Sutra Navigation: Upasakdashang ( उपासक दशांग सूत्र )

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Sr No : 1005121
Scripture Name( English ): Upasakdashang Translated Scripture Name : उपासक दशांग सूत्र
Mool Language : Ardha-Magadhi Translated Language : Hindi
Chapter :

अध्ययन-२ कामदेव

Translated Chapter :

अध्ययन-२ कामदेव

Section : Translated Section :
Sutra Number : 21 Category : Ang-07
Gatha or Sutra : Sutra Sutra Anuyog :
Author : Deepratnasagar Original Author : Gandhar
 
Century : Sect : Svetambara1
Source :
 
Mool Sutra : [सूत्र] तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी अंतियं आउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ। तस्स णं दिव्वस्स पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते–सीसं से गोकिलंज-संठाण-संठियं, सालिभसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियं निडालं मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकाओ फुग्गफुग्गाओ विगय-बीभत्स-दंसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभत्स-दंसणाइं, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभत्स-दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, ज्झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया, घोडयपुच्छं व तस्स मंसूइं कविल-कविलाइं विगय-बीभत्स-दंसणाइं, उट्ठा उट्टस्स चेव लंबा, फालसरिसा से दंता, जिब्भा जह सुप्पकत्तरं चेव विगय-बीभत्स-दंसणिज्जा, हल-कुड्डाल-संठिया से हणुया, गल्लकडिल्लं व तस्स खड्डं फुट्टं कविलं फरुसं महल्लं, मुइंगाकारोवमे से खंधे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोट्ठिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स बाहा, निसापाहाण-संठाण-संठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, निसालोढ-संठाण-संठियाओ हत्थेसु अंगुलीओ, सिप्पिपुडगसंठिया से नखा, ण्हावियपसेवओ व्व उरम्मि लंबंति दो वि तस्स थणया, पोट्टं अयकोट्ठओ व्व वट्टं, पान-कलंद-सरिसा से नाही, सिक्कग-संठाण-संठिए से नेत्ते, किण्णपुड-संठाण-संठिया दो वि तस्स वसणा, जमल-कोट्ठिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स उरू, अज्जुण-गुट्ठं व तस्स जाणूइं कुडिल-कुडिलाइं विगय-बीभत्स-दंसणाइं, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहिं उवचियाओ, अहरी-संठाण-संठिया दो वि तस्स पाया, अहरी-लोढ-संठाण-संठियाओ पाएसु अंगुलीओ, सिप्पिपुडसंठिया से नखा। लडह-मडह-जाणुए, विगय-भग्ग-भुग्ग-भुमए, अवदालिय-वयण-विवर-निल्लालियग्गजाहे, सरड-कयमालियाए उंदुरमाला-परिणद्ध-सुकयचिंधं, नउल-कयकण्णपूरे, सप्प-कयवेगच्छे, अप्फो-डंते, अभिगज्जंते, भीम-मुक्कट्टहासे, नानाविह-पंचवण्णेहिं लोमेहिं उवचिए एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधार असिं गहाय जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! कामदेवा! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्णचाउ-द्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्ख-कामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया! पुण्ण-पिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहो-ववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अनुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ।
