Sutra Navigation: Pragnapana ( प्रज्ञापना उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006704 | ||
Scripture Name( English ): | Pragnapana | Translated Scripture Name : | प्रज्ञापना उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
पद-१२ शरीर |
Translated Chapter : |
पद-१२ शरीर |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 404 | Category : | Upang-04 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लया य मुक्केल्लया य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालतो, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं अनंता, अनंताहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अनंता लोगा, अभवसिद्धिएहिंतो अनंतगुणा, सिद्धाणं अनंतभागो। पुढविकाइयाणं भंते! केवतिया वेउव्वियसरीरया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं नत्थि। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं जहा एतेसिं चेव ओरालिया भणिया तहेव भाणियव्वा। एवं आहारगसरीरा वि। तेया-कम्मगा जहा एतेसिं चेव ओरालिया। एवं आउक्काइया तेउक्काइया वि। वाउक्काइयाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया। वेउव्वियाणं पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखे-ज्जतिभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। मुक्केल्लया जहा पुढविकाइयाणं। आहारय-तेया-कम्मा जहा पुढविकाइयाणं तहा भाणियव्वा। वणप्फइकाइयाणं जहा पुढविकाइयाणं, नवरं–तेया-कम्मगा जहा ओहिया तेयाकम्मगा। बेइंदियाणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखेज्जतिभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ असंखेज्जाइं सेढिवग्गमूलाइं। बेइंदियाणं ओरालियसरीरेहिं बद्धेल्लगेहिं पयरो अवहीरति असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं कालओ, खेत्तओ अंगुलपयरस्स आवलियाए य असंखेज्जतिभागपलिभागेणं। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते जहा ओहिया ओरालिया मुक्केल्लया। वेउव्विया आहारगा य बद्धेल्लगा नत्थि, मुक्केल्लगा जहा ओहिया ओरालिया मुक्केल्लया। तेयाकम्मगा जहा एतेसिं चेव ओहिया ओरालिया। एवं जाव चउरिंदिया। पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं एवं चेव, नवरं–वेउव्वियसरीरएसु इमो विसेसो–पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं भंते! केव-तिया वेउव्वियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा जहा असुरकुमाराणं, नवरं–तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलपढमवग्गमूलस्स असंखेज्जतिभागो। मुक्केल्लगा तहेव। मनुस्साणं भंते! केवतिया ओरालियसरीरा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा। जहन्नपए संखेज्जा–संखेज्जाओ कोडाकोडीओ तिजमलपयस्स उवरिं चउजमलपयस्स हेट्ठा, अहव णं छट्ठो वग्गो पंचमवग्गपडुप्पण्णो, अहव णं छन्नउईछेयणगदाई रासी। उक्कोसपदे असंखेज्जा असंखे-ज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति कालओ, खेत्तओ रूवपक्खित्तेहिं मनुस्सेहिं सेढी अवहीरति, तीसे सेढीए कालखेत्तेहिं अवहारो मग्गिज्जइ–असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहिं कालओ, खेत्तओ अंगुलपढमवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुप्पन्नं। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते जहा ओरालिया ओहिया मुक्केल्लगा। वेउव्वियाणं भंते! पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य। तत्थ णं जेते बद्धेल्लगा ते णं संखेज्जा, समए-समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा संखेज्जेणं कालेणं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। तत्थ णं जेते मुक्केल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया। आहारगसरीरा जहा ओहिया। तेयाकम्मया जहा एतेसिं चेव ओरालिया। वाणमंतराणं जहा नेरइयाणं ओरालिया आहारगा य। वेउव्वियसरीरगा जहा नेरइयाणं, नवरं–तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई संखेज्जजोयणसयवग्गपलिभागो पयरस्स। मुक्केल्लया जहा ओहिया ओरालिया। तेयाकम्मया जहा एएसिं चेव वेउव्विया। जोतिसियाणं एवं चेव, नवरं–तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई बेछप्पण्णंगुलसयवग्गपलिभागो पयरस्स। वेमानियाणं एवं चेव, नवरं– तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबितियवग्गमूलं ततिय-वग्गमूलपडुप्पन्नं, अहव णं अंगुलततियवग्गमूलघणपमाणमेत्ताओ सेढीओ। सेसं तं चेव। