Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004776 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 76 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे नामं उज्जाणे। तत्थ णं वीयसोगाए रायहाणीए बले नामं राया। तस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्स ओरोहे होत्था। तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव महब्बले दारए जाए–उम्मुक्कबालभावे जाव भोगसमत्थे। तए णं तं महब्बलं अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरिपामोक्खाणं पंचण्हं रायवरकन्ना-सयाणं एगदिवसेणं पाणिं गेण्हावेंति। पंच पासायसया। पंचसओ दाओ जाव मानुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। बलो वि निग्गओ। धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे थेरे तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं जाव नवरं महब्बलं कुमारं रज्जे ठावेमि। तओ पच्छा देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वयामि। अहासुहं देवानुप्पिया! जाव एक्कारसंगवी। बहूणि वासाणि परियाओ। जेणेव चारुपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मासिएणं भत्तेणं सिद्धे। तए णं सा कमलसिरी अन्नया कयाइ सीहं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धा जाव। बलभद्दो कुमारो जाओ। जुवराया यावि होत्था। तस्स णं महब्बलस्स रन्नो इमे छप्पि य बालवयंसगा रायाणो होत्था, तं जहा– अयले धरणे पुरणे वसू वेसमणे अभिचंदे–सहजायया सहवड्ढियया सहपंसुकीलियया सहदारदरिसी अन्नमन्नमणुरत्तया अन्नमन्नमणुव्वया अन्नमन्नच्छंदाणुवत्तया अन्नमन्नहियइच्छियकारया अन्नमन्नेसु रज्जेसु किच्चाइं करणिज्जाइं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। तए णं तेसिं रायाणं अन्नया कयाइं एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सण्णिसण्णाणं सन्निविट्ठाणं इमेयारूवे मिहो-कहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–जण्णं देवानुप्पिया! अम्हं सुहं वा दुक्खं वा पवज्जा वा विदेसगमणं वा समुप्पज्जइ, तण्णं अम्मेहिं एगयओ समेच्चा नित्थरियव्वे त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं इंदकुंभे उज्जाणे थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। महब्बले णं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठ-तुट्ठे। जं नवरं–छप्पि य बालवयंसए आपुच्छामि, बलभद्दं च कुमारं रज्जे ठावेमि, जाव ते छप्पि य बालवयंसए आपुच्छइ। तए णं ते छप्पि य बालवयंसगा महब्बलं रायं एवं वयासी–जइ णं देवानुप्पिया! तुब्भे पव्वयह, अम्हं के अन्ने आहारे वा आलंबे वा? अम्हे वि य णं पव्वयामो। तए णं से महब्बले राया ते छप्पि य बालवयंसए एवं वयासी–जइ णं तुब्भे मए सद्धिं पव्वयह, तं गच्छह, जेट्ठपुत्ते सएहिं-सएहिं रज्जेहिं ठावेह, पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ दुरूढा समाणा मम अंतियं पाउब्भवह। तेवि तहेव पाउब्भवंति। तए णं से महब्बले राया छप्पि य बालवयंसए पाउब्भूए पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ जाव बलभद्दस्स अभिसेओ। जाव बलभद्दं रायं आपुच्छइ। तए णं से महब्बले छहिं बालवयंसगेहिं सद्धिं महया इड्ढीए पव्वइए। एक्कारसंगवी। बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहि मासद्धमासखमणेहि अप्पाण भावेमाणे विहरइ। तए णं तेसिं महब्बलपामोक्खाणं सत्तण्हं अनगाराणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं इमेयारूवे मिहोकहा-समुल्लावे समुप्पज्जित्था–जण्णं अम्हं देवानुप्पिया! एगे तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ, तण्णं अम्हेहिं सव्वेहिं तवोकम्मं उव-संपज्जित्ता णं विहरित्तए त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स एयमट्ठं पडिसुणेंति, पडिसुणेत्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसेहिं मासद्धमा-सखमणेहिं अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तए णं से महब्बले अनगारे इमेणं कारणेणं इत्थिनामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु–जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अनगारा चउत्थं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तओ से महब्बले अनगारे छट्ठं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। जइ णं ते महब्बलवज्जा छ अनगारा छट्ठं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति, तओ से महब्बले अनगारे अट्ठमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। एवं–अह अट्ठमं तो दसमं, अह दसमं तो दुवालसमं। इमेहि य णं वीसाए णं कारणेहिं आसेविय-बहुलीकएहिं तित्थयरनामगोयं कम्मं निव्वत्तिंसु, तं जहा– | ||
Sutra Meaning : | ’भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम में और पश्चिम लवणसमुद्र से पूर्व में – इस स्थान पर, सलिलावती नामक विजय है। उसमें वीतशोका नामक राजधानी है। वह नौ योजन चौड़ी, यावत् साक्षात देवलोक के समान थी। उस वीतशोका राजधानी के ईशान दिशा के भाग में इन्द्रकुम्भ उद्यान था। बल नामक राजा था। बल राजा के अन्तःपुर में धारिणी प्रभृति एक हजार देवियाँ थीं। वह धारिणी देवी किसी समय स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई। यावत् यथासमय महाबल नामक पुत्र का जन्म हुआ। वह बालक क्रमशः बाल्यावस्था को पार कर भोग भोगने में समर्थ हो गया। तब माता – पिता ने समान रूप एवं वय वाली कमलश्री आदि पाँच सौ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ, एक ही दिन में महाबल का पाणि – ग्रहण कराया। पाँच सौ प्रासाद आदि पाँच – पाँच सौ का दहेज दिया। यावत् महाबल कुमार मनुष्य सम्बन्धी कामभोग भोगता हुआ रहने लगा। उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर पाँच सौ शिष्यों से परिवृत्त होकर अनुक्रम से विचरते हुए, एक ग्राम से दूसरे ग्राम गमन करते हुए, सुखे – सुखे विहार करते हुए, इन्द्रकुम्भ उद्यान पधारे और संयम एवं तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ ठहरे। स्थविर मुनिराज को वन्दना करने के लिए जनसमूह नीकला। बल राजा भी नीकला। धर्म सूनकर राजा को वैराग्य उत्पन्न हुआ। विशेष यह कि उनसे महाबल कुमार को राज्य पर प्रतिष्ठित किया। प्रतिष्ठित करके स्वयं ही बल राजा ने आकर स्थविर के निकट प्रव्रज्या अंगीकार की। वह ग्यारह अंगो के वेत्ता हुए। बहुत वर्षों तक संयम पालकर चारुपर्वत गए। एक मास का निर्जल अनशन करके केवलज्ञान प्राप्त करके यावत् सिद्ध हुए। तत्पश्चात् अन्यदा कदाचित् कमलश्री स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुआ। बलभद्र कुमार का जन्म हुआ। वह युवराज भी हो गया। उस महाबल राजा के छह राजा बालमित्र थे। अचल, धरण, पूरण, वसु, वैश्रमण, अभिचन्द्र। वे साथ ही जन्मे थे, साथ ही वृद्धि को प्राप्त हुए थे, साथ ही धूल में खेले थे, साथ ही विवाहित हुए थे, एक दूसरे पर अनगार रखते थे, अनुसरण करते थे, अभिप्राय का आदर करते थे, हृदय की अभिलाषा के अनुसार कार्य करते थे, एक – दूसरे के राज्यों में काम – काज करते हुए रह रहे थे। एक बार किसी समय वे सब राजा इकट्ठे हुए, एक जगह मिले, एक स्थान पर आसीन हुए। तब उनमें इस प्रकार का वार्तालाप हुआ – ‘देवानुप्रिय ! जब कभी हमारे लिए सुख का, दुःख का, दीक्षा का अथवा विदेशगमन का प्रसंग उपस्थित हो तो हमें सभी अवसरों पर साथ ही रहना चाहिए। साथ ही आत्मा का निस्तार करना – आत्मा को संसार सागर से तारना चाहिए, ऐसा निर्णय करके परस्पर में इस अर्थ को अंगीकार किया था। वे सुखपूर्वक रह रहे थे। उस काल और उस समय में धर्मघोष नामक स्थविर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था, वहाँ पधारे। परीषद् वंदना करने के लिए नीकली। महाबल राजा भी नीकला। स्थविर महाराज ने धर्म कहा – महाबल राजा को धर्म श्रवण करके वैराग्य उत्पन्न हुआ। विशेष यह कि राजा ने कहा – ‘हे देवानुप्रिय ! मैं अपने छहों बालमित्रों से पूछ लेता हूँ और बलभद्र कुमार को राज्य पर स्थापित कर देता हूँ, फिर दीक्षा अंगीकार करूँगा।’ यावत् इस प्रकार कहकर उसने छहों बालमित्रों से पूछा। तब वे छहों बालमित्र महाबल के राजा से कहने लगे – देवानुप्रिय ! यदि तुम प्रव्रजित होते हो तो हमारे लिए अन्य कौन – सा आधार है ? यावत् अथवा आलंबन है, हम भी दीक्षित होते हैं। तत्पश्चात् महाबल राजा ने उन छहों बालमित्रों से कहा – देवानुप्रियो ! यदि तुम मेरे साथ प्रव्रजित होते हो तो तुम जाओ और अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों को अपने – अपने राज्य पर प्रतिष्ठित करो और फिर हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिबिकाओं पर आरूढ़ होकर यहाँ प्रकट होओ।’ तब छहों बालमित्र गये और अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों को राज्यासीन करके यावत् महाबल राजा के समीप आ गए। तब महाबल राजा ने छहों बालमित्रों को आया देखा। वह हर्षित और संतुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रियो ! जाओ और बलभद्र कुमार का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक करो।’ यह आदेश सूनकर उन्होंने उसी प्रकार किया यावत् बलभद्रकुमार का अभिषेक किया। महाबल राजा ने बलभद्र कुमार से, जो अब राजा हो गया था, दीक्षा की आज्ञा ली। फिर महाबल अचल आदि छहों बालमित्रों के साथ हजार पुरुषों द्वारा वहन करने योग्य शिबिका पर आरूढ़ होकर, वीतशोका नगरी के बीचोंबीच होकर जहाँ इन्द्रकुम्भ उद्यान था और जहाँ स्थविर भगवंत थे, वहाँ आए। उन्होंने भी स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। यावत् दीक्षित हुए। ग्यारह अंगों का अध्ययन करके, बहुत से उपवास, बेला, तेला आदि तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात् वे महाबल आदि सातों अनगार किसी समय इकट्ठे हुए। उस समय उनमें परस्पर इस प्रकार बातचीत हुई – हे देवानुप्रियो ! हम लोगों में से एक जिस तप को अंगीकार करके विचरे हम सब को एक साथ वही तपःक्रिया ग्रहण करके विचरना उचित है। सबने यह बात अंगीकार की। अंगीकार करके अनेक चतुर्थभक्त, यावत् तपस्या करते हुए विचरने लगे। तत्पश्चात् उन महाबल अनगार ने इस कारण से स्त्रीनामगोत्र कर्म का उपार्जन किया – यदि वे महाबल को छोड़कर शेष छह अनगार चतुर्थभक्त ग्रहण करके विचरते, तो महाबल अनगार षष्ठभक्त ग्रहण करके विचरते। अगर महाबल के सिवाय छह अनगार षष्ठभक्त अंगीकार करके विचरते तो महाबल अनगार अष्टभक्त ग्रहण करके विचरते। इस प्रकार अपने साथी मुनियों से छिपाकर – कपट करके महाबल अधिक तप करते थे। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam sattamassa nayajjhayanassa athamatthe pannatte, atthamassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenu iheva jambuddive dive mahavidehe vase mamdarassa pavvayassa pachchatthimenam, nisadhassa vasaharapavvayassa uttarenam, soodae mahanadie dahinenam, suhavahassa vakkharapavvayassa pachchatthimenam, pachchatthimalavanasamuddassa puratthimenam, ettha nam salilavai namam vijae pannatte. Tattha nam salilavaivijae viyasoga namam rayahani–navajoyanavitthinna java pachchakkham devaloga-bhuya. Tise nam viyasogae rayahanie uttarapuratthime disibhae imdakumbhe namam ujjane. Tattha nam viyasogae rayahanie bale namam raya. Tassa dharinipamokkham devisahassa orohe hottha. Tae nam sa dharini devi annaya kayai siham sumine pasitta nam padibuddha java mahabbale darae