Sutra Meaning : (तत्पश्चात्‌ किसी समय) आधी रात के समय श्रमणोपासक कामदेव के समक्ष एक मिथ्यादृष्टि, मायावी देव प्रकट हुआ। उस देव ने एक विशालकाय पिशाच का रूप धारण किया। उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है – उस पिशाच का सिर गाय को चारा देने की बाँस की टोकरी जैसा था। बाल – चावल की मंजरी के तन्तुओं के समान रूखे और मोटे थे, भूरे रंग के थे, चमकीले थे। ललाट बड़े मटके के खप्पर जैसा बड़ा था। भौंहें गिलहरी की पूँछ की तरह बिखरी हुई थीं, देखने में बड़ी विकृत और बीभत्स थीं। ‘मटकी’ जैसी आँखें, सिर से बाहर नीकली थीं, देखने में विकृत और बीभत्स थीं। कान टूटे हुए सूप – समान बड़े भद्दे और खराब दिखाई देते थे। नाक मेढ़े की नाक की तरह थी। गड्ढों जैसे दोनों नथूने ऐसे थे, मानों जुड़े हुए दो चूल्हे हों। घोड़े की पूँछ जैसी उनकी मूँछें भूरी थीं, विकृत और बीभत्स लगती थीं। उसके होठ ऊंट के होठों की तरह लम्बे थे। दाँत हल की लोहे की कुश जैसे थे। जीभ सूप के टुकड़े जैसी थी। ठुड्डी हल की नोक की तरह थी। कढ़ाही की ज्यों भीतर धँसे उसके गाल खड्डों जैसे लगते थे, फटे हुए, भूरे रंग के, कठोर तथा विकराल थे। उसके कन्धे मृदंग जैसे थे। वक्षःस्थल – नगर के फाटक के समान चौड़ी थी। दोनों भुजाएं कोष्ठिका – समान थीं। उसकी दोनों हथेलियाँ मूँग आदि दलने की चक्की के पाट जैसी थीं। हाथों की अंगुलियाँ लोढी के समान थीं। उसके नाखून सीपियों जैसे थे। दोनों स्तन नाई की उस्तरा आदि की तरह छाती पर लटक रहे थे। पेट लोहे के कोष्ठक – समान गोलाकार। नाभि बर्तन के समान गहरी थी। उसका नेत्र – छींके की तरह था। दोनों अण्डकोष फैले हुए दो थैलों जैसे थे। उसकी दोनों जंघाएं एक जैसी दो कोठियों के समान थीं। उसके घुटने अर्जुन – वृक्ष – विशेष के गाँठ जैसे, टेढ़े, देखने में विकृत व बीभत्स थे। पिंडलियाँ कठोर थीं, बालों से भरी थीं। उसके दोनों पैर दाल आदि पीसने की शीला के समान थे। पैर की अंगुलियाँ लोढ़ी जैसी थीं। अंगुलियों के नाखून सीपियों के सदृश थे। उस पिशाच के घुटने मोटे एवं ओछे थे, गाड़ी के पीछे ढीले बंधे काठ की तरह लड़खड़ा रहे थे। उसकी भौंहें विकृत – भग्न और टेढ़ी थीं। उसने अपना दरार जैसा मुँह फाड़ रखा था, जीभ बाहर नीकाल रखी थी। वह गिरगिटों की माला पहने था। चूहों की माला भी उसने धारण कर रखी थी। उसके कानों में कुण्डलों के स्थान पर नेवले लटक रहे थे। उसने अपनी देह पर साँपों को दुपट्टे की तरह लपेट रखा था। वह भुजाओं पर अपने हाथ ठोक रहा था, गरज रहा था, भयंकर अट्टहास कर रहा था। उसका शरीर पाँचों रंगों के बहुविध केशों से व्याप्त था। वह पिशाच नीले कमल, भैंसे के सींग तथा अलसी के फूल जैसी गहरी नीली, तेज धार वाली तलवार लिए, जहाँ पोषधशाला थी, श्रमणोपासक कामदेव था, वहाँ आया। अत्यन्त क्रुद्ध, रुष्ट, कुपित तथा विकराल होता हुआ, मिसमिसाहट करता हुआ – तेज साँस छोड़ता हुआ श्रमणोपासक कामदेव से बोला – अप्रार्थित – उस मृत्यु को चाहने वाले ! पुण्यचतुर्दशी जिस दिन हीन – थी – घटिकाओं में अमावास्या आ गई थी, उस अशुभ दिन में जन्मे हुए अभागे! लज्जा, शोभा, धृति तथा कीर्ति से परिवर्जित ! धर्म, पुण्य, स्वर्ग और मोक्ष की कामना ईच्छा एवं पिपासा – रखने वाले ! शील, व्रत, विरमण, प्रत्याख्यान तथा पोषधोपवास से विचलित होना, विक्षुभित होना, उन्हें खण्डित करना, भग्न करना, उज्झित करना – परित्याग करना तुम्हें नहीं कल्पता है – इनका पालन करने में तुम कृतप्रतिज्ञ हो। पर, यदि तुम आज शील, एवं पोषधोपवास का त्याग नहीं करोगे, मैं इस तलवार से तुम्हारे टुकड़े – टुकड़े कर दूँगा, जिससे हे देवानुप्रिय ! तुम आर्त्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से पृथक्‌ हो जाओगे – प्राणों से हाथ धो बैठोगे। उस पिशाच द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक कामदेव भीत, त्रस्त, उद्विग्न, क्षुभित एवं विचलित नहीं हुआ; घबराया नहीं। वह चूपचाप – शान्त भाव से धर्म – ध्यान में स्थित रहा।