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल से – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से वे असंख्यात लोक – प्रमाण हैं। जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः अनन्तलोकप्रमाण हैं। (द्रव्यतः वे) अभव्यों से अनन्तगुणे हैं, सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं। पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे उनको नहीं होते। जो मुक्त हैं, वे उनके औदारिकशरीरों के समान कहना। उनके आहारकशरीरों को उनके वैक्रियशरीरों के समान समझना। तैजस – कार्मणशरीरों का उन्हीं के औदारिकशरीरों के समान समझना। इसी प्रकार अप्कायिकों और तेजस्कायिकों को भी जानना। भगवन् ! वायुकायिक जीवों के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। इन औदारिक – शरीरों को पृथ्वीकायिकों के अनुसार समझना। वायुकायिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। (कालतः) यदि समय – समय में एक – एक शरीर का अपहरण किया जाए तो पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण काल में उनका पूर्णतः अपहरण होता है। किन्तु कभी अपहरण किया नहीं गया है (उनके) मुक्त शरीरों को पृथ्वीकायिकों की तरह समझना। आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों को पृथ्वीकायिकों की तरह कहना। वनस्पतिकायिकों की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों की तरह समझना। विशेष यह है कि उनके तैजस और कार्मण शरीरों का निरूपण औघिक तैजस – कार्मण – शरीरों के समान करना। भगवन् ! द्वीन्द्रियजीवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध औदारिक – शरीर हैं, वे असंख्यात हैं। कालतः – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः – असंख्यात श्रेणि – प्रमाण हैं। (वे श्रेणियाँ) प्रतर के असंख्यात भाग (प्रमाण) हैं। उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची, असंख्यात कोटाकोटी योजनप्रमाण है। (अथवा) असंख्यात श्रेणि वर्ग – मूल के समान होती है। द्वीन्द्रियों के बद्ध औदारिक शरीरों से प्रतर अपहृत किया जाता है। काल की अपेक्षा से – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणी – कालों से (अपहार होता है)। क्षेत्र की अपेक्षा से अंगुल – मात्र प्रतर और आवलिका के असंख्यात भाग प्रतिभाग से (अपहार होता है)। जो मुक्त औदारिक शरीर हैं, वे औघिक मुक्त औदारिक शरीरों के समान कहना। (उनके) वैक्रिय और आहारकशरीर बद्ध नहीं होते। मुक्त (वैक्रिय और आहारक शरीरों का कथन) औघिक के समान करना। तैजस – कार्मणशरीरों के विषय में उन्हीं के औघिक औदारिकशरीरों के समान कहना। इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियों तक कहना। पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों के विषय में इसी प्रकार कहना। उनके वैक्रिय शरीरों में विशेषता है – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं, बद्ध और मुक्त। जो बद्ध वैक्रियशरीर हैं, वे असंख्यात हैं, उनकी प्ररूपणा असुरकुमारों के समान करना। विशेष यह है कि (यहाँ) उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल का असंख्यातवाँ भाग समझना। उनके मुक्त वैक्रियशरीरों के विषय में भी उसी प्रकार समझना। भगवन् ! मनुष्य के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! दो – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। जघन्य पद में संख्यात होते हैं। संख्यात कोटाकोटी तीन यमलपद के ऊपर तथा चार यमलपद से नीचे होते हैं। अथवा पंचमवर्ग से गुणित छठे वर्ग – प्रमाण हैं; अथवा छियानवै छेदन – कदायी राशि (जितनी संख्या है।) उत्कृष्टपद में असंख्यात हैं। कालतः – (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों – अवस – र्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र से – एक रूप जिनमें प्रक्षिप्त किया गया है, ऐसे मनुष्यों से श्रेणी अपहृत होती है, उस श्रेणी की काल और क्षेत्र से अपहार की मार्गणा होती है – कालतः – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणीकालों से अपहार होता है। क्षेत्रतः – (वे) तीसरे वर्गमूल से गुणित अंगुल का प्रथम वर्गमूल ( – प्रमाण