Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004791 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 91 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नामं जनवए होत्था। तत्थ णं हत्थिणाउरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं अदीनसत्तू नामं राया होत्था जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ। तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रन्नो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अनुमग्गजायए मल्लदिन्ने नामं कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव जुवराया यावि होत्था। तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कयाइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बोयकलिएहिं रूवेहिं चित्तेह, चितेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं सा चित्तगर-सेणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सयाइ गिहाइं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्तए तुलियाओ वण्णए य गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव चित्तसभा तेणेव अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता भूमिभागे विरचति, विरचित्ता भूमिं सज्जेइ, सज्जेत्ता चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बीय-कलिएहिं रूवेहिं चित्तेउं पयत्ता यावि होत्था। तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया–जस्स णं दुपयस्स वा चउपयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयानुरूवं निव्वत्तेइ। तए णं से चित्तगरे मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायंगुट्ठं पासइ। तए णं तस्स चित्तगस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था–सेयं खलु ममं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायगुट्ठाणुसारेणं सरिसगं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव -जोव्वण गुणोववेयं रूवं निव्वत्तिए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता भूमिभागं सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठासारेणं सरिसणं जाव रूवं निव्वत्तेइ। तए णं सा चित्तगर-सेणी चित्तसभं हाव-भाव-विलास-विब्बोयकलिएहिं रूवेहिं चित्तेइ, चित्तेत्ता जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणिं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे ण्हाए अंतेउर-परियाल-संपरिवुडे अम्मघाईए सद्धिं जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता चित्तसभं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता हाव-भाव-विलास-विब्बोयकलियाइं रूवाइं पासमाणे-पासमाणे जेणेव मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तियं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था–एस णं मल्ली विदेहरायवरकन्ने त्ति कट्टु लज्जिए विलिए वेड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ। तए णं तं मल्लदिन्नं कुमारं अम्मघाई सणियं-सणियं पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं पुत्ता! लज्जिए विलिए वेड्डे सणियं-सणियं पच्चोसक्कसि? तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मघाइं एवं वयासी–जुत्तं णं अम्मो! मम जेट्ठाए भगिनीए गुरु-देवयभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तसभं अनुपविसित्तए? तए णं अम्मघाई मल्लदिन्नं कुमारं एवं वयासी–नो खलु पुत्ता! एस मल्ली विदेहरायवरकन्ना। एस णं मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए चित्तगरएणं तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे अम्मघाईए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म आसुरुत्ते एवं वयासी–केस णं भो! से चित्तारए अपत्थिय पत्थए, दुरंत-पंत-लक्खणे, हीणपुण्णचाउद्दसिए, सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए, जे णं मम जेट्ठाए भगिनीए गुरु-देवयभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तसभाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए त्ति कट्टु तं चित्तगरं बज्झं आणवेइ। तए णं सा चित्तगर-सेणी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिन्ने कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु सामी! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगर-लद्धी लद्धा पत्ता अभिसमन्नागया–जस्स णं दुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ, तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं रूवं निव्वत्तेइ। तं मा णं सामी! तुब्भे तं चित्तगरं बज्झं आणवेह। तं तुब्भे णं सामी! तस्स चित्तगरस्स अन्नं तयाणुरूवं दंडं निव्वत्तेह। तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिंदावेइ, छिंदावेत्ता निव्विसयं आणवेइ। तए णं से चित्तगरे मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते समाणे सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाओ नयरीओ निक्खमइ, निक्खमित्ता विदेहस्स जनवयस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव कुरुजनवए जेणेव हत्थिणाउरे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग-च्छित्ता भंडनिक्खेवं करेइ, करेत्ता चित्तफलगं सज्जेइ, सज्जेत्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पायंगुट्ठाणुसारेण रूवं निव्वत्तेइ, निव्वत्ते-त्ता कक्खंतरंसि छुब्भइ, छुब्भित्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता हत्थिणाउरस्स नयरस्स मज्झंमज्झेणं जेणेव अदीनसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ वद्धावेत्ता पाहुडं उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी–एवं खलु अहं सामी! मिहिलाओ रायहाणीओ कुंभगस्स रन्नो पुत्तेण पभावईए देवीए अत्तएणं मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते समाणे इहं हव्वमागए। तं इच्छामि णं सामी! तुब्भं बाहुच्छाया-परिग्गहिए निब्भए निरुव्विग्गे सुहंसुहेणं परिवसित्तए। तए णं से अदीनसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिया! मल्लदिन्नेणं निव्विसए आणत्ते? तए णं से चित्तगरे अदीनसत्तुं रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कयाइ चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! मम चित्तसभं हाव-भाव-विलास-बिब्बोयकलिएहिं रूवेहिं चित्तेह तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव मम संडासगं छिंदावेइ, छिंदावेत्ता निव्विसयं आणवेइ। एवं खलु अहं सामी! मल्लदिन्नेणं कुमारेणं निव्विसए आणत्ते। तए णं अदीनसत्तू राया तं चित्तगरं एवं वयासी–से केरिसए णं देवानुप्पिया! तुमे मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तिए। तए णं से चित्तगरे कक्खंतराओ चित्तफलगं नीणेइ, नीणेत्ता अदीनसत्तुस्स उवनेइ, उवनेत्ताएवं वयासी–एस णं सामी मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवस्स रूवस्स केइ आगार-भाव-पडीयारे निव्वत्तिए। नो खलु सक्का केणइ देवेन वा दानवेन वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए तयाणुरूवे रूवे निव्वत्तित्तए। तए णं से अदीनसत्तू पडिरूव-जणिय-हासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–जाव मल्लिं विदेहरायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए अदीनसत्तुणा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे जाव जेणेव मिहिला नयरी तेणेव० पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में कुरु नामक जनपद था। उसमें हस्तिनापुर नगर था। अदीनशत्रु नामक वहाँ राजा था। यावत् वह विचरता था। उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था। वह युवराज था। किसी समय एक बार मल्लदिन्न कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा – ‘तुम जाओ और मेरे घर के उद्यान में एक बड़ी चित्रसभा का निर्माण करो, जो सैकड़ों स्तम्भों से युक्त हो, इत्यादि।’ यावत् उन्होंने ऐसा ही करके, चित्रसभा का निर्माण कर के आज्ञा वापिस लौटा दी। तत्पश्चात् मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की श्रेणी को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! तुम लोग चित्रसभा को हाव, भाव, विलास, बिब्बोक से युक्त रूपों से चित्रित करो। चित्रित करके यावत् मेरी आज्ञा वापिस लौटाओ।’ तत्पश्चात् चित्रकारों की श्रेणी ने कुमार की आज्ञा शिरोधार्य की। फिर वे अपने – अपने घर जाकर उन्होंने तूलिकाएं लीं और रंग लिए। लेकर जहाँ चित्रसभा थी वहाँ आए। चित्रसभा में प्रवेश करके भूमि भागों का विभाजन किया। विभाजन करके अपनी – अपनी भूमि को सज्जित किया तैयार किया – चित्रों के योग्य बनाया। सज्जित करके चित्रसभा में हाव – भाव आदि से युक्त चित्र अंकित करने में लग गए। उन चित्रकारों में से एक चित्रकार की ऐसी चित्रकारलब्धि लब्ध थी, प्राप्त थी और बार – बार उपयोग में आ चूकी थी कि वह जिस किसी द्विपद, चतुष्पद और अपद का एक अवयव भी देख ले तो उस अवयव के अनुसार उसका पूरा चित्र बना सकता था। उस समय एक बार उस लब्धि – सम्पन्न चित्रकारदारक ने यवनिका – पर्दे की ओट में रही हुई मल्ली कुमारी के पैर का अंगूठा जाली में से देखा – तत्पश्चात् उस चित्रकारदार को ऐसा विचार उत्पन्न हुआ, यावत् मल्ली कुमारी के पैर के अंगूठे के अनुसार उसका हूबहू यावत् गुणयुक्त – सुन्दर पूरा चित्र बनाना चाहिए। उसने भूमि के हिस्से को ठीक करके मल्ली के पैर के अंगूठे का अनुसरण करके यावत् उसका पूर्ण चित्र बना दिया। तत्पश्चात् चित्रकारों की उस मण्डली ने चित्रसभा को यावत् हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से चित्रित किया। चित्रित करके जहाँ मल्लूदिन्न कुमार था, वहाँ गई। जाकर यावत् कुमार की आज्ञा वापिस लौटाई मल्लदिन्न कुमार ने चित्रकारों की मण्डली का सत्कार किया, सम्मान किया, सत्कार – सम्मान करके जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया, दे करके बिदा कर दिया। ततपश्चात् किसी समय मल्लदिन्न कुमार स्नान करके, वस्त्राभूषण धारण करके अन्तःपुर एवं परिवार सहित, धायमाता को साथ लेकर, जहाँ चित्रसभा थी, वहाँ आया। आकर चित्रसभा के भीतर प्रवेश किया। हाव, भाव, विलास और बिब्बोक से युक्त रूपों को देखता – देखता जहाँ विदेह की श्रेष्ठ राजकन्या मल्ली का उसी के अनुरूप चित्र बना था, उसी ओर जाने लगा। उस समय मल्लदिन्न कुमार ने विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली का, उसके अनुरूप बना हुआ चित्र देखा। उसे विचार उत्पन्न हुआ – ‘अरे, यह तो विदेहवह राजकन्या मल्ली है !’ यह विचार आते ही वह लज्जित हो गया, व्रीडित हो गया और व्यर्दित हो गया, अत एव वह पीछे लौट गया। तत्पश्चात् रटते हुए मल्लमदिन्न को देखकर धाय माता ने कहा – ‘हे पुत्र ! तुम लज्जित, व्रीडित और व्यर्दित होकर धीरे – धीरे हट क्यों रहे हो ?’ तब मल्लदिन्न ने धाय माता से इस प्रकार कहा – ‘माता ! मेरी गुरु और देवता के समान ज्येष्ठ भगिनी के, जिससे मुझे लज्जित होना चाहिए, सामने, चित्रकारों की बनाई इस सभा में प्रवेश करना क्या योग्य है ?’ धाय माता ने मल्लदिन्न कुमार से इस प्रकार कहा – ‘हे पुत्र ! निश्चय ही यह साक्षात् विदेह की उत्तम कुमारी मल्ली नहीं है किन्तु चित्रकार ने उसके अनुरूप चित्रित की है तब मल्लदिन्न कुमार धाय माता के इस कथन को सूनकर और हृदय में धारण करके एकदम क्रुद्ध हो उठा और बोला – ‘कौन है वह चित्रकार मौत की ईच्छा करने वाला, यावत् जिसने गुरु और देवता के समान मेरी ज्येष्ठ भगिनी का यावत् यह चित्र बनाया है ?’ इस प्रकार कहकर उसने चित्रकार का वध करने की आज्ञा दे दी। तत्पश्चात् चित्रकारों की वह श्रेणी इस कथा – वृत्तान्त को सूनकर और समझकर जहाँ मल्लदिन्न कुमार था, वहाँ आई। आकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् मस्तक पर अंजलि करके कुमार को बधाया। बधाकर इस प्रकार कहा – ‘स्वामिन् ! निश्चय ही उस चित्रकार को इस प्रकार की चित्रकारलब्धि लब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभ्यास में आई है कि वह किसी द्विपद आदि के एक अवयव को देखता है, यावत् वह उसका वैसा ही पूरा रूप बना देता है। अत एव हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार के वध की आज्ञा मत दीजिए। हे स्वामिन् ! आप उस चित्रकार को कोई दूसरा योग्य दण्ड दे दीजिए।’ तत्पश्चात् मल्लदिन्न ने उस चित्रकार के संडासक छेदन करवा दिया और उसे देश – निर्वासन की आज्ञा दे दी। तब मल्लदिन्न के द्वारा देशनिर्वासन की आज्ञा पाया हुआ वह चित्रकार अपने भांड, पात्र और उपकरण आदि लेकर मिथिला नगरी से नीकला। विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ हस्तिनापुर नगर था, जहाँ कुरु नामक जनपद था और जहाँ अदीनशत्रु नामक राजा था, वहाँ आया। उसने अपना भांड आदि रखा। रखकर चित्रफलक ठीक किया। विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर उसका समग्र रूप चित्रित किया। चित्रफलक अपनी काँख में दबा लिया। फिर महान् अर्थ वाला यावत् राजा के योग्य बहुमूल्य उपहार ग्रहण किया। ग्रहण करके हस्तिनापुर नगर के मध्य में होकर अदीनशत्रु राजा के पास आया। दोनों हाथ जोड़कर उसे बधाया और उपहार उसके सामने रख दिया। फिर चित्रकार ने कहा – ‘स्वामिन् ! मिथिला राजधानी में कुम्भ राजा के पुत्र और प्रभावती देवी के आत्मज मल्लदिन्न कुमार ने मुझे देश – नीकाले की आज्ञा दी, इस कारण मैं सीधा यहाँ आया हूँ। हे स्वामिन् ! आपकी बाहुओं की छाया से परिगृहीत होकर यावत् मैं यहाँ बसना चाहता हूँ।’ तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने चित्रकारपुत्र से इस प्रकार कहा – ‘देवानुप्रिय ! मल्लदिन्न कुमार ने तुम्हें किस कारण देश – निर्वासन की आज्ञा दी ?’ चित्रकारपुत्र ने अदीनशत्रु राजा से कहा – ‘हे स्वामिन् ! मल्लदिन्न कुमार ने एक बार किसी समय चित्रकारों की श्रेणी को बुलाकर इस प्रकार कहा था – ‘हे देवानुप्रियो ! तुम मेरी चित्रसभा को चित्रित करो;’ यावत् कुमार ने मेरा संडासक कटवा कर देश – निर्वासन की आज्ञा दे दी।’ तत्पश्चात् अदीनशत्रु राजा ने उस चित्रकार से कहा – देवानुप्रिय ! तुमने मल्ली कुमारी का उसके अनुरूप चित्र कैसा बनाया था ? तब चित्रकार ने अपनी काँख में से चित्रफलक नीकालकर अदीनशत्रु राजा के पास रख दिया और कहा – ‘हे स्वामिन् ! विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली का उसी के अनुरूप यह चित्र मैंने कुछ आकार, भाव और प्रतिबिम्ब के रूप में चित्रित किया है। विदेहराज की श्रेष्ठ कुमारी मल्ली का हूबहू रूप तो कोई देव भी चित्रित नहीं कर सकता। चित्र को देखकर हर्ष उत्पन्न होने के कारण अदीनशत्रु राजा ने दूत को बुलाकर कहा – यावत् दूत मिथिला जाने के लिए रवाना हो गया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam kuru namam janavae hottha. Tattha nam hatthinaure namam nayare hottha. Tattha nam adinasattu namam raya hottha java rajjam pasasemane viharai. Tattha nam mihilae tassa nam kumbhagassa ranno putte pabhavaie devie attae mallie anumaggajayae malladinne namam kumare sukumalapanipae java juvaraya yavi hottha. Tae nam malladinne kumare annaya kayai kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi–gachchhaha nam tubbhe mama pamadavanamsi egam maham chittasabham