Sutra Navigation: Auppatik ( औपपातिक उपांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005627 | ||
Scripture Name( English ): | Auppatik | Translated Scripture Name : | औपपातिक उपांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Translated Chapter : |
समवसरण वर्णन |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 27 | Category : | Upang-01 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन वंदन निग्गंण पडिपुच्छण पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामो णं देवानुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो नमंसामो सक्कारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। एयं णे पेच्चभवे इहभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए आनुगामियत्ताए भविस्सइ त्ति कट्टु बहवे उग्गा उग्गपुत्ता भोगा भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं– राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई लेच्छईपुत्ता अन्ने य बहवे राईसर-तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदनवत्तियं अप्पेगइया पूयणवत्तियं अप्पेगइया सक्का-रवत्तियं अप्पेगइया सम्माणवत्तियं अप्पेगइया दंसणवत्तियं अप्पेगइया कोऊहलवत्तियं अप्पेगइया अस्सुयाइं सुणेस्सामो सुयाइं निस्सं कियाइं करिस्सामो अप्पेगइया मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सामो, अप्पेगइया पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं गिहिधम्मं पडिवज्जिस्सामो, अप्पेगइया जिनभत्तिरागेणं अप्पेगइया जीयमेयंति कट्टु... ...ण्हाया कयवलिकम्मा कय कोउय मंगल पायच्छित्ता सिरसा कंठे मालकडा आविद्धमणि सुवण्णा कप्पिय हारद्धहार तिसर पालंब पलंबमाण कडिसुत्त सुकयसोहाभरणा पवरवत्थपरिहिया चंदणोलित्तगायसरीरा अप्पेगइया हयगया अप्पेगइया गयगया अप्पेगइया रहगया अप्पेगइया सिवियागया अप्पे-गइया संदमाणियागया अप्पेगइया पायविहारचारेणं पुरिसवग्गुरा परिक्खित्ता महया उक्किट्ठ सीहणाय वोल कलकलरवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणा चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता... ...जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते छत्तादीए तित्थगराइसेसे पासंति, पासित्ता जाणवाहणाइं ठवेंति, ठवेत्ता जाणवाहणेहिंतो पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेंति, करेत्ता वंदंति णमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणा निग्गंमाणा अभिमुहा विनएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति। | ||
Sutra Meaning : | उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी टोलियों में लोग फिर रहे थे, इकट्ठे हो रहे थे। बहुत से मनुष्य आपस में आख्यान कर रहे थे, अभिभाषण कर रहे थे, प्रज्ञापित कर रहे थे, प्ररूपित कर रहे थे – देवानुप्रियो ! आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं संबुद्ध, पुरुषोत्तम, सिद्धि – गतिरूप स्थान की प्राप्ति हेतु समुद्यत भगवान महावीर, यथाक्रम विहार करते हुए, ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए यहाँ आए हैं, समवसृत हुए हैं। यहीं चम्पा नगरी के बाहर यथोचित स्थान ग्रहण कर संयम और तप से आत्मा को अनुभावित करते हुए बिराजित हैं। हम लोगों के लिए यह बहुत ही लाभप्रद है। देवानुप्रियो ! ऐसे अर्हत भगवान के नाम – गोत्र का सूनना भी बहुत बड़ी बात है, फिर अभिगमन, वन्दन, नमन, प्रतिपृच्छा, पर्युपासना करना – सान्निध्य प्राप्त करना – इनका तो कहना ही क्या ! सद्गुणनिष्पन्न, सद्धर्ममय एक सुवचन का श्रवण भी बहुत बड़ी बात है; फिर विपुल अर्थ के ग्रहण की तो बात ही क्या ! अतः देवानुप्रियो ! अच्छा हो, हम जाएं और श्रमण भगवान महावीर को वन्दन करें, नमन करें, उनका सत्कार करें, सम्मान करें। भगवान कल्याण हैं, मंगल हैं, देव हैं, तीर्थस्वरूप हैं। उनकी पर्युपासना करें। यह इस भव में, परभव में हमारे लिए हितप्रद सुखप्रद, क्षान्तिप्रद तथा निश्रेयसप्रद सिद्ध होगा। यों चिन्तन करते हुए बहुत से उग्रों, उग्रपुत्रों, भोगों, भोगपुत्रों, राजन्यों, क्षत्रियों, ब्राह्मणों, सुभटों, योद्धाओं, प्रशास्ताओं, मल्लकियों, लिच्छिवियों तथा अन्य अनेक राजाओं, ईश्वरों, तलवरों, माडंबिकों, कौटुम्बिकों, इभ्यों, श्रेष्ठियों, सेनापतियों एवं सार्थवाहों, इन सबके पुत्रों में से अनेक वन्दन हेतु, पूजन हेतु, सत्कार हेतु, सम्मान हेतु, दर्शन हेतु, उत्सुकता – पूर्ति हेतु, अर्थविनिश्चय हेतु, अश्रुत, श्रुत, अनेक इस भाव से, अनेक यह सोचकर कि युक्ति, तर्क तथा विश्लेषणपूर्वक तत्त्व – जिज्ञासा करेंगे, अनेक यह चिन्तन कर कि सभी सांसारिक सम्बन्धों का परिवर्जन कर, मुण्डित होकर अगार – धर्म से आगे बढ़ अनगार – धर्म स्वीकार करेंगे, अनेक यह सोचकर कि पाँच अणुव्रत, सात शिक्षा