हैं।) उनमें जो मुक्त औदारिकशरीर हैं, उनके विषय में औघिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान है। मनुष्यों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के हैं – बद्ध और मुक्त। जो बद्ध हैं, वे संख्यात हैं। समय – समय में अपहृत होते – होते संख्यातकाल में अपहृत होते हैं; किन्तु अपहृत नहीं किए गए हैं। जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, वे औघिक औदारिकशरीरों के समान है। आहारक – शरीरों की प्ररूपणा औघिक आहारकशरीरों के समान समझना। तैजस – कार्मणशरीरों का निरूपण उन्हीं के औदारिकशरीरों के समान समझना। वाणव्यन्तर देवों के औदारिक और आहारक शरीरों का निरूपण नैरयिकों के समान जानना। इनके वैक्रियशरीरों का निरूपण नैरयिकों के समान है। विशेषता यह है कि उन (असंख्यात) श्रेणियों की विष्कम्भसूची कहना। प्रतर के पूरण और अपहार में वह सूची संख्यात योजनशतवर्ग – प्रतिभाग है। (इनके) मुक्त वैक्रियशरीरों का कथन औघिक औदारिकशरीरों की तरह समझना। इनके तैजस और कार्मण शरीरों को उनके ही वैक्रियशरीरों के समान समझना। ज्योतिष्क देवों की प्ररूपणा भी इसी तरह (समझना) विशेषता यह कि उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची दो सौ छप्पन अंगुल वर्गप्रमाण प्रतिभाग रूप प्रतर के पूरण और अपहार में समझना। वैमानिकों की प्ररूपणा भी इसी तरह (समझना।) विशेषता यह कि उन श्रेणियों की विष्कम्भसूची तृतीय वर्गमूल से गुणित अंगुल के द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घन के बराबर श्रेणियाँ हैं। शेष पूर्ववत् जानना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] pudhavikaiyanam bhamte! Kevatiya oraliyasariraga pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaya ya mukkellaya ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam asamkhejja, asamkhejjahim ussappini-osappinihim avahiramti kalato, khettao asamkhejja loga. Tattha nam jete mukkellaga te nam anamta, anamtahim ussappini-osappinihim avahiramti kalao, khettao anamta loga, abhavasiddhiehimto anamtaguna, siddhanam anamtabhago. Pudhavikaiyanam bhamte! Kevatiya veuvviyasariraya pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam natthi. Tattha nam jete mukkellaga te nam jaha etesim cheva oraliya bhaniya taheva bhaniyavva. Evam aharagasarira vi. Teya-kammaga jaha etesim cheva oraliya. Evam aukkaiya teukkaiya vi. Vaukkaiyanam bhamte! Kevatiya oraliyasarira pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Duviha vi jaha pudhavikaiyanam oraliya. Veuvviyanam puchchha. Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam asamkhejja, samae-samae avahiramana-avahiramana paliovamassa asamkhe-jjatibhagamettenam kalenam avahiramti, no cheva nam avahiya siya. Mukkellaya jaha pudhavikaiyanam. Aharaya-teya-kamma jaha pudhavikaiyanam taha bhaniyavva. Vanapphaikaiyanam jaha pudhavikaiyanam, navaram–teya-kammaga jaha ohiya teyakammaga. Beimdiyanam bhamte! Kevatiya oraliyasarira pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam asamkhejja, asamkhejjahim ussappini-osappinihim avahiramti kalao, khettao asamkhejjao sedhio payarassa asamkhejjatibhago, tasi nam sedhinam vikkhambhasui asamkhejjao joyanakodakodio asamkhejjaim sedhivaggamulaim. Beimdiyanam oraliyasarirehim baddhellagehim payaro avahirati asamkhejjahim ussappini-osappinihim kalao, khettao amgulapayarassa avaliyae ya asamkhejjatibhagapalibhagenam. Tattha nam jete mukkellaga te jaha ohiya oraliya mukkellaya. Veuvviya aharaga ya baddhellaga natthi, mukkellaga jaha ohiya oraliya mukkellaya. Teyakammaga jaha etesim cheva ohiya oraliya. Evam java chaurimdiya. Pamchemdiyatirikkhajoniyanam evam cheva, navaram–veuvviyasariraesu imo viseso–pamchemdiya-tirikkhajoniyanam bhamte! Keva-tiya veuvviyasarira pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam asamkhejja jaha asurakumaranam, navaram–tasi nam sedhinam vikkhambhasui amgulapadhamavaggamulassa