Sutra Navigation: Antkruddashang ( अंतकृर्द्दशांगसूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005220 | ||
Scripture Name( English ): | Antkruddashang | Translated Scripture Name : | अंतकृर्द्दशांगसूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Translated Chapter : |
वर्ग-५ पद्मावती आदि अध्ययन-१ थी १० |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 20 | Category : | Ang-08 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ। तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावईए य देवीए तीसे महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं कहेइ, तं जहा–सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहातो वेरमणं। परिसा पडिगया। तए णं कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इमीसे णं भंते! बारवईए नगरीए नवजोयण वित्थिण्णाए जाव देवलोगभूयाए किंमूलाए विनासे भविस्सइ? कण्हाइ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु कण्हा! इमीसे बारवईए नयरीए नवजोयणवित्थिण्णाए जाव देवलोगभूयाए सुरग्गिदीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ। कण्हस्स वासुदेवस्स अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए एयं सोच्चा निसम्म अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–धण्णा णं ते जालि-मयालि-उवयालि-पुरिससेन-वारिसेन-पज्जुन्न-संब-अनिरुद्ध-दढनेमि-सच्चनेमि-प्पभियओ कुमारा जे णं चइत्ता हिरण्णं जाव दाणं दाइयाणं परिभाएत्ता अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतियं मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया। अहण्णं अधन्ने अकयपुण्णे रज्जे य रट्ठे य कोसे य कोट्ठागारे य बले य वाहणे य पुरे यअंतेउरे य मानुस्सएसु य कामभोगेसु मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे नो संचाएमि अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। कण्हाइ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–से नूणं कण्हा! तव अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– धन्ना णं ते जालिप्पभिइकुमारा जाव पव्वइया। अहण्णं अधन्ने जाव नो संचाएमि अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। से नूनं कण्हा! अत्थे समत्थे? हंता अत्थि। तं नो खलु कण्हा! एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ न एतं भूतं वाभव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति? कण्हाइ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु कण्हा! सव्वे वि य णं वासुदेवा पुव्वभवे निदानकडा। से एतेणट्ठेणं कण्हा! एवं वुच्चइ न एतं भूतं वा भव्वं वा भविस्सइ वा जण्णं वासुदेवा चइत्ता हिरण्णं जाव पव्वइस्संति। तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहं अरिट्ठनेमिं एवं वयासी–अहं णं भंते! इतो कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिस्सामि? कहिं उववज्जिस्सामि? तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–एवं खलु कण्हा! तुमं बारवईए नयरीए सुरग्गि-दीवायन-कोव-निदड्ढाए अम्मापिइ-नियग-विप्पहूणे रामेण बलदेवेण सद्धिं दाहिणवेयालिं अभिमुहे जुहिट्ठिल्लपामोक्खाणं पंचण्हं पंडवाणं पंडुरायपुत्ताणं पासं पंडुमहुरं संपत्थिए कोसंबवन कानने नग्गोहवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टए पीयवत्थ-पच्छाइय-सरीरे जराकुमारेणं तिक्खेणं कोदंड-विप्पमुक्केणं उसुणा वामे पादे विद्धे समाणे कालमासे कालं किच्चा तच्चाए वालुयप्पभाए पुढवीए उज्जलिए नरए नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि। तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म ओहयमन संकप्पे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए-ज्झियाइ। कण्हाइ! अरहा अरिट्ठनेमी कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–मा णं तुमं देवानुप्पिया! ओहयमनसंकप्पे जाव ज्झियाह एवं खलु तुमं देवानुप्पिया! तच्चाओ पुढवीओ उज्जलियाओ नरयाओ अनंतरं उव्वट्टित्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए पंडेसु जनवएसु सयदुवारे नगरे बारसमे अममे नामं अरहा भविस्ससि। तत्थ तुमं बहूइं वासाइं केवलिपरियागं पाउणेत्ता सिज्झिहिसि बुज्झिहिसि मुच्चिहिसि परिनिव्वाहिसि सव्वदुक्खाणं अंतं काहिसि। तए णं से कण्हे वासुदेवे अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे जाव अप्फोडेइ, अप्फोडेत्ता वग्गइ, वग्गित्ता तिवइं छिंदइ, छिंदित्ता सीहनायं करेइ, करेत्ता अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव आभिसेक्कं हत्थिं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागए। आभिसेय-हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण-साला जेणेव सए सीहासने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! बारवईए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु हत्थिखंधवरगया महया-महया सद्देणं उग्घोसे-माणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! बार-वईए नयरीए नवजोयण-विच्छिण्णाए जाव देवलोगभूयाए सुरग्गि-दीवायणमूलाए विणासे भविस्सइ; तं जो णं देवानुप्पिया! इच्छइ बारवईए नयरीए राया वा जुवराया वा ईसरे वा तलवरे वा माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठी वा देवी वा कुमारो वा कुमारी वा अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियंपव्वइत्तए, तं णं कण्हे वासुदेवे विसज्जेइ। पच्छातुरस्स वि य से अहापवित्तं वित्तिं अनुजाणइ। महया इड्ढिसक्कारसमुदएणं य से निक्खमणं करेइ। दोच्चं पि तच्चं पि घोसणयं घोसेइ, घोसेत्ता ममं एयं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबिया जाव पच्चप्पिणंति। तए णं सा पउमावई देवी अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया जाव हरिसवस विसप्पमाणहियया अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, से जहेयं तुब्भे वयह। जं नवरं–देवानुप्पिया! कण्हं वासुदेवं आपुच्छामि। तए णं अहं देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं सा पउमावई देवी धम्मियं जानप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जेणेव बारवई नयरी जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियाओ जानप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्त मत्थए अंजलिं कट्टु कण्हं वासुदेवं एवं वयासी–इच्छामि णं देवानुप्पिया! तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणा अरहओ अरिट्ठनेमिस्स अंतिए मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! पउमावईए देवीए महत्थं महग्घं महरिहं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से कण्हे वासुदेवे पउमावइं देविं पट्टयं दुरुहेइ, अट्ठसएणं सोवन्नकलसाणं जाव महानिक्खमणाभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता पुरिससहस्स-वाहिणिं सिबियं दुरुहावेइ, दुरुहावेत्ता बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव रेवयए पव्वए जेणेव सहसंबवने उज्जाने तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयं ठवेइ, पउमावइं देविंसीयाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–एस णं भंते! मम अग्गमहिसी पउमावई नामं देवी इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मनाभिरामा जाव उंबरपुप्फं पिव दुल्लहा सवणयाए, किमंग पुण पासणयाए? तण्णं अहं देवानुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं दलयामि। पडिच्छंतु णं देवानुप्पिया! सिस्सिणिभिक्खं। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। तए णं सा पउमावई उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव आभरणालंकारं ओमुयइ, ओमुयित्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, करेत्ता जेणेव अरहा अरिट्ठनेमी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहं अरिट्ठनेमिं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–आलित्ते णं भंते! लोए जाव तं इच्छामि णं देवाणुप्पिएहिं धम्ममाइक्खिय। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी पउमावइं देविं सयमेव पव्वावेइ, पव्वावेत्ता सयमेव जक्खिणीए अज्जाए सिस्सिणित्ताए दलयइ। तए णं सा जक्खिणी अज्जा पउमावइं देविं सयमेव पव्वावेइ सयमेव मुंडावेइ सयमेव सेहावेति धम्ममाइक्खइ–एवं देवाणुप्पिए! गंतव्वं जाव संजमेणंसंजमियव्वं। तए णं सा पउमावई देवी तमाणाए तह चिट्ठइ जाव संजमेणं संजमइ। तए णं सा पउमावई अज्जा जाया। इरियासमिया जाव गुत्तबंभयारिणी। तए णं सा पउमावई अज्जा जक्खिणीए अज्जाए अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारस अंगाइं अहिज्जइ, बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमासक्खमणेहिं विविहेहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणी विहरइ। तए णं सा पउमावई अज्जा बहुपडिपुण्णाइं वीसं वासाइं सामन्नपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं ज्झूसेइ, ज्झूसेत्ता सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेदेइ, छेदेत्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे मुंडभावे जाव तमट्ठं आराहेइ, चरिमुस्सासेहिं सिद्धा। | ||
Sutra Meaning : | जम्बूस्वामी ने पुनः पूछा – ‘‘भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, यावत् श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। श्रीकृष्ण वासुदेव की पद्मावती नाम की महारानी थी। (राज्ञीवर्णन जान लेना)। उस काल उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि विचरते हुए द्वारका नगरी में पधारे। श्रीकृष्ण वंदन – नमस्कार करने हेतु राजप्रासाद से नीकलकर प्रभु के पास पहुँचे यावत् प्रभु अरिष्टनेमि की पर्युपासना करने लगे। उस समय पद्मावती देवी ने भगवान के आने की खबर सूनी तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुई। वह भी देवकी महारानी के समान धार्मिक रथ पर आरूढ़ होकर भगवान को वंदन करने गई। यावत् नेमिनाथ की पर्युपासना करने लगी। अरिहंत अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव, पद्मावती देवी और परिषद को धर्मकथा कही। धर्मकथा सूनकर जन – परिषद् वापिस लौट गई। तब कृष्ण वासुदेव ने भगवान नेमिनाथ को वंदन – नमस्कार करके उनसे इस प्रकार पृच्छा की – ‘‘भगवन् ! बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी यावत् साक्षात देवलोक के समान इस द्वारका नगरी का विनाश किस कारण से होगा ?’’ ‘हे कृष्ण !’ इस प्रकार संबोधित करते हुए अरिहंत अरिष्टनेमि ने उत्तर दिया – ‘‘हे कृष्ण ! निश्चय ही बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी यावत् प्रत्यक्ष स्वर्गपुरी के समान इस द्वारका नगरी का विनाश मदीरा, अग्नि और द्वैपायन के कोप के कारण होगा।’’ अरिहंत अरिष्टनेमि से द्वारका नगरी के विनाश का कारण सून – समझकर श्रीकृष्ण वासुदेव के मन में ऐसा विचार, चिन्तन, प्रार्थित एवं मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि – वे जालि, मयालि, उवयालि, पुरिससेन, वीरसेन, प्रद्युम्न, शाम्ब, अनिरुद्ध, दृढ़नेमि और सत्यनेमि प्रभृति कुमार धन्य हैं जो हिरण्यादि देयभाग देकर, नेमिनाथ प्रभु के पास मुण्डित यावत् प्रव्रजित हो गए हैं। मैं अधन्य हूँ, अकृत – पुण्य हूँ कि राज्य, अन्तःपुर और मनुष्य संबंधी कामभोगों में मूर्च्छित हूँ, इन्हें त्यागकर भगवान नेमिनाथ के पास मुण्डित होकर अनगार रूप प्रव्रजित होने में असमर्थ हूँ। भगवान नेमिनाथ प्रभु ने अपने ज्ञान – बल से कृष्ण वासुदेव के मन में आये इन विचारों को जानकर आर्त्तध्यान में डूबे हुए कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार कहा – ‘‘निश्चय ही हे कृष्ण ! तुम्हारे मन में ऐसा विचार उत्पन्न हुआ – वे जालि, मयालि आदि धन्य हैं यावत् मैं प्रव्रज्या नहीं ले सकता। हे कृष्ण ! क्या यह बात सही है ?’’ श्रीकृष्ण ने कहा – ‘‘हाँ भगवन् ! है।’’ ‘‘तो हे कृष्ण ! ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि वासुदेव अपने भव में धन – धान्य – स्वर्ण आदि संपत्ति छोड़कर मुनिव्रत ले लें। वासुदेव दीक्षा लेते नहीं, नहीं एवं भविष्य में कभी लेंगे भी नहीं।’’ श्रीकृष्ण ने कहा – ‘‘हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं ?’’ ‘‘हे कृष्ण ! निश्चय ही सभी वासुदेव पूर्व भव में निदानकृत होते हैं, इसलिए मैं ऐसा कहता हूँ कि ऐसा कभी हुआ नहीं, होता नहीं और होगा भी नहीं कि वासुदेव कभी प्रव्रज्या अंगीकार करें।’’ तब कृष्ण वासुदेव अरिहंत अरिष्टनेमि को इस प्रकार बोले – ‘‘हे भगवन् ! यहाँ से काल के समय काल कर मैं कहाँ जाऊंगा, कहाँ उत्पन्न होऊंगा ?’’ अरिष्टनेमि भगवान ने कहा – हे कृष्ण ! तुम सूरा, अग्नि और द्वैपायन के कोप के कारण इस द्वारका नगरी के जल कर नष्ट हो जाने पर और अपने माता – पिता एवं स्वजनों का वियोग हो जाने पर राम बलदेव के साथ दक्षिणी समुद्र के तट की ओर पाण्डुराजा के पुत्र युधिष्ठिर आदि पाँचों पाण्डवों के समीप पाण्डु मथुरा की ओर जाओगे। रास्ते में विश्राम लेने के लिए कौशाम्ब वन – उद्यान में अत्यन्त विशाल एक वटवृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिलापट्ट पर पीताम्बर ओढ़कर तुम सो जाओगे। उस समय मृग के भ्रम में जराकुमार द्वारा चलाया हुआ तीक्ष्ण तीर तुम्हारे बाएं पैर में लगेगा। इस तीक्ष्ण तीर से विद्ध होकर तुम काल के समय काल करके वालुकाप्रभा नामक तीसरी पृथ्वी में जन्म लोगे। प्रभु के श्रीमुख से अपने आगामी भव की यह बात सूनकर कृष्ण वासुदेव खिन्नमन होकर आर्त्तध्यान करने लगे। तब अरिहंत अरिष्टनेमि पुनः बोले – ‘‘हे देवानुप्रिय ! तुम खिन्नमन होकर आर्त्तध्यान मत करो। निश्चय से कालान्तर में तुम तीसरी पृथ्वी से नीकलकर इसी जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में आने वाले उत्सर्पिणी काल में पुंड्र जनपद के शतद्वार नगर में ‘‘अमम’’ नाम के बारहवें तीर्थंकर बनोगे। वहाँ बहुत वर्षों तक केवली पर्याय का पालन कर तुम सिद्ध – बुद्ध – मुक्त होओगे।’’ अरिहंत प्रभु के मुखारविन्द से अपने भविष्य का यह वृत्तान्त सूनकर कृष्ण वासुदेव बड़े प्रसन्न हुए और अपनी भुजा पर ताल ठोकने लगे। जयनाद करके त्रिपदी – भूमि में तीन बार पाँव का न्यास किया – कूदे। थोड़ा पीछे हटकर सिंहनाद किया और फिर भगवान नेमिनाथ को वंदन – नमस्कार करके अपने अभिषेक – योग्य हस्तिरत्न पर आरूढ़ हुए और द्वारका नगरी के मध्य से होते हुए अपने राजप्रासाद में आए। अभिषेकयोग्य हाथी से नीचे ऊतरे और फिर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी वहाँ आए। वे सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बिराजमान हुए। फिर अपने आज्ञाकारी पुरुषों – को बुलाकर बोले – देवानुप्रियों ! तुम द्वारका नगरी के शृंगाटक आदि में जोर – जोर से घोषणा करते हुए इस प्रकार कहो कि – ‘‘हे द्वारकावासी नगरजनों ! इस बारह योजन लम्बी यावत् प्रत्यक्ष – स्वर्गपुरी के समान द्वारका नगरी का सूरा, अग्नि एवं द्वैपायन के कोप के कारण नाश होगा, इसलिए हे देवानुप्रियों ! द्वारका नगरी में जिसकी ईच्छा हो, चाहे वह राजा हो, युवराज हो, ईश्वर हो, तलवर हो, माडंबिक हो, कौटुम्बिक हो, इभ्य हो, रानी हो, कुमार हो, कुमारी हो, राजरानी हो, राजपुत्री हो, इनमें से जो भी प्रभु नेमिनाथ के निकट मुण्डित होकर यावत् दीक्षा लेना चाहे, उसे कृष्ण वासुदेव ऐसा करने की आज्ञा देते हैं। दीक्षार्थी के पीछे उसके आश्रित सभी कुटुंबीजनों की भी श्रीकृष्ण यथायोग्य व्यवस्था करेंगे और बड़े ऋद्धि – सत्कार के साथ उसका दीक्षा – महोत्सव संपन्न करेंगे।’’ इस प्रकार दो – तीन बार घोषणा को दोहरा कर पुनः मुझे सूचित करो।’’ कृष्ण का यह आदेश पाकर उन आज्ञाकारी राजपुरुषों ने वैसी ही घोषणा दो – तीन बार करके लौटकर इसकी सूचना श्रीकृष्ण को दी। इसके बाद वह पद्मावती महारानी भगवान अरिष्टनेमि से धर्मोपदेश सूनकर एवं उसे हृदय में धारण करके प्रसन्न और सन्तुष्ट हुई, उसका हृदय प्रफुल्लित हो उठा। यावत् वह अरिहंत नेमिनाथ को वंदना – नमस्कार करके इस प्रकार बोली – भन्ते ! निर्ग्रन्थ प्रवचन पर मैं श्रद्धा करती हूँ। जैसा आप कहते हैं वैसा ही है। आपका धर्मोपदेश यथार्थ है। हे भगवन् ! मैं कृष्ण वासुदेव की आज्ञा लेकर फिर देवानुप्रिय के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ। प्रभु ने कहा – ‘जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो। हे देवानुप्रियों ! धर्म – कार्य में विलम्ब मत करो।’ बाद पद्मावती देवी धार्मिक श्रेष्ठ रथ पर आरूढ़ होकर द्वारका नगरी में अपने प्रासाद में आकर जहाँ पर कृष्ण वासुदेव थे वहाँ आकर अपने दोनों हाथ जोड़कर सिर झुकाकर, मस्तक पर अंजलि कर कृष्ण वासुदेव से इस प्रकार बोली – ‘देवानुप्रिय ! आपकी आज्ञा हो तो मैं अरिहंत नेमिनाथ के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करना चाहती हूँ।’ कृष्ण ने कहा – ‘देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो।’ तब कृष्ण वासुदेव ने अपने आज्ञाकारी पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार आदेश दिया – देवानुप्रियों ! शीघ्र ही महारानी पद्मावती के दीक्षामहोत्सव की विशाल तैयारी करो, और तैयारी हो जाने की मुझे सूचना दो। तब आज्ञाकारी पुरुषों ने वैसा ही किया और दीक्षामहोत्सव की तैयारी की सूचना दी। इसके बाद कृष्ण वासुदेव ने पद्मावती देवी को पट्ट पर बिठाया और एक सौ आठ सुवर्णकलशों से यावत् निष्क्रमणाभिषेक से अभिषिक्त किया। फिर सभी प्रकार के अलंकारों से विभूषित करके हजार पुरुषों द्वारा उठायी जाने वाली शिबिका में बिठाकर द्वारका नगरी के मध्य से होते हुए नीकले और जहाँ रैवतक पर्वत और सहस्राम्रवन उद्यान था उस और चले। वहाँ पहुँच कर पद्मावती देवी शिबिका से ऊतरी। तदनन्तर कृष्ण वासुदेव जहाँ अरिष्टनेमि भगवान थे वहाँ आए, आकर भगवान को तीन बार प्रदक्षिणा करके वंदना – नमस्कार किया, इस प्रकार बोले – ‘‘भगवन ! यह पद्मावती देवी मेरी पटरानी है। यह मेरे लिए इष्ट है, कान्त है, प्रिय है, मनोज्ञ है और मन के अनुकूल चलने वाली है, अभिराम है। भगवन् ! यह मेरे जीवन में श्वासोच्छ्वास के समान है, मेरे हृदय को आनन्द देने वाली है। इस प्रकार का स्त्री – रत्न उदुम्बर के पुष्प के समान सूनने के लिए भी दुर्लभ है; तब देखने की तो बात ही क्या है ? हे देवानु – प्रिय ! मैं ऐसी अपनी प्रिय पत्नी की भिक्षा शिष्या रूप में आपको देता हूँ। आप उसे स्वीकार करें।’’ कृष्ण वासुदेव की प्रार्थना सूनकर प्रभु बोले – ‘देवानुप्रिय ! तुम्हें जिस प्रकार सुख हो वैसा करो।’ तब उस पद्मावती देवी ने ईशान – कोण में जाकर स्वयं अपने हाथों से आभूषण एवं अलंकार ऊतारे, स्वयं ही अपने केशों का पंचमुष्टिक लोच किया। फिर भगवान नेमिनाथ के पास आकर वन्दना की। इस प्रकार कहा – ‘‘भगवन् ! यह संसार जन्म, जरा, मरण आदि दुःख रूपी आग में जल रहा है। यावत् मुझे दीक्षा दें।’’ इसके बाद भगवान नेमिनाथ ने पद्मावती देवी को स्वयमेव प्रव्रज्या दी, और स्वयं ही यक्षिणी आर्या को शिष्या के रूप में प्रदान की। तब यक्षिणी आर्या ने पद्मावती को धर्मशिक्षा दी, यावत् इस प्रकार संयमपूर्वक प्रवृत्ति करनी चाहिए। तब वह पद्मावती आर्या ईर्यासमिति यावत् ब्रह्मचारिणी आर्या हो गई। तदनन्तर उस पद्मावती आर्या ने यक्षिणी आर्या से सामयिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया, बहुत से उपवास – बेले – तेले – चोले – पचोले – मास और अर्धमास – खमण आदि विविध तपस्या से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। इस तरह पद्मावती आर्या ने पूरे बीस वर्ष तक चारित्रधर्म का पालन किया और अन्त में एक मास की संलेखना से आत्मा को भावित कर, साठ भक्त अनशन पूर्ण कर, जिस अर्थ – प्रयोजन के लिए नग्नभाव, (आदि धारण किए थे यावत्) उस अर्थ का आराधन कर अन्तिम श्वास से सिद्ध – बुद्ध – मुक्त हो गई। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam pamchamassa vaggassa dasa ajjhayana pannatta, padhamassa nam bhamte! Ajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam baravai nagari. Jaha padhame java kanhe vasudeve ahevachcham java karemane palemane viharai. Tassa nam kanhassa vasudevassa paumavai nama devi hottha–vannao. Tenam kalenam tenam samaenam araha aritthanemi samosadhe java samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Kanhe vasudeve niggae java pajjuvasai. Tae nam sa paumavai devi imise kahae laddhattha samani hatthatuttha jaha devai devi java pajjuvasai. Tae nam araha aritthanemi kanhassa vasudevassa paumavaie ya devie tise mahatimahaliyae mahachchaparisae chaujjamam dhammam kahei, tam jaha–savvao panaivayao veramanam, savvao musavayao veramanam, savvao adinnadanao veramanam, savvao pariggahato veramanam. Parisa padigaya. Tae nam kanhe vasudeve araham aritthanemim vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–imise nam bhamte! Baravaie nagarie navajoyana vitthinnae java devalogabhuyae kimmulae vinase bhavissai? Kanhai! Araha aritthanemi kanham vasudevam evam vayasi–evam khalu kanha! Imise baravaie nayarie navajoyanavitthinnae java devalogabhuyae suraggidivayanamulae vinase