Sutra Navigation: Rajprashniya ( राजप्रश्नीय उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005727 | ||
Scripture Name( English ): | Rajprashniya | Translated Scripture Name : | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Translated Chapter : |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 27 | Category : | Upang-02 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] कहिं णं भंते! सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे नामं विमाने पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम सूरिय गहगण नक्खत्त तारारूवाणं पुरओ बहूइं जोयणाइं बहूइं जोयणसयाइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुईओ जोयणकोडीओ बहुईओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं वीतीवइत्ता, एत्थ णं सोहम्मे नामं कप्पे पन्नत्ते–पाईणपडीणायते उदीणदाहिणवित्थिण्णे अद्धचंदसंठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ आयामविक्खंभेणं, असंखे-ज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, सव्वरयणामए अच्छे सण्हे लण्हे घट्ठे मट्ठे नीरए निम्मले निप्पंके निक्कंकडच्छाए सप्पभे समरीइए सउज्जोए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे, एत्थ णं सोहम्माणं देवाणं बत्तीसं विमाणावाससयसहस्साइं भवंति इति मक्खायं। ते णं विमाना सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसिं णं विमानाणं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा–असोगवडेंसए सत्तवण्णवडेंसए चंपगवडेंसए चूयवडेंसए मज्झे सोधम्मवडेंसए ते णं वडेंसगा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। तस्स णं सोधम्मवडेंसगस्स महाविमानस्स पुरत्थिमेणं तिरियं असंखेज्जाइं जोयणसय-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सूरियाभस्स देवस्स सूरियाभे विमाने पन्नत्ते– अद्धतेरस जोयण-सयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, गुणयालीसं च सयसहस्साइं बावन्नं च सहस्साइं अट्ठ य अडयाले जोयणसते परिक्खेवेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे. से णं एगेणं पागारेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। से णं पागारे तिन्नि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, मूले एगं जोयणसयं विक्खंभेणं, मज्झे पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, उप्पिं पणवीसं जोयणाइं विक्खंभेणं। मूले वित्थिण्णे मज्झे संखित्ते उप्पिं तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे। से णं पगारे नानाविहपंचवण्णेहिं कविसीसएहिं उवसोभिए, तं जहा–किण्हेहिं नीलेहिं लोहितेहिं हालिद्देहिं सुक्कि लेहिं कविसीसएहिं। ते णं कविसीसगा एवं जोयणं आयामेणं, अद्धजोयणं विक्खंभेणं, देसूणं जोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा। सूरियाभस्स णं विमानस्स एगमेगाए बाहाए दारसहस्सं-दारसहस्सं भवतीति मक्खायं। ते णं दारा पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं, सेया वरकनगथूभियागा ईहामिय उसभ तुरग णर मगर विहग वालग किन्नर रुरु सरभ चमर कुंजर वनलय पउमलयभत्तिचित्ता खंभुग्गय वइरवेइया परिगयाभिरामा विज्जाहर जमल जुयल जंतजुत्ता पिव अच्चीसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुल्लोयणलेसा सुहफासा सस्सिरीयरूवा। वण्णो दाराणं तेसिं होइ, तं जहा–वइरामया निम्मा, रिट्ठामया पइट्ठाणा, वेरुलियमया खंभा, जायरूवोवचियपवरपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतला, हंसगब्भमया