Sutra Navigation: Suryapragnapti ( सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र )

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Sr No : 1007195
Scripture Name( English ): Suryapragnapti Translated Scripture Name : सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

प्राभृत-२०

Translated Chapter :

प्राभृत-२०

Section : Translated Section :
Sutra Number : 195 Category : Upang-05
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] ता कहं ते राहुकम्मे आहितेति वदेज्जा? तत्थ खलु इमाओ दो पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थेगे एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु २ तत्थ जेते एवमाहंसु–ता अत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–ता राहू णं देवे चंदं वा सूरं वा गेण्हमाणे बुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, बुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयंति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता बुद्धंतेणं मुयति, मुद्धंतेणं गिण्हित्ता मुद्धंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता वामभुयंतेणं मुयति, वामभुयंतेणं गिण्हित्ता दाहिणभुयंतेणं मुयति दाहिणभुयंतेणं गिण्हित्ता वाम-भुयंतेणं मुयति, दाहिणभुयंतेणं गिण्हित्ता दाहिणभुयंतेणं मुयति। तत्थ जेते एवमाहंसु–ता नत्थि णं से राहू देवे, जे णं चंदं वा सूरं वा गेण्हति, ते एवमाहंसु–तत्थ णं इमे पन्नरस कसिणपोग्गला पन्नत्ता, तं जहा–सिंघाडए जडिलए खरए खतए अंजणे खंजणे सीतले हिमसीतले केलासे अरुणाभे परिज्जए णभसूरए कविलए पिंगलए राहू। ता जया णं एते पन्नरस कसिणा पोग्गला सया चंदस्स वा सूरस्स वा लेसानुबद्धचारिणो भवंति तया णं मानुसलोयंसि माणुसा एवं वदंति–एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हति। ता जया णं एते पन्नरस कसिणा पोग्गला नो सया चंदस्स वा सूरस्स वा लेसानुबद्धचारिणो भवंति, नो खलु तया णं मानुसलोयम्मि मनुस्सा एवं वदंति–एवं खलु राहू चंदं वा सूरं वा गेण्हति–एगे एवमाहंसु। वयं पुण एवं वदामो–ता राहू णं देवे महिड्ढिए महाजुतीए महाबले महाजसे महानुभावे वरवत्थधरे वरमल्लधरे वराभणधारी। राहुस्स णं देवस्स नव नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–सिंघाडए जडिलए खतए खरए दद्दरे मगरे मच्छे कच्छभे कण्हसप्पे। ता राहुस्स णं देवस्स विमाणा पंचवण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा नीला लोहिता हालिद्दा सुक्किला। अत्थि कालए राहुविमाने खंजणवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि णीलए राहुविमाने लाउयवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि लोहिए राहुविमाने मंजिट्ठावण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि पीतए राहुविमाने हालिद्दवण्णाभे पन्नत्ते, अत्थि सुक्किलए राहुविमाने भासरासिवण्णाभे पन्नत्ते। ता जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेस्सं पुरत्थिमेणं आवरित्ता पच्चत्थिमेणं वीतीवयति तया णं पुरत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, पच्चत्थिमेणं राहू। जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणेणं आवरित्ता उत्तरेणं वीतीवयति तया णं दाहिणेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरेणं राहू। एतेणं अभिलावेणं पच्चत्थिमेणं आवरित्ता पुरत्थिमेणं वीतीवयति, उत्तरेणं आवरित्ता दाहिणेणं वीतीवयति। जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणपुरत्थिमेणं आवरित्ता उत्तरपच्चत्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपुरत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपच्चत्थिमेणं राहू जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं दाहिणपच्चत्थिमेणं आवरित्ता उत्तरपुरत्थिमेणं वीतीवयति तया णं दाहिणपच्चत्थिमेणं चंदे वा सूरे वा उवदंसेति, उत्तरपुरत्थिमेणं राहू। एतेणं अभिलावेणं उत्तरपच्चत्थिमेणं आवरेत्ता दाहिणपुरत्थिमेणं वीतीवयति, उत्तर-पुरत्थिमेणं आवरेत्ता दाहिणपच्चत्थिमेणं वीतीवयति। