Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Sr No : | 1004348 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Translated Section : | उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि |
Sutra Number : | 848 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति। असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय। जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय? गोयमा! पज्जत्तासंखेज्जवासाउय, अपज्जत्तासंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। सण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स तहेव तिसु वि गमएसु लद्धी, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो। संवेहो नवसु गमएसु जहेव सण्णिपंचिंदियस्स। मज्झिल्लएसु तिसु गमएसु लद्धी जहेव सण्णिपंचिंदियस्स मज्झिल्लएसु तिसु। सेसं तं चेव निरवसेसं। पच्छिल्ला तिन्नि गमगा जहा एयस्स चेव ओहिया गमगा, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं पंच धनुसयाइं, उक्कोसेण वि पंच धनुसयाइं। ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। सेसं तहेव। जइ देवेहिंतो उववज्जंति– किं भवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति? वाणमंतरदेवेहिंतो, जोइसियदेवेहिंतो, वेमानियदेवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! भवनवासिदेवेहिंतो वि उववज्जंति जाव वेमानियदेवेहिंतो वि उववज्जंति। जइ भवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति– किं असुरकुमारभवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति जाव थणियकुमारभवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! असुरकुमार-भवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति जाव थणियकुमार-भवनवासिदेवेहिंतो उववज्जंति। असुरकुमारेणं भंते! जे भविए पुढविकाइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी पन्नत्ता? गोयमा! छण्हं संघयणाणं असंघयणी जाव परिणमंति। तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा? गोयमा! दुविहा सरीरोगाहणा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं। तेसिं णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जे ते भवधारणिज्जा ते समचउरंससंठिया पन्नत्ता। तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते नाणासंठिया पन्नत्ता। लेस्साओ चत्तारि। दिट्ठी तिविहा वि। तिन्नि नाणा नियमं, तिन्नि अन्नाणा भयणाए। जोगो तिविहो वि। उवओगो दुविहो वि। चत्तारि सण्णाओ। चत्तारि कसाया। पंच इंदिया। पंच समुग्घाया। वेयणा दुविहा वि। इत्थिवेदगा वि पुरिसवेदगा वि, नो नपुंसगवेदगा। ठिती जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं साति-रेगं सागरोवमं। अज्झवसाणा असंखेज्जा पसत्था वि अप्पसत्था वि। अनुबंधो जहा ठिती। भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं नव वि गमा नेयव्वा, नवरं–मज्झिल्लएसु पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु असुरकुमा-राणं ठिइविसेसो जाणियव्वो, सेसा ओहिया चेव लद्धी कायसंवेहं च जाणेज्जा। सव्वत्थ दो भवग्गहणाइं जाव नवमगमए कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगं सागरोवमं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, उक्कोसेण वि सातिरेगं सागरोवमं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। नागकुमारेणं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु? एस चेव वत्तव्वया जाव भवादेसो त्ति, नवरं–ठिती जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं दसवाससहस्साइं अंतोमुहुत्तम-ब्भहियाइं, उक्कोसेणं देसूणाइं दो पलिओवमाइं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाइं। एवं नव वि गमगा असुरकुमारगमगसरिसा, नवरं–ठितिं कालादेसं च जाणेज्जा। एवं जाव थणियकुमाराणं। जइ वाणमंतरेहिंतो उववज्जंति–किं पिसायवाणमंतरदेवेहिंतो जाव गंधव्ववाणमंतरदेवेहिंतो? गोयमा! पिसायवाणमंतरदेवेहिंतो जाव गंधव्ववाणमंतरदेवेहिंतो। वाणमंतरदेवे णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए? एतेसिं पि असुरकुमारगमगसरिसा नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठितिं कालादेसं च जाणेज्जा। ठिती जहन्नेणं दसवाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमं। सेसं तहेव। जइ जोइसियदेवेहिंतो उववज्जंति–किं चंदविमानजोइसियदेवेहिंतो उववज्जंति जाव ताराविमानजोइसियदेवेहिंतो? गोयमा! चंदविमान जाव ताराविमान। जोइसियदेवे णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए? लद्धी जहा असुरकुमाराणं, नवरं–एगा तेउलेस्सा पन्नत्ता। तिन्नि नाणा, तिन्नि अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं अट्ठभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं पलिओवमं वास-सय-सहस्सेणं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा नवरं–ठिति कालादेसं च जाणेज्जा। जइ वेमानियदेवेहिंतो उववज्जंति– किं कप्पोवावेमानियदेवेहिंतो? कप्पातीतावेमानिय-देवेहिंतो? गोयमा! कप्पोवावेमानियदेवेहिंतो, नो कप्पातीतावेमानियदेवेहिंतो। जइ कप्पोवावेमानियदेवेहिंतो उववज्जंति–किं सोहम्मकप्पोवावेमानियदेवेहिंतो जाव अच्चुय-कप्पोवावेमानियदेवेहिंतो? गोयमा! सोहम्मकप्पोवावेमानियदेवेहिंतो ईसानकप्पोवावेमानियदेवेहिंतो, नो सणंकुमार जाव नो अच्चुयकप्पोवावेमानियदेवेहिंतो। सोहम्मदेवे णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा जोइसियस्स गमगो, नवरं–ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं दो सागरोवमाइं बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं सेसा वि अट्ठ गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठितिं कालादेसं च जाणेज्जा। ईसानदेवे णं भंते! जे भविए? एवं ईसानदेवेण वि नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–ठिती अनुबंधो जहन्नेणं सातिरेगं पलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं। सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक अनुसार है, यहाँ भी औघिक तीन गमक सम्पूर्ण कहने चाहिए। शेष गमक नहीं कहने चाहिए। यदि वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, असंख्यात से नहीं। भगवन् ! यदि वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! संख्येय वर्षायुष्क पर्याप्त