Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1005132 | ||
Scripture Name( English ): | Upasakdashang | Translated Scripture Name : | उपासक दशांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
अध्ययन-४ सुरादेव |
Translated Chapter : |
अध्ययन-४ सुरादेव |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 32 | Category : | Ang-07 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नामं गाहावइ परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्ण-कोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं सुरादेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था। तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स वन्ना नामं भारिया होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा जाव मानुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोट्ठए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ। तए णं से सुरादेवे गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओ-गिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासण्णयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए? तं गच्छामि णं देवानुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि– एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता ण्हाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाइं पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मनुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं वाणारसिं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्ठए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता नच्चासण्णे नाइदूरे सुस्सूसमाणे नमंसमाणे अभिमुहे विनएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ। तए णं समणे भगवं महावीरे सुरादेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ। परिसा पडिगया, राया य गए। तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवानुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खा-वइयं–दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सावयधम्मं पडिवज्जइ। तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदाइ वाणारसीए नयरीए कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाए–अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ। तए णं सा धन्ना भारिया समणोवासिया जाया–अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संचारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ। तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। तए णं सुरादेवे समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजनं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता वाणारसिं नयरिं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहित्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भ संथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | उपोद्घातपूर्वक चतुर्थ अध्ययन का प्रारम्भ यों है। जम्बू ! उस काल – उस समय – वाराणसी नामक नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था। राजा का नाम जितशत्रु था। वहाँ सुरादेव गाथापति था। वह अन्यन्त समृद्ध था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में उसके खजाने में थीं, यावत् उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस – दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी का नाम धन्या था। भगवान महावीर पधारे। आनन्द की तरह सुरादेव ने भी श्रावक – धर्म स्वीकार किया। कामदेव की तरह वह भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप उपासना – रत हुआ। एकदा आधी रात के समय श्रमणोपासक सुरादेव के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उसने तलवार नीकाल – कर श्रमणोपासक सुरादेव से कहा – मृत्यु को चाहने वाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि तुम आज शील, व्रत आदि का भंग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे बड़े बेटे को घर से उठा लाऊंगा। तुम्हारे सामने उसे मार डालूँगा। उसके पाँच मांस – खण्ड करूँगा, उबलते पानी से भरी कढ़ाही में खौलाऊंगा, उसके मांस और रक्त से तुम्हारे शरीर को सींचूंगा, जिससे तुम असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे। इसी प्रकार उसने मझले और छोटे लड़के को भी मार डालने, उनको पाँच – पाँच मांस – खंड़ों में काट डालने की धमकी दी। चुलनीपिता के समान ही उसने किया, विशेषता यह कि यहाँ पाँच – पाँच खंड – किए। तब उस देव ने श्रमणोपासक सुरादेव को चौथी बार भी