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता वीतीवयति तया णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा गहिते। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पासेणं वीतीवयति तया णं मनुस्सलोयंमि मनुस्सा वदंति–एवं खलु चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिन्ना–एवं खलु चंदेण वा सूरेण वा राहुस्स कुच्छी भिन्ना। ता जया णं राहुदेवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता पच्चोसक्कति तया णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वंते। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ता मज्झंमज्झेणं वीतीवयति तया णं मनुस्सलोए मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा वइयरिए। ता जया णं राहू देवे आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स वा सूरस्स वा लेसं आवरेत्ताणं अहे सपक्खिं सपडिदिसिं चिट्ठति तया णं मनुस्सलोयंसि मनुस्सा वदंति–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्थे–एवं खलु राहुणा चंदे वा सूरे वा घत्थे। ता कतिविहे णं राहू पन्नत्ते? ता दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–धुवराहू य पव्वराहू य। तत्थ णं जेसे धुवराहू, से णं बहुलपक्खस्स पाडिवए पन्नरसतिभागेणं पन्नरसतिभागं चंदस्स लेसं आवरेमाणे-आवरेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसीए पन्नरसमं भागं, चरमे समए चंदे रत्ते भवइ, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवति। तमेव सुक्कपक्खे उवदंसेमाणे-उवदंसेमाणे चिट्ठति, तं जहा–पढमाए पढमं भागं जाव पन्नरसीए पन्नरसमं भागं, चरिमे समए चंदे विरत्ते भवति, अवसेसे समए चंदे रत्ते य विरत्ते य भवइ। तत्थ णं जेसे पव्वराहू, से जहन्नेणं छण्हं मासाणं, उक्कोसेणं बायालीसाए मासाणं चंदस्स, अडतालीसाए संवच्छराणं सूरस्स।
Sutra Meaning : हे भगवन्‌ ! राहु की क्रिया कैसे प्रतिपादित की है ? इस विषय में दो प्रतिपत्तियाँ हैं – एक कहता है कि – राहु नामक देव चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है, दूसरा कहता है कि राहु नामक कोई देव विशेष है ही नहीं जो चंद्र – सूर्य को ग्रसित करता है। पहले मतवाला का कथन यह है कि – चंद्र या सूर्य को ग्रहण करता हुआ कभी अधोभाग को ग्रहण करके अधोभाग से ही छोड़ देता है, उपर से ग्रहण करके अधो भाग से छोड़ता है, कभी उपर से ग्रहण करके उपर से ही छोड़ देता है, दायिनी ओर से ग्रहण करके दायिनी ओर से छोड़ता है तो कभी बायीं तरफ से ग्रहण करके बांयी तरफ से छोड़ देता है इत्यादि। जो मतवादी यह कहता है कि राहु द्वारा चंद्र – सूर्य ग्रसित होते ही नहीं, उनके मतानुसार – पन्द्रह प्रकार के कृष्णवर्णवाले पुद्‌गल हैं – शृंगाटक, जटिलक, क्षारक, क्षत, अंजन, खंजन, शीतल, हिमशीतल, कैलास, अरुणाभ, परिज्जय, नभसूर्य, कपिल और पिंगल राहु। जब यह पन्द्रह समस्त पुद्‌गल सदा चंद्र या सूर्य की लेश्या को अनुबद्ध करके भ्रमण करते हैं तब मनुष्य यह कहते है कि राहु ने चंद्र या सूर्य को ग्रसित किया है। जब यह पुद्‌गल सूर्य या चंद्र की लेश्या को ग्रसित नहीं करते हुए भ्रमण करते हैं तब मनुष्य कहते हैं कि सूर्य या चंद्र द्वारा राहु ग्रसित हुआ है। भगवंत फरमाते हैं कि – राहुदेव महाऋद्धिवाला यावत्‌ उत्तम आभरणधारी है, राहुदेव के नव नाम है – शृंगाटक, जटिलक, क्षतक, क्षरक, दर्दर, मगर, मत्स्य, कस्यप और कृष्णसर्प। राहुदेव का विमान पाँच वर्णवाला है – कृष्ण, नील, रक्त, पीला और श्वेत। काला राहुविमान खंजन वर्ण की आभावाला है, नीला राहुविमान लीले तुंबड़े के वर्ण का, रक्त राहुविमान मंजीठवर्ण की आभावाला, पीला विमान हलदर आभावाला, श्वेत राहुविमान तेजपुंज सदृश होता है। जिस वक्त राहुदेव विमान आते – जाते – विकुर्वणा करते – परिचारणा करते चंद्र या सूर्य की लेश्या को पूर्व से आवरित कर पश्चिममें छोड़ता