगृह, मोक्षमार्ग में विघ्नभूत, दरिद्रता का आवास – कोपायमान हो तब झहरीले साँप जैसी, काम से वश होने पर मदोन्मत्त हाथी जैसी, दुष्ट हृदया होने से वाघण जैसी, कालिमां वाले दिल की होने से तृण आच्छादित कूए समान, जादूगर की तरह सेंकड़ों उपचार से आबद्ध करनेवाली, दुर्ग्राह्य सद्भाव होने के बावजूद आदर्श की प्रतिमा, शील को जलाने में वनखंड की अग्नि जैसी, अस्थिर चित्त होने से पर्वत मार्ग की तरह अनवस्थित, अन्तरंग व्रण की तरह कुटील, हृदय काले सर्प की तरह अविश्वासनीय। छल छद्म युक्त होने से प्रलय जैसी, संध्या की लालीमा की तरह पलभर का प्रेम करनेवाली, सागर की लहर की तरह चपल स्वभाववाली, मछली की तरह दुष्परिवर्तनीय, चंचलता में बन्दर की तरह, मौत की तरह कुछ बाकी न रखनेवाली, काल की तरह घातकी, वरुण की तरह कामपाश समान हाथवाली, पानी की तरह निम्न – अनुगामिनी, कृपण की तरह उल्टे हाथवाली, नरक समान भयानक, गर्दभ की तरह दुःशीला, दुष्ट घोड़े की तरह दुर्दमनीय, बच्चे की तरह पल में खुश और पल में रोषायमान होनेवाली, अंधेरे की तरह दुष्प्रवेश विष लता की तरह आश्रय को अनुचित, कूए में आक्रोश से अवगाहन करनेवाले दुष्ट मगरमच्छ जैसी, स्थानभ्रष्ट, ऐश्वर्यवान की तरह प्रशंसा के लिए अनुचित किंपाक फल की तरह पहले अच्छी लगनेवाली लेकिन बाद में कटु फल देनेवाली, बच्चे को लुभानेवाली खाली मुठ्ठी जैसी सार के बिना, माँसपिंड़ को ग्रहण करने की तरह उपद्रव उत्पन्न करनेवाली, जले हुए घास के पूले की तरह न छूटनेवाले मान और जले हुए शीलवाली, अरिष्ट की तरह बदबूवाली, खोटे सिक्के की तरह शील को ठगनेवाली, क्रोधी की तरह कष्ट से रक्षित, अति विषादवाली, निंदित, दुरुपचारा, अगम्भीर, अविश्वसनीय, अनवस्थित, दुःख से रक्षित, अरतिकर, कर्कश, दंड़ वैरवाली, रूप और सौभाग्य से उन्मत्त, साँप की गति की तरह कुटील हृदया, अटवी में यात्रा की तरह भय उत्पन्न करनेवाली, कुल – परिवार और मित्र में फूट उत्पन्न करनेवाली, दूसरों के दोष प्रकाशित करनेवाली। कृतघ्न, वीर्यनाश करनेवाली, कोल की तरह एकान्त में हरण करनेवाली, चंचल, अग्नि से लाल होनेवाले घड़े की तरह लाल होठ से राग उत्पन्न करनेवाली, अंतरंग में भग्नशत हृदया, रस्सी बिना का बँधन, बिना पेड़ का जंगल, अग्निनिलय, अदृश्य वैतरणी, असाध्य बीमारी, बिना वियोग से प्रलाप करनेवाली, अनभिव्यक्त उपसर्ग, रतिक्रीड़ा में चित्त विभ्रम करनेवाली, सर्वांग जलानेवाली बिना मेघ के वज्रपात करनेवाली, जलशून्य प्रवाह और सागर समान निरन्तर गर्जन करनेवाली, यह स्त्री होती है। इस तरह स्त्रियाँ की कईं नाम निर्युक्ति की जाती है। लाख उपाय से और अलग – अलग तरह से मर्द की कामासक्ति बढ़ाती है और उसको वध बन्धन का भाजन बनानेवाली नारी समान मर्द का दूसरा कोई शत्रु नहीं है, इसलिए ‘नारी’ तरह – तरह के कर्म और शिल्प से मर्दों को मोहित करके मोह ‘महिला’, मर्दों को मत्त करते हैं इसलिए ‘प्रमदा’, महान कलह को उत्पन्न करती है इसलिए ‘महिलिका’, मर्द को हावभाव से रमण करवाती है इसलिए ‘रमा’, मर्दों को अपने अंग में राग करवाती है इसलिए ‘अंगना’, कईं तरह के युद्ध – कलह – संग्राम – अटवी में भ्रमण, बिना प्रयोजन कर्ज लेना, शर्दी, गर्मी का दुःख और क्लेश खड़े करने के आदि कार्य में वो मर्द को प्रवृत्त करती है इसलिए ‘ललना’, योग – नियोग द्वारा पुरुष को बस में करती है इसलिए ‘योषित्’ एवं विविध भाव द्वारा पुरुष की वासना उद्दीप्त करती है इसलिए वनिता कहलाती है। किसी स्त्री प्रमत्तभाव को, किसी प्रणय विभ्रम को और किसी श्वास के रोगी की तरह शब्द – व्यवहार करते हैं। कोई शत्रु जैसी होती है और कोई रो – रो कर पाँव पर प्रणाम करती हैं। कोई स्तुति करती है। कोई आश्चर्य, हास्य