Mool Sutra Transliteration : [sutra] tae nam tassa kamadevassa samanovasagassa puvvarattavarattakalasamayamsi ege deve mayi michchhaditthi amtiyam aubbhue. Tae nam se deve egam maham pisayaruvam viuvvai. Tassa nam divvassa pisayaruvassa ime eyaruve vannavase pannatte–sisam se gokilamja-samthana-samthiyam, salibhasella-sarisa se kesa kavilateenam dippamana, uttiya-kabhalla-samthana-samthiyam nidalam mugumsapuchchham va tassa bhumakao phuggaphuggao vigaya-bibhatsa-damsanao, sisaghadiviniggayaim achchhini vigaya-bibhatsa-damsanaim, kanna jaha suppa-kattaram cheva vigaya-bibhatsa-damsanijja, urabbhapudasamnibha se nasa, jjhusira jamala-chulli-samthana-samthiya do vi tassa nasapudaya, ghodayapuchchham va tassa mamsuim kavila-kavilaim vigaya-bibhatsa-damsanaim, uttha uttassa cheva lamba, phalasarisa se damta, jibbha jaha suppakattaram cheva vigaya-bibhatsa-damsanijja, hala-kuddala-samthiya se hanuya, gallakadillam va tassa khaddam phuttam kavilam pharusam mahallam, muimgakarovame se khamdhe, puravarakavadovame se vachchhe, kotthiya-samthana-samthiya do vi tassa baha, nisapahana-samthana-samthiya do vi tassa aggahattha, nisalodha-samthana-samthiyao hatthesu amgulio, sippipudagasamthiya se nakha, nhaviyapasevao vva urammi lambamti do vi tassa thanaya, pottam ayakotthao vva vattam, pana-kalamda-sarisa se nahi, sikkaga-samthana-samthie se nette, kinnapuda-samthana-samthiya do vi tassa vasana, jamala-kotthiya-samthana-samthiya do vi tassa uru, ajjuna-guttham va tassa januim kudila-kudilaim vigaya-bibhatsa-damsanaim, jamghao kakkhadio lomehim uvachiyao, ahari-samthana-samthiya do vi tassa paya, ahari-lodha-samthana-samthiyao paesu amgulio, sippipudasamthiya se nakha. Ladaha-madaha-janue, vigaya-bhagga-bhugga-bhumae, avadaliya-vayana-vivara-nillaliyaggajahe, sarada-kayamaliyae umduramala-parinaddha-sukayachimdham, naula-kayakannapure, sappa-kayavegachchhe, appho-damte, abhigajjamte, bhima-mukkattahase, nanaviha-pamchavannehim lomehim uvachie egam maham niluppala-gavalaguliya-ayasikusumappagasam khuradhara asim gahaya jeneva posahasala, jeneva kamadeve samanovasae, teneva uvagachchhai, uvagachchhitta asuratte rutthe kuvie chamdikkie misimisiyamane kamadevam samanovasayam evam vayasi– Hambho! Kamadeva! Samanovasaya! Appatthiyapatthiya! Duramta-pamta-lakkhana! Hinapunnachau-ddasiya! Siri-hiri-dhii-kitti-parivajjiya! Dhammakamaya! Punnakamaya! Saggakamaya! Mokkha-kamaya! Dhammakamkhiya! Punnakamkhiya! Saggakamkhiya! Mokkhakamkhiya! Dhammapivasiya! Punna-pivasiya! Saggapivasiya! Mokkhapivasiya! No khalu kappai tava devanuppiya! Silaim vayaim veramanaim pachchakkhanaim posahovavasaim chalittae va khobhittae va khamdittae va bhamjittae va ujjhittae va parichchaittae va, tam jai nam tumam ajja silaim vayaim veramanaim pachchakkhanaim posaho-vavasaim na chhaddesi na bhamjesi, to tam aham ajja imenam niluppala-gavalaguliya-ayasikusumappagasena khuradharena asina khamdakhamdi karemi, jaha nam tumam devanuppiya! Atta-duhatta-vasatte akale cheva jiviyao vavarovijjasi. Tae nam se kamadeve samanovasae tenam divvenam pisayaruvenam evam vutte samane abhie atatthe anuvvigge akhubhie achalie asambhamte tusinie dhammajjhanovagae viharai.
Sutra Meaning Transliteration : (tatpashchat kisi samaya) adhi rata ke samaya shramanopasaka kamadeva ke samaksha eka mithyadrishti, mayavi deva prakata hua. Usa deva ne eka vishalakaya pishacha ka rupa dharana kiya. Usaka vistrita varnana isa prakara hai – usa pishacha ka sira gaya ko chara dene ki bamsa ki tokari jaisa tha. Bala – chavala ki mamjari ke tantuom ke samana rukhe aura mote the, bhure ramga ke the, chamakile the. Lalata bare matake ke khappara jaisa bara tha. Bhaumhem gilahari ki pumchha ki taraha bikhari hui thim, dekhane mem bari vikrita aura bibhatsa thim. ‘mataki’ jaisi amkhem, sira se bahara nikali thim, dekhane mem vikrita aura bibhatsa thim. Kana