एलुया, गोमेज्जमया इंदकीला, लोहियक्खमईओ दारचेडाओ, जोईरसमया उत्तरंगा, लोहियक्खमईओ सूईओ, वइरामया संधी, नानामणिमया समुग्गया, वइरामया अग्गला अग्गलपासाया, रययामईओ आवत्तणपेढियाओ, अंकुत्तरपासगा, निरंतरियघणकवाडा, भित्तीसु चेव भित्तिगुलिया छप्पन्ना तिन्नि होंति, गोमाणसिया तत्तिया, नानामणिरयण बालरूवग लीलट्ठियसालभंजियागा, वइरामया कूडा, रययामया उस्सेहा, सव्वतवणिज्जमया उल्लोया, नानामणिरयणजालपंजर मणिवंसग लोहियक्ख पडिवंसग रययभोमा, अंकामया पक्खा पक्खवाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लुयाओ, रययामईओ पट्टियाओ, जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ, सव्वसेयरययामए छायणे, अंकमय कनगकूडतवणिज्जथूभियागा, सेया संखतल विमल निम्मल दधिघण गोखीरफेण रययनिगर-प्पगासा, तिलग रयणद्धचंदचित्ता, नानामणिदामालंकिया, अंतो बहिं च सण्हा, तवणिज्ज बालुया पत्थडा, सुहफासा सस्सिरीयरूवा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा। | ||
Sutra Meaning : | हे भगवन् ! उस सूर्याभदेव का सूर्याभ नामक विमान कहाँ पर कहा है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप के मन्दर पर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रमणीय समतल भूभाग से ऊपर ऊर्ध्वदिशा में चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारा – मण्डल से आगे भी ऊंचाई में बहुत से सैकड़ों योजनों, हजारों योजनों, लाखों, करोड़ों योजनों और सैकड़ों करोड़, हजारों करोड़, लाखों करोड़ योजनों, करोड़ों करोड़ योजन को पार करने के बाद प्राप्त स्थान पर सौधर्मकल्प नामका कल्प है – वह सौधर्मकल्प पूर्व – पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण विस्तृत है, अर्धचन्द्र के समान, सूर्य किरणों की तरह अपनी द्युति से सदैव चमचमाता, असंख्यात कोड़ाकोड़ि योजन प्रमाण उसकी लम्बाई – चौड़ाई तथा असंख्यात कोटाकोटि योजन प्रमाण उसकी परिधि है। उस सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान बताये हैं। वे सभी विमानावास सर्वात्मना रत्नोंसे बने हुए स्फटिक मणिवत् स्वच्छ यावत् अतीव मनोहर हैं उन विमानों के मध्यातिमध्य भाग में – पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर इन चार दिशाओं में अनुक्रम से अशोक – अवतंसक, सप्तपर्ण – अवतंसक, चंपक – अवतंसक, आम्र – अवतंसक तथा मध्य में सौधर्म – अवतंसक, ये पाँच अवतंसक हैं। ये पाँचों अवतसंक भी रत्नों से निर्मित, निर्मल यावत् प्रतिरूप हैं। उस सौधर्म – अवतंसक महाविमान की पूर्व दिशा में तिरछे असंख्यातम लाख योजन प्रमाण आगे जाने पर आगत स्थान में सूर्याभदेव का सूर्याभ नामक विमान है। उसका आयाम – विष्कम्भ साढ़े बारह लाख योजन और परिधि उनतालीस लाख बावन हजार आठ सौ अड़तालीस योजन है। वह सूर्याभ विमान चारों दिशाओं में सभी ओर से एक प्राकार से घिरा हुआ है। यह प्राकार तीन सौ योजन ऊंचा है, मूल में इस प्राकार का विष्कम्भ एक सौ योजन, मध्य में पचास योजन और ऊपर पच्चीस योजन है। इस तरह यह प्राकार मूल में चौड़ा, मध्य में संकड़ा और सबसे ऊपर अल्प – पतला होने से गोपुच्छ के आकार जैसा है। यह प्राकार सर्वात्मना रत्नों से बना होने से रत्नमय है, स्फटिकमणि के समान निर्मल है यावत् प्रतिरूप – अतिशय मनोहर है। वह प्राकार अनेक प्रकार के कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र और श्वेत इन पाँच वर्णों वाले कपिशीर्षकों से शोभित है। ये प्रत्येक कपिशीर्षक एक – एक योजन लम्बे, आधे योजन चौड़े और कुछ कम एक योजन ऊंचे हैं तथा ये सब रत्नों से बने