और कटाक्ष से देखती है। कोई विलासयुक्त मधुर वचन से, कोई हास्य चेष्टा से, कोई आलिंगन से, कोई सीत्कार के शब्द से, कोई गृहयोग के प्रदर्शन से, कोई भूमि पर लिखकर या चिह्न करके, कोई वांस पर चड़कर नृत्य द्वारा, कोई बच्चे के आलिंगन द्वारा, कोई अंगुली के टचाके, स्तन मर्दन और कटितट पीड़न आदि से पुरुष को आकृष्ट करती है। यह स्त्री विघ्न करने में जाल की तरह, फाँसने में कीचड़ की तरह, मारने में मौत की तरह, जलाने में अग्नि की तरह और छिन्न – भिन्न करने में तलवार जैसी होती है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jao chiya imao itthiyao anegehim kaivarasahassehim vivihapasapadibaddhehim kamaragamohiehim vanniyao tao viya erisao, tam jaha– Pagaivisamao piyarusanao katiyavachadupparunnato athakkahasiya-bhasiya-vilasa- visambha-pachu(chcha) yao avinayavatolio mohamahavattanio visamao piyavayanavallario kaiyavapemagiritadio avarahasahassagharinio 4, pabhavo sogassa, vinaso balassa, suna purisanam, naso lajjae, samkaro avinayassa, nilao niyadinam 10 khani vairassa, sariram sogassa, bheo majjayanam, asao ragassa, nilao duchchariyanam 15, maie sammoho, khalana nanassa, chalanam silassa, viggho dhammassa, ari sahuna 20, dusanam ayarapattanam, aramo kammarayassa, phaliho mukkhamaggassa, bhavanam dariddassa 24. Avi aim tao asiviso viva kuviyao, mattagao viva mayanaparavvasao, vagghi viva dutthahiyayao, tanachchhannakuvo viva appagasahiyayao, mayakarao viva uvayarasayabamdhanapao- ttio, ayariyasavidham piva duggejjhasabbhavao 30, phumphuya viva amtodahanasilao, naggayamaggo viva anavatthiyachittao, amtodutthavano viva kuhiyahiyayao, kanhasappo viva avissasanijjao, samgharo viva chhannamayao, samjhabbharago viva muhuttaragao, samuddavichio viva chalassabhavao, machchho viva duppari-yattanasilao, vanaro viva chalachittao, machchu viva nivvisesao 40, kalo viva niranukampao, varuno viva pasahatthao, salilamiva ninnagaminio, kivino viva uttanahatthao, narao viva uttasanijjao, kharo viva dussilao, dutthasso viva duddamao, balo iva muhutta-hiyayao, amdhakaramiva duppavesao, visavalli viva analliyanijjao 50, Dutthagaha iva vavi anava-gahao, thanamattho viva issaro appasamsanijjao, kimpagaphalamiva muhamahurao, rittamutthi viva balalobhanijjao, mamsapesigahanamiva sovaddavao, jaliyachudali viva amuchchamanadahanasilao, aritthamiva dullamghanijjao, kudakarisavano viva kalavisamvayanasilao, chamdasilo viva dukkharakkhiyao, aivisayao 60 dugumchhiyao duruvacharao agambhirao avissasanijjao ana-vatthiyao dukkharakkhiyao dukkhapaliyao aratikarao kakkasao dadhaverao 70 ruva-sohaggamaummattao bhuyagagaikudilahiyayao kamtara-gaitthanabhuyao kula-sayana-mittabheyanakariyao paradosapagasiyao kayagghao balasohiyao egamtaharanakolao chamchalao jaiyabhamdovagaro viva muharagaviragao 80. Avi yaim tao amtaram bhamgasayam, arajjuo paso, adaruya adavi, analassanilao, aikkha veyarani, anamio vahi, aviyogo vippalavo, aruo uvasaggo, raivamto chittavibbhamo, savvamgao daho 90, anabbhapasuya vajjasani, asalilappavaho samuddarao 92. Avi yaim tasim itthiyanam anegani namaniruttanipurise kamaragappadibaddhe nanavihehim uvayasayasahassehim vaha -bamdhamanayamti purisanam no anno