jae–ummukkabalabhave java bhogasamatthe. Tae nam tam mahabbalam ammapiyaro sarisiyanam kamalasiripamokkhanam pamchanham rayavarakanna-sayanam egadivasenam panim genhavemti. Pamcha pasayasaya. Pamchasao dao java manussae kamabhoge pachchanubbhavamane viharai. Tenam kalenam tenam samaenam imdakumbhe ujjane thera samosadha. Parisa niggaya. Balo vi niggao. Dhammam sochcha nisamma hatthatutthe there tikkhutto ayahina-payahinam karei, karetta vamdai namamsai, vamditta namamsitta evam vayasi–saddahami nam bhamte! Niggamtham pavayanam java navaram mahabbalam kumaram rajje thavemi. Tao pachchha devanuppiyanam amtie mumde bhavitta agarao anagariyam pavvayami. Ahasuham devanuppiya! Java ekkarasamgavi. Bahuni vasani pariyao. Jeneva charupavvae teneva uvagachchhai, uvagachchhitta masienam bhattenam siddhe. Tae nam sa kamalasiri annaya kayai siham sumine pasitta nam padibuddha java. Balabhaddo kumaro jao. Juvaraya yavi hottha. Tassa nam mahabbalassa ranno ime chhappi ya balavayamsaga rayano hottha, tam jaha– Ayale dharane purane vasu vesamane abhichamde–sahajayaya sahavaddhiyaya sahapamsukiliyaya sahadaradarisi annamannamanurattaya annamannamanuvvaya annamannachchhamdanuvattaya annamannahiyaichchhiyakaraya annamannesu rajjesu kichchaim karanijjaim pachchanubbhavamana viharamti. Tae nam tesim rayanam annaya kayaim egayao sahiyanam samuvagayanam sannisannanam sannivitthanam imeyaruve miho-kaha-samullave samuppajjittha–jannam devanuppiya! Amham suham va dukkham va pavajja va videsagamanam va samuppajjai, tannam ammehim egayao samechcha nitthariyavve tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti. Tenam kalenam tenam samaenam imdakumbhe ujjane thera samosadha. Parisa niggaya. Mahabbale nam dhammam sochcha nisamma hattha-tutthe. Jam navaram–chhappi ya balavayamsae apuchchhami, balabhaddam cha kumaram rajje thavemi, java te chhappi ya balavayamsae apuchchhai. Tae nam te chhappi ya balavayamsaga mahabbalam rayam evam vayasi–jai nam devanuppiya! Tubbhe pavvayaha, amham ke anne ahare va alambe va? Amhe vi ya nam pavvayamo. Tae nam se mahabbale raya te chhappi ya balavayamsae evam vayasi–jai nam tubbhe mae saddhim pavvayaha, tam gachchhaha, jetthaputte saehim-saehim rajjehim thaveha, purisasahassavahinio siyao durudha samana mama amtiyam paubbhavaha. Tevi taheva paubbhavamti. Tae nam se mahabbale raya chhappi ya balavayamsae paubbhue pasai, pasitta hatthatutthe kodumbiyapurise saddavei java balabhaddassa abhiseo. Java balabhaddam rayam apuchchhai. Tae nam se mahabbale chhahim balavayamsagehim saddhim mahaya iddhie pavvaie. Ekkarasamgavi. Bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehi masaddhamasakhamanehi appana bhavemane viharai. Tae nam tesim mahabbalapamokkhanam sattanham anagaranam annaya kayai egayao sahiyanam imeyaruve mihokaha-samullave samuppajjittha–jannam amham devanuppiya! Ege tavokammam uvasampajjitta nam viharai, tannam amhehim savvehim tavokammam uva-sampajjitta nam viharittae tti kattu annamannassa eyamattham padisunemti, padisunetta bahuhim chauttha-chhatthatthama-dasama-duvalasehim masaddhama-sakhamanehim appanam bhavemana viharamti. Tae nam se mahabbale anagare imenam karanenam itthinamagoyam kammam nivvattimsu–jai nam te mahabbalavajja chha anagara chauttham uvasampajjitta nam viharamti, tao se mahabbale anagare chhattham uvasampajjitta nam viharai. Jai nam te mahabbalavajja chha anagara chhattham uvasampajjitta nam viharamti, tao se mahabbale anagare atthamam uvasampajjitta nam viharai. Evam–aha atthamam to dasamam, aha dasamam to duvalasamam. Imehi ya nam visae nam karanehim aseviya-bahulikaehim titthayaranamagoyam kammam nivvattimsu, tam jaha– | ||