bhavissai. Kanhassa vasudevassa arahao aritthanemissa amtie eyam sochcha nisamma ayam ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–dhanna nam te jali-mayali-uvayali-purisasena-varisena-pajjunna-samba-aniruddha-dadhanemi-sachchanemi-ppabhiyao kumara je nam chaitta hirannam java danam daiyanam paribhaetta arahao aritthanemissa amtiyam mumda bhavitta agarao anagariyam pavvaiya. Ahannam adhanne akayapunne rajje ya ratthe ya kose ya kotthagare ya bale ya vahane ya pure yaamteure ya manussaesu ya kamabhogesu muchchhie gadhie giddhe ajjhovavanne no samchaemi arahao aritthanemissa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Kanhai! Araha aritthanemi kanham vasudevam evam vayasi–se nunam kanha! Tava ayam ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha– dhanna nam te jalippabhiikumara java pavvaiya. Ahannam adhanne java no samchaemi arahao aritthanemissa amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Se nunam kanha! Atthe samatthe? Hamta atthi. Tam no khalu kanha! Evam bhutam va bhavvam va bhavissai va jannam vasudeva chaitta hirannam java pavvaissamti. Se kenatthenam bhamte! Evam vuchchai na etam bhutam vabhavvam va bhavissai va jannam vasudeva chaitta hirannam java pavvaissamti? Kanhai! Araha aritthanemi kanham vasudevam evam vayasi–evam khalu kanha! Savve vi ya nam vasudeva puvvabhave nidanakada. Se etenatthenam kanha! Evam vuchchai na etam bhutam va bhavvam va bhavissai va jannam vasudeva chaitta hirannam java pavvaissamti. Tae nam se kanhe vasudeve araham aritthanemim evam vayasi–aham nam bhamte! Ito kalamase kalam kichcha kahim gamissami? Kahim uvavajjissami? Tae nam araha aritthanemi kanham vasudevam evam vayasi–evam khalu kanha! Tumam baravaie nayarie suraggi-divayana-kova-nidaddhae ammapii-niyaga-vippahune ramena baladevena saddhim dahinaveyalim abhimuhe juhitthillapamokkhanam pamchanham pamdavanam pamdurayaputtanam pasam pamdumahuram sampatthie kosambavana kanane naggohavarapayavassa ahe pudhavisilapattae piyavattha-pachchhaiya-sarire jarakumarenam tikkhenam kodamda-vippamukkenam usuna vame pade viddhe samane kalamase kalam kichcha tachchae valuyappabhae pudhavie ujjalie narae neraiyattae uvavajjihisi. Tae nam se kanhe vasudeve arahao aritthanemissa amtie eyamattham sochcha nisamma ohayamana samkappe karatalapalhatthamuhe attajjhanovagae-jjhiyai. Kanhai! Araha aritthanemi kanham vasudevam evam vayasi–ma nam tumam devanuppiya! Ohayamanasamkappe java jjhiyaha evam khalu tumam devanuppiya! Tachchao pudhavio ujjaliyao narayao anamtaram uvvattitta iheva jambuddive dive bharahe vase agamessae ussappinie pamdesu janavaesu sayaduvare nagare barasame amame namam araha bhavissasi. Tattha tumam bahuim vasaim kevalipariyagam paunetta sijjhihisi bujjhihisi muchchihisi parinivvahisi savvadukkhanam amtam kahisi. Tae nam se kanhe vasudeve arahao aritthanemissa amtie eyamattham sochcha nisamma hatthatutthe java apphodei, apphodetta vaggai, vaggitta tivaim chhimdai, chhimditta sihanayam karei, karetta araham aritthanemim vamdai namamsai, vamditta namamsitta tameva abhisekkam hatthim duruhai, duruhitta jeneva baravai nayari jeneva sae gihe teneva uvagae. Abhiseya-hatthirayanao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva bahiriya uvatthana-sala jeneva sae sihasane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta sihasanavaramsi puratthabhimuhe nisiyati, nisiitta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe devanuppiya! Baravaie nayarie simghadaga-tiga-chaukka-chachchara-chaummuha-mahapahapahesu hatthikhamdhavaragaya mahaya-mahaya saddenam ugghose-mana-ugghosemana evam vayaha–evam khalu devanuppiya! Bara-vaie nayarie navajoyana-vichchhinnae java devalogabhuyae suraggi-divayanamulae vinase bhavissai; tam jo nam devanuppiya! Ichchhai baravaie nayarie raya va juvaraya va isare va talavare va madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi va devi va kumaro va kumari va arahao aritthanemissa amtie mumde bhavitta agarao anagariyampavvaittae, tam nam kanhe vasudeve visajjei. Pachchhaturassa vi ya se ahapavittam vittim anujanai. Mahaya iddhisakkarasamudaenam ya se nikkhamanam karei. Dochcham pi tachcham pi ghosanayam ghosei, ghosetta mamam eyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiya java pachchappinamti. Tae nam sa paumavai devi arahao aritthanemissa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatuttha-chittamanamdiya java harisavasa visappamanahiyaya araham aritthanemim vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, se jaheyam tubbhe vayaha. Jam navaram–devanuppiya! Kanham vasudevam apuchchhami. Tae nam aham devanuppiyanam amtie mumda bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam sa paumavai devi dhammiyam janappavaram duruhai, duruhitta jeneva baravai nayari jeneva sae gihe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta dhammiyao janappavarao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva kanhe vasudeve teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavatta matthae amjalim kattu kanham vasudevam evam vayasi–ichchhami nam devanuppiya! Tubbhehim abbhanunnaya samana arahao aritthanemissa amtie mumda bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se kanhe vasudeve kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Paumavaie devie mahattham mahaggham mahariham nikkhamanabhiseyam uvatthaveha, uvatthavetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam te kodumbiyapurisa java tamanattiyam pachchappinamti. Tae nam se kanhe vasudeve paumavaim devim pattayam duruhei, atthasaenam sovannakalasanam java mahanikkhamanabhiseenam abhisimchai, abhisimchitta savvalamkaravibhusiyam karei, karetta purisasahassa-vahinim sibiyam duruhavei, duruhavetta baravaie nayarie majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva revayae pavvae jeneva sahasambavane ujjane teneva uvagachchhai, uvagachchhitta siyam thavei, paumavaim devimsiyao pachchoruhai, pachchoruhitta jeneva araha aritthanemi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta araham aritthanemim tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–esa nam bhamte! Mama aggamahisi paumavai namam devi ittha kamta piya manunna manabhirama java umbarapuppham piva dullaha savanayae, kimamga puna pasanayae? Tannam aham devanuppiya! Sissinibhikkham dalayami. Padichchhamtu nam devanuppiya! Sissinibhikkham. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham kareha. Tae nam sa paumavai uttarapuratthimam disibhagam avakkamai, avakkamitta sayameva abharanalamkaram omuyai, omuyitta sayameva pamchamutthiyam loyam karei, karetta jeneva araha aritthanemi teneva uvagachchhai, uvagachchhitta araham aritthanemim vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–alitte nam bhamte! Loe java tam ichchhami nam devanuppiehim dhammamaikkhiya. Tae nam araha aritthanemi paumavaim devim sayameva pavvavei, pavvavetta sayameva jakkhinie ajjae sissinittae dalayai. Tae nam sa jakkhini ajja paumavaim devim sayameva pavvavei sayameva mumdavei sayameva sehaveti dhammamaikkhai–evam devanuppie! Gamtavvam java samjamenamsamjamiyavvam. Tae nam sa paumavai devi tamanae taha chitthai java samjamenam samjamai. Tae nam sa paumavai ajja jaya. Iriyasamiya java guttabambhayarini. Tae nam sa paumavai ajja jakkhinie ajjae amtie samaiyamaiyaim ekkarasa amgaim ahijjai, bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhamasakkhamanehim vivihehim tavokammehim appanam bhavemani viharai. Tae nam sa paumavai ajja bahupadipunnaim visam vasaim samannapariyagam paunai, paunitta masiyae samlehanae appanam jjhusei, jjhusetta satthim bhattaim anasanae chhedei, chhedetta jassatthae kirai naggabhave mumdabhave java tamattham arahei, charimussasehim siddha. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Jambusvami ne punah puchha – ‘‘bhante ! Shramana bhagavana mahavira ne pamchama varga ke dasa adhyayana kahe haim to prathama adhyayana ka kya artha kaha hai\?’’ ‘‘he jambu ! Usa kala usa samaya mem dvaraka namaka nagari thi, yavat shrikrishna vasudeva vaham rajya kara rahe the. Shrikrishna vasudeva ki padmavati nama ki maharani thi. (rajnyivarnana jana lena). Usa kala usa samaya mem arihamta arishtanemi vicharate hue dvaraka nagari mem padhare. Shrikrishna vamdana – namaskara karane hetu rajaprasada se nikalakara prabhu ke pasa pahumche yavat prabhu arishtanemi ki paryupasana karane lage. Usa samaya padmavati devi ne bhagavana ke ane ki khabara suni to vaha atyanta prasanna hui. Vaha bhi devaki maharani ke samana dharmika ratha para arurha hokara bhagavana ko vamdana karane gai. Yavat neminatha ki paryupasana karane lagi. Arihamta arishtanemi ne krishna vasudeva, padmavati devi aura parishada ko dharmakatha kahi. Dharmakatha sunakara jana – parishad vapisa lauta gai. Taba krishna vasudeva ne bhagavana neminatha ko vamdana – namaskara karake unase isa prakara prichchha ki – ‘‘bhagavan ! Baraha yojana lambi aura nau yojana chauri yavat sakshata devaloka ke samana isa dvaraka nagari ka vinasha kisa karana se hoga\?’’ ‘he krishna !’ isa prakara sambodhita karate hue arihamta arishtanemi ne uttara diya – ‘‘he krishna ! Nishchaya hi baraha yojana lambi aura nau yojana chauri yavat pratyaksha svargapuri ke samana isa dvaraka nagari ka vinasha madira, agni aura dvaipayana ke kopa ke karana hoga.’’ arihamta arishtanemi se dvaraka nagari ke vinasha ka karana suna – samajhakara shrikrishna vasudeva ke mana mem aisa vichara, chintana, prarthita evam manogata samkalpa utpanna hua ki – ve jali, mayali, uvayali, purisasena, virasena, pradyumna, shamba, aniruddha, drirhanemi aura satyanemi prabhriti kumara dhanya haim jo hiranyadi deyabhaga dekara, neminatha prabhu ke pasa mundita yavat pravrajita ho gae haim. Maim adhanya hum, akrita – punya hum ki rajya, antahpura aura manushya sambamdhi kamabhogom mem murchchhita hum, inhem tyagakara bhagavana neminatha ke pasa mundita hokara anagara rupa pravrajita hone mem asamartha hum. Bhagavana neminatha prabhu ne apane jnyana – bala se krishna vasudeva ke mana mem aye ina vicharom ko janakara arttadhyana mem dube hue krishna vasudeva se isa prakara kaha – ‘‘nishchaya hi he krishna ! Tumhare mana mem aisa vichara utpanna hua – ve jali, mayali adi dhanya haim yavat maim pravrajya nahim le sakata. He krishna ! Kya yaha bata sahi hai\?’’ shrikrishna ne kaha – ‘‘ham bhagavan ! Hai.’’ ‘‘to he krishna ! Aisa kabhi hua nahim, hota nahim aura hoga bhi nahim ki vasudeva apane bhava mem dhana – dhanya – svarna adi sampatti chhorakara munivrata le lem. Vasudeva diksha lete nahim, nahim evam bhavishya mem kabhi lemge bhi nahim.’’ shrikrishna ne kaha – ‘‘he bhagavan ! Aisa kyom kaha jata hai ki aisa kabhi hua nahim, hota nahim aura hoga bhi nahim\?’’ ‘‘he krishna ! Nishchaya hi sabhi vasudeva purva bhava mem nidanakrita hote haim, isalie maim aisa kahata hum ki aisa kabhi hua nahim, hota nahim aura hoga bhi nahim ki vasudeva kabhi pravrajya amgikara karem.’’ Taba krishna vasudeva arihamta arishtanemi ko isa prakara bole – ‘‘he bhagavan ! Yaham se kala ke samaya kala kara maim kaham jaumga, kaham utpanna houmga\?’’ arishtanemi bhagavana ne kaha – he krishna ! Tuma sura, agni aura dvaipayana ke kopa ke karana isa dvaraka nagari ke jala kara nashta ho jane para aura apane mata – pita evam svajanom ka viyoga ho jane para rama baladeva ke satha dakshini samudra ke tata ki ora panduraja ke putra yudhishthira adi pamchom pandavom ke samipa pandu mathura ki ora jaoge. Raste mem vishrama lene ke lie kaushamba vana – udyana mem atyanta vishala eka vatavriksha ke niche, prithvishilapatta para pitambara orhakara tuma so jaoge. Usa samaya mriga ke bhrama mem jarakumara dvara chalaya hua tikshna tira tumhare baem paira mem lagega. Isa tikshna tira se viddha hokara tuma kala ke samaya kala karake valukaprabha namaka tisari prithvi mem janma loge. Prabhu ke shrimukha se apane agami bhava ki yaha bata sunakara krishna vasudeva khinnamana hokara arttadhyana karane lage. Taba arihamta arishtanemi punah bole – ‘‘he devanupriya ! Tuma khinnamana hokara arttadhyana mata karo. Nishchaya se kalantara mem tuma tisari prithvi se nikalakara isi jambudvipa ke bharata kshetra mem ane vale utsarpini kala mem pumdra janapada ke shatadvara nagara mem ‘‘amama’’ nama ke barahavem tirthamkara banoge. Vaham bahuta varshom taka kevali paryaya ka palana kara tuma siddha – buddha – mukta hooge.’’ arihamta prabhu ke mukharavinda se apane bhavishya ka yaha vrittanta sunakara krishna vasudeva bare prasanna hue aura apani bhuja para tala thokane lage. Jayanada karake tripadi – bhumi mem tina bara pamva ka nyasa kiya – kude. Thora pichhe hatakara simhanada kiya aura phira bhagavana neminatha ko vamdana – namaskara karake apane abhisheka – yogya hastiratna para arurha hue aura dvaraka nagari ke madhya se hote hue apane rajaprasada mem ae. Abhishekayogya hathi se niche utare aura phira jaham bahara ki upasthanashala thi vaham ae. Ve simhasana para purvabhimukha birajamana hue. Phira apane ajnyakari purushom – ko bulakara bole – Devanupriyom ! Tuma dvaraka nagari ke shrimgataka adi mem jora – jora se ghoshana karate hue isa prakara kaho ki – ‘‘he dvarakavasi nagarajanom ! Isa baraha yojana lambi yavat pratyaksha – svargapuri ke samana dvaraka nagari ka sura, agni evam dvaipayana ke kopa ke karana nasha hoga, isalie he devanupriyom ! Dvaraka nagari mem jisaki ichchha ho, chahe vaha raja ho, yuvaraja ho, ishvara ho, talavara ho, madambika ho, kautumbika ho, ibhya ho, rani ho, kumara ho, kumari ho, rajarani ho, rajaputri ho, inamem se jo bhi prabhu neminatha ke nikata mundita hokara yavat diksha lena chahe, use krishna vasudeva aisa karane ki ajnya dete haim. Diksharthi ke pichhe usake ashrita sabhi kutumbijanom ki bhi shrikrishna yathayogya vyavastha karemge aura bare riddhi – satkara ke satha usaka diksha – mahotsava sampanna karemge.’’ isa prakara do – tina bara ghoshana ko dohara kara punah mujhe suchita karo.’’ krishna ka yaha adesha pakara una ajnyakari rajapurushom ne vaisi hi ghoshana do – tina bara karake lautakara isaki suchana shrikrishna ko di. Isake bada vaha padmavati maharani bhagavana arishtanemi se dharmopadesha sunakara evam use hridaya mem dharana karake prasanna aura santushta hui, usaka hridaya praphullita ho utha. Yavat vaha arihamta neminatha ko vamdana – namaskara karake isa prakara boli – bhante ! Nirgrantha pravachana para maim shraddha karati hum. Jaisa apa kahate haim vaisa hi hai. Apaka dharmopadesha yathartha hai. He bhagavan ! Maim krishna vasudeva ki ajnya lekara phira devanupriya ke pasa mundita hokara diksha grahana karana chahati hum. Prabhu ne kaha – ‘jaise tumhem sukha ho vaisa karo. He devanupriyom ! Dharma – karya mem vilamba mata karo.’ bada padmavati devi dharmika shreshtha ratha para arurha hokara dvaraka nagari mem apane prasada mem akara jaham para krishna vasudeva the vaham akara apane donom hatha jorakara sira jhukakara, mastaka para amjali kara krishna vasudeva se isa prakara boli – ‘devanupriya ! Apaki ajnya ho to maim arihamta neminatha ke pasa mundita hokara diksha grahana karana chahati hum.’ krishna ne kaha – ‘devanupriye ! Jaise tumhem sukha ho vaisa karo.’ taba krishna vasudeva ne apane ajnyakari purushom ko bulakara isa prakara adesha diya – devanupriyom ! Shighra hi maharani padmavati ke dikshamahotsava ki vishala taiyari karo, aura taiyari ho jane ki mujhe suchana do. Taba ajnyakari purushom ne vaisa hi kiya aura dikshamahotsava ki taiyari ki suchana di. Isake bada krishna vasudeva ne padmavati devi ko patta para bithaya aura eka sau atha suvarnakalashom se yavat nishkramanabhisheka se abhishikta kiya. Phira sabhi prakara ke alamkarom se vibhushita karake hajara purushom dvara uthayi jane vali shibika mem bithakara dvaraka nagari ke madhya se hote hue nikale aura jaham raivataka parvata aura sahasramravana udyana tha usa aura chale. Vaham pahumcha kara padmavati devi shibika se utari. Tadanantara krishna vasudeva jaham arishtanemi bhagavana the vaham ae, akara bhagavana ko tina bara pradakshina karake vamdana – namaskara kiya, isa prakara bole – ‘‘bhagavana ! Yaha padmavati devi meri patarani hai. Yaha mere lie ishta hai, kanta hai, priya hai, manojnya hai aura mana ke anukula chalane vali hai, abhirama hai. Bhagavan ! Yaha mere jivana mem shvasochchhvasa ke samana hai, mere hridaya ko ananda dene vali hai. Isa prakara ka stri – ratna udumbara ke pushpa ke samana sunane ke lie bhi durlabha hai; taba dekhane ki to bata hi kya hai\? He devanu – priya ! Maim aisi apani priya patni ki bhiksha shishya rupa mem apako deta hum. Apa use svikara karem.’’ krishna vasudeva ki prarthana sunakara prabhu bole – ‘devanupriya ! Tumhem jisa prakara sukha ho vaisa karo.’ Taba usa padmavati devi ne ishana – kona mem jakara svayam apane hathom se abhushana evam alamkara utare, svayam hi apane keshom ka pamchamushtika locha kiya. Phira bhagavana neminatha ke pasa akara vandana ki. Isa prakara kaha – ‘‘bhagavan ! Yaha samsara janma, jara, marana adi duhkha rupi aga mem jala raha hai. Yavat mujhe diksha dem.’’ isake bada bhagavana neminatha ne padmavati devi ko svayameva pravrajya di, aura svayam hi yakshini arya ko shishya ke rupa mem pradana ki. Taba yakshini arya ne padmavati ko dharmashiksha di, yavat isa prakara samyamapurvaka pravritti karani chahie. Taba vaha padmavati arya iryasamiti yavat brahmacharini arya ho gai. Tadanantara usa padmavati arya ne yakshini arya se samayika se lekara gyaraha amgom ka adhyayana kiya, bahuta se upavasa – bele – tele – chole – pachole – masa aura ardhamasa – khamana adi vividha tapasya se atma ko bhavita karati hui vicharane lagi. Isa taraha padmavati arya ne pure bisa varsha taka charitradharma ka palana kiya aura anta mem eka masa ki samlekhana se atma ko bhavita kara, satha bhakta anashana purna kara, jisa artha – prayojana ke lie nagnabhava, (adi dharana kie the yavat) usa artha ka aradhana kara antima shvasa se siddha – buddha – mukta ho gai. |