हुए, निर्मल यावत् बहुत रमणीय हैं। सूर्याभदेव के उस विमान की एक – एक बाजू में एक – एक हजार द्वार कहे गए हैं। ये प्रत्येक द्वार पाँच – पाँच सौ योजन ऊंचे हैं, अढ़ाई सौ योजन चौड़े हैं और इतना ही इनका प्रवेशन है। ये सभी द्वार श्वेत वर्ण के हैं। उत्तम स्वर्णमयी स्तूपिकाओं से सुशोभित हैं। उन पर ईहामृग, वृष, अश्व, नर, मकर, विहग, सर्प, किन्नर, रुरु, सरभ – अष्टापद चमर, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्राम चित्रित हैं। स्तम्भों पर बनी हुई वज्ररत्नों की वेदिका से युक्त होने के कारण रमणीय दिखाई पड़ते हैं। समश्रेणी में स्थित विद्याधरों के युगल यन्त्र द्वारा चलते हुए – से दीख पड़ते हैं। वे द्वार हजारों किरणों से व्याप्त और हजारों रूपकों से युक्त होने से दीप्यमान और अतीव देदीप्यमान हैं। देखते ही दर्शकों के नयन उनमें चिपक जाते हैं। उनका स्पर्श सुखप्रद है। रूप शोभासम्पन्न है। उन द्वारों के नेम वज्ररत्नों से, प्रतिष्ठान रिष्ट रत्नों से – स्तम्भवैडूर्य मणियों से तथा तलभाग स्वर्णजड़ित पंचरंगे मणि रत्नों से बने हुए हैं। इनकी देहलियाँ हंसगर्भ रत्नों की, इन्द्रकीलियाँ गोमेदरत्नों की, द्वारशाखाएं लोहिताक्ष रत्नों की, उत्तरंग ज्योतिरस रत्नों के, दो पाटियों को जोड़ने के लिये ठोकी गई कीलियाँ लोहिताक्षरत्नों की हैं और उनकी सांधे वज्ररत्नों से भरी हुई हैं। समुद्गक विविध मणियों के हैं। अर्गलाएं अर्गलापाशक वज्ररत्नों के हैं। आवर्तन पीठिकाएं चाँदी की हैं। उत्तरपार्श्वक अंक रत्नों के हैं। इनमें लगे किवाड़ इतने सटे हुए सघन हैं कि बन्द करने पर थोड़ा – सा भी अन्तर नहीं रहता है। प्रत्येक द्वार की दोनों बाजुओं की भीतों में एक सौ अडसठ भित्तिगुलिकाएं हैं और उतनी ही गोमानसिकाएं हैं – प्रत्येक द्वार पर अनेक प्रकार के मणिरत्नमयी व्यालरूपों पुतलियाँ बनी हुई हैं। उनके माढ़ वज्ररत्नों के और माढ़ के शिखर चाँदी के हैं और द्वारों के ऊपरी भाग स्वर्ण के हैं। द्वारों के जालीदार झरोखे भाँति – भाँति के मणि – रत्नों से बने हुए हैं। मणियों के बांसों का छप्पर हे और बांसों को बांधने की खपच्चियाँ लोहिताक्ष रत्नों की हैं। रजतमयी भूमि है। उनकी पांखें और पांखों की बाजुएं अंकरत्नों की हैं। छप्पर के नीचे सीधी और आड़ी लगी हुई वल्लियाँ तथा कवेलू ज्योतितस – रत्नमयी हैं। उनकी पाटियाँ चाँदी की हैं। अवघाटनियाँ स्वर्ण की बनी हुई हैं। ऊपरी प्रोच्छनियाँ वज्ररत्नों की हैं। नीचे के आच्छादन सर्वात्मना श्वेत – धवल और रजतमय हैं। उनके शिखर अंकरत्नों के हैं और उन पर तपनीय – स्वर्ण की स्तूपिकाएं बनी हुई हैं। ये द्वार शंख के समान विमल, दही एवं दुग्धफेन और चाँदी के ढेर जैसी श्वेत प्रभा वाले हैं। उन द्वारों के ऊपरी भाग में तिलकरत्नों से निर्मित अनेक प्रकार के अर्धचन्द्रों के चित्र बने हुए हैं। अनेक प्रकार की मणियों की मालाओं से अलंकृत हैं। वे द्वार अन्दर और बाहर अत्यन्त स्निग्ध और सुकोमल हैं। उनमें सोने के समान पीली बालुका बिछी हुई है। सुखद स्पर्श वाले रूपशोभासम्पन्न, मन को प्रसन्न करने वाले, देखने योग्य, मनोहर और अतीव रमणीय हैं। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] kahim nam bhamte! Suriyabhassa devassa suriyabhe namam vimane pannatte? Goyama! Jambuddive dive mamdarassa pavvayassa dahinenam imise rayanappabhae pudhavie bahusamaramanijjato bhumibhagato uddham chamdima suriya gahagana nakkhatta tararuvanam purao bahuim joyanaim bahuim joyanasayaim bahuim joyanasahassaim bahuim joyanasayasahassaim bahuio joyanakodio bahuio joyanakodakodio uddham duram vitivaitta, ettha nam sohamme namam kappe pannatte–painapadinayate udinadahinavitthinne addhachamdasamthanasamthite achchimalibhasarasivannabhe, asamkhejjao joyanakodakodio ayamavikkhambhenam, asamkhe-jjao joyanakodakodio parikkhevenam, savvarayanamae achchhe sanhe lanhe ghatthe matthe nirae nimmale nippamke nikkamkadachchhae sappabhe samariie saujjoe pasadie darisanijje abhiruve padiruve, ettha nam sohammanam devanam battisam vimanavasasayasahassaim bhavamti iti makkhayam. Te nam vimana savvarayanamaya achchha java padiruva. Tesim nam vimananam bahumajjhadesabhae pamcha vademsaya pannatta, tam jaha–asogavademsae sattavannavademsae champagavademsae chuyavademsae majjhe sodhammavademsae te nam vademsaga savvarayanamaya achchha java padiruva. Tassa nam sodhammavademsagassa mahavimanassa puratthimenam tiriyam asamkhejjaim joyanasaya-sahassaim viivaitta, ettha nam suriyabhassa devassa suriyabhe vimane pannatte– addhaterasa joyana-sayasahassaim ayamavikkhambhenam, gunayalisam cha sayasahassaim bavannam cha sahassaim attha ya adayale joyanasate parikkhevenam, savvarayanamae achchhe java padiruve. Se nam egenam pagarenam savvao samamta samparikkhitte. Se nam pagare tinni joyanasayaim uddham uchchattenam, mule egam joyanasayam vikkhambhenam, majjhe pannasam joyanaim vikkhambhenam, uppim panavisam joyanaim vikkhambhenam. Mule vitthinne majjhe samkhitte uppim tanue, gopuchchhasamthanasamthie savvarayanamae achchhe java padiruve. Se nam pagare nanavihapamchavannehim kavisisaehim uvasobhie, tam jaha–kinhehim nilehim lohitehim haliddehim sukki lehim kavisisaehim. Te nam kavisisaga evam joyanam ayamenam, addhajoyanam vikkhambhenam, desunam joyanam uddham uchchattenam, savvarayanamaya achchha java padiruva. Suriyabhassa nam vimanassa egamegae bahae darasahassam-darasahassam bhavatiti makkhayam. Te nam dara pamcha joyanasayaim uddham uchchattenam, addhaijjaim joyanasayaim vikkhambhenam, tavaiyam cheva pavesenam, seya varakanagathubhiyaga ihamiya usabha turaga nara magara vihaga valaga kinnara ruru sarabha chamara kumjara vanalaya paumalayabhattichitta khambhuggaya vairaveiya parigayabhirama vijjahara jamala juyala jamtajutta piva achchisahassamalaniya ruvagasahassakaliya bhisamana bhibbhisamana chakkhulloyanalesa suhaphasa sassiriyaruva. Vanno daranam tesim hoi, tam jaha–vairamaya nimma, ritthamaya paitthana, veruliyamaya khambha, jayaruvovachiyapavarapamchavannamanirayanakottimatala, hamsagabbhamaya eluya, gomejjamaya imdakila, lohiyakkhamaio darachedao, joirasamaya uttaramga, lohiyakkhamaio suio, vairamaya samdhi, nanamanimaya samuggaya, vairamaya aggala aggalapasaya, rayayamaio avattanapedhiyao, amkuttarapasaga, niramtariyaghanakavada, bhittisu cheva bhittiguliya chhappanna tinni homti, gomanasiya tattiya, nanamanirayana balaruvaga lilatthiyasalabhamjiyaga, vairamaya kuda, rayayamaya usseha, savvatavanijjamaya ulloya, nanamanirayanajalapamjara manivamsaga