Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005782 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Translated Chapter : |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 82 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति? गोयमा! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाइं वित्थिण्ण विपुल भवन सयनासन जाण वाहनाइं बहुधन बहुजातरूव रययाइं आओग पओग संपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभू-याइं बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ। तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ। तए णं तस्स दारयस्स नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वितिक्कं-ताणं सुकुमालपाणिपायं अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरं लक्खण वंजण गुणोववेयं मानुम्मानपमाण- पडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगं ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूवं दारयं पयाहिइ। तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठितिवडियं करेस्संति ततिय दिवसे चंदसूरदंसणगं करेस्संति छट्ठे दिवसे जागरियं जागरिस्संति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते संपत्ते बारसमे दिवसे निव्वत्ते असुइजायकम्मकरणे चोक्खे संमज्जिओवलित्ते विउलं असन पान खाइम साइमं उवक्खडावेस्संति, मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परिजनं आमंतेत्ता तओ पच्छा ण्हाया कय-बलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिता अप्पमहग्घा-भरणालंकिया भोयणमंडवंसि सुहासणवरगया तेणं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परिजनेन सद्धिं विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणा वीसा एमाणा परिभुंजेमाणा परिभाएमाणा एवं च णं विहरिस्संति। जिमियभुत्तुत्तरागया वि य णं समाणा आयंता चोक्खा परमसुइभूया तं मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परिजनं विउलेणं वत्थ गंध मल्लालंकारेणं सक्कारेस्संति सम्माणिस्संति, तस्सेव मित्त नाइ नियग सयण संबंधि परिजनस्स पुरतो एवं वइस्संति– जम्हा णं देवानुप्पिया! इमंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि धम्मे दढा पइण्णा जाया, तं होउ णं अम्हं एयस्स दारयस्स दढपइण्णे नामे णं। ... तए णं तस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं ठितिवडियं च चंदसूरदरिसणं च जागरियं च नामधिज्जकरणं च पजेमणगं च पचंकमणगं च कण्णवेहणं च संवच्छरपडिलेहणगं च चूलोवणयं च अण्णाणि य बहूणि गब्भाहाणजम्मणाइयाइं महया इड्ढी-सक्कार-समुदएणं करिस्संति। | ||
Sutra Meaning : | गौतम – भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुल बड़े कुटुम्ब परिवार वाले, बहुत से भवनों, शय्याओं, आसनों और यानवाहनों के स्वामी, बहुत से धन, सोने – चाँदी के अधिपति, अर्थोपार्जन के व्यापार – व्यवसाय में प्रवृत्त एवं दीनजनों को जिनके यहाँ से प्रचुर मात्रा में भोजनपान प्राप्त होता है, सेवा करने के लिए बहुत से दास – दासी रहते हैं, बहुसंख्यक गाय, भैंस, भेड़ आदि पशुधन है और जिनका बहुत से लोगों द्वारा भी पराभव नहीं किया जा सकता, ऐसे प्रसिद्ध कुलों में से किसी एक कुल में वह पुत्र रूप से उत्पन्न होगा। तत्पश्चात् उस दारक के गर्भ में आने पर माता – पिता की धर्ममें दृढ़ प्रतिज्ञा – श्रद्धा होगी। बाद नौ मास और साढ़े सात रात्रि – दिन बीतने पर दारक की माता सुकुमार हाथ – पैर वाले शुभ लक्षणों एवं परिपूर्ण पाँच इन्द्रियों और शरीरवाले, सामुद्रिक शास्त्रमें बताये लक्षणों, तिल आदि व्यंजनों और गुणों से युक्त, माप, तोल और नाप में बराबर, सुजात, सर्वांगसुन्दर, चन्द्रमा के समान सौम्य आकार वाले, कमनीय, प्रियदर्शन एवं सरूपवान् पुत्र को जन्म देगी तब उस दारक के माता – पिता प्रथम दिवस स्थितिपतिता करेंगे। तीसरे दिन चन्द्र और सूर्यदर्शन सम्बन्धी क्रियाएं करेंगे। छठे दिन रात्रिजागरण करेंगे। बारहवें दिन जातकर्म सम्बन्धी अशुचि की निवृत्ति के लिए घर झाड़ – बुहार और लीप – पोत कर शुद्ध