Sutra Navigation: Gyatadharmakatha ( धर्मकथांग सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004774 | ||
Scripture Name( English ): | Gyatadharmakatha | Translated Scripture Name : | धर्मकथांग सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ तुंब |
Translated Chapter : |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ तुंब |
Section : | Translated Section : | ||
Sutra Number : | 74 | Category : | Ang-06 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से इंदभूई नामं अनगारे जायसड्ढे जाव एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिद्दं निरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं दोच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ, लिंपित्ता उण्हे दलयइ, दलयित्ता सुक्कं समाणं तच्चंपि दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, मट्टियालेवेणं लिंपइ, उण्हे दलयइ। एवं खलु एएणुवाएणं अंतरा वेढेमाणे अंतरा लिंपमाणे अंतरा सुक्कवेमाणे जाव अट्ठहिं मट्टियालेवेहिं लिंपइ, अत्थामतारमपोरिसियंसि उदगंसि पक्खिवेज्जा से नूनं गोयमा! से तुंबे तेसिं अट्ठण्हं मट्टियालेवेणं गरुययाए भारिययाए गरुय-भारिययाए उप्पिं सलिलमइवइत्ता अहे धरणियल-पइट्ठाणे भवइ। एवामेव गोयमा! जीवा वि पाणाइवाएणं मुंसावाएणं अदिन्नादाणेणं मेहुणेणं परिग्गहेणं जाव मिच्छादंसणसल्लेणं अनुपु-व्वेणं अट्ठकम्मपगडीओ समज्जिणित्ता तासिं गरुययाए भारिययाए गरुय-भारिययाए कालमासे कालं किच्चा धरणियलमइवइत्ता अहे नरगतल-पइट्ठाणा भवंति। एवं खलु गोयमा! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति। अह णं गोयमा! से तुंबे तंसि पढमिल्लुगंसि मट्टियालेवंसि तित्तंसि कुहियंसि परिसडियंसि ईसिं धरणियलाओ उप्पतित्ता णं चिट्ठइ। तयानंतरं दोच्चं पि मट्टियालेवे तित्ते कुहिए परिसडिए ईसिं धरणियलाओ उप्पतित्ता णं चिट्ठइ। एवं खलु एएणं उवाएणं तेसु अट्ठसु मट्टियालेवेसु तित्तेसु कुहिएसु परिसडिएसु से तुंबे विमुक्कवधने अहे धरणियल-मइवइत्ता उप्पिं सलिलतलपइट्ठाणे भवइ। एवामेव गोयमा! जीवा पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणेणं अनुपुव्वेणं अट्ठकम्म-पगडीओ खवेत्ता गगणतलमुप्पइत्ता उप्पिं लोयग्गपइट्ठाणा भवंति। एवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति। एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं छट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धि को प्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत् जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे। यथायोग्य अवग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। भगवान को वन्दना करने के लिए परीषद् नीकली। श्रेणिक राजा भी नीकला। भगवान ने धर्मदेशना दी। उसे सूनकर परीषद् वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार श्रमण भगवान महावीर से न अधिक दूर और न अधिक समीप स्थान पर रहे हुए यावत् निर्मल उत्तम ध्यान में लीन होकर विचर रहे थे। तत्पश्चात् जिन्हें श्रद्धा उत्पन्न हुई है ऐसे इन्द्रभूति अनगार ने श्रमण भगवान महावीर से इस प्रकार प्रश्न किया – ‘भगवन् ! किस प्रकार जीव शीघ्र ही गुरुता अथवा लघुता को प्राप्त होते हैं ?’ गौतम ! यथानामक, कोई पुरुष एक बड़े, सूखे, छिद्ररहित और अखंडित तुम्बे को दर्भ से और कुश से लपेटे और फिर मिट्टी के लेप से लीपे, फिर धूप में रख दे। सूख जाने पर दूसरी बार दर्भ और कुश से लपेटे और मिट्टी के लेप से लीप दे। लीप कर धूप में सूख जाने पर तीसरी बार दर्भ और कुश में लपेटे और लपेट कर मिट्टी का लेप चढ़ा दे। सूखा ले। इसी प्रकार, इसी उपाय से बीच – बीच में दर्भ और कुश से लपेटता जाए, बीच – बीच में लेप चढ़ाता जाए और बीच – बीच में सूखाता जाए, यावत् आठ मिट्टी के लेप तुम्बे पर चढ़ावे। फिर उसे अथाह, और अपौरुषिक जल में ड़ाल दिया जाए। तो निश्चय ही हे गौतम ! वह तुम्बा मिट्टी के आठ लेपों के कारण गुरुता को प्राप्त होकर, भारी होकर तथा गुरु एवं भारी हुआ ऊपर रहे हुए जल को पार करके नीचे धरती के तलभाग में स्थित हो जाता है। इसी