lohiyakkha padivamsaga rayayabhoma, amkamaya pakkha pakkhavahao, joirasamaya vamsa vamsakavelluyao, rayayamaio pattiyao, jayaruvamaio ohadanio, vairamaio uvaripumchhanio, savvaseyarayayamae chhayane, amkamaya kanagakudatavanijjathubhiyaga, seya samkhatala vimala nimmala dadhighana gokhiraphena rayayanigara-ppagasa, tilaga rayanaddhachamdachitta, nanamanidamalamkiya, amto bahim cha sanha, tavanijja baluya patthada, suhaphasa sassiriyaruva pasaiya darisanijja abhiruva padiruva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | He bhagavan ! Usa suryabhadeva ka suryabha namaka vimana kaham para kaha hai\? He gautama ! Jambudvipa ke mandara parvata se dakshina disha mem isa ratnaprabha prithvi ke ramaniya samatala bhubhaga se upara urdhvadisha mem chandra, surya, grahagana, nakshatra aura tara – mandala se age bhi umchai mem bahuta se saikarom yojanom, hajarom yojanom, lakhom, karorom yojanom aura saikarom karora, hajarom karora, lakhom karora yojanom, karorom karora yojana ko para karane ke bada prapta sthana para saudharmakalpa namaka kalpa hai – vaha saudharmakalpa purva – pashchima lamba aura uttara – dakshina vistrita hai, ardhachandra ke samana, surya kiranom ki taraha apani dyuti se sadaiva chamachamata, asamkhyata korakori yojana pramana usaki lambai – chaurai tatha asamkhyata kotakoti yojana pramana usaki paridhi hai. Usa saudharmakalpa mem battisa lakha vimana bataye haim. Ve sabhi vimanavasa sarvatmana ratnomse bane hue sphatika manivat svachchha yavat ativa manohara haim Una vimanom ke madhyatimadhya bhaga mem – purva, dakshina, pashchima aura uttara ina chara dishaom mem anukrama se ashoka – avatamsaka, saptaparna – avatamsaka, champaka – avatamsaka, amra – avatamsaka tatha madhya mem saudharma – avatamsaka, ye pamcha avatamsaka haim. Ye pamchom avatasamka bhi ratnom se nirmita, nirmala yavat pratirupa haim. Usa saudharma – avatamsaka mahavimana ki purva disha mem tirachhe asamkhyatama lakha yojana pramana age jane para agata sthana mem suryabhadeva ka suryabha namaka vimana hai. Usaka ayama – vishkambha sarhe baraha lakha yojana aura paridhi unatalisa lakha bavana hajara atha sau aratalisa yojana hai. Vaha suryabha vimana charom dishaom mem sabhi ora se eka prakara se ghira hua hai. Yaha prakara tina sau yojana umcha hai, mula mem isa prakara ka vishkambha eka sau yojana, madhya mem pachasa yojana aura upara pachchisa yojana hai. Isa taraha yaha prakara mula mem chaura, madhya mem samkara aura sabase upara alpa – patala hone se gopuchchha ke akara jaisa hai. Yaha prakara sarvatmana ratnom se bana hone se ratnamaya hai, sphatikamani ke samana nirmala hai yavat pratirupa – atishaya manohara hai. Vaha prakara aneka prakara ke krishna, nila, lohita, haridra aura shveta ina pamcha varnom vale kapishirshakom se shobhita hai. Ye pratyeka kapishirshaka eka – eka yojana lambe, adhe yojana chaure aura kuchha kama eka yojana umche haim tatha ye saba ratnom se bane hue, nirmala yavat bahuta ramaniya haim. Suryabhadeva ke usa vimana