है, तब पूर्व से चंद्र या सूर्य दिखते हैं और पश्चिम में राहु दिखता है, दक्षिण से आवरित करके उत्तर में छोड़ता है, तब दक्षिण से चंद्र – सूर्य दिखाई देते हैं और उत्तर में राहु दिखाई देता है। इसी अभिलाप से इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर, ईशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य में भी समझ लेना चाहिए। इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है, तब मनुष्य कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य का ग्रहण किया – ग्रहण किया। जब इस तरह राहु एक पार्श्व से चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य की कुक्षिका विदारण किया – विदारण किया। जब राहु इस तरह चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करके छोड़ देता है, तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य का वमन किया – वमन किया। इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य लेश्या को आवरीत करके बीचोबीच से नीकलता है तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र या सूर्य को मध्य से विदारीत किया है। इसी तरह जब राहु चारों ओर से चंद्र या सूर्य को आवरीत करता है तब लोग कहते हैं कि राहुने चंद्र – सूर्य को ग्रसित किया। राहु दो प्रकार के हैं – ध्रुवराहु और पर्वराहु। जो ध्रुवराहु है, वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ करके अपने पन्द्रहवे भाग से चंद्र की पन्द्रहवा भाग की लेश्या को एक एक दिन के क्रम से आच्छादित करता है और पूर्णिमा एवं अमावास्या के पर्वकाल में क्रमानुसार चंद्र या सूर्य को ग्रसित करता है; जो पर्वराहु है वह जघन्य से छह मास में और उत्कृष्ट से बयालीस मास में चंद्र को अडतालीस मास में सूर्य को ग्रसित करता है।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] ta kaham te rahukamme ahiteti vadejja? Tattha khalu imao do padivattio pannattao. Tatthege evamahamsu–ta atthi nam se rahu deve, je nam chamdam va suram va genhati–ege evamahamsu 1 Ege puna evamahamsu–ta natthi nam se rahu deve, je nam chamdam va suram va genhati–ege evamahamsu 2 Tattha jete evamahamsu–ta atthi nam se rahu deve, je nam chamdam va suram va genhati, te evamahamsu–ta rahu nam deve chamdam va suram va genhamane buddhamtenam ginhitta buddhamtenam muyati, buddhamtenam ginhitta muddhamtenam muyamti, muddhamtenam ginhitta buddhamtenam muyati, muddhamtenam ginhitta muddhamtenam muyati, vamabhuyamtenam ginhitta vamabhuyamtenam muyati, vamabhuyamtenam ginhitta dahinabhuyamtenam muyati dahinabhuyamtenam ginhitta vama-bhuyamtenam muyati, dahinabhuyamtenam ginhitta dahinabhuyamtenam muyati. Tattha jete evamahamsu–ta natthi nam se rahu deve, je nam chamdam va suram va genhati, te evamahamsu–tattha nam ime pannarasa kasinapoggala pannatta, tam jaha–simghadae jadilae kharae khatae amjane khamjane sitale himasitale kelase arunabhe parijjae nabhasurae kavilae pimgalae rahu. Ta jaya nam ete pannarasa kasina poggala saya chamdassa va surassa va lesanubaddhacharino bhavamti taya nam manusaloyamsi manusa evam vadamti–evam khalu rahu chamdam va suram va genhati. Ta jaya nam ete pannarasa kasina poggala no saya chamdassa va surassa va lesanubaddhacharino bhavamti, no khalu taya nam manusaloyammi manussa evam vadamti–evam khalu rahu chamdam va suram va genhati–ege evamahamsu. Vayam puna evam vadamo–ta rahu nam deve mahiddhie mahajutie mahabale mahajase mahanubhave varavatthadhare varamalladhare varabhanadhari. Rahussa nam devassa nava namadhejja pannatta, tam jaha–simghadae jadilae khatae kharae daddare magare machchhe kachchhabhe kanhasappe. Ta rahussa