कहा – मृत्यु को चाहनेवाले श्रमणोपासक सुरादेव ! यदि अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो आज मैं तुम्हारे शरीरमें एक ही साथ श्वास – कास – यावत् कोढ़, ये सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर दूँगा, जिससे तुम आर्त्तध्यान से यावत् जीवन से हाथ धो बैठोगे। तब भी श्रमणोपासक सुरादेव धर्म – ध्यान में लगा रहा तो उस देव ने दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam sattamassa amgassa uvasagadasanam tachchassa ajjhayanassa ayamatthe pannatte, chautthassa nam bhamte! Ajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam vanarasi namam nayari. Kotthae cheie. Jiyasattu raya. Tattha nam vanarasie nayarie suradeve namam gahavai parivasai–addhe java bahujanassa aparibhue. Tassa nam suradevassa gahavaissa chha hirannakodio nihanapauttao, chha hirannakodio vaddhipauttao, chha hiranna-kodio pavittharapauttao, chha vvaya dasagosahassienam vaenam hottha. Se nam suradeve gahavai bahunam java apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi java savvakajjavaddhavae yavi hottha. Tassa nam suradevassa gahavaissa vanna namam bhariya hottha–ahina-padipunna-pamchimdiyasarira java manussae kamabhoe pachchanubhavamani viharai. Tenam kalenam tenam samaenam samane bhagavam mahavire java jeneva vanarasi nayari jeneva kotthae cheie teneva uvagachchhai, uvagachchhitta ahapadiruvam oggaham oginhitta samjamenam tavasa appanam bhavemane viharai. Parisa niggaya. Kunie raya jaha, taha jiyasattu niggachchhai java pajjuvasai. Tae nam se suradeve gahavai imise kahae laddhatthe samane–evam khalu samane bhagavam mahavire puvvanupuvvim charamane gamanugamam duijjamane ihamagae iha sampatte iha samosadhe iheva vanarasie nayarie bahiya kotthae cheie ahapadiruvam oggaham o-ginhitta samjamena tavasa appanam bhavemane viharai. Tam mahapphalam khalu bho! Devanuppiya! Taharuvanam arahamtanam bhagavamtanam namagoyassa vi savanayae, kimamga puna abhigamana-vamdana-namamsana-padipuchchhana-pajjuvasannayae? Egassa vi ariyassa dhammiyassa suvayanassa savanayae, kimamga puna viulassa atthassa gahanayae? Tam gachchhami nam devanuppiya! Samanam bhagavam mahaviram vamdami namamsami sakkaremi sammanemi kallanam mamgalam devayam cheiyam pajjuvasami– Evam sampehei, sampehetta nhae kayavalikamme kayakouya-mamgalapayachchhitte suddhappavesaim mamgallaim vatthaim pavara parihie appamahagghabharanalamkiyasarire sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta sakoremtamalladamenam chhattenam dharijjamanenam manussavagguraparikhitte padaviharacharenam vanarasim nayarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jenameva kotthae cheie, jeneva samane bhagavam mahavire, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta nachchasanne naidure sussusamane namamsamane abhimuhe vinaenam pamjaliude pajjuvasai. Tae nam samane bhagavam mahavire suradevassa gahavaissa tise ya mahaimahaliyae parisae java dhammam parikahei. Parisa padigaya, raya ya gae. Tae nam se suradeve gahavai samanassa bhagavao mahavirassa amtie dhammam sochcha nisamma hatthatutthachittamanamdie piimane paramasomanassie harisavasa-visappamanahiyae utthae utthei, utthetta samanam bhagavam mahaviram tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi– Saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, pattiyami nam bhamte! Niggamtham pavayanam, roemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam, abbhutthemi nam bhamte! Niggamtham pavayanam. Evameyam bhamte! Tahameyam bhamte! Avitahameyam bhamte! Asamdiddhameyam bhamte! Ichchhiyameyam bhamte! Padichchhiyameyam bhamte! Ichchhiya-padichchhiyameyam bhamte! Se jaheyam tubbhe vadaha. Jaha nam devanuppiyanam amtie bahave raisara-talavara-madambiya-kodumbiya-ibbha-setthi-senavai-satthavahappabhiiya mumda bhavitta agarao anagariyam pavvaiya, no khalu aham taha samchaemi mumde bhavitta agarao anagariyam pavvaittae. Aham nam devanuppiyanam amtie pamchanuvvaiyam sattasikkha-vaiyam–duvalasaviham savagadhammam padivajjissami. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham karehi. Tae nam se suradeve gahavai samanassa bhagavao mahavirassa amtie savayadhammam padivajjai. Tae nam samane bhagavam mahavire annada kadai vanarasie nayarie kotthayao cheiyao padinikkhamai, padinikkhamitta bahiya janavayaviharam viharai. Tae nam se suradeve samanovasae jae–abhigayajivajive java samane niggamthe phasu-esanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam osaha-bhesajjenam padihariena ya pidha-phalaga-sejja-samtharaenam padilabhemane viharai. Tae nam sa dhanna bhariya samanovasiya jaya–abhigayajivajiva java samane niggamthe phasu-esanijjenam asana-pana-khaima-saimenam vattha-padiggaha-kambala-payapumchhanenam osaha-bhesajjenam padihariena ya pidha-phalaga-sejja-samcharaenam padilabhemani viharai. Tae nam tassa suradevassa samanovasagassa uchchavaehim sila-vvaya-guna-veramana-pachchakkhana-posahovavasehim appanam bhavemanassa choddasa samvachchharaim viikkamtaim. Pannarasamassa samvachchharassa amtara vattamanassa annada kadai puvvarattavarattakalasamayamsi dhammajagariyam jagaramanassa imeyaruve ajjhatthie chimtie patthie manogae samkappe samuppajjittha–evam khalu aham vanarasie nayarie bahunam java apuchchhanijje padipuchchhanijje, sayassa vi ya nam kudumbassa medhi java savvakajjavaddhavae, tam etenam vakkhevenam aham no samchaemi samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharittae. Tae nam suradeve samanovasae jetthaputtam mitta-nai-niyaga-sayana-sambamdhi-parijanam cha apuchchhai, apuchchhitta sayao gihao padinikkhamai, padinikkhamitta vanarasim nayarim majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva posahasala, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta posahasalam pamajjai, pamajjitta uchcharapasavanabhumim padilehei, padilehitta dabbhasamtharayam samtharei, samtharetta dabbha samtharayam duruhai, duruhitta posahasalae posahie bambhayari ummukkamanisuvanne vavagayamalavannagavilevane nikkhittasatthamusale ege abie dabbhasamtharovagae samanassa bhagavao mahavirassa amtiyam dhammapannattim uvasampajjitta nam viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Upodghatapurvaka chaturtha adhyayana ka prarambha yom hai. Jambu ! Usa kala – usa samaya – varanasi namaka nagari thi. Koshthaka namaka chaitya tha. Raja ka nama jitashatru tha. Vaham suradeva gathapati tha. Vaha anyanta samriddha tha. Chhaha karora svarna – mudraem sthayi pumji ke rupa mem usake khajane mem thim, yavat usake chhaha gokula the. Pratyeka gokula mem dasa – dasa hajara gayem thim. Usaki patni ka nama dhanya tha. Bhagavana mahavira padhare. Ananda ki taraha suradeva ne bhi shravaka – dharma svikara kiya. Kamadeva ki taraha vaha bhagavana mahavira ke pasa amgikrita dharma – prajnyapti – ke anurupa upasana – rata hua. Ekada adhi rata ke samaya shramanopasaka suradeva ke samaksha eka deva prakata hua. Usane talavara nikala – kara shramanopasaka suradeva se kaha – mrityu ko chahane vale shramanopasaka suradeva ! Yadi tuma aja shila, vrata adi ka bhamga nahim karate ho to maim tumhare bare bete ko ghara se utha laumga. Tumhare samane use mara dalumga. Usake pamcha mamsa – khanda karumga, ubalate pani se bhari karhahi mem khaulaumga, usake mamsa aura rakta se tumhare sharira ko simchumga, jisase tuma asamaya mem hi jivana se hatha dho baithoge. Isi prakara usane majhale aura chhote larake ko bhi mara dalane, unako pamcha – pamcha mamsa – khamrom mem kata dalane ki dhamaki di. Chulanipita ke samana hi usane kiya, visheshata yaha ki yaham pamcha – pamcha khamda – kie. Taba usa deva ne shramanopasaka suradeva ko chauthi bara bhi kaha – mrityu ko chahanevale shramanopasaka suradeva ! Yadi apane vratom ka tyaga nahim karoge to aja maim tumhare shariramem eka hi satha shvasa – kasa – yavat korha, ye solaha bhayanaka roga utpanna kara dumga, jisase tuma arttadhyana se yavat jivana se hatha dho baithoge. Taba bhi shramanopasaka suradeva dharma – dhyana mem laga raha to usa deva ne dusari bara, tisari bara phira vaisa hi kaha. |