Sutra Navigation: Chandrapragnapati ( चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र )
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Mool File Details |
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Sr No : | 1007341 | ||
Scripture Name( English ): | Chandrapragnapati | Translated Scripture Name : | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्राभृत-१ |
Translated Chapter : |
प्राभृत-१ |
Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ | Translated Section : | प्राभृत-प्राभृत-१ |
Sutra Number : | 41 | Category : | Upang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] ता कहं ते ओयसंठिती आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ पणवीसं पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अनुसमयमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुमुहुत्तमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु २ एवं एतेणं अभिलावेणं नेतव्वा–ता अनुराइंदियमेव ३ ता अनुपक्खमेव ४ ता अनुमासमेव ५ ता अनुउडुमेव ६ ता अनुअयणमेव ७ ता अनुसंवच्छरमेव ८ ता अनुजुगमेव ९ ता अनुवाससयमेव १० ता अनुवाससहस्समेव ११ ता अनुवाससयसहस्समेव १२ ता अनुपुव्वमेव १३ अनुपुव्वसयमेव १४ ता अनुपुव्वसहस्समेव १५ ता अनु पुव्वसयसहस्समेव १६ ता अनुपलिओवममेव १७ ता अनुपलिओवमसयमेव १८ ता अनुपलिओवमसहस्समेव १९ ता अनुपलि-ओवमसयसहस्समेव २० ता अनुसागरोवममेव २१ ता अनुसागरोवमसयमेव २२ ता अनुसागरोवमसहस्समेव २३ ता अनुसागरो-वमसयसहस्समेव २४ एगे पुण एवमाहंसु–ता अनुओसप्पिणिउस्सप्पिणिमेव सूरियस्स ओया अन्ना उप्पज्जइ अन्ना वेअति–एगे एवमाहंसु २५ वयं पुण एवं वदामो–ता तीसं-तीसं मुहुत्ते सूरियस्स ओया अवट्ठित्ता भवइ, तेण परं सूरियस्स ओया अणवट्ठिता भवइ, छम्मासे सूरिए ओयं निवुड्ढे, छम्मासे सूरिए ओयं अभिवुड्ढेइ, निक्खममाणे सूरिए देसं निवुड्ढेइ, पविसमाणे सूरिए देसं अभिवुड्ढेइ। तत्थ को हेतूति वदेज्जा? ता अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव परिक्खेवेणं, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। से निक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अब्भिंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अब्भिंतरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगेणं राइंदिएणं एगं भागं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवड्ढित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढित्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तोसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। से निक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अब्भिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अब्भिंतरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं दोहिं राइंदिएहिं दो भागे ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्ढित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं सएहिं छेत्ता तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिया। एवं खलु एतेणुवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयानंतराओ तयानंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे एगमेगे मंडले एगमेगेणं राइंदिएणं एगमेगं भागं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वब्भंतरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एगं तेसीतं भागसतं ओयाए दिवसखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता रयणिखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से पविसमाणे सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरानंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगेणं एगं भागं ओयाए रयणिक्खेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवा-लसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए। से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं दोहिं राइंदिएहिं दो भाए ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ चउहिं एगट्ठिभागमुहुत्तेहिं अहिए। एवं खलु एतेणुवाएणं पविसमाणे सूरिए तयानंतराओ तयानंतरं मंडलाओ मंडलं संकममाणे-संकममाणे एगमेगेणं राइंदिएणं एगमेगं भागं ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेमाणे-निवुड्ढेमाणे दिवस-खेत्तस्स अभिवड्ढेमाणे-अभिवड्ढेमाणे सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं सव्वबाहिरं मंडलं पणिधाय एगेणं तेसीतेणं राइंदियसतेणं एगं तेसीतं भागसतं ओयाए रयणिखेत्तस्स निवुड्ढेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवड्ढेत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति, एस णं दोच्चे छम्मासे, एस णं दोच्चस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। एस णं आदिच्चे संवच्छरे, एस णं आदिच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे। | ||