eriso ari atthi tti nario, tam jaha– Narisama na naranam ario nario 1. Nanavihehim kammehim sippayaiehim purise mohamti tti mahilao 2. Purise matte karemti tti pamayao 3. Mahamtam kalim janayamti tti mahiliyao 4. Purise havabhavamaiehim ramamti tti ramao 5. Purise amganurae karemti tti amganao 6. Nanavihesu juddhabhamdana-samgamada-visu muharanaginhana-siunha-dukkha-kilesamaiesu purise lalemti tti lalanao 7. Purise joga-nioehim vase thavimti tti josiyao 8. Purise nanavihehim bhavehim vanimti tti vaniyao 9. Kai pamattabhavam, kai panayam savibbhamam, kai sasaddam sasi vva vavaharamti, kai sattu vva, roro iva kai payaesu panamamti, kai uvanaesu uvanamamti, kai kouyanammam ti kaum sukadakkha-nirikkhiehim savilasamahurehim uvahasiehim uvaguhiehim uvasaddehim gurugadarisanehim bhumilihana-vilihanehim cha aruhana-nattanehi ya balayauvaguhanehim cha amguliphodana-thanapilana-kadita-dajayanahim tajjanahim cha. Avi yaim tao paso va vavasitum je, pamko vva khuppium je, machchu vva mareum je, agani vva dahium je, asi vva chhijjium je. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Kama, raga aura moha samana taraha – taraha ki rassi se bamdhe hajarom shreshtha kavi dvara ina striyom ki taripha mem kaphi kuchha kaha gaya hai. Vastutah unaka svarupa isa prakara hai. Stri svabhava se kutila, priyavachana ki latta, prema karane mem pahara ki nadi ki taraha kutila, hajara aparadha ki svamini, shoka utpanna karavanevali, bala ka vinasha karanevali, marda ke lie vadhasthana, lajja ko nashta karanevali, avinayaki rashi, papakhamra ka ghara, shatruta ki khana, shoka ka ghara, maryada tora denevali, raga ka ghara, durachari ka nivasa sthana, sammohana ki mata, jnyana ko nashta karanevali, brahmacharya ko nashta karanevali, dharma mem vighna samana, sadhu ki shatru, achara sampanna ke lie kalamka samana, raja ka vishramagriha, mokshamarga mem vighnabhuta, daridrata ka avasa – kopayamana ho taba jhaharile sampa jaisi, kama se vasha hone para madonmatta hathi jaisi, dushta hridaya hone se vaghana jaisi, kalimam vale dila ki hone se trina achchhadita kue samana, jadugara ki taraha semkarom upachara se abaddha karanevali, durgrahya sadbhava hone ke bavajuda adarsha ki pratima, shila ko jalane mem vanakhamda ki agni jaisi, asthira chitta hone se parvata marga ki taraha anavasthita, antaramga vrana ki taraha kutila, hridaya kale sarpa ki taraha avishvasaniya. Chhala chhadma yukta hone se pralaya jaisi, samdhya ki lalima ki taraha palabhara ka prema karanevali, sagara ki lahara ki taraha chapala svabhavavali, machhali ki taraha dushparivartaniya, chamchalata mem bandara ki taraha, mauta ki taraha kuchha baki na rakhanevali, kala ki taraha ghataki, varuna ki taraha kamapasha samana hathavali, pani ki taraha nimna – anugamini, kripana ki taraha ulte hathavali, naraka samana bhayanaka, gardabha ki taraha duhshila, dushta ghore ki taraha durdamaniya, bachche ki taraha pala mem khusha aura pala mem roshayamana honevali, amdhere ki taraha dushpravesha visha lata ki taraha ashraya ko anuchita, kue mem akrosha se avagahana karanevale dushta magaramachchha