asamkhejjatibhago. Mukkellaga taheva. Manussanam bhamte! Kevatiya oraliyasarira pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam siya samkhejja siya asamkhejja. Jahannapae samkhejja–samkhejjao kodakodio tijamalapayassa uvarim chaujamalapayassa hettha, ahava nam chhattho vaggo pamchamavaggapaduppanno, ahava nam chhannauichheyanagadai rasi. Ukkosapade asamkhejja asamkhe-jjahim ussappini-osappinihim avahiramti kalao, khettao ruvapakkhittehim manussehim sedhi avahirati, tise sedhie kalakhettehim avaharo maggijjai–asamkhejjahim ussappini-osappinihim kalao, khettao amgulapadhamavaggamulam tatiyavaggamulapaduppannam. Tattha nam jete mukkellaga te jaha oraliya ohiya mukkellaga. Veuvviyanam bhamte! Puchchha. Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–baddhellaga ya mukkellaga ya. Tattha nam jete baddhellaga te nam samkhejja, samae-samae avahiramana-avahiramana samkhejjenam kalenam avahiramti, no cheva nam avahiya siya. Tattha nam jete mukkellaga te nam jaha oraliya ohiya. Aharagasarira jaha ohiya. Teyakammaya jaha etesim cheva oraliya. Vanamamtaranam jaha neraiyanam oraliya aharaga ya. Veuvviyasariraga jaha neraiyanam, navaram–tasi nam sedhinam vikkhambhasui samkhejjajoyanasayavaggapalibhago payarassa. Mukkellaya jaha ohiya oraliya. Teyakammaya jaha eesim cheva veuvviya. Jotisiyanam evam cheva, navaram–tasi nam sedhinam vikkhambhasui bechhappannamgulasayavaggapalibhago payarassa. Vemaniyanam evam cheva, navaram– tasi nam sedhinam vikkhambhasui amgulabitiyavaggamulam tatiya-vaggamulapaduppannam, ahava nam amgulatatiyavaggamulaghanapamanamettao sedhio. Sesam tam cheva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Prithvikayikom ke kitane audarikasharira haim\? Gautama ! Do – baddha aura mukta. Jo baddha haim, ve asamkhyata haim. Kala se – (ve) asamkhyata utsarpiniyom aura avasarpiniyom se apahrita hote haim. Kshetra se ve asamkhyata loka – pramana haim. Jo mukta haim, ve ananta haim. Kalatah ananta utsarpiniyom aura avasarpiniyom se apahrita hote haim. Kshetratah anantalokapramana haim. (dravyatah ve) abhavyom se anantagune haim, siddhom ke anantavem bhaga haim. Prithvikayikom ke vaikriyasharira do prakara ke haim – baddha aura mukta. Jo baddha haim, ve unako nahim hote. Jo mukta haim, ve unake audarikasharirom ke samana kahana. Unake aharakasharirom ko unake vaikriyasharirom ke samana samajhana. Taijasa – karmanasharirom ka unhim ke audarikasharirom ke samana samajhana. Isi prakara apkayikom aura tejaskayikom ko bhi janana. Bhagavan ! Vayukayika jivom ke audarikasharira kitane haim\? Gautama ! Do – baddha aura mukta. Ina audarika – sharirom ko prithvikayikom ke anusara samajhana. Vayukayikom ke vaikriyasharira do prakara ke haim – baddha aura mukta. Jo baddha haim, ve asamkhyata haim. (kalatah) yadi samaya – samaya mem eka – eka sharira ka apaharana kiya jae to palyopama ke asamkhyatavem bhagapramana kala mem unaka purnatah apaharana hota hai. Kintu kabhi apaharana kiya nahim gaya hai (unake) mukta sharirom ko prithvikayikom ki taraha samajhana. Aharaka, taijasa aura karmana sharirom ko prithvikayikom ki taraha kahana. Vanaspatikayikom ki prarupana prithvikayikom ki taraha samajhana. Vishesha yaha hai ki unake taijasa aura karmana sharirom ka nirupana aughika taijasa – karmana – sharirom ke samana karana. Bhagavan ! Dvindriyajivom ke kitane audarikasharira haim\? Gautama ! Do – baddha aura mukta. Jo baddha audarika – sharira haim, ve asamkhyata haim. Kalatah – (ve) asamkhyata utsarpiniyom aura avasarpiniyom se apahrita hote haim. Kshetratah – asamkhyata shreni – pramana haim. (ve shreniyam) pratara ke asamkhyata bhaga (pramana) haim. Una shreniyom