nam devassa vimana pamchavanna pannatta, tam jaha–kinha nila lohita halidda sukkila. Atthi kalae rahuvimane khamjanavannabhe pannatte, atthi nilae rahuvimane lauyavannabhe pannatte, atthi lohie rahuvimane mamjitthavannabhe pannatte, atthi pitae rahuvimane haliddavannabhe pannatte, atthi sukkilae rahuvimane bhasarasivannabhe pannatte. Ta jaya nam rahudeve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lessam puratthimenam avaritta pachchatthimenam vitivayati taya nam puratthimenam chamde va sure va uvadamseti, pachchatthimenam rahu. Jaya nam rahudeve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam dahinenam avaritta uttarenam vitivayati taya nam dahinenam chamde va sure va uvadamseti, uttarenam rahu. Etenam abhilavenam pachchatthimenam avaritta puratthimenam vitivayati, uttarenam avaritta dahinenam vitivayati. Jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam dahinapuratthimenam avaritta uttarapachchatthimenam vitivayati taya nam dahinapuratthimenam chamde va sure va uvadamseti, uttarapachchatthimenam rahu jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam dahinapachchatthimenam avaritta uttarapuratthimenam vitivayati taya nam dahinapachchatthimenam chamde va sure va uvadamseti, uttarapuratthimenam rahu. Etenam abhilavenam uttarapachchatthimenam avaretta dahinapuratthimenam vitivayati, uttara-puratthimenam avaretta dahinapachchatthimenam vitivayati. Ta jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam avaretta vitivayati taya nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde va sure va gahite–evam khalu rahuna chamde va sure va gahite. Ta jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam avaretta pasenam vitivayati taya nam manussaloyammi manussa vadamti–evam khalu chamdena va surena va rahussa kuchchhi bhinna–evam khalu chamdena va surena va rahussa kuchchhi bhinna. Ta jaya nam rahudeve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam avaretta pachchosakkati taya nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde va sure va vamte–evam khalu rahuna chamde va sure va vamte. Ta jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam avaretta majjhammajjhenam vitivayati taya nam manussaloe manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde va sure va vaiyarie–evam khalu rahuna chamde va sure va vaiyarie. Ta jaya nam rahu deve agachchhamane va gachchhamane va viuvvamane va pariyaremane va chamdassa va surassa va lesam avarettanam ahe sapakkhim sapadidisim chitthati taya nam manussaloyamsi manussa vadamti–evam khalu rahuna chamde va sure va ghatthe–evam khalu rahuna chamde va sure va ghatthe. Ta kativihe nam rahu pannatte? Ta duvihe pannatte, tam jaha–dhuvarahu ya pavvarahu ya. Tattha nam jese dhuvarahu, se nam bahulapakkhassa padivae pannarasatibhagenam pannarasatibhagam chamdassa lesam avaremane-avaremane chitthati, tam jaha–padhamae padhamam bhagam java pannarasie pannarasamam bhagam, charame samae chamde ratte bhavai, avasese samae chamde ratte ya viratte ya bhavati. Tameva sukkapakkhe uvadamsemane-uvadamsemane chitthati, tam jaha–padhamae padhamam bhagam java pannarasie pannarasamam bhagam, charime samae chamde viratte bhavati, avasese samae chamde ratte ya viratte ya bhavai. Tattha nam jese pavvarahu, se jahannenam chhanham masanam, ukkosenam bayalisae masanam chamdassa, adatalisae samvachchharanam surassa.
