Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006165 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सप्तविध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
सप्तविध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 365 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तत्थ णं जेते एवमाहंसु सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा ते एवमाहंसु, तं जहा–नेरइया तिरिक्खा तिरिक्खजोणिणीओ मनुस्सा मनुस्सीओ देवा देवीओ। नेरइयस्स ठितो जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। तिरिक्खजोणियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिअवमाइं। एवं तिरिक्खजोणिणीएवि, मनुस्साणवि, मनुस्सीणवि। देवाणं ठिती तहा नेरइयाणं। देवीणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पणपन्नपलिओवमाणि। नेरइयदेवदेवीणं जच्चेव ठिती सच्चेव संचिट्ठणा। तिरिक्खजोणिएणं भंते! तिरिक्खजोणिएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। तिरिक्खजोणिणीणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडि-पुहत्तमब्भहियाइं। एवं मनुस्सस्स मनुस्सीएवि। नेरइयस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणस्सतिकालो। एवं सव्वाणं तिरिक्खजोणियवज्जाणं। तिरिक्खजोणियाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सागरोवमसतपुहत्तं सातिरेगं। अप्पाबहुयं–सव्वत्थोवा मणुस्सीओ, मनुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्जगुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ, तिरिक्ख-जोणिया अनंतगुणा। सेत्तं सत्तविहा संसारसमावन्नगा जीवा। | ||
Sutra Meaning : | जो ऐसा कहते हैं कि संसारसमापन्नक जीव सात प्रकार के हैं, उनके अनुसार नैरयिक, तिर्यंच, तिरश्ची, मनुष्य, मानुषी, देव और देवी ये सात भेद हैं। नैरयिक की स्थिति जघन्य १०००० वर्ष और उत्कृष्ट तेंतीस सागरोपम की है। तिर्यक्योनिक की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट तीन पल्योपम है। तिर्यक्स्त्री, मनुष्य और मनुष्यस्त्री की भी यही स्थिति है। देवों की स्थिति नैरयिक की तरह जानना और देवियों की स्थिति जघन्य १०००० और उत्कृष्ट ५५ पल्योपम है। नैरयिक और देवों की तथा देवियों की जो भवस्थिति है, वही उनकी संचिट्ठणा है। तिर्यंचों की जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट अनन्तकाल है। तिर्यक्स्त्रियों की संचिट्ठणा जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम है। इसी प्रकार मनुष्यों और मनुष्यस्त्रियों की भी संचिट्ठणा जानना। नैरयिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। तिर्यक्योनिकों को छोड़कर सबका अन्तर उक्त प्रमाण ही कहना चाहिए। तिर्यक्योनिकों का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट साधिक सागरोपम शत – पृथक्त्व है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tattha nam jete evamahamsu sattaviha samsarasamavannaga jiva te evamahamsu, tam jaha–neraiya tirikkha tirikkhajoninio manussa manussio deva devio. Neraiyassa thito jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim. Tirikkhajoniyassa jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliavamaim. Evam tirikkhajoninievi, manussanavi, manussinavi. Devanam thiti taha neraiyanam. Devinam jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam panapannapaliovamani. Neraiyadevadevinam jachcheva thiti sachcheva samchitthana. Tirikkhajonienam bhamte! Tirikkhajonietti kalao kevachiram hoi? Goyama! Jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Tirikkhajonininam jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam tinni paliovamaim puvvakodi-puhattamabbhahiyaim. Evam manussassa manussievi. Neraiyassa amtaram jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vanassatikalo. Evam savvanam tirikkhajoniyavajjanam. Tirikkhajoniyanam jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam sagarovamasatapuhattam satiregam. Appabahuyam–savvatthova manussio, manussa asamkhejjaguna, neraiya asamkhejjaguna, tirikkhajoninio asamkhejjagunao, deva asamkhejjaguna, devio samkhejjagunao, tirikkha-joniya anamtaguna. Settam sattaviha samsarasamavannaga jiva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jo aisa kahate haim ki samsarasamapannaka jiva sata prakara ke haim, unake anusara nairayika, tiryamcha, tirashchi, manushya, manushi, deva aura devi ye sata bheda haim. Nairayika ki sthiti jaghanya 10000 varsha aura utkrishta temtisa sagaropama ki hai. Tiryakyonika ki jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta tina palyopama hai. Tiryakstri, manushya aura manushyastri ki bhi yahi sthiti hai. Devom ki sthiti nairayika ki taraha janana aura deviyom ki sthiti jaghanya 10000 aura utkrishta 55 palyopama hai. Nairayika aura devom ki tatha deviyom ki jo bhavasthiti hai, vahi unaki samchitthana hai. Tiryamchom ki jaghanya antarmuhurtta, utkrishta anantakala hai. Tiryakstriyom ki samchitthana jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta purvakotiprithaktva adhika tina palyopama hai. Isi prakara manushyom aura manushyastriyom ki bhi samchitthana janana. Nairayikom ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta vanaspatikala hai. Tiryakyonikom ko chhorakara sabaka antara ukta pramana hi kahana chahie. Tiryakyonikom ka antara jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta sadhika sagaropama shata – prithaktva hai. |