Sutra Navigation: Jivajivabhigam ( जीवाभिगम उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1006132 | ||
Scripture Name( English ): | Jivajivabhigam | Translated Scripture Name : | जीवाभिगम उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Translated Chapter : |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
Section : | वैमानिक उद्देशक-२ | Translated Section : | वैमानिक उद्देशक-२ |
Sutra Number : | 332 | Category : | Upang-03 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! कनगत्तयरत्ताभा वण्णेणं पन्नत्ता। सणंकुमारमाहिंदेसु णं पउमपम्हगोरा वण्णेणं पन्नत्ता। एवं बंभेवि। लंतए णं भंते! गोयमा! सुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। एवं जाव गेवेज्जा। अनुत्तरोववातिया परमसुक्किला वण्णेणं पन्नत्ता। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? जहा विमानाणं गंधो जाव अनुत्तरोववाइयाणं। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं सरीरगा केरिसया फासेणं पन्नत्ता? गोयमा! थिरमउणिद्धसुकुमालफासेणं पन्नत्ता। एवं जाव अनुत्तरोववातियाणं। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं केरिसया पोग्गला उस्सासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुण्णा मणामा ते तेसिं उस्सासत्ताए परिणमंति जाव अनुत्तरो-ववातियाणं। एवं आहारत्ताए वि। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवाणं कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एगा तेउलेस्सा पन्नत्ता। सणंकुमारमाहिंदेसु एगा पम्हलेस्सा। एवं बंभलोए वि। लंतए एगा सुक्कलेस्सा जाव गेवेज्जा ताव सुक्कलेस्सा। अनुत्तरे एगा परमसुक्कलेस्सा। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा किं सम्मद्दिट्ठी? मिच्छादिट्ठी? सम्मामिच्छादिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छादिट्ठीवि सम्मामिच्छादिट्ठीवि। एवं जाव गेवेज्जा। अनुत्तरोववातिया सम्मद्दिट्ठी, नो मिच्छादिट्ठी नो सम्मामिच्छादिट्ठी। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा किं नाणी? अन्नाणी? नाणीवि अन्नाणीवि जे नाणी ते नियमा तिन्नाणी, तं जहा–आभिनिबोहियनाणी सुयनाणी अवधिनाणी। जे अन्नाणी ते नियमा तिअन्नाणी, तं जहा–मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी विभंगनाणी य। एवं जाव गेवेज्जा। अनुत्तरोववातिया नाणी, नो अन्नाणी नियमा तिन्नाणी। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! मनजोगीवि वइजोगीवि कायजोगीवि जाव अनुत्तरा। सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! दुविहावि जाव अनुत्तरा। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! सौधर्म – ईशान के देवों के शरीर का वर्ण कैसा है ? गौतम ! तपे हुए स्वर्ण के समान लाल आभा – युक्त। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के देवों का वर्ण पद्म, कमल के पराग के समान गौर है। ब्रह्मलोक के देव गीले महुए के वर्ण वाले (सफेद) हैं। इसी प्रकार ग्रैवेयक देवों तक सफेद वर्ण कहना। अनुत्तरोपपातिक देवों के शरीर का वर्ण परमशुक्ल है। भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्पों के देवों के शरीर की गंध कैसी है ? गौतम ! कोष्ठपुट आदि सुगंधित द्रव्यों की सुगंध भी अधिक इष्ट, कान्त यावत् मनाम उनके शरीर की गंध होती है। अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त ऐसा ही कहना। सौधर्म – ईशान कल्पों के देवों के शरीर का स्पर्श मृदु, स्निग्ध और मुलायम छविवाला है। इसी प्रकार अनु – त्तरोपपातिक देवों पर्यन्त कहना। सौधर्म – ईशान देवों के श्वास के रूप में इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, पुद्गल परिणत होते हैं। यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों तक कहना तथा यही बात उनके आहार रूप में परिणत होने वाले पुद्गलों में जानना। यही कथन अनुत्तरोपपातिक देवों पर्यन्त समझना। सौधर्म – ईशान देवलोक के देवों के मात्र एक तेजोलेश्या होती है। सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक में पद्मलेश्या होती है। शेष सब में केवल शुक्ललेश्या होती है अनुत्तरोपपातिक देवों में परमशुक्ललेश्या होती है। भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्मिथ्यादृष्टि हैं ? गौतम ! तीनों प्रकार के हैं। ग्रैवेयक विमानों तक के देव तीनों दृष्टिवाले हैं। अनुत्तर विमानों के देव सम्यग्दृष्टि ही होते हैं। भगवन्! सौधर्म – ईशान कल्प के देव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम ! दोनों प्रकार के हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञानवाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे नियम से तीन अज्ञानवाले हैं। यह कथन ग्रैवेयकविमान तक करना। अनुत्तरो – पपातिक देव ज्ञानी ही हैं। उनमें तीन ज्ञान नियमतः होती ही हैं। इसी प्रकार उन देवों में तीन योग और दो उपयोग भी कहना। सौधर्म – ईशान से अनुत्तरोपपातिक पर्यन्त सब देवों में तीन योग और दो उपयोग पाये जाते हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] sohammisanesu nam bhamte! Kappesu devanam sariraga kerisaya vannenam pannatta? Goyama! Kanagattayarattabha vannenam pannatta. Sanamkumaramahimdesu nam paumapamhagora vannenam pannatta. Evam bambhevi. Lamtae nam bhamte! Goyama! Sukkila vannenam pannatta. Evam java gevejja. Anuttarovavatiya paramasukkila vannenam pannatta. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu devanam sariraga kerisaya gamdhenam pannatta? Jaha vimananam gamdho java anuttarovavaiyanam. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu devanam sariraga kerisaya phasenam pannatta? Goyama! Thiramauniddhasukumalaphasenam pannatta. Evam java anuttarovavatiyanam. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu devanam kerisaya poggala ussasattae parinamamti? Goyama! Je poggala ittha kamta piya subha manunna manama te tesim ussasattae parinamamti java anuttaro-vavatiyanam. Evam aharattae vi. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu devanam kati lessao pannattao? Goyama! Ega teulessa pannatta. Sanamkumaramahimdesu ega pamhalessa. Evam bambhaloe vi. Lamtae ega sukkalessa java gevejja tava sukkalessa. Anuttare ega paramasukkalessa. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu deva kim sammadditthi? Michchhaditthi? Sammamichchhaditthi? Goyama! Sammaditthivi michchhaditthivi sammamichchhaditthivi. Evam java gevejja. Anuttarovavatiya sammadditthi, no michchhaditthi no sammamichchhaditthi. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu deva kim nani? Annani? Nanivi annanivi je nani te niyama tinnani, tam jaha–abhinibohiyanani suyanani avadhinani. Je annani te niyama tiannani, tam jaha–matiannani suyaannani vibhamganani ya. Evam java gevejja. Anuttarovavatiya nani, no annani niyama tinnani. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu deva kim manajogi? Vaijogi? Kayajogi? Goyama! Manajogivi vaijogivi kayajogivi java anuttara. Sohammisanesu nam bhamte! Kappesu deva kim sagarovautta? Anagarovautta? Goyama! Duvihavi java anuttara. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Saudharma – ishana ke devom ke sharira ka varna kaisa hai\? Gautama ! Tape hue svarna ke samana lala abha – yukta. Sanatkumara aura mahendra kalpa ke devom ka varna padma, kamala ke paraga ke samana gaura hai. Brahmaloka ke deva gile mahue ke varna vale (sapheda) haim. Isi prakara graiveyaka devom taka sapheda varna kahana. Anuttaropapatika devom ke sharira ka varna paramashukla hai. Bhagavan ! Saudharma – ishana kalpom ke devom ke sharira ki gamdha kaisi hai\? Gautama ! Koshthaputa adi sugamdhita dravyom ki sugamdha bhi adhika ishta, kanta yavat manama unake sharira ki gamdha hoti hai. Anuttaropapatika devom paryanta aisa hi kahana. Saudharma – ishana kalpom ke devom ke sharira ka sparsha mridu, snigdha aura mulayama chhavivala hai. Isi prakara anu – ttaropapatika devom paryanta kahana. Saudharma – ishana devom ke shvasa ke rupa mem ishta, kanta, priya, manojnya, pudgala parinata hote haim. Yahi kathana anuttaropapatika devom taka kahana tatha yahi bata unake ahara rupa mem parinata hone vale pudgalom mem janana. Yahi kathana anuttaropapatika devom paryanta samajhana. Saudharma – ishana devaloka ke devom ke matra eka tejoleshya hoti hai. Sanatkumara, mahendra aura brahmaloka mem padmaleshya hoti hai. Shesha saba mem kevala shuklaleshya hoti hai anuttaropapatika devom mem paramashuklaleshya hoti hai. Bhagavan ! Saudharma – ishana kalpa ke deva samyagdrishti haim, mithyadrishti haim ya samyagmithyadrishti haim\? Gautama ! Tinom prakara ke haim. Graiveyaka vimanom taka ke deva tinom drishtivale haim. Anuttara vimanom ke deva samyagdrishti hi hote haim. Bhagavan! Saudharma – ishana kalpa ke deva jnyani haim ya ajnyani\? Gautama ! Donom prakara ke haim. Jo jnyani haim ve niyama se tina jnyanavale haim aura jo ajnyani haim ve niyama se tina ajnyanavale haim. Yaha kathana graiveyakavimana taka karana. Anuttaro – papatika deva jnyani hi haim. Unamem tina jnyana niyamatah hoti hi haim. Isi prakara una devom mem tina yoga aura do upayoga bhi kahana. Saudharma – ishana se anuttaropapatika paryanta saba devom mem tina yoga aura do upayoga paye jate haim. |