Sutra Meaning Transliteration : He bhagavan ! Rahu ki kriya kaise pratipadita ki hai\? Isa vishaya mem do pratipattiyam haim – eka kahata hai ki – rahu namaka deva chamdra – surya ko grasita karata hai, dusara kahata hai ki rahu namaka koi deva vishesha hai hi nahim jo chamdra – surya ko grasita karata hai. Pahale matavala ka kathana yaha hai ki – chamdra ya surya ko grahana karata hua kabhi adhobhaga ko grahana karake adhobhaga se hi chhora deta hai, upara se grahana karake adho bhaga se chhorata hai, kabhi upara se grahana karake upara se hi chhora deta hai, dayini ora se grahana karake dayini ora se chhorata hai to kabhi bayim tarapha se grahana karake bamyi tarapha se chhora deta hai ityadi. Jo matavadi yaha kahata hai ki rahu dvara chamdra – surya grasita hote hi nahim, unake matanusara – pandraha prakara ke krishnavarnavale pudgala haim – shrimgataka, jatilaka, ksharaka, kshata, amjana, khamjana, shitala, himashitala, kailasa, arunabha, parijjaya, nabhasurya, kapila aura pimgala rahu. Jaba yaha pandraha samasta pudgala sada chamdra ya surya ki leshya ko anubaddha karake bhramana karate haim taba manushya yaha kahate hai ki rahu ne chamdra ya surya ko grasita kiya hai. Jaba yaha pudgala surya ya chamdra ki leshya ko grasita nahim karate hue bhramana karate haim taba manushya kahate haim ki surya ya chamdra dvara rahu grasita hua hai. Bhagavamta pharamate haim ki – rahudeva mahariddhivala yavat uttama abharanadhari hai, rahudeva ke nava nama hai – shrimgataka, jatilaka, kshataka, ksharaka, dardara, magara, matsya, kasyapa aura krishnasarpa. Rahudeva ka vimana pamcha varnavala hai – krishna, nila, rakta, pila aura shveta. Kala rahuvimana khamjana varna ki abhavala hai, nila rahuvimana lile tumbare ke varna ka, rakta rahuvimana mamjithavarna ki abhavala, pila vimana haladara abhavala, shveta rahuvimana tejapumja sadrisha hota hai. Jisa vakta rahudeva vimana ate – jate – vikurvana karate – paricharana karate chamdra ya surya ki leshya ko purva se avarita kara pashchimamem chhorata hai, taba purva se chamdra ya surya dikhate haim aura pashchima mem rahu dikhata hai, dakshina se avarita karake uttara mem chhorata hai, taba dakshina se chamdra – surya dikhai dete haim aura uttara mem rahu dikhai deta hai. Isi abhilapa se isi prakara pashchima, uttara, ishana, agni, nairitya aura vayavya mem bhi samajha lena chahie. Isa taraha jaba rahu chamdra ya surya ki leshya ko avarita karata hai, taba manushya kahate haim ki rahune chamdra ya surya ka grahana kiya – grahana kiya. Jaba isa taraha rahu eka parshva se chamdra ya surya ki leshya ko avarita karata hai taba loga kahate hai ki rahune chamdra ya surya ki kukshika vidarana kiya – vidarana kiya. Jaba rahu isa taraha chamdra ya surya ki leshya ko avarita karake chhora deta hai, taba loga kahate haim ki rahune chamdra ya surya ka vamana kiya – vamana kiya. Isa taraha jaba rahu chamdra ya surya leshya ko avarita karake bichobicha se nikalata hai taba loga kahate haim ki rahune chamdra ya surya ko madhya se vidarita kiya hai. Isi taraha jaba rahu charom ora se chamdra ya surya ko avarita karata hai taba loga kahate haim ki rahune chamdra – surya ko grasita kiya. Rahu do prakara ke haim – dhruvarahu aura parvarahu. Jo dhruvarahu hai, vaha krishna paksha ki pratipada se arambha karake apane pandrahave bhaga se chamdra ki pandrahava bhaga ki leshya ko eka eka dina ke krama se achchhadita karata hai aura purnima evam amavasya ke parvakala mem kramanusara chamdra ya surya ko grasita karata hai; jo parvarahu hai vaha jaghanya se chhaha masa mem aura utkrishta se bayalisa masa mem chamdra ko adatalisa masa mem surya ko grasita karata hai.