Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004803 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 103 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तए णं तेसिं लोगंतियाणं देवाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसणाइं चलंति तहेव जाव तं जीयमेयं लोगंतियाणं देवाणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संबोहणं करित्तए त्ति। तं गच्छामो णं अम्हे वि मल्लिस्स अरहओ संबोहणं करेमो त्ति कट्टु एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, एवं जहा जंभगा जाव जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रन्नो भवणे जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणियाइं दसद्धवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयल-परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं वग्गूहिं एवं वयासी–बुज्झाहि भगवं लोगणाहा! पवत्तेहि धम्मतित्थं जीवाणं हियसुहनिस्सेयसकरं भविस्सइ त्ति कट्टु दोच्चंपि तच्चंपि एवं वयंति, मल्लिं अरहं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। तए णं मल्ली अरहा तेहिं लोगंतिएहिं देवेहिं संबोहिए समाणे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–इच्छामि णं अम्मयाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेह। तए णं कुंभए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अट्ठसहस्सेणं भोमेज्जाणं कलसाणं अन्नं च महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह। तेवि जाव उवट्ठवेंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे जाव अच्चुयपज्जवसाणा आगया। तए णं सक्के देविंदे देवराया आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव अन्नं च महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह। तेवि जाव उवट्ठवेंति। तेवि कलसा तेसु चेव कलसेसु अनुपविट्ठा। तए णं से सक्के देविंदे देवराया कुंभए य राया मल्लिं अरहं सीहासनंसि पुरत्थाभिमुहं निवेसेंति, अट्ठसहस्सेणं सोवण्णियाणं कलसाणं जाव तित्थयराभिसेयं अभिसिंचंति। तए णं मल्लिस्स भगवओ अभिसेए वट्टमाणे अप्पेगइया देवा मिहिलं च सब्भिंतरबाहिरियं जाव सव्वओ समंता आधावंति परिधावंति। तए णं कुंभए राया दोच्चंपि उत्तरावक्कमणं सीहासनं रयावेइ, जाव सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करेत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! मणोरम सीयं उवट्ठवेह। तेवि उवट्ठवेंति। तए णं सक्के देविंदे देवराया आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! अणे-गखंभसय-सन्निविट्ठं जाव मणोरमं सीयं उवट्ठवेह। तेवि जाव उवट्ठवेंति। सावि सीया तं चेव सीयं अनुप्पविट्ठा। तए णं मल्ली अरहा सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव मणोरमा सीया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं अणुपयाहिणीकरेमाणे मणोरमं सीयं दुरुहइ, दुरुहित्ता सीहासनवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। तए णं कुंभए अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! ण्हाया जाव सव्वा लंकारविभूसिया मल्लिस्स सीयं परिवहह। तेवि जाव परिवहंति। तए णं सक्के देविंदे देवराया मणोरमाए सीयाए दक्खिणिल्लं उवरिल्लं बाहं गेण्हइ, ईसाणे उत्तरिल्लं बाहं गेण्हइ, चमरे दाहिणिल्लं हेट्ठिल्लं, वली उत्तरिल्लं हेट्ठिल्लं, अवसेसा देवा जहारिहं मनोरमं सीयं परिवहंति। | ||
Sutra Meaning : | तत्पश्चात् उन लौकान्तिक देवों में से प्रत्येक के आसन चलायमान हुए – इत्यादि उसी प्रकार जानना दीक्षा लेने की ईच्छा करने वाले तीर्थंकरो को सम्बोधन करना हमारा आचार है; अतः हम जाएं और अरहन्त मल्ली को सम्बोधन करें, ऐसा लौकान्तिक देवों ने विचार किया। उन्होंने ईशान दिशा में जाकर वैक्रियसमुद्घात से विक्रिया की। समुद्घात करके संख्यात योजन उल्लंघन करके, जृंभक देवों की तरह जहाँ मिथिला राजधानी थी, जहाँ कुम्भ राजा का भवन था और जहाँ मल्ली नामक अर्हत् थे, वहाँ आकर के – अधर में स्थित रहकर घुँघरूओं के शब्द सहित यावत् श्रेष्ठ वस्त्र धारण करके, दोनों हाथ जोड़कर, इष्ट, यावत् वाणी से बोले – ‘हे लोक के नाथ ! हे भगवन् ! बूझो – बोध पाओ। धर्मतीर्थ की प्रवृत्ति करो। वह धर्मतीर्थ जीवों के लिए हितकारी, सुखकारी और निःश्रेयसकारी होगा।’ इस प्रकार कहकर दूसरी बार और तीसरी बार भी कहा। अरहंत मल्ली को वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना और नमस्कार करके जिस दिशा से आए थे उसी दिशा में लौट गए। तत्पश्चात् लौकान्तिक देवों द्वारा सम्बोधित मल्ली अरहंत माता – पिता के पास आए। आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके कहा – ‘हे माता – पिता ! आपकी आज्ञा प्राप्त करके मुण्डित होकर गृहत्याग करके अनगार – प्रव्रज्या ग्रहण करने की मेरी ईच्छा है। तब माता – पिता ने कहा – ‘हे देवानुप्रिये ! जैसे सुख उपजे वैसा करो। प्रतिबन्ध – विलम्ब मत करो।’ तत्पश्चात् कुम्भ राजा न कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा – ‘शीघ्र ही एक हजार आठ सुवर्णकलश यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलश लाओ। उसके अतिरिक्त महान् अर्थ वाली यावत् तीर्थंकर के अभिषेक की सब सामग्री उपस्थित करो।’ यह सूनकर कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया, अर्थात् अभिषेक की समस्त सामग्री तैयार कर दी। उस काल और उस समय चामर नामक असुरेन्द्र से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के सभी इन्द्र आ पहुँचे। तब देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘शीघ्र ही एक हजार आठ स्वर्णकलश आदि यावत् दूसरी अभिषेक के योग्य सामग्री उपस्थित करो।’ यह सूनकर आभियोगिक देवों ने भी सब सामग्री उपस्थित की। वे देवों के कलश उन्हीं मनुष्यों के कलशों में समा गए। तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र और कुम्भ राजा ने मल्ली अरहंत को सिंहासन के ऊपर पूर्वाभिमुख आसीन किया। फिर सुवर्ण आदि के एक हजार आठ पूर्वोक्त कलशों से यावत् उनका अभिषेक किया। तत्पश्चात् जब मल्ली भगवान् का अभिषेक हो रहा था, उस समय कोई – कोई देव मिथिला नगरी के भीतर और बाहर यावत् सब दिशाओं – विदिशाओं में दौड़ने लगे इधर – उधर फिरने लगे। तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने दूसरी बार उत्तर दिशा में सिंहासन रखवाया यावत् भगवान् मल्ली को सर्व अलंकारों से विभूषित किया। कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘शीघ्र ही मनोरमा नामकी शिबिका लाओ।’ कौटुम्बिक पुरुष मनोरमा शिबिका ले आए। तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाया। बुलाकर उनसे कहा – शीघ्र ही अनेक खम्भों वाली यावत् मनोरमा नामक शिबिका उपस्थित करो। तब वे देव भी मनोरमा शिबिका लाये और वह शिबिका भी उसी मनुष्यों की शिबिका में समा गई। तत्पश्चात् मल्ली अरहंत सिंहासन से उठे। जहाँ मनोरमा शिबिका थी, उधर आकर मनोरमा शिबिका की प्रदक्षिणा करके मनोरमा शिबिका पर आरूढ़ हुए। पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर बिराजमान हुए। कुम्भ राजा ने अठारह जातियों – उपजातियों को बुलवाकर कहा – ‘हे देवानुप्रियो ! तुम लोग स्नान करके यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित होकर मल्ली कुमारी की शिबिका वहन करो।’ यावत् उन्होंने शिबिका वहन की। शक्र देवेन्द्र देवराज ने मनोरमा शिबिका की दक्षिण तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, ईशान इन्द्र ने उत्तर तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, चमरेन्द्र ने दक्षिण तरफ की और बली ने उत्तर तरफ की नीचली बाहा ग्रहण की। शेष देवों ने यथायोग्य उस मनोरमा शिबिका को वहन किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tae nam tesim logamtiyanam devanam patteyam-patteyam asanaim chalamti taheva java tam jiyameyam logamtiyanam devanam arahamtanam bhagavamtanam nikkhamamananam sambohanam karittae tti. Tam gachchhamo nam amhe vi mallissa arahao sambohanam karemo tti kattu evam sampehemti, sampehetta uttarapuratthimam disibhagam avakkamamti, avakkamitta veuvviyasamugghaenam samohannamti, samohanitta samkhejjaim joyanaim damdam nisiramti, evam jaha jambhaga