kareha–anegakhambhasayasannivittham eyamanattiyam pachchappinaha. Tevi taheva pachchappinamti. Tae nam se malladinne kumare chittagara-senim saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Chittasabham hava-bhava-vilasa-vibboyakaliehim ruvehim chitteha, chitetta eyamanattiyam pachchappinaha. Tae nam sa chittagara-seni eyamattham tahatti padisunei, padisunetta jeneva sayai gihaim teneva uvagachchhai, uvagachchhittae tuliyao vannae ya genhai, genhitta jeneva chittasabha teneva anuppavisai, anuppavisitta bhumibhage virachati, virachitta bhumim sajjei, sajjetta chittasabham hava-bhava-vilasa-vibbiya-kaliehim ruvehim chitteum payatta yavi hottha. Tae nam egassa chittagarassa imeyaruva chittagara-laddhi laddha patta abhisamannagaya–jassa nam dupayassa va chaupayassa va apayassa va egadesamavi pasai, tassa nam desanusarenam tayanuruvam nivvattei. Tae nam se chittagare mallie javaniyamtariyae jalamtarena payamguttham pasai. Tae nam tassa chittagassa imeyaruve ajjhatthie java samuppajjittha–seyam khalu mamam mallie videharayavarakannae payagutthanusarenam sarisagam sarittayam sarivvayam sarisalavanna-ruva -jovvana gunovaveyam ruvam nivvattie–evam sampehei, sampehetta bhumibhagam sajjei, sajjetta mallie videharayavarakannae payamgutthasarenam sarisanam java ruvam nivvattei. Tae nam sa chittagara-seni chittasabham hava-bhava-vilasa-vibboyakaliehim ruvehim chittei, chittetta jeneva malladinne kumare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta eyamanattiyam pachchappinai. Tae nam se malladinne kumare chittagara-senim sakkarei sammanei, sakkaretta sammanetta vipulam jiviyariham piidanam dalayai, dalaitta padivisajjei. Tae nam se malladinne kumare nhae amteura-pariyala-samparivude ammaghaie saddhim jeneva chittasabha teneva uvagachchhai uvagachchhitta chittasabham anuppavisai, anuppavisitta hava-bhava-vilasa-vibboyakaliyaim ruvaim pasamane-pasamane jeneva mallie videharayavarakannae tayanuruve ruve nivvattie teneva paharettha gamanae. Tae nam se malladinne kumare mallie videharayavarakannae tayanuruvam ruvam nivvattiyam pasai, pasitta imeyaruve ajjhatthie java samuppajjittha–esa nam malli videharayavarakanne tti kattu lajjie vilie vedde saniyam-saniyam pachchosakkai. Tae nam tam malladinnam kumaram ammaghai saniyam-saniyam pachchosakkamtam pasitta evam vayasi–kinnam tumam putta! Lajjie vilie vedde saniyam-saniyam pachchosakkasi? Tae nam se malladinne kumare ammaghaim evam vayasi–juttam nam ammo! Mama jetthae bhaginie guru-devayabhuyae lajjanijjae mama chittasabham anupavisittae? Tae nam ammaghai malladinnam kumaram evam vayasi–no khalu putta! Esa malli videharayavarakanna. Esa nam mallie videharayavarakannae chittagaraenam tayanuruve ruve nivvattie. Tae nam se malladinne kumare ammaghaie eyamattham sochcha nisamma asurutte evam vayasi–kesa nam bho! Se chittarae apatthiya patthae, duramta-pamta-lakkhane, hinapunnachauddasie, siri-hiri-dhii-kitti-parivajjie, je nam mama jetthae bhaginie guru-devayabhuyae lajjanijjae mama chittasabhae tayanuruve ruve nivvattie tti kattu tam chittagaram bajjham anavei. Tae nam sa chittagara-seni imise kahae laddhattha samana jeneva malladinne kumare teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei vaddhavetta