Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
Search Details
Mool File Details |
|
Anuvad File Details |
|
Sr No : | 1004786 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 86 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कोसला नामं जनवए। तत्थ णं सागेए नामं नयरे। तस्स णं उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं महेगे नागघरए होत्था–दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सण्णिहिय-पाडिहेरे। तत्थ णं सागेए नयरे पडिबुद्धी नामं इक्खागराया परिवसइ। पउमावई देवी। सुबुद्धी अमच्चे साम-दंड-भेय-उवप्प-याण-नीति-सुपउत्त-नय-विहण्णू विहरई। तए णं पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ नागजण्णए यावि होत्था। तए णं सा पउमावई देवी नागजण्णमुवट्ठियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु सामी! मम कल्लं नागजण्णए भविस्सइ। तं इच्छामि णं सामी! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी नागजण्णयं गमित्तए। तुब्भे वि णं सामी! मम नागजण्णयंसि समोसरह। तए णं पडिबुद्धी पउमावईए एयमट्ठं पडिसुणेइ। तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रन्ना अब्भणुण्णाया समाणी हट्ठतुट्ठा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी –एवं खलु देवानुप्पिया! मम कल्लं नागजण्णं भविस्सइ, तं तुब्भे मालागारे सद्दावेह, सद्दावेत्ता एवं वदाह–एवं खलु पउमावईए देवीए कल्लं नागजण्णए भविस्सइ, तं तुब्भे णं देवानुप्पिया! जल-थलय-भासरप्पभूयं दसद्धवण्णं मल्लं नागघरयंसि साहरह, एगं च णं महं सिरि-दामगंडं उवणेह। तए णं जल-थलय-भासरप्पभूएणं दसद्धवण्णेणं मल्लेणं नानाविह-भत्ति-सुविरइयं हंस-मिय- मयूर-कोंच- सारस-चक्कवाय- मयणसाल- कोइल-कुलोववेयं ईहामिय-उसभ-तुरय-नर-मगर-विहग-वालग-किंनर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्तं महग्घं महरिहं विउलं पुप्फमंडवं विरएह। तस्स णं बहुमज्झदेसभाए एगं महं सिरिदामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उल्लोयंसि ओलएह, पउमावइं देविं पडिवालेमाणा चिट्ठह। तए णं ते कोडुंबिया जाव पउमावति देविं पडिवालेमाणा चिट्ठंति। तए णं सा पउमावई देवी कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते कोडुंबिए पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! सागेयं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-समज्जिओवलित्तं जाव गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चपिणह। ते वि तहेव पच्चपिणंति। तए णं सा पउमावई देवी दोच्चंपि कोडुंबिय-पुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! लहुकरणजुत्तं जाव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह। ते वि तहेव उवट्ठवेंति। तए णं सा पउमावई देवी अंतो अंतेउरंसि ण्हाया जाव धम्मियं जाणं दुरूढा। तए णं सा पउमावई देवी नियग-परियाल-संपरिवुडा सागेयं नयरं मज्झंमज्झेणं निज्जाइ, जेणेव पोक्खरणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोक्खरणिं ओगाहति, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ जाव परमसुइभूया उल्लपडसाडया जाइं तत्थ उप्पलाइं जाव ताइं गेण्हइ, जेणेव नागघरए तेणेव पहारेत्थ गमणाए। तए णं पउमावईए देवीए दासचेडीओ बहूओ पुप्फपडलग-हत्थगयाओ धूवकडच्छुय-हत्थगयाओ पिट्ठओ समणुगच्छंति। तए णं पउमावई देवी सव्विड्ढीए जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नागघरं अनुप्पविसइ, लोमहत्थगं परामुसइ जाव धूवं डहइ, पडिबुद्धिं पडिवालेमाणी-पडिवालेमाणी चिट्ठइ। तए णं से पडिबुद्धी ण्हाए हत्थिखंधवरगए सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं वीइज्ज-माणे हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महया भड-चडगर-रह-पहकर-बिंदपरिक्खित्ते सागेयं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव नागघरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हत्थिखंधाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता आलोए पणामं करेइ, करेत्ता पुप्फमंडवं अनुप्पविसइ, अनुप्पविसित्ता पासइ तं एगं महं सिरिदामगंडं। तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुचिरं कालं निरिक्खइ। तंसि सिरिदामगंडंसि जायविम्हए सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी–तुमं देवानुप्पिया! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाइं आहिंडसि, बहूणं य राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं गिहाइं अनुप्पविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे, जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे? तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धि रायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! अहं अन्नया कयाइ तुब्भं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए। तत्थ णं मए कुंभयस्स रन्नो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संवच्छर-पडिलेहणगंसि दिव्वे सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे। तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपि कलं न अग्घइ। तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी–केरिसिया ण देवानुप्पिया! मल्ली विदेहरायवरकन्ना, जस्स णं संवच्छर-पडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपि कालं न अग्घइ? तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं इक्खागरायं एवं वयासी–एवं खलु सामी! मल्ली विदेहरायवरकन्ना सुपइट्ठियकुम्मुण्णयचारुचरणा जाव पडिरूवा। तए णं पडिबुद्धी सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म सिरिदामगंड-जणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दा-वेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं देवानुप्पिया! मिहिलं रायहाणिं। तत्थ णं कुंभगस्स रन्नो धूयं पभावईए अत्तयं मल्लिं विदेह-रायवरकन्नं मम भारियत्ताए वरेहि, जइ वि य णं सा सयं रज्जसुंका। तए णं से दूए पडिबुद्धिणा रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव सए गिहे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं पडिकप्पावेइ, पडिकप्पावेत्ता दुरूढे हय-गय-रह-पवर-जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेनाए सद्धिं संपरिवुडे महया भड-चडगरेणं साएयाओ निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव विदेहजनवए जेणेव मिहिला रायहाणी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। | ||
Sutra Meaning : | उस काल और उस समय में कौशल नामक देश था। उसमें साकेत नामक नगर था। उस नगर में ईशान दिशा में एक नागगृह था। वह प्रधान था, सत्य था, उसकी सेवा सफल होती थी और वह देवाधिष्ठित था। उस साकेत नगर में प्रतिबुद्धि नामक इक्ष्वाकुवंश का राजा निवास करता था। पद्मावती उसकी पटरानी थी, सुबुद्धि अमात्य था, जो साम, दंड, भेद और उपप्रदान नीतियों में कुशल था यावत् राज्यधुरा की चिन्ता करने वाला था, राज्य का संचालन करता था। किसी समय एक बार पद्मावती देवी की नागपूजा का उत्सव आया। तब पद्मावती देवी नागपूजा का उत्सव आया जानकर प्रतिबुद्धि राजा के पास गई। दोनों हाथ जोड़कर दसों नखों को एकत्र करके, मस्तक पर अंजलि करके बोली – ‘स्वामिन् ! कल मुझे नागपूजा करनी है। अत एव आपकी अनुमति पाकर मैं नागपूजा करने के लिए जाना चाहती हूँ। स्वामिन् ! आप भी मेरी नागपूजा में पधारो।’ तब प्रतिबुद्धि राजा ने पद्मावती देवी की यह बात स्वीकार की। पद्मावती देवी राजा की अनुमति पाकर हर्षित और सन्तुष्ट हुई। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! कल यहाँ मेरे नागपूजा होगी, सो तुम मालाकारों को बुलाओ और उन्हें इस प्रकार कहो – ‘निश्चय ही पद्मावती देवी के यहाँ कल नागपूजा होगी। अत एव हे देवानुप्रियो ! तुम जल और स्थल में उत्पन्न हुए पांचों रंगों के ताजा फूल नागगृह में ले जाओ और एक श्रीदामकाण्ड बना कर लाओ। तत्पश्चात् जल और स्थल में उत्पन्न होने वाले पाँच वर्णों के फूलों से विविध प्रकार की रचना करके उसे सजाओ। उस रचना में हंस, मृग, मयूर, क्रौंच, सारस, चक्रवाक, मदनशाल और कोकिला के समूह से युक्त तथा ईहामृग, वृषभ, तुरग आदि की रचना वाले चित्र बनाकर महामूल्यवान, महान् जनों के योग्य और विस्तार वाला एक पुष्पमंडप बनाओ। उस पुष्पमंडप के मध्यभाग में एक महान जनों के योग्य और विस्तार वाला श्रीदामकण्ड उल्लोच पर लटकाओ। लटकाकर पद्मावती देवी की राह देखते – देखते ठहरो।’ तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष इसी प्रकार कार्य करके यावत् पद्मावती की राह देखते हुए नागगृह में ठहरते हैं। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरे दिन प्रातःकाल सूर्योदय होने पर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही साकेत नगर में भीतर और बाहर पानी सींचो, सफाई करो और लिपाई करो। यावत् वे कौटुम्बिक पुरुष उसी प्रकार कार्य करके आज्ञा वापिस लौटाते हैं। तत्पश्चात् पद्मावती देवी ने दूसरी बार कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! शीघ्र ही लघुकरण से युक्त यावत् रथ को जोड़कर उपस्थित करो।’ तब वे भी उसी प्रकार रथ उपस्थित करते हैं। तत्पश्चात् पद्मावती देवी अन्तःपुर के अन्दर स्नान करके यावत् रथ पर आरूढ़ हुई। तत्पश्चात् पद्मावती देवी अपने परिवार से परिवृत्त होकर साकेत नगर के बीच में होकर नीकली। जहाँ पुष्करिणी थी वहाँ आई। पुष्करिणी में प्रवेश किया। यावत् अत्यन्त शुचि होकर गीली साड़ी पहनकर वहाँ जो कमल आदि थे, उन्हें यावत् ग्रहण किया। जहाँ नागगृह था, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया। तत्पश्चात् पद्मावती देवी की बहुत – सी दास – चेटियाँ फूलों की छबड़ियाँ तथा धूप की कुड़छियाँ हाथ में लेकर पीछे – पीछे चलने लगीं। पद्मावती देवी सर्व ऋद्धि के साथ – पूरे ठाठ के साथ – जहाँ नागगृह था, वहाँ आई। नागगृह में प्रविष्ट हुई। रोमहस्त लेकर प्रतिमा का प्रमार्जन किया, यावत् धूप खेई। प्रतिबुद्धि राजा की प्रतीक्षा करती हुई वहीं ठहरी। प्रतिबुद्धि राजा स्नान करके श्रेष्ठ हाथी के स्कंध पर आसीन हुआ। कोरंट के फूलों सहित अन्य पुष्पों की मालाएं जिसमें लपेटी हुई थीं, ऐसा छत्र उसके मस्तक पर धारण किया गया। यावत् उत्तम श्वेत चामर ढ़ोरे जाने लगे। उसके आगे – आगे विशाल घोड़े, हाथी, रथ और पैदल योद्धा, सुभटों के बड़े समूह के समूह चले। वह साकेत नगर से नीकला। जहाँ नागगृह था, वहाँ आकर हाथी के स्कंध से नीचे उतरा। प्रतिमा पर दृष्टि पड़ते ही उसने प्रणाम किया। पुष्प – मंड़प में प्रवेश किया। वहाँ उसने एक महान श्रीदामकाण्ड देखा। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा उस श्रीदामकाण्ड को बहुत देर तक देखकर उस श्रीदामकाण्ड के विषय में उसे आश्चर्य उत्पन्न हुआ। उसके सुबुद्धि अमात्य से इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! तुम मेरे दूत के रूप में बहुतेरे ग्रामों, आकरों, यावत् सन्निवेशों आदि में घूमते हो और बहुत से राजाओं एवं ईश्वरों आदि के गृहों में प्रवेश करते हो; तो क्या तुमने ऐसा सुन्दर श्रीदामकाण्ड पहले कहीं देखा है जैसा पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड है ? तब सुबुद्धि अमात्य ने प्रतिबुद्धि राजा से कहा – स्वामिन् ! मैं एक बार किसी समय आपके दौत्यकार्य से मिथिला राजधानी गया था। वहाँ मैं कुम्भ राजा की पुत्री और प्रभावती देवी की आत्मजा, विदेह की उत्तम राजकुमारी मल्ली के संवत्सर – प्रतिलेखन उत्सव के महोत्सव के समय दिव्य श्रीदामकाण्ड देखा था। उस श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड शतसहस्र – लाखवां अंश भी नहीं पाता – लाखवें अंश की भी बराबरी नहीं कर सकता। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि मंत्री से इस प्रकार कहा – देवानुप्रिय ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली कैसी है ? जिसकी जन्मगांठ के उत्सव में बनाये गये श्रीदामकाण्ड के सामने पद्मावती देवी का यह श्रीदामकाण्ड लाखवां अंश भी नहीं पाता ? तब सुबुद्धि मंत्री ने इक्ष्वाकुराज प्रतिबुद्धि से कहा – ‘स्वामिन् ! विदेह की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली सुप्रतिष्ठित और कछुए के समान उन्नत एवं सुन्दर चरण वाली है, इत्यादि। तत्पश्चात् प्रतिबुद्धि राजा ने सुबुद्धि अमात्य से यह अर्थ सूनकर और हृदय में धारण करके और श्रीदामकाण्ड की बात से हर्षित होकर दूत को बुलाया। और कहा – देवानुप्रिय ! तुम मिथिला राजधानी जाओ। वहाँ कुम्भ राजा की पुत्री, पद्मावती देवी की आत्मजा और विदेह की प्रधान राजकुमारी मल्ली की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो। फिर भले ही उसके लिए सारा राज्य शुल्क – मूल्य रूप में देना पड़े। तत्पश्चात् उस दूत ने प्रतिबुद्धि राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित और सन्तुष्ट होकर उसकी आज्ञा अंगीकार की। जहाँ अपना घर था और जहाँ चार घंटों वाला अश्वरथ था, वहाँ आया। आकर चार घंटोंवाले अश्वरथ को तैयार कराया। यावत् घोड़ों, हाथियों, बहुत से सुभटों के समूह के साथ साकेतनगर से नीकला। जहाँ विदेह जनपद था, जहाँ मिथिला राजधानी थी, वहाँ जाने के लिए प्रस्थान किया। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] tenam kalenam tenam samaenam kosala namam janavae. Tattha nam sagee namam nayare. Tassa nam uttarapuratthime disibhae, ettha nam mahege nagagharae hottha–divve sachche sachchovae sannihiya-padihere. Tattha nam sagee nayare padibuddhi namam ikkhagaraya parivasai. Paumavai devi. Subuddhi amachche sama-damda-bheya-uvappa-yana-niti-supautta-naya-vihannu viharai. Tae nam paumavaie devie annaya kayai nagajannae yavi hottha. Tae nam sa paumavai devi nagajannamuvatthiyam janitta jeneva padibuddhi raya teneva uvagachchhai, uvagachchhitta karayalapariggahiyam dasanaham sirasavattam matthae amjalim kattu jaenam vijaenam vaddhavei, vaddhavetta evam vayasi–evam khalu sami! Mama kallam nagajannae bhavissai. Tam ichchhami nam sami! Tubbhehim abbhanunnaya samani nagajannayam gamittae. Tubbhe vi nam sami! Mama nagajannayamsi samosaraha. Tae nam padibuddhi paumavaie eyamattham padisunei. Tae nam paumavai padibuddhina ranna abbhanunnaya samani hatthatuttha kodumbiyapurise saddavei, saddavetta evam vayasi –evam khalu devanuppiya! Mama kallam nagajannam bhavissai, tam tubbhe malagare saddaveha, saddavetta evam vadaha–evam khalu paumavaie devie kallam nagajannae bhavissai, tam tubbhe nam devanuppiya! Jala-thalaya-bhasarappabhuyam dasaddhavannam mallam nagagharayamsi saharaha, egam cha nam maham siri-damagamdam uvaneha. Tae nam jala-thalaya-bhasarappabhuenam dasaddhavannenam mallenam nanaviha-bhatti-suviraiyam hamsa-miya- mayura-komcha- sarasa-chakkavaya- mayanasala- koila-kulovaveyam ihamiya-usabha-turaya-nara-magara-vihaga-valaga-kimnara-ruru-sarabha-chamara-kumjara-vanalaya-paumalaya-bhattichittam mahaggham mahariham viulam pupphamamdavam viraeha. Tassa nam bahumajjhadesabhae egam maham siridamagamdam java gamdhaddhanim muyamtam ulloyamsi olaeha, paumavaim devim padivalemana chitthaha. Tae nam te kodumbiya java paumavati devim padivalemana chitthamti. Tae nam sa paumavai devi kallam pauppabhayae rayanie java utthiyammi sure sahassarassimmi dinayare teyasa jalamte kodumbie purise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Sageyam