Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005734 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Translated Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 34 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेण सव्वओ समंता संपरिखित्ते। सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाइं विक्खंभेणं, उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं। तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईयो सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडगा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूव-संघाडगा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लुयाओ रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामए छायणे। सा णं पउमवरवेइया एगमेगेणं हेमजालेणं एगमेगेणं गवक्खजालेणं एगमेगेणं खिंखिणी-जालेणं एगमेगेणं घंटाजालेणं एगमेगेणं मुत्ताजालेणं एगमेगेणं मणिजालेणं एगमेगेणं कनगजालेणं एगमेगेणं रयणजालेणं एगमेगेणं पउमजालेणं सव्वतो समंता संपरिखित्ता। ते णं जाला तवणिज्ज-लंबूसगा जाव उवसोभेमाणा-उवसोभेमाणा चिट्ठंति। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयसंघाडा गयसंघाडा नरसंघाडा किन्नरसंघाडा किंपुरिस-संघाडा महोरगसंघाडा गंधव्वसंघाडा उसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयपंतीओ। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे हयवीहीओ। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहूइं हयमिहुण्णाइं। तीसे णं पउमवरवेइयाए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहवे पउमलयाओ। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पउमवरवेइया पउमवरवेइया? गोयमा! पउमवरवेइयाए णं तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं वेइयासु वेइयाबाहासु य वेइयफलएसु य वेइयपुडंतरेसु य, खंभेएसु खंभबाहासु खंभ-सीसेसु खंभपुडंतरेसु, सूईसु सूईमुखेसु सूईफलएसु सूईपुडंतरेसु, पक्खेसु पक्खबाहासु पक्खपेरंतेसु पक्खपुडंतरेसु बहुयाइं उप्पलाइं पउमाइं कुमुयाइं नलिनाइं सुभगाइं सोगंधियाइं पोंडरीयाइं महा-पोंडरीयाइं सयवत्ताइं सहस्सवत्ताइं सव्वरयणामयाइं अच्छाइं पडिरूवाइं महया वासिक्कछत्त-समाणाइं पन्नत्ताइं समणाउसो! से एएणं अट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पउमवरवेइया पउमवरवेइया। पउमवरवेइया णं भंते! किं सासया असासया? गोयमा! सिय सासया सिय असासया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय सासया सिय असासया? गोयमा! दव्वट्ठयाए सासया, वण्णपज्जेवेहिं गंधपज्जवेहिं रसपज्जवेहिं फासपज्जवेहिं असासया। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–सिय सासया सिय असासया। पउमवरवेइया णं भंते! कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! न कयाति नासि, न कयाति नत्थि, न कयाति न भविस्सइ, भुविं च भवइ य भविस्सइ य, धुवा नियया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया निच्चा पउमवरवेइया। सा णं पउमवरवेइया एगेणं वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता। से णं वनसंडे देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, उवयारियालेणसमे परिक्खेवेणं। वनसंडवण्णओ भाणियव्वो जाव विहरंति। तस्स णं उवयारिया लेणस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवानपडिरूवगा पन्नत्ता वण्णओ तोरणा झया छत्ताइच्छत्ता। तस्स णं उवयारिया लयणस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते जाव मणीणं फासो। | ||