ki vishkambhasuchi, asamkhyata kotakoti yojanapramana hai. (athava) asamkhyata shreni varga – mula ke samana hoti hai. Dvindriyom ke baddha audarika sharirom se pratara apahrita kiya jata hai. Kala ki apeksha se – asamkhyata utsarpini – avasarpini – kalom se (apahara hota hai). Kshetra ki apeksha se amgula – matra pratara aura avalika ke asamkhyata bhaga pratibhaga se (apahara hota hai). Jo mukta audarika sharira haim, ve aughika mukta audarika sharirom ke samana kahana. (unake) vaikriya aura aharakasharira baddha nahim hote. Mukta (vaikriya aura aharaka sharirom ka kathana) aughika ke samana karana. Taijasa – karmanasharirom ke vishaya mem unhim ke aughika audarikasharirom ke samana kahana. Isi prakara yavat chaturindriyom taka kahana. Pamchendriyatiryamchayonikom ke vishaya mem isi prakara kahana. Unake vaikriya sharirom mem visheshata hai – pamchendriya – tiryamchayonikom ke vaikriyasharira do prakara ke haim, baddha aura mukta. Jo baddha vaikriyasharira haim, ve asamkhyata haim, unaki prarupana asurakumarom ke samana karana. Vishesha yaha hai ki (yaham) una shreniyom ki vishkambhasuchi amgula ke prathama vargamula ka asamkhyatavam bhaga samajhana. Unake mukta vaikriyasharirom ke vishaya mem bhi usi prakara samajhana. Bhagavan ! Manushya ke audarikasharira kitane haim\? Gautama ! Do – baddha aura mukta. Jo baddha haim, ve kadachit samkhyata aura kadachit asamkhyata hote haim. Jaghanya pada mem samkhyata hote haim. Samkhyata kotakoti tina yamalapada ke upara tatha chara yamalapada se niche hote haim. Athava pamchamavarga se gunita chhathe varga – pramana haim; athava chhiyanavai chhedana – kadayi rashi (jitani samkhya hai.) utkrishtapada mem asamkhyata haim. Kalatah – (ve) asamkhyata utsarpiniyom – avasa – rpiniyom se apahrita hote haim. Kshetra se – eka rupa jinamem prakshipta kiya gaya hai, aise manushyom se shreni apahrita hoti hai, usa shreni ki kala aura kshetra se apahara ki margana hoti hai – kalatah – asamkhyata utsarpini – avasarpinikalom se apahara hota hai. Kshetratah – (ve) tisare vargamula se gunita amgula ka prathama vargamula ( – pramana haim.) unamem jo mukta audarikasharira haim, unake vishaya mem aughika mukta audarikasharirom ke samana hai. Manushyom ke vaikriya sharira do prakara ke haim – baddha aura mukta. Jo baddha haim, ve samkhyata haim. Samaya – samaya mem apahrita hote – hote samkhyatakala mem apahrita hote haim; kintu apahrita nahim kie gae haim. Jo mukta vaikriyasharira haim, ve aughika audarikasharirom ke samana hai. Aharaka – sharirom ki prarupana aughika aharakasharirom ke samana samajhana. Taijasa – karmanasharirom ka nirupana unhim ke audarikasharirom ke samana samajhana. Vanavyantara devom ke audarika aura aharaka sharirom ka nirupana nairayikom ke samana janana. Inake vaikriyasharirom ka nirupana nairayikom ke samana hai. Visheshata yaha hai ki una (asamkhyata) shreniyom ki vishkambhasuchi kahana. Pratara ke purana aura apahara mem vaha suchi samkhyata yojanashatavarga – pratibhaga hai. (inake) mukta vaikriyasharirom ka kathana aughika audarikasharirom ki taraha samajhana. Inake taijasa aura karmana sharirom ko unake hi vaikriyasharirom ke samana samajhana. Jyotishka devom ki prarupana bhi isi taraha (samajhana) visheshata yaha ki una shreniyom ki vishkambhasuchi do sau chhappana amgula vargapramana pratibhaga rupa pratara ke purana aura apahara mem samajhana. Vaimanikom ki prarupana bhi isi taraha (samajhana.) visheshata yaha ki una shreniyom ki vishkambhasuchi tritiya vargamula se gunita amgula ke dvitiya vargamula pramana hai athava amgula ke tritiya vargamula ke ghana ke barabara shreniyam haim. Shesha purvavat janana. |