java jeneva mihila rayahani jeneva kumbhagassa ranno bhavane jeneva malli araha teneva uvagachchhamti, uvagachchhitta amtalikkhapadivanna sakhimkhiniyaim dasaddhavannaim vatthaim pavara parihiya karayala-pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu tahim itthahim kamtahim piyahim manunnahim manamahim vagguhim evam vayasi–bujjhahi bhagavam loganaha! Pavattehi dhammatittham jivanam hiyasuhanisseyasakaram bhavissai tti kattu dochchampi tachchampi evam vayamti, mallim araham vamdamti namamsamti, vamditta namamsitta jameva disim paubbhuya tameva disim padigaya. Tae nam malli araha tehim logamtiehim devehim sambohie samane jeneva ammapiyaro teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala pariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu evam vayasi–ichchhami nam ammayao! Tubbhehim abbhanunnae samane mumde bhavitta nam agarao anagariyam pavvaittae. Ahasuham devanuppiya! Ma padibamdham kareha. Tae nam kumbhae raya kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Atthasahassenam sovanniyanam kalasanam java atthasahassenam bhomejjanam kalasanam annam cha mahattham mahaggham mahariham viulam titthayarabhiseyam uvatthaveha. Tevi java uvatthavemti. Tenam kalenam tenam samaenam chamare asurimde java achchuyapajjavasana agaya. Tae nam sakke devimde devaraya abhiogie deve saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Atthasahassenam sovanniyanam kalasanam java annam cha mahattham mahaggham mahariham viulam titthayarabhiseyam uvatthaveha. Tevi java uvatthavemti. Tevi kalasa tesu cheva kalasesu anupavittha. Tae nam se sakke devimde devaraya kumbhae ya raya mallim araham sihasanamsi puratthabhimuham nivesemti, atthasahassenam sovanniyanam kalasanam java titthayarabhiseyam abhisimchamti. Tae nam mallissa bhagavao abhisee vattamane appegaiya deva mihilam cha sabbhimtarabahiriyam java savvao samamta adhavamti paridhavamti. Tae nam kumbhae raya dochchampi uttaravakkamanam sihasanam rayavei, java savvalamkaravibhusiyam karei, karetta kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Manorama siyam uvatthaveha. Tevi uvatthavemti. Tae nam sakke devimde devaraya abhiogie deve saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Ane-gakhambhasaya-sannivittham java manoramam siyam uvatthaveha. Tevi java uvatthavemti. Savi siya tam cheva siyam anuppavittha. Tae nam malli araha sihasanao abbhutthei, abbhutthetta jeneva manorama siya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta manoramam siyam anupayahinikaremane manoramam siyam duruhai, duruhitta sihasanavaragae puratthabhimuhe sannisanne. Tae nam kumbhae attharasa senippasenio saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Nhaya java savva lamkaravibhusiya mallissa siyam parivahaha. Tevi java parivahamti. Tae nam sakke devimde devaraya manoramae siyae dakkhinillam uvarillam baham genhai, isane uttarillam baham genhai, chamare dahinillam hetthillam, vali uttarillam hetthillam, avasesa deva jahariham manoramam siyam parivahamti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Tatpashchat una laukantika devom mem se pratyeka ke asana chalayamana hue – ityadi usi prakara janana diksha lene ki ichchha karane vale tirthamkaro ko sambodhana karana hamara achara hai; atah hama jaem aura arahanta malli ko sambodhana karem, aisa laukantika devom ne vichara kiya. Unhomne ishana disha mem jakara vaikriyasamudghata se vikriya ki. Samudghata karake samkhyata yojana ullamghana karake, jrimbhaka devom ki taraha jaham mithila