Sutra Meaning : | सूर्य की प्रकाश संस्थिति किस प्रकार की है ? इस विषय में अन्य मतवादी पच्चीश प्रतिपत्तियाँ हैं, वह इस प्रकार हैं – (१) अनु समय में सूर्य का प्रकाश अन्यत्र उत्पन्न होता है, भिन्नता से विनष्ट होता है, (२) अनुमुहूर्त्त में अन्यत्र उत्पन्न होता है, अन्यत्र नाश होता है, (३) रात्रिदिन में अन्यत्र उत्पन्न होकर अन्यत्र विनाश होता है, (४) अन्य पक्ष में, (५) अन्य मास में, (६) अनुऋतु में, (७) अनुअयन में, (८) अनुसंवत्सर में, (९) अनुयुग में, (१०) अनुशत – वर्ष में, (११) अनुसहस्र वर्ष में, (१२) अनुलक्ष वर्ष में, (१३) अनुपूर्व में, (१४) अनुशतपूर्व में, (१५) अनुसहस्रपूर्व में, (१६) अनुलक्षपूर्व में, (१७) अनुपल्योपम मैं, (१८) अनुशतपल्योपम में, (१९) अनुसहस्रपल्योपम में, (२०) अनुलक्षपल्योपम में, (२१) अनुसागरोपम में, (२२) अनुशत सागरोपम में, (२३) अनुसहस्रसागरोपम में, (२४) अनुलक्षसागरोपम में, (२५) अनुउत्सर्पिणी अवसर्पिणी में – सूर्य का प्रकाश अन्यत्र उत्पन्न होता है, अन्यत्र विनष्ट होता है। भगवंत फरमाते हैं कि – त्रीश – त्रीश मुहूर्त्त पर्यन्त सूर्य का प्रकाश अवस्थित रहता है, इसके बाद वह अनव – स्थित हो जाता है। छह मास पर्यन्त सूर्य का प्रकाश न्यून होता है और छह मास पर्यन्त बढ़ता रहता है। क्योंकि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से निष्क्रमण करके गमन करता है, उस समय उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। निष्क्रम्यमान सूर्य नए संवत्सर को प्राप्त करके प्रथम अहोरात्रि में अभ्यन्तर मंडल से उपसंक्रमण करके जब गमन करता है तब एक अहोरात्र में दिवस क्षेत्र के प्रकाश को एक भाग न्यून करता है और रात्रि में एक भाग की वृद्धि होती है, मंडल का १८३० भाग से छेद करता है। उस समय दो – एकसट्ठांश भाग दिन की हानि और रात्रि की वृद्धि होती है। वही सूर्य जब दूसरे अहोरात्र में निष्क्रमण करके तीसरे मंडल में गति करता है तब दो अहोरात्र में दो भाग प्रमाण दिवस क्षेत्र की हानि और रात्रि क्षेत्र की वृद्धि होती है। मंडल का १८३० भाग से छेद होता है। चार एकसट्ठांश मुहूर्त्त प्रमाण दिन की हानि और रात्रि की वृद्धि होती है। निश्चय से इसी अभिलाप से निष्क्रम्यमान सूर्य अनन्तर अनन्तर मंडलों में गमन करता हुआ, एक एक अहोरात्र में एक एक भाग प्रमाण दिवस क्षेत्र को न्यून करता और रात्रिक्षेत्र को बढ़ाता हुआ सर्वबाह्य मंडल में उपसंक्रमण करके गमन करता है। १८३ अहोरात्र में १८३ भाग प्रमाण दिवस क्षेत्र को कम करता है और उतना ही रात्रि क्षेत्र में वृद्धि करता है। उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त अट्ठारह मुहूर्त्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त्त का दिन होता है। यह हुए प्रथम छ मास। दूसरे छ मास का आरंभ होता है तब सूर्य सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश करने का आरम्भ करता है। प्रवेश करता हुआ सूर्य जब अनन्तर मंडल में उपसंक्रमण करके गमन करता है तब एक अहोरात्र में अपने प्रकाश से रात्रि क्षेत्र का एक भाग कम करता है और दिवस क्षेत्र के एक भाग की वृद्धि करता है। १८३० भाग से छेद करता है। दो एकसट्ठांश मुहूर्त्त से रात्रि की हानि और दिन की वृद्धि होती है। इसी प्रकार से पूर्वोक्त पद्धति से उपसंक्रमण करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मंडल में पहुँचता है तब १८३० भाग से छेद कर और एक एक महोरात्र में दिवस क्षेत्र की वृद्धि और रात्रिक्षेत्र की हानि करता हुआ १८३ अहोरात्र होते हैं। सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है तब उत्कृष्ट मुहूर्त्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। यह हुए दूसरे छ मास यावत् आदित्य संवत्सर का पर्यवसान। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] ta kaham te oyasamthiti ahitati vaejja? Tattha khalu imao panavisam padivattio pannattao. Tatthege evamahamsu–ta anusamayameva suriyassa oya anna uppajjai anna veati–ege evamahamsu 1 ege puna evamahamsu–ta anumuhuttameva suriyassa oya anna uppajjai anna veati–ege evamahamsu 2 Evam etenam abhilavenam netavva–ta anuraimdiyameva 3 ta anupakkhameva 4 ta anumasameva 5 ta anuudumeva 6 ta anuayanameva 7 ta anusamvachchharameva 8 ta anujugameva 9 ta anuvasasayameva 10 ta anuvasasahassameva 11 ta anuvasasayasahassameva 12 ta anupuvvameva 13 anupuvvasayameva 14 ta anupuvvasahassameva 15 ta anu puvvasayasahassameva 16 ta anupaliovamameva 17 ta anupaliovamasayameva 18 