nayaram sabbhimtarabahiriyam asiya-samajjiovalittam java gamdhavattibhuyam kareha, karaveha ya, eyamanattiyam pachchapinaha. Te vi taheva pachchapinamti. Tae nam sa paumavai devi dochchampi kodumbiya-purise saddavei, saddavetta evam vayasi–khippameva bho devanuppiya! Lahukaranajuttam java dhammiyam janappavaram uvatthaveha. Te vi taheva uvatthavemti. Tae nam sa paumavai devi amto amteuramsi nhaya java dhammiyam janam durudha. Tae nam sa paumavai devi niyaga-pariyala-samparivuda sageyam nayaram majjhammajjhenam nijjai, jeneva pokkharani teneva uvagachchhai, uvagachchhitta pokkharanim ogahati, ogahitta jalamajjanam karei java paramasuibhuya ullapadasadaya jaim tattha uppalaim java taim genhai, jeneva nagagharae teneva paharettha gamanae. Tae nam paumavaie devie dasachedio bahuo pupphapadalaga-hatthagayao dhuvakadachchhuya-hatthagayao pitthao samanugachchhamti. Tae nam paumavai devi savviddhie jeneva nagagharae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta nagagharam anuppavisai, lomahatthagam paramusai java dhuvam dahai, padibuddhim padivalemani-padivalemani chitthai. Tae nam se padibuddhi nhae hatthikhamdhavaragae sakoremta malladamenam chhattenam dharijjamanenam seyavarachamarahim viijja-mane haya-gaya-raha-pavarajohakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahaya bhada-chadagara-raha-pahakara-bimdaparikkhitte sageyam nagaram majjhammajjhenam niggachchhai, niggachchhitta jeneva nagagharae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta hatthikhamdhao pachchoruhai, pachchoruhitta aloe panamam karei, karetta pupphamamdavam anuppavisai, anuppavisitta pasai tam egam maham siridamagamdam. Tae nam padibuddhi tam siridamagamdam suchiram kalam nirikkhai. Tamsi siridamagamdamsi jayavimhae subuddhim amachcham evam vayasi–tumam devanuppiya! Mama dochchenam bahuni gamagara java sannivesaim ahimdasi, bahunam ya raisara java satthavahapabhiinam gihaim anuppavisasi, tam atthi nam tume kahimchi erisae siridamagamde ditthapuvve, jarisae nam ime paumavaie devie siridamagamde? Tae nam subuddhi padibuddhi rayam evam vayasi–evam khalu sami! Aham annaya kayai tubbham dochchenam mihilam rayahanim gae. Tattha nam mae kumbhayassa ranno dhuyae pabhavaie devie attayae mallie samvachchhara-padilehanagamsi divve siridamagamde ditthapuvve. Tassa nam siridamagamdassa ime paumavaie devie siridamagamde sayasahassaimampi kalam na agghai. Tae nam padibuddhi subuddhim amachcham evam vayasi–kerisiya na devanuppiya! Malli videharayavarakanna, jassa nam samvachchhara-padilehanayamsi siridamagamdassa paumavaie devie siridamagamde sayasahassaimampi kalam na agghai? Tae nam subuddhi padibuddhim ikkhagarayam evam vayasi–evam khalu sami! Malli videharayavarakanna supaitthiyakummunnayacharucharana java padiruva. Tae nam padibuddhi subuddhissa amachchassa amtie eyamattham sochcha nisamma siridamagamda-janiyahase duyam saddavei, sadda-vetta evam vayasi–gachchhahi nam tumam devanuppiya! Mihilam rayahanim. Tattha nam kumbhagassa ranno dhuyam pabhavaie attayam mallim videha-rayavarakannam mama bhariyattae varehi, jai vi ya nam sa sayam rajjasumka. Tae nam se due padibuddhina ranna evam vutte samane hatthatutthe padisunei, padisunetta jeneva sae gihe jeneva chaugghamte asarahe teneva uvagachchhai, uvagachchhitta chaugghamtam asaraham padikappavei, padikappavetta durudhe haya-gaya-raha-pavara-johakaliyae chauramginie senae saddhim samparivude mahaya bhada-chadagarenam saeyao niggachchhai, niggachchhitta jeneva videhajanavae jeneva mihila rayahani teneva paharettha gamanae. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Usa kala aura usa samaya mem kaushala namaka desha tha. Usamem saketa namaka nagara tha. Usa nagara mem ishana disha mem eka nagagriha tha. Vaha pradhana tha, satya tha, usaki seva saphala hoti thi aura vaha devadhishthita tha. Usa saketa nagara mem pratibuddhi namaka ikshvakuvamsha ka raja nivasa karata tha. Padmavati usaki patarani thi, subuddhi amatya tha, jo sama, damda, bheda aura upapradana nitiyom mem kushala tha yavat rajyadhura ki chinta karane vala tha, rajya ka samchalana karata tha. Kisi samaya eka bara padmavati devi ki nagapuja ka utsava aya. Taba padmavati devi nagapuja ka utsava aya janakara pratibuddhi raja ke pasa gai. Donom hatha jorakara dasom nakhom ko ekatra karake, mastaka para amjali karake boli – ‘svamin ! Kala mujhe nagapuja karani hai. Ata eva apaki anumati pakara maim nagapuja karane ke lie jana chahati hum. Svamin ! Apa bhi meri nagapuja mem padharo.’ Taba pratibuddhi raja ne padmavati devi ki yaha bata svikara ki. Padmavati devi raja ki anumati pakara harshita aura santushta hui. Usane kautumbika purushom ko bulaya aura kaha – ‘devanupriyo ! Kala yaham mere nagapuja hogi, so tuma malakarom ko bulao aura unhem isa prakara kaho – ‘nishchaya hi padmavati devi ke yaham kala nagapuja hogi. Ata eva he devanupriyo ! Tuma jala aura sthala mem utpanna hue pamchom ramgom ke taja phula nagagriha mem le jao aura eka shridamakanda bana kara lao. Tatpashchat jala aura sthala mem utpanna hone vale pamcha varnom ke phulom se vividha prakara ki rachana karake use sajao. Usa rachana mem hamsa, mriga, mayura, kraumcha, sarasa, chakravaka, madanashala aura kokila ke samuha se yukta tatha ihamriga, vrishabha, turaga adi ki rachana vale chitra banakara mahamulyavana, mahan janom ke yogya aura vistara vala eka pushpamamdapa banao. Usa pushpamamdapa ke madhyabhaga mem eka mahana janom ke yogya aura vistara vala shridamakanda ullocha para latakao. Latakakara padmavati devi ki raha dekhate – dekhate thaharo.’ tatpashchat ve kautumbika purusha isi prakara karya karake yavat padmavati ki raha dekhate hue nagagriha mem thaharate haim. Tatpashchat padmavati devi ne dusare dina pratahkala suryodaya hone para kautumbika purushom ko bulakara kaha – he devanupriyo ! Shighra hi saketa nagara mem bhitara aura bahara pani simcho, saphai karo aura lipai karo. Yavat ve kautumbika purusha usi prakara karya karake ajnya vapisa lautate haim. Tatpashchat padmavati devi ne dusari bara kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Shighra hi laghukarana se yukta yavat ratha ko jorakara upasthita karo.’ taba ve bhi usi prakara ratha upasthita karate haim. Tatpashchat padmavati devi antahpura ke andara snana karake yavat ratha para arurha hui. Tatpashchat padmavati devi apane parivara se parivritta hokara saketa nagara ke bicha mem hokara nikali. Jaham pushkarini thi vaham ai. Pushkarini mem pravesha kiya. Yavat atyanta shuchi hokara gili sari pahanakara vaham jo kamala adi the, unhem yavat grahana kiya. Jaham nagagriha tha, vaham