Sutra Meaning : | वह उपकारिकालयन सभी दिशा – विदिशाओं में एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है। वह पद्मवरवेदिका ऊंचाई में आधे योजन ऊंची, पाँच सौ धनुष चौड़ी और उपकारिकालयन जितनी इसकी परिधि है। जैसे कि वज्ररत्नमय इसकी नेम है। रिष्टरत्नमय प्रतिष्ठान है। वैडूर्यरत्नमय स्तम्भ है। स्वर्ण और रजतमय फलक है। लोहिताक्ष रत्नों से बनी इसकी सूचियाँ हैं। विविध मणिरत्नमय इसका कलेवर है तथा विविध प्रकार की मणियों से बना हुआ है। अनेक प्रकार के मणि – रत्नों से इस पर चित्र बने हैं। नानामणि – रत्नों से इसमें रूपक संघात, चित्रों आदि के समूह बने हैं। अंक रत्नमय इसके पक्ष और पक्षबाहा हैं। ज्योतिरस रत्नमय इसके वंश, वला और वंशकवेल्लुक है। रजतमय इनकी पट्टियाँ हैं। स्वर्णमयी अवघाटनियाँ और वज्ररत्नमयी उपरिप्रोंछनी हैं। सर्वरत्नमय आच्छादन है। वह पद्मवरवेदिका सभी दिशा – विदिशाओं में चारों ओर से एक – एक हेमजाल से जाल से, किंकणी घंटिका, मोती, मणि, कनक रत्न और पद्म की लम्बी – लम्बी मालाओं से परिवेष्टित है। ये सभी मालाएं सोने के लंबूसकों आदि से अलंकृत हैं। उस पद्मवरवेदिका के यथायोग्य उन – उन स्थानों पर अश्वसंघात यावत् वृषभयुगल सुशोभित हो रहे हैं। ये सभी सर्वात्मना रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् प्रतिरूप, प्रासादिक हैं यावत् इसी प्रकार इनकी वीथियाँ, पंक्तियाँ, मिथुन एवं लताएं हैं। हे भदन्त ! किस कारण कहा जाता है कि यह पद्मवरवेदिका है, पद्मवरवेदिका है ? भगवान् ने कहा – हे गौतम ! पद्मवरवेदिका के आस – पास की भूमि में, वेदिका के फलकों में, वेदिकायुगल के अन्तरालों में, स्तम्भों, स्तम्भों की बाजुओं, स्तम्भों के शिखरों, स्तम्भयुगल के अन्तरालों, कीलियों, कीलियों के ऊपरी भागों, कीलियों से जुड़े हुए फलकों, कीलियों के अन्तरालों, पक्षों, पक्षों के प्रान्त भागों और उनके अन्तरालों आदि – आदि में वर्षाकाल के बरसते मेघों से बचाव करने के लिए छत्राकार – जैसे अनेक प्रकार के बड़े – बड़े विकसित, सर्वरत्नमय स्वच्छ, निर्मल, अतीव सुन्दर, उत्पल, पद्म, कुमुद, नलिन, सुभग, सौगंधिक पुडरीक, महापुंडरीक, शतपत्र और सहस्रपत्र कमल शोभित हो रहे हैं। इसीलिए हे आयुष्मन् श्रमण गौतम ! इस पद्मवरवेदिका को पद्मवरवेदिका कहते हैं। हे भदन्त ! वह पद्मवरवेदिका शाश्वत है अथवा अशाश्वत ? हे गौतम ! शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। भगवन् ! किस कारण आप ऐसा कहते हैं ? हे गौतम ! द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा वह शाश्वत है परन्तु वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत हैं। इसी कारण हे गौतम ! यह कहा है। हे भदन्त ! काल की अपेक्षा वह पद्मवरवेदिका कितने काल पर्यन्त रहेगी ? हे गौतम ! वह पद्मवरवेदिका पहले कभी नहीं थी, ऐसा नहीं है, अभी नहीं है, ऐसा भी नहीं है और आगे नहीं रहेगी ऐसा भी नहीं है, किन्तु पहले भी थी, अब भी है और आगे भी रहेगी। इस प्रकार वह पद्मवरवेदिका ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। वह पद्मवरवेदिका चारों ओर एक वनखण्ड से परिवेष्टित हैं। उस वनखण्ड का चक्रवालविष्कम्भ कुछ कम दो योजन प्रमाण है तथा उपकारिकालयन की परिधि जितनी उसकी परिधि है। वहाँ देव – देवियाँ विचरण करती हैं, यहाँ तक वनखण्ड का वर्णन पूर्ववत् कर लेना। उस उपकारिकालयन की चारों दिशाओं में चार त्रिसोपानप्रति – रूपक बने हैं। यान विमान के सोपानों के समान इन त्रिसोपान – प्रतिरूपकों का वर्णन भी तोरणों, ध्वजाओं, छत्रातिछत्रों आदि पर्यन्त यहाँ करना। उन उपकारिकालयन के ऊपर अतिसम, रमणीय भूमिभाग है। यानविमान – वत् मणियों के स्पर्शपर्यन्त इस भूमिभाग का वर्णन यहाँ करना। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] se nam egae paumavaraveiyae egena ya vanasamdena savvao samamta samparikhitte. Sa nam paumavaraveiya addhajoyanam uddham uchchattenam, pamcha dhanusayaim vikkhambhenam, uvakariyalenasama parikkhevenam. Tise nam paumavaraveiyae imeyaruve vannavase pannatte, tam jaha–vairamaya nema ritthamaya paitthana veruliyamaya khambha suvannaruppamaya phalaga lohitakkhamaiyo suio vairamaya samdhi nanamanimaya kalevara nanamanimaya kalevarasamghadaga nanamanimaya ruva nanamanimaya ruva-samghadaga amkamaya pakkha pakkhabahao, joirasamaya vamsa vamsakavelluyao rayayamaio pattiyao jayaruvamaio ohadanio, vairamaio uvaripumchhanio savvaseyarayayamae chhayane. Sa nam paumavaraveiya egamegenam hemajalenam egamegenam gavakkhajalenam egamegenam khimkhini-jalenam egamegenam ghamtajalenam egamegenam muttajalenam egamegenam manijalenam egamegenam kanagajalenam egamegenam rayanajalenam egamegenam paumajalenam savvato samamta samparikhitta. Te nam jala tavanijja-lambusaga java uvasobhemana-uvasobhemana chitthamti. Tise nam paumavaraveiyae tattha tattha dese tahim tahim bahave hayasamghada gayasamghada narasamghada kinnarasamghada kimpurisa-samghada mahoragasamghada gamdhavvasamghada usabhasamghada savvarayanamaya achchha java padiruva. Tise nam paumavaraveiyae tattha tattha dese tahim tahim bahave hayapamtio. Tise nam paumavaraveiyae tattha tattha dese tahim tahim bahave hayavihio. Tise nam paumavaraveiyae tattha tattha dese tahim tahim bahuim hayamihunnaim. Tise nam paumavaraveiyae tattha tattha dese tahim tahim bahave paumalayao. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–paumavaraveiya paumavaraveiya? Goyama! Paumavaraveiyae nam tattha tattha dese tahim tahim veiyasu veiyabahasu ya veiyaphalaesu ya veiyapudamtaresu ya, khambheesu khambhabahasu khambha-sisesu khambhapudamtaresu, suisu suimukhesu suiphalaesu suipudamtaresu, pakkhesu pakkhabahasu pakkhaperamtesu pakkhapudamtaresu bahuyaim uppalaim paumaim kumuyaim nalinaim subhagaim sogamdhiyaim pomdariyaim maha-pomdariyaim sayavattaim sahassavattaim savvarayanamayaim achchhaim padiruvaim mahaya vasikkachhatta-samanaim pannattaim samanauso! Se eenam atthenam goyama! Evam vuchchai–paumavaraveiya paumavaraveiya. Paumavaraveiya nam bhamte! Kim sasaya asasaya? Goyama! Siya sasaya siya asasaya. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai–siya sasaya siya asasaya? Goyama! Davvatthayae sasaya, vannapajjevehim gamdhapajjavehim rasapajjavehim phasapajjavehim asasaya. Se eenatthenam goyama! Evam vuchchai–siya sasaya siya asasaya. Paumavaraveiya nam bhamte! Kalao kevachiram hoi? Goyama! Na kayati nasi, na kayati natthi, na kayati na bhavissai, bhuvim cha bhavai ya bhavissai ya, dhuva niyaya sasaya akkhaya avvaya avatthiya nichcha paumavaraveiya. Sa nam paumavaraveiya egenam vanasamdenam savvao samamta samparikkhitta. Se nam vanasamde desunaim do joyanaim chakkavalavikkhambhenam, uvayariyalenasame parikkhevenam. Vanasamdavannao bhaniyavvo java viharamti. Tassa nam uvayariya lenassa chauddisim chattari tisovanapadiruvaga pannatta vannao torana jhaya chhattaichchhatta. Tassa nam uvayariya layanassa uvarim bahusamaramanijje bhumibhage pannatte java maninam phaso. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Vaha upakarikalayana sabhi disha – vidishaom mem eka padmavaravedika aura eka vanakhanda se ghira hua hai. Vaha padmavaravedika umchai mem adhe yojana umchi, pamcha sau dhanusha chauri aura upakarikalayana jitani isaki paridhi hai. Jaise ki vajraratnamaya isaki nema hai. Rishtaratnamaya pratishthana hai. Vaiduryaratnamaya stambha hai. Svarna aura rajatamaya phalaka hai. Lohitaksha ratnom se bani isaki suchiyam haim. Vividha maniratnamaya isaka kalevara hai tatha vividha prakara ki maniyom se bana hua hai. Aneka prakara ke mani – ratnom se isa para chitra bane haim. Nanamani – ratnom se isamem rupaka samghata, chitrom adi ke samuha bane haim. Amka ratnamaya isake paksha aura pakshabaha haim. Jyotirasa ratnamaya isake vamsha, vala aura vamshakavelluka hai. Rajatamaya inaki pattiyam haim. Svarnamayi avaghataniyam aura vajraratnamayi uparipromchhani haim. Sarvaratnamaya achchhadana hai. Vaha padmavaravedika sabhi disha – vidishaom mem charom ora se eka – eka hemajala se jala se, kimkani ghamtika, moti, mani, kanaka ratna aura padma ki lambi – lambi malaom se pariveshtita hai. Ye sabhi malaem sone ke lambusakom adi se alamkrita haim. Usa padmavaravedika ke yathayogya una – una sthanom para ashvasamghata yavat vrishabhayugala sushobhita ho rahe haim. Ye sabhi sarvatmana ratnom se bane hue, nirmala yavat pratirupa, prasadika haim yavat isi prakara inaki vithiyam, pamktiyam, mithuna evam lataem haim. He bhadanta ! Kisa karana kaha jata hai ki yaha padmavaravedika hai, padmavaravedika hai\? Bhagavan ne kaha – he gautama ! Padmavaravedika ke asa – pasa ki bhumi mem, vedika ke phalakom mem, vedikayugala ke antaralom mem, stambhom, stambhom ki bajuom, stambhom ke shikharom, stambhayugala ke antaralom, kiliyom, kiliyom ke upari bhagom, kiliyom se jure hue phalakom, kiliyom ke antaralom, pakshom, pakshom ke pranta bhagom aura unake antaralom adi – adi mem varshakala ke barasate meghom se bachava karane ke lie chhatrakara – jaise aneka prakara ke bare – bare vikasita, sarvaratnamaya svachchha, nirmala, ativa sundara, utpala, padma, kumuda, nalina, subhaga, saugamdhika pudarika, mahapumdarika, shatapatra aura sahasrapatra kamala shobhita ho rahe haim. Isilie he ayushman shramana gautama ! Isa padmavaravedika ko padmavaravedika kahate haim. He bhadanta ! Vaha padmavaravedika shashvata hai athava ashashvata\? He gautama ! Shashvata bhi hai aura ashashvata bhi hai. Bhagavan ! Kisa karana apa aisa kahate haim\? He gautama ! Dravyarthikanaya ki apeksha vaha shashvata hai parantu varna, gamdha, rasa aura sparsha paryayom ki apeksha ashashvata haim. Isi karana he gautama ! Yaha kaha hai. He bhadanta ! Kala ki apeksha vaha padmavaravedika kitane kala paryanta rahegi\? He gautama ! Vaha padmavaravedika pahale kabhi nahim thi, aisa nahim hai, abhi nahim hai, aisa bhi nahim hai aura age nahim rahegi aisa bhi nahim hai, kintu pahale bhi thi, aba bhi hai aura age bhi rahegi. Isa prakara vaha padmavaravedika dhruva, niyata, shashvata, akshaya, avyaya, avasthita aura nitya hai. Vaha padmavaravedika charom ora eka vanakhanda se pariveshtita haim. Usa vanakhanda ka chakravalavishkambha kuchha kama do yojana pramana hai tatha upakarikalayana ki paridhi jitani usaki paridhi hai. Vaham deva – deviyam vicharana karati haim, yaham taka vanakhanda ka varnana purvavat kara lena. Usa upakarikalayana ki charom dishaom mem chara trisopanaprati – rupaka bane haim. Yana vimana ke sopanom ke samana ina trisopana – pratirupakom ka varnana bhi toranom, dhvajaom, chhatratichhatrom adi paryanta yaham karana. Una upakarikalayana ke upara atisama, ramaniya bhumibhaga hai. Yanavimana – vat maniyom ke sparshaparyanta isa bhumibhaga ka varnana yaham karana. |