ta anupaliovamasahassameva 19 ta anupali-ovamasayasahassameva 20 ta anusagarovamameva 21 ta anusagarovamasayameva 22 ta anusagarovamasahassameva 23 ta anusagaro-vamasayasahassameva 24 Ege puna evamahamsu–ta anuosappiniussappinimeva suriyassa oya anna uppajjai anna veati–ege evamahamsu 25 Vayam puna evam vadamo–ta tisam-tisam muhutte suriyassa oya avatthitta bhavai, tena param suriyassa oya anavatthita bhavai, chhammase surie oyam nivuddhe, chhammase surie oyam abhivuddhei, nikkhamamane surie desam nivuddhei, pavisamane surie desam abhivuddhei. Tattha ko hetuti vadejja? Ta ayannam jambuddive dive savvadivasamuddanam savvabbhamtarae java parikkhevenam, ta jaya nam surie savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam uttamakatthapatte ukkosae attharasamuhutte divase bhavai, jahanniya duvalasamuhutta rati bhavati. Se nikkhamamane surie navam samvachchharam ayamane padhamamsi ahorattamsi abbhimtaranamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie abbhimtaranamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam egenam raimdienam egam bhagam oyae divasakhettassa nivaddhitta rayanikhettassa abhivaddhitta charam charai mamdalam attharasahim tosehim saehim chhetta, taya nam attharasamuhutte divase bhavai dohim egatthibhagamuhuttehim une, duvalasamuhutta rati bhavati dohim egatthibhagamuhuttehim ahiya. Se nikkhamamane surie dochchamsi ahorattamsi abbhimtaram tachcham mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie abbhimtaram tachcham mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam dohim raimdiehim do bhage oyae divasakhettassa nivuddhitta rayanikhettassa abhivaddhetta charam charai mamdalam attharasahim saehim chhetta taya nam attharasamuhutte divase bhavai chauhim egatthibhagamuhuttehim une, duvalasamuhutta rati bhavati chauhim egatthibhagamuhuttehim ahiya. Evam khalu etenuvaenam nikkhamamane surie tayanamtarao tayanamtaram mamdalao mamdalam samkamamane-samkamamane egamege mamdale egamegenam raimdienam egamegam bhagam oyae divasakhettassa nivuddhemane-nivuddhemane rayanikhettassa abhivaddhemane-abhivaddhemane savvabahiram mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie savvabbhamtarao mamdalao savvabahiram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam savvabbhamtaram mamdalam panidhaya egenam tesitenam raimdiyasatenam egam tesitam bhagasatam oyae divasakhettassa nivuddhetta rayanikhettassa abhivaddhetta charam charai mamdalam attharasahim tisehim saehim chhetta, taya nam uttamakatthapatta ukkosiya rati bhavati, jahannae duvalasamuhutte divase bhavai, esa nam padhame chhammase, esa nam padhamassa chhammasassa pajjavasane. Se pavisamane surie dochcham chhammasam ayamane padhamamsi ahorattamsi bahiranamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie bahiranamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam egenam egam bhagam oyae rayanikkhettassa nivuddhetta divasakhettassa abhivaddhetta charam charai mamdalam attharasahim tisehim saehim chhetta, taya nam attharasamuhutta rati bhavati dohim egatthibhagamuhuttehim una, duva-lasamuhutte divase bhavai dohim egatthibhagamuhuttehim ahie. Se pavisamane surie dochchamsi ahorattamsi bahiram tachcham mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie bahiram tachcham mamdalam uvasamkamitta charam charai, taya nam dohim raimdiehim do bhae oyae rayanikhettassa nivuddhetta divasakhettassa abhivaddhetta charam charai mamdalam attharasahim tisehim saehim chhetta, taya nam attharasamuhutta rati bhavati chauhim egatthibhagamuhuttehim una, duvalasamuhutte divase bhavai chauhim egatthibhagamuhuttehim ahie. Evam khalu etenuvaenam pavisamane surie tayanamtarao tayanamtaram mamdalao mamdalam samkamamane-samkamamane egamegenam raimdienam egamegam bhagam oyae rayanikhettassa nivuddhemane-nivuddhemane divasa-khettassa abhivaddhemane-abhivaddhemane savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai, ta jaya nam surie savvabahirao mamdalao savvabbhamtaram mamdalam uvasamkamitta charam charai taya nam savvabahiram mamdalam panidhaya egenam tesitenam raimdiyasatenam egam tesitam bhagasatam oyae rayanikhettassa nivuddhetta divasakhettassa abhivaddhetta charam charai mamdalam attharasahim tisehim saehim chhetta, taya nam uttamakatthapatte ukkosae attharasamuhutte divase bhavai, jahanniya duvalasamuhutta rati bhavati, esa nam dochche chhammase, esa nam dochchassa chhammasassa pajjavasane. Esa nam adichche samvachchhare, esa nam adichchassa samvachchharassa pajjavasane. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Surya ki prakasha samsthiti kisa prakara ki hai\? Isa vishaya mem anya matavadi pachchisha pratipattiyam haim, vaha isa prakara haim – (1) anu samaya mem surya ka prakasha anyatra utpanna hota hai, bhinnata se vinashta hota hai, (2) anumuhurtta mem anyatra utpanna hota hai, anyatra nasha hota hai, (3) ratridina mem anyatra utpanna hokara anyatra vinasha hota hai, (4) anya paksha mem, (5) anya masa mem, (6) anuritu mem, (7) anuayana mem, (8) anusamvatsara mem, (9) anuyuga mem, (10) anushata – varsha mem, (11) anusahasra varsha mem, (12) anulaksha varsha mem, (13) anupurva mem, (14) anushatapurva mem, (15) anusahasrapurva mem, (16) anulakshapurva mem, (17) anupalyopama maim, (18) anushatapalyopama mem, (19) anusahasrapalyopama mem, (20) anulakshapalyopama mem, (21) anusagaropama mem, (22) anushata sagaropama mem, (23) anusahasrasagaropama mem, (24) anulakshasagaropama mem, (25) anuutsarpini avasarpini mem – surya ka prakasha anyatra utpanna hota hai, anyatra vinashta hota hai. Bhagavamta pharamate haim ki – trisha – trisha muhurtta paryanta surya ka prakasha avasthita rahata hai, isake bada vaha anava – sthita ho jata hai. Chhaha masa paryanta surya ka prakasha nyuna hota hai aura chhaha masa paryanta barhata rahata hai. Kyomki jaba surya sarvabhyantara mamdala se nishkramana karake gamana karata hai, usa samaya utkrishta attharaha muhurtta ka dina aura jaghanya baraha muhurtta ki ratri hoti hai. Nishkramyamana surya nae samvatsara ko prapta karake prathama ahoratri mem abhyantara mamdala se upasamkramana karake jaba gamana karata hai taba eka ahoratra mem divasa kshetra ke prakasha ko eka bhaga nyuna karata hai aura ratri mem eka bhaga ki vriddhi hoti hai, mamdala ka 1830 bhaga se chheda karata hai. Usa samaya do – ekasatthamsha bhaga dina ki hani aura ratri ki vriddhi hoti hai. Vahi surya jaba dusare ahoratra mem nishkramana karake tisare mamdala mem gati karata hai taba do ahoratra mem do bhaga pramana divasa kshetra ki hani aura ratri kshetra ki vriddhi hoti hai. Mamdala ka 1830 bhaga se chheda hota hai. Chara ekasatthamsha muhurtta pramana dina ki hani aura ratri ki vriddhi hoti hai. Nishchaya se isi abhilapa se nishkramyamana surya anantara anantara mamdalom mem gamana karata hua, eka eka ahoratra mem eka eka bhaga pramana divasa kshetra ko nyuna karata aura ratrikshetra ko barhata hua sarvabahya mamdala mem upasamkramana karake gamana karata hai. 183 ahoratra mem 183 bhaga pramana divasa kshetra ko kama karata hai aura utana hi ratri kshetra mem vriddhi karata hai. Usa samaya paramaprakarsha prapta attharaha muhurtta ki ratri aura jaghanya baraha muhurtta ka dina hota hai. Yaha hue prathama chha masa. Dusare chha masa ka arambha hota hai taba surya sarvabahya mamdala se sarvabhyantara mamdala mem pravesha karane ka arambha karata hai. Pravesha karata hua surya jaba anantara mamdala mem upasamkramana karake gamana karata hai taba eka ahoratra mem apane prakasha se ratri kshetra ka eka bhaga kama karata hai aura divasa kshetra ke eka bhaga ki vriddhi karata hai. 1830 bhaga se chheda karata hai. Do ekasatthamsha muhurtta se ratri ki hani aura dina ki vriddhi hoti hai. Isi prakara se purvokta paddhati se upasamkramana karata hua sarvabhyantara mamdala mem pahumchata hai taba 1830 bhaga se chheda kara aura eka eka mahoratra mem divasa kshetra ki vriddhi aura ratrikshetra ki hani karata hua 183 ahoratra hote haim. Sarvabhyantara mamdala mem gamana karata hai taba utkrishta muhurtta ka dina aura jaghanya baraha muhurtta ki ratri hoti hai. Yaha hue dusare chha masa yavat aditya samvatsara ka paryavasana. |