Sutra Meaning Transliteration : | ’bhagavan ! Yadi shramana bhagavana mahavira ne satave jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai, to athave adhyayana ka kya artha kaha hai\?’ ‘he jambu ! Usa kala aura usa samaya mem, isi jambudvipa mem mahavideha namaka varsha mem, meru parvata se pashchima mem, nishadha namaka varshadhara parvata se uttara mem, shitoda mahanadi se dakshina mem, sukhavaha namaka vakshara parvata se pashchima mem aura pashchima lavanasamudra se purva mem – isa sthana para, salilavati namaka vijaya hai. Usamem vitashoka namaka rajadhani hai. Vaha nau yojana chauri, yavat sakshata devaloka ke samana thi. Usa vitashoka rajadhani ke ishana disha ke bhaga mem indrakumbha udyana tha. Bala namaka raja tha. Bala raja ke antahpura mem dharini prabhriti eka hajara deviyam thim. Vaha dharini devi kisi samaya svapna mem simha ko dekhakara jagrita hui. Yavat yathasamaya mahabala namaka putra ka janma hua. Vaha balaka kramashah balyavastha ko para kara bhoga bhogane mem samartha ho gaya. Taba mata – pita ne samana rupa evam vaya vali kamalashri adi pamcha sau shreshtha rajakumariyom ke satha, eka hi dina mem mahabala ka pani – grahana karaya. Pamcha sau prasada adi pamcha – pamcha sau ka daheja diya. Yavat mahabala kumara manushya sambandhi kamabhoga bhogata hua rahane laga. Usa kala aura usa samaya mem dharmaghosha namaka sthavira pamcha sau shishyom se parivritta hokara anukrama se vicharate hue, eka grama se dusare grama gamana karate hue, sukhe – sukhe vihara karate hue, indrakumbha udyana padhare aura samyama evam tapa se atma ko bhavita karate hue vaham thahare. Sthavira muniraja ko vandana karane ke lie janasamuha nikala. Bala raja bhi nikala. Dharma sunakara raja ko vairagya utpanna hua. Vishesha yaha ki unase mahabala kumara ko rajya para pratishthita kiya. Pratishthita karake svayam hi bala raja ne akara sthavira ke nikata pravrajya amgikara ki. Vaha gyaraha amgo ke vetta hue. Bahuta varshom taka samyama palakara charuparvata gae. Eka masa ka nirjala anashana karake kevalajnyana prapta karake yavat siddha hue. Tatpashchat anyada kadachit kamalashri svapna mem simha ko dekhakara jagrita hua. Balabhadra kumara ka janma hua. Vaha yuvaraja bhi ho gaya. Usa mahabala raja ke chhaha raja balamitra the. Achala, dharana, purana, vasu, vaishramana, abhichandra. Ve satha hi janme the, satha hi vriddhi ko prapta hue the, satha hi dhula mem khele the, satha hi vivahita hue the, eka dusare para anagara rakhate the, anusarana karate the, abhipraya ka adara karate the, hridaya ki abhilasha ke anusara karya karate the, eka – dusare ke rajyom mem kama – kaja karate hue raha rahe the. Eka bara kisi samaya ve saba raja ikatthe hue, eka jagaha mile, eka sthana para asina hue. Taba unamem isa prakara ka