jaisi, sthanabhrashta, aishvaryavana ki taraha prashamsa ke lie anuchita kimpaka phala ki taraha pahale achchhi laganevali lekina bada mem katu phala denevali, bachche ko lubhanevali khali muththi jaisi sara ke bina, mamsapimra ko grahana karane ki taraha upadrava utpanna karanevali, jale hue ghasa ke pule ki taraha na chhutanevale mana aura jale hue shilavali, arishta ki taraha badabuvali, khote sikke ki taraha shila ko thaganevali, krodhi ki taraha kashta se rakshita, ati vishadavali, nimdita, durupachara, agambhira, avishvasaniya, anavasthita, duhkha se rakshita, aratikara, karkasha, damra vairavali, rupa aura saubhagya se unmatta, sampa ki gati ki taraha kutila hridaya, atavi mem yatra ki taraha bhaya utpanna karanevali, kula – parivara aura mitra mem phuta utpanna karanevali, dusarom ke dosha prakashita karanevali. Kritaghna, viryanasha karanevali, kola ki taraha ekanta mem harana karanevali, chamchala, agni se lala honevale ghare ki taraha lala hotha se raga utpanna karanevali, amtaramga mem bhagnashata hridaya, rassi bina ka bamdhana, bina pera ka jamgala, agninilaya, adrishya vaitarani, asadhya bimari, bina viyoga se pralapa karanevali, anabhivyakta upasarga, ratikrira mem chitta vibhrama karanevali, sarvamga jalanevali bina megha ke vajrapata karanevali, jalashunya pravaha aura sagara samana nirantara garjana karanevali, yaha stri hoti hai. Isa taraha striyam ki kaim nama niryukti ki jati hai. Lakha upaya se aura alaga – alaga taraha se marda ki kamasakti barhati hai aura usako vadha bandhana ka bhajana bananevali nari samana marda ka dusara koi shatru nahim hai, isalie ‘nari’ taraha – taraha ke karma aura shilpa se mardom ko mohita karake moha ‘mahila’, mardom ko matta karate haim isalie ‘pramada’, mahana kalaha ko utpanna karati hai isalie ‘mahilika’, marda ko havabhava se ramana karavati hai isalie ‘rama’, mardom ko apane amga mem raga karavati hai isalie ‘amgana’, kaim taraha ke yuddha – kalaha – samgrama – atavi mem bhramana, bina prayojana karja lena, shardi, garmi ka duhkha aura klesha khare karane ke adi karya mem vo marda ko pravritta karati hai isalie ‘lalana’, yoga – niyoga dvara purusha ko basa mem karati hai isalie ‘yoshit’ evam vividha bhava dvara purusha ki vasana uddipta karati hai isalie vanita kahalati hai. Kisi stri pramattabhava ko, kisi pranaya vibhrama ko aura kisi shvasa ke rogi ki taraha shabda – vyavahara karate haim. Koi shatru jaisi hoti hai aura koi ro – ro kara pamva para pranama karati haim. Koi stuti karati hai. Koi ashcharya, hasya aura kataksha se dekhati hai. Koi vilasayukta madhura vachana se, koi hasya cheshta se, koi alimgana se, koi sitkara ke shabda se, koi grihayoga ke pradarshana se, koi bhumi para likhakara ya chihna karake, koi vamsa para charakara nritya dvara, koi bachche ke alimgana dvara, koi amguli ke tachake, stana mardana aura katitata pirana adi se purusha ko akrishta karati hai. Yaha stri vighna karane mem jala ki taraha, phamsane mem kichara ki taraha, marane mem mauta ki taraha, jalane mem agni ki taraha aura chhinna – bhinna karane mem talavara jaisi hoti hai. |