व्रत – यों बारह व्रतयुक्त श्रावक धर्म स्वीकार करेंगे, अनेक भक्ति – अनुराग के कारण, अनेक यह सोचकर कि यह अपना वंश – परंपरागत व्यवहार है, भगवान की सन्निधिमें आने को उद्यत हुए उन्होंने स्नान किया, नित्य कार्य किये, कौतुक, ललाट पर तिलक किया; प्रायश्चित्त, मंगलविधान किया, गले में मालाएं धारण की, रत्नजड़े स्वर्णाभरण, हार, अर्धहार, तीन लड़ों के हार, लम्बे हार, लटकती हुई करधनियाँ आदि शोभावर्धक अलंकारों से अपने को सजाया, श्रेष्ठ, उत्तम वस्त्र पहने। उन्होंने समुच्चय रूप में शरीर पर चन्दन का लेप किया। उनमें से कईं घोड़ों पर, कईं हाथियों पर, कईं शिबिकाओं पर, कईं पुरुषप्रमाण पालखियों पर सवार हुए। अनेक व्यक्ति बहुत पुरुषों द्वारा चारों ओर से घिरे हुए पैदल चल पड़े। वे उत्कृष्ट, हर्षोन्नत, सुन्दर, मधुर घोष द्वारा नगरी को लहराते, गरजते विशाल समुद्रसदृश बनाते हुए उसके बीच से गुजरे। वैसा कर, जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, वहाँ आए। आकर न अधिक दूर से, न अधिक निकट से भगवान के तीर्थंकर – रूप के वैशिष्ट्यद्योतक छत्र आदि अतिशय देखी। देखते ही अपने यान, वाहन, वहाँ ठहराये। यान, रथ आदि वाहन – घोड़े, हाथी आदि से नीचे ऊतरे। जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आकर श्रमण भगवान महावीर की तीन बार आदक्षिण – प्रदक्षिणा की; वन्दन – नमस्कार किया। भगवान के न अधिक दूर, न अधिक निकट स्थित हो, उनके वचन सूनने की उत्कण्ठा लिए, नमस्कार – मुद्रा में भगवान महावीर के सामने विनयपूर्वक अंजलि बाँधे पर्युपासना करने लगे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam champae nayarie simghadaga tiga chaukka chachchara chaummuha mahapahapahesu mahaya janasaddei va, janavuhai va janabolei va janakalakalei va janummii va janukkaliyai va janasannivaei va bahujano annamannassa evamaikkhai evam bhasai evam pannavei evam paruvei– evam khalu devanuppiya! Samane bhagavam mahavire aigare titthagare sahasambuddhe purisottame java sampaviukame, puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva champae nayarie bahiya punnabhadde cheie ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Tam mahapphalam khalu bho devanuppiya! Taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana vamdana niggamna padipuchchhana pajjuvasanayae? Egassa vi ariyassa dhammiyassa suvayanassa savanayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhamo nam devanuppiya! Samanam bhagavam mahaviram vamdamo namamsamo sakkaremo sammanemo kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasamo. Eyam ne pechchabhave ihabhave ya hiyae suhae khamae nisseyasae anugamiyattae bhavissai tti kattu bahave ugga uggaputta bhoga bhogaputta evam dupadoyarenam– rainna khattiya mahana bhada joha pasattharo mallai lechchhai lechchhaiputta anne ya bahave raisara-talavara madambiya kodumbiya ibbha setthi senavai satthavahappabhitayo appegaiya vamdanavattiyam appegaiya puyanavattiyam appegaiya sakka-ravattiyam appegaiya sammanavattiyam appegaiya damsanavattiyam appegaiya kouhalavattiyam appegaiya assuyaim sunessamo suyaim nissam kiyaim karissamo appegaiya mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaissamo, appegaiya pamchanuvvaiyam sattasikkhavaiyam duvalasaviham gihidhammam padivajjissamo, appegaiya jinabhattiragenam appegaiya jiyameyamti kattu.. ..Nhaya kayavalikamma kaya kouya mamgala payachchhitta sirasa kamthe malakada aviddhamani suvanna kappiya haraddhahara tisara palamba palambamana kadisutta sukayasohabharana pavaravatthaparihiya chamdanolittagayasarira appegaiya hayagaya appegaiya gayagaya appegaiya rahagaya appegaiya siviyagaya appe-gaiya samdamaniyagaya appegaiya payaviharacharenam purisavaggura parikkhitta mahaya ukkittha sihanaya vola kalakalaravenam pakkhubhiyamahasamuddaravabhuyam piva karemana champae nayarie majjhammajjhenam niggachchhamti, niggachchhitta.. ..Jeneva punnabhadde cheie teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte chhattadie titthagaraisese pasamti, pasitta janavahanaim thavemti, thavetta janavahanehimto pachchoruhamti, pachchoruhitta jeneva samane bhagavam mahavire teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina payahinam karemti, karetta vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamana niggammana abhimuha vinaenam pamjaliuda pajjuvasamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa samaya champa nagari ke simghatakom, trikom, chatushkom, chatvarom, chaturmukhom, rajamargom, galiyom mem manushyom ki bahuta avaja a rahi thi, bahuta loga shabda kara rahe the, apasa mem kaha rahe the, phusaphusahata kara rahe the. Logom ka bara jamaghata tha. Ve bola rahe the. Unaki batachita ki kalakala sunai deti thi. Logom ki mano eka lahara si umari a rahi thi. Chhoti – chhoti toliyom mem loga phira rahe the, ikatthe ho rahe the. Bahuta se manushya apasa mem akhyana kara rahe the, abhibhashana kara rahe the, prajnyapita kara rahe the, prarupita kara rahe the – devanupriyo ! Adikara, tirthamkara, svayam sambuddha, purushottama, siddhi – gatirupa sthana ki prapti hetu samudyata bhagavana mahavira, yathakrama vihara karate hue, gramanugrama vicharana karate hue yaham ae haim, samavasrita hue haim. Yahim champa nagari ke bahara yathochita sthana grahana kara samyama aura tapa se atma ko anubhavita karate hue birajita haim. Hama logom ke lie yaha bahuta hi labhaprada hai. Devanupriyo ! Aise arhata bhagavana ke nama – gotra ka sunana bhi bahuta bari bata hai, phira abhigamana, vandana, namana, pratiprichchha, paryupasana karana – sannidhya prapta karana – inaka to kahana hi kya ! Sadgunanishpanna, saddharmamaya eka suvachana ka shravana bhi bahuta bari bata hai; phira vipula artha ke grahana ki to bata hi kya ! Atah devanupriyo ! Achchha ho, hama jaem aura shramana bhagavana mahavira ko vandana karem, namana karem, unaka satkara karem, sammana karem. Bhagavana kalyana haim, mamgala haim, deva haim, tirthasvarupa haim. Unaki paryupasana karem. Yaha isa bhava mem, parabhava mem hamare lie hitaprada sukhaprada, kshantiprada tatha nishreyasaprada siddha hoga. Yom chintana karate hue bahuta se ugrom, ugraputrom, bhogom, bhogaputrom, rajanyom, kshatriyom, brahmanom, subhatom, yoddhaom, prashastaom, mallakiyom, lichchhiviyom tatha anya aneka rajaom, ishvarom, talavarom, madambikom, kautumbikom, ibhyom, shreshthiyom, senapatiyom evam sarthavahom, ina sabake putrom mem se aneka vandana hetu, pujana hetu, satkara hetu, sammana hetu, darshana hetu, utsukata – purti hetu, arthavinishchaya hetu, ashruta, shruta, aneka isa bhava se, aneka yaha sochakara ki yukti, tarka tatha vishleshanapurvaka tattva – jijnyasa karemge, aneka yaha chintana kara ki sabhi samsarika sambandhom ka parivarjana kara, mundita hokara agara – dharma se age barha anagara – dharma svikara karemge, aneka yaha sochakara ki pamcha anuvrata, sata shiksha vrata – yom baraha vratayukta shravaka dharma svikara karemge, aneka bhakti – anuraga ke karana, aneka yaha sochakara ki yaha apana vamsha – paramparagata vyavahara hai, bhagavana ki sannidhimem ane ko udyata hue Unhomne snana kiya, nitya karya kiye, kautuka, lalata para tilaka kiya; prayashchitta, mamgalavidhana kiya, gale mem malaem dharana ki, ratnajare svarnabharana, hara, ardhahara, tina larom ke hara, lambe hara, latakati hui karadhaniyam adi shobhavardhaka alamkarom se apane ko sajaya, shreshtha, uttama vastra pahane. Unhomne samuchchaya rupa mem sharira para chandana ka lepa kiya. Unamem se kaim ghorom para, kaim hathiyom para, kaim shibikaom para, kaim purushapramana palakhiyom para savara hue. Aneka vyakti bahuta purushom dvara charom ora se ghire hue paidala chala pare. Ve utkrishta, harshonnata, sundara, madhura ghosha dvara nagari ko laharate, garajate vishala samudrasadrisha banate hue usake bicha se gujare. Vaisa kara, jaham purnabhadra chaitya tha, vaham ae. Akara na adhika dura se, na adhika nikata se bhagavana ke tirthamkara – rupa ke vaishishtyadyotaka chhatra adi atishaya dekhi. Dekhate hi apane yana, vahana, vaham thaharaye. Yana, ratha adi vahana – ghore, hathi adi se niche utare. Jaham shramana bhagavana mahavira the, vaham akara shramana bhagavana mahavira ki tina bara adakshina – pradakshina ki; vandana – namaskara kiya. Bhagavana ke na adhika dura, na adhika nikata sthita ho, unake vachana sunane ki utkantha lie, namaskara – mudra mem bhagavana mahavira ke samane vinayapurvaka amjali bamdhe paryupasana karane lage. |