vartalapa hua – ‘devanupriya ! Jaba kabhi hamare lie sukha ka, duhkha ka, diksha ka athava videshagamana ka prasamga upasthita ho to hamem sabhi avasarom para satha hi rahana chahie. Satha hi atma ka nistara karana – atma ko samsara sagara se tarana chahie, aisa nirnaya karake paraspara mem isa artha ko amgikara kiya tha. Ve sukhapurvaka raha rahe the. Usa kala aura usa samaya mem dharmaghosha namaka sthavira jaham indrakumbha udyana tha, vaham padhare. Parishad vamdana karane ke lie nikali. Mahabala raja bhi nikala. Sthavira maharaja ne dharma kaha – mahabala raja ko dharma shravana karake vairagya utpanna hua. Vishesha yaha ki raja ne kaha – ‘he devanupriya ! Maim apane chhahom balamitrom se puchha leta hum aura balabhadra kumara ko rajya para sthapita kara deta hum, phira diksha amgikara karumga.’ yavat isa prakara kahakara usane chhahom balamitrom se puchha. Taba ve chhahom balamitra mahabala ke raja se kahane lage – devanupriya ! Yadi tuma pravrajita hote ho to hamare lie anya kauna – sa adhara hai\? Yavat athava alambana hai, hama bhi dikshita hote haim. Tatpashchat mahabala raja ne una chhahom balamitrom se kaha – devanupriyo ! Yadi tuma mere satha pravrajita hote ho to tuma jao aura apane – apane jyeshtha putrom ko apane – apane rajya para pratishthita karo aura phira hajara purushom dvara vahana karane yogya shibikaom para arurha hokara yaham prakata hoo.’ taba chhahom balamitra gaye aura apane – apane jyeshtha putrom ko rajyasina karake yavat mahabala raja ke samipa a gae. Taba mahabala raja ne chhahom balamitrom ko aya dekha. Vaha harshita aura samtushta hua. Usane kautumbika purushom ko bulakara kaha – ‘devanupriyo ! Jao aura balabhadra kumara ka mahan rajyabhisheka se abhisheka karo.’ yaha adesha sunakara unhomne usi prakara kiya yavat balabhadrakumara ka abhisheka kiya. Mahabala raja ne balabhadra kumara se, jo aba raja ho gaya tha, diksha ki ajnya li. Phira mahabala achala adi chhahom balamitrom ke satha hajara purushom dvara vahana karane yogya shibika para arurha hokara, vitashoka nagari ke bichombicha hokara jaham indrakumbha udyana tha aura jaham sthavira bhagavamta the, vaham ae. Unhomne bhi svayam hi pamchamushtika locha kiya. Yavat dikshita hue. Gyaraha amgom ka adhyayana karake, bahuta se upavasa, bela, tela adi tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Tatpashchat ve mahabala adi satom anagara kisi samaya ikatthe hue. Usa samaya unamem paraspara isa prakara batachita hui – he devanupriyo ! Hama logom mem se eka jisa tapa ko amgikara karake vichare hama saba ko eka satha vahi tapahkriya grahana karake vicharana uchita hai. Sabane yaha bata amgikara ki. Amgikara karake aneka chaturthabhakta, yavat tapasya karate hue vicharane lage. Tatpashchat una mahabala anagara ne isa karana se strinamagotra karma ka uparjana kiya – yadi ve mahabala ko chhorakara shesha chhaha anagara chaturthabhakta grahana karake vicharate, to mahabala anagara shashthabhakta grahana karake vicharate. Agara mahabala ke sivaya chhaha anagara shashthabhakta amgikara karake vicharate to mahabala anagara ashtabhakta grahana karake vicharate. Isa prakara apane sathi muniyom se chhipakara – kapata karake mahabala adhika tapa karate the. |