करेंगे। घर की शुद्धि करने के बाद अशन – पान – खाद्य – स्वाद्य रूप विपुल भोजन – सामग्री बनवायेंगे और मित्रजनों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजन – सम्बन्धियों एवं दास – दासी आदि परिजनों, परिचितों को आमंत्रित करेंगे। इसके बाद स्नान, बलिकर्म, तिलक आदि कौतुक – मंगल – प्रायश्चित्त यावत् आभूषणों से शरीर को अलंकृत करके भोजनमंडप में श्रेष्ठ आसनों पर सुखपूर्वक बैठकर मित्रों यावत् परिजनों के साथ विपुल अशनादि रूप भोजन का आस्वादन, विशेष रूप में आस्वादन करेंगे, उसका परिभोग करेंगे, एक दूसरे को परोसेंगे और भोजन करने के पश्चात् आचमन – कुल्ला आदि करके स्वच्छ, परम शूचिभूत होकर उन मित्रों, ज्ञातिजनों यावत् परिजनों का विपुल वस्त्र, गंध, माला, अलंकारों आदि से सत्कार – सम्मान करेंगे और फिर उन्हीं मित्रों यावत् परिजनों से कहेंगे – देवानुप्रियो ! जब से यह दारक माता की कुक्षि में गर्भ रूप से आया था तभी से हमारी धर्म में दृढ़ प्रतिज्ञा – श्रद्धा हुई है, इसलिए हमारे इस बालक का ‘दृढ़प्रतिज्ञ’ यह नाम हो। इस तरह उस दारक के माता – पिता ‘दृढ़प्रतिज्ञ’ यह नामकरण करेंगे। इस प्रकार से उसके माता – पिता अनुक्रम से – स्थितिपतिता, चन्द्र – सूर्यदर्शन, धर्म जागरण, नामकरण, अन्नप्राशन, प्रतिवर्धापन, प्रचंक्रमण, कर्णवेधन, संवत्सर प्रतिलेख और चूलोपनयन आदि तथा अन्य दूसरे भी बहुत से गर्भाधान, जन्मादि सम्बन्धी उत्सव भव्य समारोह के साथ प्रभावक रूप में करेंगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] suriyabhassa nam bhamte! Devassa kevatiyam kalam thiti pannatta? Goyama! Chattari paliovamaim thiti pannatta. Se nam suriyabhe deve tao devalogao aukkhaenam bhavakkhaenam thiikkhaenam anamtaram chayam chaitta kahim gamihiti? Goyama! Mahavidehe vase jani imani kulani bhavamti–addhaim dittaim viulaim vitthinna vipula bhavana sayanasana jana vahanaim bahudhana bahujataruva rayayaim aoga paoga sampauttaim vichchhaddiyapaurabhattapanaim bahudasi dasa go mahisa gavelagappabhu-yaim bahujanassa aparibhuyaim tattha annayaresu kulesu pumattae pachchaissai. Tae nam tamsi daragamsi gabbhagayamsi cheva samanamsi ammapiunam dhamme dadha painna bhavissai. Tae nam tassa darayassa navanham masanam bahupadipunnanam addhatthamana ya raimdiyanam vitikkam-tanam sukumalapanipayam ahinapadipunnapamchimdiyasariram lakkhana vamjana gunovaveyam manummanapamana- padipunnasujayasavvamgasumdaramgam sasisomakaram kamtam piyadamsanam suruvam darayam payahii. Tae nam tassa daragassa ammapiyaro padhame divase thitivadiyam karessamti tatiya divase chamdasuradamsanagam karessamti chhatthe divase jagariyam jagarissamti, ekkarasame divase viikkamte sampatte barasame divase nivvatte asuijayakammakarane chokkhe sammajjiovalitte viulam asana pana khaima saimam uvakkhadavessamti, mitta nai niyaga sayana sambamdhi parijanam amamtetta tao pachchha nhaya kaya-balikamma kayakouyamamgalapayachchhitta suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihita appamahaggha-bharanalamkiya bhoyanamamdavamsi suhasanavaragaya tenam mitta nai niyaga sayana sambamdhi parijanena saddhim viulam asanam panam khaimam saimam asaemana visa emana paribhumjemana paribhaemana evam cha nam viharissamti. Jimiyabhuttuttaragaya vi ya nam samana ayamta chokkha paramasuibhuya tam mitta nai niyaga sayana sambamdhi parijanam viulenam vattha gamdha mallalamkarenam sakkaressamti sammanissamti, tasseva mitta nai niyaga sayana sambamdhi parijanassa purato evam vaissamti– jamha nam devanuppiya! Imamsi daragamsi gabbhagayamsi cheva samanamsi dhamme dadha painna jaya, tam hou nam amham eyassa darayassa dadhapainne name nam.. Tae nam tassa ammapiyaro anupuvvenam thitivadiyam