jane ke lie prasthana kiya. Tatpashchat padmavati devi ki bahuta – si dasa – chetiyam phulom ki chhabariyam tatha dhupa ki kurachhiyam hatha mem lekara pichhe – pichhe chalane lagim. Padmavati devi sarva riddhi ke satha – pure thatha ke satha – jaham nagagriha tha, vaham ai. Nagagriha mem pravishta hui. Romahasta lekara pratima ka pramarjana kiya, yavat dhupa khei. Pratibuddhi raja ki pratiksha karati hui vahim thahari. Pratibuddhi raja snana karake shreshtha hathi ke skamdha para asina hua. Koramta ke phulom sahita anya pushpom ki malaem jisamem lapeti hui thim, aisa chhatra usake mastaka para dharana kiya gaya. Yavat uttama shveta chamara rhore jane lage. Usake age – age vishala ghore, hathi, ratha aura paidala yoddha, subhatom ke bare samuha ke samuha chale. Vaha saketa nagara se nikala. Jaham nagagriha tha, vaham akara hathi ke skamdha se niche utara. Pratima para drishti parate hi usane pranama kiya. Pushpa – mamrapa mem pravesha kiya. Vaham usane eka mahana shridamakanda dekha. Tatpashchat pratibuddhi raja usa shridamakanda ko bahuta dera taka dekhakara usa shridamakanda ke vishaya mem use ashcharya utpanna hua. Usake subuddhi amatya se isa prakara kaha – he devanupriya ! Tuma mere duta ke rupa mem bahutere gramom, akarom, yavat sanniveshom adi mem ghumate ho aura bahuta se rajaom evam ishvarom adi ke grihom mem pravesha karate ho; to kya tumane aisa sundara shridamakanda pahale kahim dekha hai jaisa padmavati devi ka yaha shridamakanda hai\? Taba subuddhi amatya ne pratibuddhi raja se kaha – svamin ! Maim eka bara kisi samaya apake dautyakarya se mithila rajadhani gaya tha. Vaham maim kumbha raja ki putri aura prabhavati devi ki atmaja, videha ki uttama rajakumari malli ke samvatsara – pratilekhana utsava ke mahotsava ke samaya divya shridamakanda dekha tha. Usa shridamakanda ke samane padmavati devi ka yaha shridamakanda shatasahasra – lakhavam amsha bhi nahim pata – lakhavem amsha ki bhi barabari nahim kara sakata. Tatpashchat pratibuddhi raja ne subuddhi mamtri se isa prakara kaha – devanupriya ! Videha ki shreshtha rajakumari malli kaisi hai\? Jisaki janmagamtha ke utsava mem banaye gaye shridamakanda ke samane padmavati devi ka yaha shridamakanda lakhavam amsha bhi nahim pata\? Taba subuddhi mamtri ne ikshvakuraja pratibuddhi se kaha – ‘svamin ! Videha ki shreshtha rajakumari malli supratishthita aura kachhue ke samana unnata evam sundara charana vali hai, ityadi. Tatpashchat pratibuddhi raja ne subuddhi amatya se yaha artha sunakara aura hridaya mem dharana karake aura shridamakanda ki bata se harshita hokara duta ko bulaya. Aura kaha – devanupriya ! Tuma mithila rajadhani jao. Vaham kumbha raja ki putri, padmavati devi ki atmaja aura videha ki pradhana rajakumari malli ki meri patni ke rupa mem mamgani karo. Phira bhale hi usake lie sara rajya shulka – mulya rupa mem dena pare. Tatpashchat usa duta ne pratibuddhi raja ke isa prakara kahane para harshita aura santushta hokara usaki ajnya amgikara ki. Jaham apana ghara tha aura jaham chara ghamtom vala ashvaratha tha, vaham aya. Akara chara ghamtomvale ashvaratha ko taiyara karaya. Yavat ghorom, hathiyom, bahuta se subhatom ke samuha ke satha saketanagara se nikala. Jaham videha janapada tha, jaham mithila rajadhani thi, vaham jane ke lie prasthana kiya. |