tute hue supa – samana bare bhadde aura kharaba dikhai dete the. Naka merhe ki naka ki taraha thi. Gaddhom jaise donom nathune aise the, manom jure hue do chulhe hom. Ghore ki pumchha jaisi unaki mumchhem bhuri thim, vikrita aura bibhatsa lagati thim. Usake hotha umta ke hothom ki taraha lambe the. Damta hala ki lohe ki kusha jaise the. Jibha supa ke tukare jaisi thi. Thuddi hala ki noka ki taraha thi. Karhahi ki jyom bhitara dhamse usake gala khaddom jaise lagate the, phate hue, bhure ramga ke, kathora tatha vikarala the. Usake kandhe mridamga jaise the. Vakshahsthala – nagara ke phataka ke samana chauri thi. Donom bhujaem koshthika – samana thim. Usaki donom hatheliyam mumga adi dalane ki chakki ke pata jaisi thim. Hathom ki amguliyam lodhi ke samana thim. Usake nakhuna sipiyom jaise the. Donom stana nai ki ustara adi ki taraha chhati para lataka rahe the. Peta lohe ke koshthaka – samana golakara. Nabhi bartana ke samana gahari thi. Usaka netra – chhimke ki taraha tha. Donom andakosha phaile hue do thailom jaise the. Usaki donom jamghaem eka jaisi do kothiyom ke samana thim. Usake ghutane arjuna – vriksha – vishesha ke gamtha jaise, terhe, dekhane mem vikrita va bibhatsa the. Pimdaliyam kathora thim, balom se bhari thim. Usake donom paira dala adi pisane ki shila ke samana the. Paira ki amguliyam lorhi jaisi thim. Amguliyom ke nakhuna sipiyom ke sadrisha the. Usa pishacha ke ghutane mote evam ochhe the, gari ke pichhe dhile bamdhe katha ki taraha larakhara rahe the. Usaki bhaumhem vikrita – bhagna aura terhi thim. Usane apana darara jaisa mumha phara rakha tha, jibha bahara nikala rakhi thi. Vaha giragitom ki mala pahane tha. Chuhom ki mala bhi usane dharana kara rakhi thi. Usake kanom mem kundalom ke sthana para nevale lataka rahe the. Usane apani deha para sampom ko dupatte ki taraha lapeta rakha tha. Vaha bhujaom para apane hatha thoka raha tha, garaja raha tha, bhayamkara attahasa kara raha tha. Usaka sharira pamchom ramgom ke bahuvidha keshom se vyapta tha. Vaha pishacha nile kamala, bhaimse ke simga tatha alasi ke phula jaisi gahari nili, teja dhara vali talavara lie, jaham poshadhashala thi, shramanopasaka kamadeva tha, vaham aya. Atyanta kruddha, rushta, kupita tatha vikarala hota hua, misamisahata karata hua – teja samsa chhorata hua shramanopasaka kamadeva se bola – aprarthita – usa mrityu ko chahane vale ! Punyachaturdashi jisa dina hina – thi – ghatikaom mem amavasya a gai thi, usa ashubha dina mem janme hue abhage! Lajja, shobha, dhriti tatha kirti se parivarjita ! Dharma, punya, svarga aura moksha ki kamana ichchha evam pipasa – rakhane vale ! Shila, vrata, viramana, pratyakhyana tatha poshadhopavasa se vichalita hona, vikshubhita hona, unhem khandita karana, bhagna karana, ujjhita karana – parityaga karana tumhem nahim kalpata hai – inaka palana karane mem tuma kritapratijnya ho. Para, yadi tuma aja shila, evam poshadhopavasa ka tyaga nahim karoge, maim isa talavara se tumhare tukare – tukare kara dumga, jisase he devanupriya ! Tuma arttadhyana evam vikata duhkha se pirita hokara asamaya mem hi jivana se prithak ho jaoge – pranom se hatha dho baithoge. Usa pishacha dvara yom kahe jane para bhi shramanopasaka kamadeva bhita, trasta, udvigna, kshubhita evam vichalita nahim hua; ghabaraya nahim. Vaha chupachapa – shanta bhava se dharma – dhyana mem sthita raha.