cha chamdasuradarisanam cha jagariyam cha namadhijjakaranam cha pajemanagam cha pachamkamanagam cha kannavehanam cha samvachchharapadilehanagam cha chulovanayam cha annani ya bahuni gabbhahanajammanaiyaim mahaya iddhi-sakkara-samudaenam karissamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Gautama – bhadanta ! Usa suryabhadeva ki ayushyamaryada kitane kala ki hai\? Gautama ! Chara palyopama ki hai. Bhagavan ! Ayushya purna hone, bhavakshaya aura sthitikshaya hone ke anantara suryabhadeva usa devaloka se chyavana karake kaham jaega\? Kaham utpanna hoga\? Gautama ! Mahavideha kshetra mem jo kula adhya, dipta, vipula bare kutumba parivara vale, bahuta se bhavanom, shayyaom, asanom aura yanavahanom ke svami, bahuta se dhana, sone – chamdi ke adhipati, arthoparjana ke vyapara – vyavasaya mem pravritta evam dinajanom ko jinake yaham se prachura matra mem bhojanapana prapta hota hai, seva karane ke lie bahuta se dasa – dasi rahate haim, bahusamkhyaka gaya, bhaimsa, bhera adi pashudhana hai aura jinaka bahuta se logom dvara bhi parabhava nahim kiya ja sakata, aise prasiddha kulom mem se kisi eka kula mem vaha putra rupa se utpanna hoga. Tatpashchat usa daraka ke garbha mem ane para mata – pita ki dharmamem drirha pratijnya – shraddha hogi. Bada nau masa aura sarhe sata ratri – dina bitane para daraka ki mata sukumara hatha – paira vale shubha lakshanom evam paripurna pamcha indriyom aura shariravale, samudrika shastramem bataye lakshanom, tila adi vyamjanom aura gunom se yukta, mapa, tola aura napa mem barabara, sujata, sarvamgasundara, chandrama ke samana saumya akara vale, kamaniya, priyadarshana evam sarupavan putra ko janma degi Taba usa daraka ke mata – pita prathama divasa sthitipatita karemge. Tisare dina chandra aura suryadarshana sambandhi kriyaem karemge. Chhathe dina ratrijagarana karemge. Barahavem dina jatakarma sambandhi ashuchi ki nivritti ke lie ghara jhara – buhara aura lipa – pota kara shuddha karemge. Ghara ki shuddhi karane ke bada ashana – pana – khadya – svadya rupa vipula bhojana – samagri banavayemge aura mitrajanom, jnyatijanom, nijajanom, svajana – sambandhiyom evam dasa – dasi adi parijanom, parichitom ko amamtrita karemge. Isake bada snana, balikarma, tilaka adi kautuka – mamgala – prayashchitta yavat abhushanom se sharira ko alamkrita karake bhojanamamdapa mem shreshtha asanom para sukhapurvaka baithakara mitrom yavat parijanom ke satha vipula ashanadi rupa bhojana ka asvadana, vishesha rupa mem asvadana karemge, usaka paribhoga karemge, eka dusare ko parosemge aura bhojana karane ke pashchat achamana – kulla adi karake svachchha, parama shuchibhuta hokara una mitrom, jnyatijanom yavat parijanom ka vipula vastra, gamdha, mala, alamkarom adi se satkara – sammana karemge aura phira unhim mitrom yavat parijanom se kahemge – Devanupriyo ! Jaba se yaha daraka mata ki kukshi mem garbha rupa se aya tha tabhi se hamari dharma mem drirha pratijnya – shraddha hui hai, isalie hamare isa balaka ka ‘drirhapratijnya’ yaha nama ho. Isa taraha usa daraka ke mata – pita ‘drirhapratijnya’ yaha namakarana karemge. Isa prakara se usake mata – pita anukrama se – sthitipatita, chandra – suryadarshana, dharma jagarana, namakarana, annaprashana, prativardhapana, prachamkramana, karnavedhana, samvatsara pratilekha aura chulopanayana adi tatha anya dusare bhi bahuta se garbhadhana, janmadi sambandhi utsava bhavya samaroha ke satha prabhavaka rupa mem karemge. |