ki eka – eka baju mem eka – eka hajara dvara kahe gae haim. Ye pratyeka dvara pamcha – pamcha sau yojana umche haim, arhai sau yojana chaure haim aura itana hi inaka praveshana hai. Ye sabhi dvara shveta varna ke haim. Uttama svarnamayi stupikaom se sushobhita haim. Una para ihamriga, vrisha, ashva, nara, makara, vihaga, sarpa, kinnara, ruru, sarabha – ashtapada chamara, hathi, vanalata, padmalata adi ke chitrama chitrita haim. Stambhom para bani hui vajraratnom ki vedika se yukta hone ke karana ramaniya dikhai parate haim. Samashreni mem sthita vidyadharom ke yugala yantra dvara chalate hue – se dikha parate haim. Ve dvara hajarom kiranom se vyapta aura hajarom rupakom se yukta hone se dipyamana aura ativa dedipyamana haim. Dekhate hi darshakom ke nayana unamem chipaka jate haim. Unaka sparsha sukhaprada hai. Rupa shobhasampanna hai. Una dvarom ke nema vajraratnom se, pratishthana rishta ratnom se – stambhavaidurya maniyom se tatha talabhaga svarnajarita pamcharamge mani ratnom se bane hue haim. Inaki dehaliyam hamsagarbha ratnom ki, indrakiliyam gomedaratnom ki, dvarashakhaem lohitaksha ratnom ki, uttaramga jyotirasa ratnom ke, do patiyom ko jorane ke liye thoki gai kiliyam lohitaksharatnom ki haim aura unaki samdhe vajraratnom se bhari hui haim. Samudgaka vividha maniyom ke haim. Argalaem argalapashaka vajraratnom ke haim. Avartana pithikaem chamdi ki haim. Uttaraparshvaka amka ratnom ke haim. Inamem lage kivara itane sate hue saghana haim ki banda karane para thora – sa bhi antara nahim rahata hai. Pratyeka dvara ki donom bajuom ki bhitom mem eka sau adasatha bhittigulikaem haim aura utani hi gomanasikaem haim – pratyeka dvara para aneka prakara ke maniratnamayi vyalarupom putaliyam bani hui haim. Unake marha vajraratnom ke aura marha ke shikhara chamdi ke haim aura dvarom ke upari bhaga svarna ke haim. Dvarom ke jalidara jharokhe bhamti – bhamti ke mani – ratnom se bane hue haim. Maniyom ke bamsom ka chhappara he aura bamsom ko bamdhane ki khapachchiyam lohitaksha ratnom ki haim. Rajatamayi bhumi hai. Unaki pamkhem aura pamkhom ki bajuem amkaratnom ki haim. Chhappara ke niche sidhi aura ari lagi hui valliyam tatha kavelu jyotitasa – ratnamayi haim. Unaki patiyam chamdi ki haim. Avaghataniyam svarna ki bani hui haim. Upari prochchhaniyam vajraratnom ki haim. Niche ke achchhadana sarvatmana shveta – dhavala aura rajatamaya haim. Unake shikhara amkaratnom ke haim aura una para tapaniya – svarna ki stupikaem bani hui haim. Ye dvara shamkha ke samana vimala, dahi evam dugdhaphena aura chamdi ke dhera jaisi shveta prabha vale haim. Una dvarom ke upari bhaga mem tilakaratnom se nirmita aneka prakara ke ardhachandrom ke chitra bane hue haim. Aneka prakara ki maniyom ki malaom se alamkrita haim. Ve dvara andara aura bahara atyanta snigdha aura sukomala haim. Unamem sone ke samana pili baluka bichhi hui hai. Sukhada sparsha vale rupashobhasampanna, mana ko prasanna karane vale, dekhane yogya, manohara aura ativa ramaniya haim. |