प्रकार हे गौतम ! जीव भी प्राणातिपात से यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से क्रमशः आठ कर्म – प्रकृतियों का उपार्जन करते हैं। उस कर्मप्रकृतियों की गुरुता के कारण, भारीपन के कारण और गुरुता के कारण मृत्यु को प्राप्त होकर, इस पृथ्वी – तल को लाँघ कर नीचे नरक – तल में स्थित होते हैं। इस प्रकार गौतम ! जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं। अब हे गौतम ! उस तुम्बे का पहला मिट्टी का लेप गीला हो जाए, गल जाए और परिशटित हो जाए तो वह तुम्बा पृथ्वीतल से कुछ ऊपर आकर ठहरता है। तदनन्तर दूसरा मृत्तिकालेप गीला हो जाए, गल जाए और हट जाए तो तुम्बा कुछ और ऊपर आता है। इस प्रकार, इस उपाय से उन आठों मृत्तिकालेपों के गीले हो जाने पर यावत् हट जाने पर तुम्बा निर्लेप, बंधनमुक्त होकर धरणीतल से ऊपर जल की सतह पर आकर स्थित हो जाता है। इसी प्रकार, हे गौतम ! प्राणातिपातविरमण यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविरमण से जीव क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय करके ऊपर आकाशतल की ओर उड़ कर लोकाग्र भाग में स्थित हो जाते हैं। इस प्रकार हे गौतम ! जीव शीघ्र लघुत्व को प्राप्त करते हैं। हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने छठे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है। वही मैं तुमसे कहता हूँ। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai nam bhamte! Samanenam bhagavaya mahavirenam pamchamassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte, chhatthassa nam bhamte! Nayajjhayanassa ke atthe pannatte? Evam khalu jambu! Tenam kalenam tenam samaenam rayagihe samosaranam. Parisa niggaya. Tenam kalenam tenam samaenam samanassa bhagavao mahavirassa jetthe amtevasi imdabhui namam anagare samanassa bhagavao mahavirassa adurasamamte java sukkajjhanovagae viharai. Tae nam se imdabhui namam anagare jayasaddhe java evam vayasi–kahannam bhamte! Jiva garuyattam va lahuyattam va havvamagachchhamti? Goyama! Se jahanamae kei purise egam maham sukkatumba nichchhiddam niruvahayam dabbhehi ya kusehi ya vedhei, vedhetta mattiyalevenam limpai, limpitta unhe dalayai, dalayitta sukkam samanam dochchampi dabbhehi ya kusehi ya vedhei, vedhetta mattiyalevenam limpai, limpitta unhe dalayai, dalayitta sukkam samanam tachchampi dabbhehi ya kusehi ya vedhei, mattiyalevenam limpai, unhe dalayai. Evam khalu eenuvaenam amtara vedhemane amtara limpamane amtara sukkavemane java atthahim mattiyalevehim limpai, atthamataramaporisiyamsi udagamsi pakkhivejja se nunam goyama! Se tumbe tesim atthanham mattiyalevenam garuyayae bhariyayae garuya-bhariyayae uppim salilamaivaitta ahe dharaniyala-paitthane bhavai. Evameva goyama! Jiva vi panaivaenam mumsavaenam adinnadanenam mehunenam pariggahenam java michchhadamsanasallenam anupu-vvenam atthakammapagadio samajjinitta tasim garuyayae bhariyayae garuya-bhariyayae kalamase kalam kichcha dharaniyalamaivaitta ahe naragatala-paitthana bhavamti. Evam khalu goyama! Jiva garuyattam havvamagachchhamti. Aha nam goyama! Se tumbe tamsi padhamillugamsi mattiyalevamsi tittamsi kuhiyamsi parisadiyamsi isim dharaniyalao uppatitta nam chitthai. Tayanamtaram dochcham pi mattiyaleve titte kuhie parisadie isim dharaniyalao uppatitta nam chitthai. Evam khalu eenam uvaenam tesu atthasu mattiyalevesu tittesu kuhiesu parisadiesu se tumbe vimukkavadhane ahe dharaniyala-maivaitta uppim salilatalapaitthane bhavai. Evameva goyama! Jiva panaivayaveramanenam java michchhadamsanasallaveramanenam anupuvvenam atthakamma-pagadio khavetta gaganatalamuppaitta uppim loyaggapaitthana bhavamti. Evam khalu goyama! Jiva lahuyattam havvamagachchhamti. Evam khalu jambu! Samanenam bhagavaya mahavirenam java sampattenam chhatthassa nayajjhayanassa ayamatthe pannatte. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Shramana yavat siddhi ko prapta bhagavana mahavira ne chhathe jnyatadhyayana ka kya artha kaha hai\? Jambu! Usa kala aura usa samaya mem rajagriha namaka nagara tha. Usa rajagriha nagara mem shrenika namaka raja tha. Usa rajagriha nagara ke bahara ishanakona mem gunashila namaka chaitya tha. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira anukrama se vicharate hue, yavat jaham rajagriha nagara tha aura jaham gunashila chaitya tha, vaham padhare. Yathayogya avagrahana karake samyama aura tapa se atma ko bhavita karate hue vicharane lage. Bhagavana ko vandana karane ke lie parishad nikali. Shrenika raja bhi nikala. Bhagavana ne dharmadeshana di. Use sunakara parishad vapisa chali gai. Usa kala aura usa samaya mem shramana bhagavana mahavira ke jyeshtha shishya indrabhuti namaka anagara shramana bhagavana mahavira se na adhika dura aura na adhika samipa sthana para rahe hue yavat nirmala uttama dhyana mem lina hokara vichara rahe the. Tatpashchat jinhem shraddha utpanna hui hai aise indrabhuti anagara ne shramana bhagavana mahavira se isa prakara prashna kiya – ‘bhagavan ! Kisa prakara jiva shighra hi guruta athava laghuta ko prapta hote haim\?’ Gautama ! Yathanamaka, koi purusha eka bare, sukhe, chhidrarahita aura akhamdita tumbe ko darbha se aura kusha se lapete aura phira mitti ke lepa se lipe, phira dhupa mem rakha de. Sukha jane para dusari bara darbha aura kusha se lapete aura mitti ke lepa se lipa de. Lipa kara dhupa mem sukha jane para tisari bara darbha aura kusha mem lapete aura lapeta kara mitti ka lepa charha de. Sukha le. Isi prakara, isi upaya se bicha – bicha mem darbha aura kusha se lapetata jae, bicha – bicha mem lepa charhata jae aura bicha – bicha mem sukhata jae, yavat atha mitti ke lepa tumbe para charhave. Phira use athaha, aura apaurushika jala mem rala diya jae. To nishchaya hi he gautama ! Vaha tumba mitti ke atha lepom ke karana guruta ko prapta hokara, bhari hokara tatha guru evam bhari hua upara rahe hue jala ko para karake niche dharati ke talabhaga mem sthita ho jata hai. Isi prakara he gautama ! Jiva bhi pranatipata se yavat mithyadarshana shalya se kramashah atha karma – prakritiyom ka uparjana karate haim. Usa karmaprakritiyom ki guruta ke karana, bharipana ke karana aura guruta ke karana mrityu ko prapta hokara, isa prithvi – tala ko lamgha kara niche naraka – tala mem sthita hote haim. Isa prakara gautama ! Jiva shighra gurutva ko prapta hote haim. Aba he gautama ! Usa tumbe ka pahala mitti ka lepa gila ho jae, gala jae aura parishatita ho jae to vaha tumba prithvitala se kuchha upara akara thaharata hai. Tadanantara dusara mrittikalepa gila ho jae, gala jae aura hata jae to tumba kuchha aura upara ata hai. Isa prakara, isa upaya se una athom mrittikalepom ke gile ho jane para yavat hata jane para tumba nirlepa, bamdhanamukta hokara dharanitala se upara jala ki sataha para akara sthita ho jata hai. Isi prakara, he gautama ! Pranatipataviramana yavat mithyadarshanashalyaviramana se jiva kramashah atha karmaprakritiyom ka kshaya karake upara akashatala ki ora ura kara lokagra bhaga mem sthita ho jate haim. Isa prakara he gautama ! Jiva shighra laghutva ko prapta karate haim. He jambu ! Shramana bhagavana mahavira ne chhathe jnyata – adhyayana ka yaha artha kaha hai. Vahi maim tumase kahata hum. |