rajadhani thi, jaham kumbha raja ka bhavana tha aura jaham malli namaka arhat the, vaham akara ke – adhara mem sthita rahakara ghumgharuom ke shabda sahita yavat shreshtha vastra dharana karake, donom hatha jorakara, ishta, yavat vani se bole – ‘he loka ke natha ! He bhagavan ! Bujho – bodha pao. Dharmatirtha ki pravritti karo. Vaha dharmatirtha jivom ke lie hitakari, sukhakari aura nihshreyasakari hoga.’ isa prakara kahakara dusari bara aura tisari bara bhi kaha. Arahamta malli ko vandana ki, namaskara kiya. Vandana aura namaskara karake jisa disha se ae the usi disha mem lauta gae. Tatpashchat laukantika devom dvara sambodhita malli arahamta mata – pita ke pasa ae. Akara donom hatha jorakara mastaka para amjali karake kaha – ‘he mata – pita ! Apaki ajnya prapta karake mundita hokara grihatyaga karake anagara – pravrajya grahana karane ki meri ichchha hai. Taba mata – pita ne kaha – ‘he devanupriye ! Jaise sukha upaje vaisa karo. Pratibandha – vilamba mata karo.’ tatpashchat kumbha raja na kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara kaha – ‘shighra hi eka hajara atha suvarnakalasha yavat eka hajara atha mitti ke kalasha lao. Usake atirikta mahan artha vali yavat tirthamkara ke abhisheka ki saba samagri upasthita karo.’ yaha sunakara kautumbika purushom ne vaisa hi kiya, arthat abhisheka ki samasta samagri taiyara kara di. Usa kala aura usa samaya chamara namaka asurendra se lekara achyuta svarga taka ke sabhi indra a pahumche. Taba devendra devaraja shakra ne abhiyogika devom ko bulakara isa prakara kaha – ‘shighra hi eka hajara atha svarnakalasha adi yavat dusari abhisheka ke yogya samagri upasthita karo.’ yaha sunakara abhiyogika devom ne bhi saba samagri upasthita ki. Ve devom ke kalasha unhim manushyom ke kalashom mem sama gae. Tatpashchat devendra devaraja shakra aura kumbha raja ne malli arahamta ko simhasana ke upara purvabhimukha asina kiya. Phira suvarna adi ke eka hajara atha purvokta kalashom se yavat unaka abhisheka kiya. Tatpashchat jaba malli bhagavan ka abhisheka ho raha tha, usa samaya koi – koi deva mithila nagari ke bhitara aura bahara yavat saba dishaom – vidishaom mem daurane lage idhara – udhara phirane lage. Tatpashchat kumbha raja ne dusari bara uttara disha mem simhasana rakhavaya yavat bhagavan malli ko sarva alamkarom se vibhushita kiya. Kautumbika purushom ko bulakara isa prakara kaha – ‘shighra hi manorama namaki shibika lao.’ kautumbika purusha manorama shibika le ae. Tatpashchat devendra devaraja shakra ne abhiyogika devom ko bulaya. Bulakara unase kaha – shighra hi aneka khambhom vali yavat manorama namaka shibika upasthita karo. Taba ve deva bhi manorama shibika laye aura vaha shibika bhi usi manushyom ki shibika mem sama gai. Tatpashchat malli arahamta simhasana se uthe. Jaham manorama shibika thi, udhara akara manorama shibika ki pradakshina karake manorama shibika para arurha hue. Purva disha ki ora mukha karake simhasana para birajamana hue. Kumbha raja ne atharaha jatiyom – upajatiyom ko bulavakara kaha – ‘he devanupriyo ! Tuma loga snana karake yavat sarva alamkarom se vibhushita hokara malli kumari ki shibika vahana karo.’ yavat unhomne shibika vahana ki. Shakra devendra devaraja ne manorama shibika ki dakshina tarapha ki upari baha grahana ki, ishana indra ne uttara tarapha ki upari baha grahana ki, chamarendra ne dakshina tarapha ki aura bali ne uttara tarapha ki nichali baha grahana ki. Shesha devom ne yathayogya usa manorama shibika ko vahana kiya. |