evam vayasi–evam khalu sami! Tassa chittagarassa imeyaruva chittagara-laddhi laddha patta abhisamannagaya–jassa nam dupayassa va chauppayassa va apayassa va egadesamavi pasai, tassa nam desanusarenam tayanuruvam ruvam nivvattei. Tam ma nam sami! Tubbhe tam chittagaram bajjham anaveha. Tam tubbhe nam sami! Tassa chittagarassa annam tayanuruvam damdam nivvatteha. Tae nam se malladinne kumare tassa chittagarassa samdasagam chhimdavei, chhimdavetta nivvisayam anavei. Tae nam se chittagare malladinnenam kumarenam nivvisae anatte samane sabhamdamattovagaranamayae mihilao nayario nikkhamai, nikkhamitta videhassa janavayassa majjhammajjhenam jeneva kurujanavae jeneva hatthinaure nayare teneva uvagachchhai, uvaga-chchhitta bhamdanikkhevam karei, karetta chittaphalagam sajjei, sajjetta mallie videharayavarakannae payamgutthanusarena ruvam nivvattei, nivvatte-tta kakkhamtaramsi chhubbhai, chhubbhitta mahattham java pahudam genhai, genhitta hatthinaurassa nayarassa majjhammajjhenam jeneva adinasattu raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayala-pariggahiyam sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei vaddhavetta pahudam uvanei, uvanettaevam vayasi–evam khalu aham sami! Mihilao rayahanio kumbhagassa ranno puttena pabhavaie devie attaenam malladinnenam kumarenam nivvisae anatte samane iham havvamagae. Tam ichchhami nam sami! Tubbham bahuchchhaya-pariggahie nibbhae niruvvigge suhamsuhenam parivasittae. Tae nam se adinasattu raya tam chittagaram evam vayasi–kinnam tumam devanuppiya! Malladinnenam nivvisae anatte? Tae nam se chittagare adinasattum rayam evam vayasi–evam khalu sami! Malladinne kumare annaya kayai chittagara-senim saddavei, saddavetta evam vayasi–tubbhe nam devanuppiya! Mama chittasabham hava-bhava-vilasa-bibboyakaliehim ruvehim chitteha tam cheva savvam bhaniyavvam java mama samdasagam chhimdavei, chhimdavetta nivvisayam anavei. Evam khalu aham sami! Malladinnenam kumarenam nivvisae anatte. Tae nam adinasattu raya tam chittagaram evam vayasi–se kerisae nam devanuppiya! Tume mallie videharayavarakannae tayanuruve ruve nivvattie. Tae nam se chittagare kakkhamtarao chittaphalagam ninei, ninetta adinasattussa uvanei, uvanettaevam vayasi–esa nam sami mallie videharayavarakannae tayanuruvassa ruvassa kei agara-bhava-padiyare nivvattie. No khalu sakka kenai devena va danavena va jakkhena va rakkhasena va kinnarena va kimpurisena va mahoragena va gamdhavvena va mallie videharayavarakannae tayanuruve ruve nivvattittae. Tae nam se adinasattu padiruva-janiya-hase duyam saddavei, saddavetta evam vayasi–java mallim videharayavarakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due adinasattuna evam vutte samane hatthatutthe java jeneva mihila nayari teneva0 paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem kuru namaka janapada tha. Usamem hastinapura nagara tha. Adinashatru namaka vaham raja tha. Yavat vaha vicharata tha. Usa mithila nagari mem kumbha raja ka putra, prabhavati maharani ka atmaja aura malli kumari ka anuja malladinna namaka kumara tha. Vaha yuvaraja tha. Kisi samaya eka bara malladinna kumara ne kautumbika purushom ko bulaya. Bulakara isa prakara kaha – ‘tuma jao aura mere ghara ke udyana mem eka bari chitrasabha ka nirmana karo, jo saikarom stambhom se yukta ho, ityadi.’ yavat unhomne aisa hi karake, chitrasabha ka nirmana kara ke ajnya vapisa lauta di. Tatpashchat malladinna kumara ne chitrakarom ki shreni ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Tuma loga chitrasabha ko hava, bhava, vilasa, bibboka se yukta rupom se chitrita karo. Chitrita karake yavat meri ajnya vapisa lautao.’ tatpashchat chitrakarom ki shreni ne kumara ki ajnya shirodharya ki. Phira ve apane – apane ghara jakara unhomne tulikaem lim aura ramga lie. Lekara jaham chitrasabha thi vaham ae. Chitrasabha mem pravesha karake bhumi bhagom ka vibhajana kiya. Vibhajana karake apani – apani bhumi ko sajjita kiya taiyara kiya – chitrom ke yogya banaya. Sajjita karake chitrasabha mem hava – bhava adi se yukta chitra amkita karane mem laga gae. Una chitrakarom mem se eka chitrakara ki aisi chitrakaralabdhi labdha thi, prapta thi aura bara – bara upayoga mem a chuki thi ki vaha jisa kisi dvipada, chatushpada aura apada ka eka avayava bhi dekha le to usa avayava ke anusara usaka pura chitra bana sakata tha. Usa samaya eka bara usa labdhi – sampanna chitrakaradaraka ne yavanika – parde ki ota mem rahi hui malli kumari ke paira ka amgutha jali mem se dekha – tatpashchat usa chitrakaradara ko aisa vichara utpanna hua, yavat malli kumari ke paira ke amguthe ke anusara usaka hubahu yavat gunayukta – sundara pura chitra banana chahie. Usane bhumi ke hisse ko thika karake malli ke paira ke amguthe ka anusarana karake yavat usaka purna chitra bana diya. Tatpashchat chitrakarom ki usa mandali ne chitrasabha ko yavat hava, bhava, vilasa aura bibboka se chitrita kiya. Chitrita karake jaham malludinna kumara tha, vaham gai. Jakara yavat kumara ki ajnya vapisa lautai malladinna kumara ne chitrakarom ki mandali ka satkara kiya, sammana kiya, satkara – sammana karake jivika ke yogya vipula pritidana diya, de karake bida kara diya. Tatapashchat kisi samaya malladinna kumara snana karake, vastrabhushana dharana karake antahpura evam parivara sahita, dhayamata ko satha lekara, jaham chitrasabha thi, vaham aya. Akara chitrasabha ke bhitara pravesha kiya. Hava, bhava, vilasa aura bibboka se yukta rupom ko dekhata – dekhata jaham videha ki shreshtha rajakanya malli ka usi ke anurupa chitra bana tha, usi ora jane laga. Usa samaya malladinna kumara ne videha ki uttama rajakumari malli ka, usake anurupa bana hua chitra dekha. Use vichara utpanna hua – ‘are, yaha to videhavaha rajakanya malli hai !’ yaha vichara ate hi vaha lajjita ho gaya, vridita ho gaya aura vyardita ho gaya, ata eva vaha pichhe lauta gaya. Tatpashchat ratate hue mallamadinna ko dekhakara dhaya mata ne kaha – ‘he putra ! Tuma lajjita, vridita aura vyardita hokara dhire – dhire hata kyom rahe ho\?’ taba malladinna ne dhaya mata se isa prakara kaha – ‘mata ! Meri guru aura devata ke samana jyeshtha bhagini ke, jisase mujhe lajjita hona chahie, samane, chitrakarom ki banai isa sabha mem pravesha karana kya yogya hai\?’ dhaya mata ne malladinna kumara se isa prakara kaha – ‘he putra ! Nishchaya hi yaha sakshat videha ki uttama kumari malli nahim hai kintu chitrakara ne usake anurupa chitrita ki hai taba malladinna kumara dhaya mata ke isa kathana ko sunakara aura hridaya mem dharana karake ekadama kruddha ho utha aura bola – ‘kauna hai vaha chitrakara mauta ki ichchha karane vala, yavat jisane guru aura devata ke samana meri jyeshtha bhagini ka yavat yaha chitra banaya hai\?’ isa prakara kahakara usane chitrakara ka vadha karane ki ajnya de di. Tatpashchat chitrakarom ki vaha shreni isa katha – vrittanta ko sunakara aura samajhakara jaham malladinna kumara tha, vaham ai. Akara donom hatha jorakara yavat mastaka para amjali karake kumara ko badhaya. Badhakara isa prakara kaha – ‘svamin ! Nishchaya hi usa chitrakara ko isa prakara ki chitrakaralabdhi labdha hui, prapta hui aura abhyasa mem ai hai ki vaha kisi dvipada adi ke eka avayava ko dekhata hai, yavat vaha usaka vaisa hi pura rupa bana deta hai. Ata eva he svamin ! Apa usa chitrakara ke vadha ki ajnya mata dijie. He svamin ! Apa usa chitrakara ko koi dusara yogya danda de dijie.’ tatpashchat malladinna ne usa chitrakara ke samdasaka chhedana karava diya aura use desha – nirvasana ki ajnya de di. Taba malladinna ke dvara deshanirvasana ki ajnya paya hua vaha chitrakara apane bhamda, patra aura upakarana adi lekara mithila nagari se nikala. Videha janapada ke madhya mem hokara jaham hastinapura nagara tha, jaham kuru namaka janapada tha aura jaham adinashatru namaka raja tha, vaham aya. Usane apana bhamda adi rakha. Rakhakara chitraphalaka thika kiya. Videha ki shreshtha rajakumari malli ke paira ke amguthe ke adhara para usaka samagra rupa chitrita kiya. Chitraphalaka apani kamkha mem daba liya. Phira mahan artha vala yavat raja ke yogya bahumulya upahara grahana kiya. Grahana karake hastinapura nagara ke madhya mem hokara adinashatru raja ke pasa aya. Donom hatha jorakara use badhaya aura upahara usake samane rakha diya. Phira chitrakara ne kaha – ‘svamin ! Mithila rajadhani mem kumbha raja ke putra aura prabhavati devi ke atmaja malladinna kumara ne mujhe desha – nikale ki ajnya di, isa karana maim sidha yaham aya hum. He svamin ! Apaki bahuom ki chhaya se parigrihita hokara yavat maim yaham basana chahata hum.’ Tatpashchat adinashatru raja ne chitrakaraputra se isa prakara kaha – ‘devanupriya ! Malladinna kumara ne tumhem kisa karana desha – nirvasana ki ajnya di\?’ chitrakaraputra ne adinashatru raja se kaha – ‘he svamin ! Malladinna kumara ne eka bara kisi samaya chitrakarom ki shreni ko bulakara isa prakara kaha tha – ‘he devanupriyo ! Tuma meri chitrasabha ko chitrita karo;’ yavat kumara ne mera samdasaka katava kara desha – nirvasana ki ajnya de di.’ Tatpashchat adinashatru raja ne usa chitrakara se kaha – devanupriya ! Tumane malli kumari ka usake anurupa chitra kaisa banaya tha\? Taba chitrakara ne apani kamkha mem se chitraphalaka nikalakara adinashatru raja ke pasa rakha diya aura kaha – ‘he svamin ! Videharaja ki shreshtha kanya malli ka usi ke anurupa yaha chitra maimne kuchha akara, bhava aura pratibimba ke rupa mem chitrita kiya hai. Videharaja ki shreshtha kumari malli ka hubahu rupa to koi deva bhi chitrita nahim kara sakata. Chitra ko dekhakara harsha utpanna hone ke karana adinashatru raja ne duta ko bulakara kaha – yavat duta mithila jane ke lie ravana ho gaya. |