संज्ञी मनुष्य कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! रत्नप्रभा में उत्पन्न होने योग्य मनुष्य के समान कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की होती है; स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना। संवेध – जैसे संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच का कहा है, वैसे ही यहाँ नौ ही गमकों में कहना चाहिए। बीच के तीन गमकों में संज्ञी पंचेन्द्रिय के मध्यम तीन गमकों समान कहना चाहिए। शेष पूर्ववत्। पीछले तीन गमकों का कथन इसी के प्रथम तीन औघिक गमकों के समान कहना चाहिए। विशेष यह है कि शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की है; स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि के होते हैं। शेष पूर्ववत्। विशेषता यह है कि पीछले तीन गमकों में संख्यात ही उत्पन्न होते हैं, असंख्यात नहीं। भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से आकर ? गौतम ! वे भवनवासी यावत् वैमानिक देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे असुरकुमार – भवनवासी अथवा यावत् स्तनितकुमार – भवनवासी देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार – भवनवासी देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असुरकुमार कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! उन जीवों के शरीर किस प्रकार के संहनन वाले हैं ? गौतम ! उनके शरीर छहों प्रकार के संहननों से रहित होते हैं। भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी होती है ? गौतम ! दो प्रकार की है। यथा – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सप्त रत्नी की है तथा उनमें जो उत्तरवैक्रिय अवगाहना है, वह जघन्य अंगुल के संख्यातवे भाग की और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है। भगवन् ! उन जीवों के शरीर का संस्थान कौन – सा कहा गया है ? गौतम ! उनके शरीर दो प्रकार के हैं – भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय। उनमें जो भवधारणीय शरीर हैं, वे समचतुरस्रसंस्थान वाले कहे गए हैं तथा जो उत्तरवैक्रिय शरीर हैं, वे अनेक प्रकार के संस्थान वाले कहे गए हैं। उनके चार लेश्याएं, तीन दृष्टियाँ नियमतः तीन ज्ञान, तीन अज्ञान भजना से, योग तीन, उपयोग दो, संज्ञाएं चार, कषाय चार, इन्द्रियाँ पाँच, समुद्घात पाँच और वेदना दो प्रकार की होती है। वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते हैं, स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट सातिरेक सागरोपम की होती है। अध्ययवसाय संख्यात प्रकार के प्रशस्त और अप्रशस्त दोनों प्रकार के होते हैं। अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है। (संवेध) भवादेश से वह दो भव ग्रहण करता है। कालादेश से – जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक सातिरेक सागरोपम। इस प्रकार नौ ही गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि मध्यम और अन्तिम तीन – तीन गमकों में असुरकुमारों की स्थिति – विषयक विशेषता जान लेना। शेष औघिक वक्तव्यता और काय – संवेध जानना। संवेध में सर्वत्र दो भव जानना। इस प्रकार यावत् नौवें गमक में कालादेश से जघन्य बाईस हजार वर्ष साधिक सागरोपम काल तक गमनागमन करता है। भगवन् ! नागकुमार देव कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम! यहाँ असुरकुमार देव की पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता यावत् – भवादेश तक कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन दो पल्योपम की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना चाहिए। (संवेध) कालोदेश से – जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक देशोन दो पल्योपम, इस प्रकार नौ ही गमक असुरकुमार के गमकों के समान जानना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ स्थिति और कालादेश भिन्न जानना। इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए। भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक जीव), वाणव्यन्तर देवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या पिशाच वाण – व्यन्तरों से अथवा यावत् गन्धर्व वाणव्यन्तरों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पिशाच वाणव्यन्तरों यावत्, गन्धर्व वाणव्यन्तरों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! वाणव्यन्तर देव कितने काल की स्थितिवाले पृथ्वीकायिकोंमें उत्पन्न होता है ?इत्यादि प्रश्न। गौतम ! असुरकुमार के नौ गमकों सदृश कहना। परन्तु विशेष यह कि यहाँ स्थिति और कालादेश (भिन्न) जानना। स्थिति जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक पल्योपम की होती है। शेष पूर्ववत्। भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक) ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे चन्द्रविमान – ज्योतिष्क देवों से अथवा यावत् ताराविमान – ज्योतिष्क देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे चन्द्रविमान – ज्योतिष्क देवों यावत् ताराविमान – ज्योतिष्कदेवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! ज्योतिष्क देव जो पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) इनके विषय में उत्पत्ति – परिमाणादि की लब्धि असुरकुमारों के समान जानना चाहिए। विशेषता यह है कि इनके एकमात्र तेजोलेश्या होती है इनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान नियम से होते हैं। स्थिति जघन्य पल्योपम के आठवें भाग की और उत्कृष्ट एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना चाहिए। (संवेध) काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक पल्योपम का आठवा भाग और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम तथा एक लाख वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है। इसी प्रकार शेष आठ गमक भी कहने चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और कालादेश (भिन्न) समझने चाहिए। भगवन् ! यदि वे, वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं अथवा कल्पातीत से ? गौतम ! वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, कल्पातीत से नहीं (भगवन् !) यदि वे कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे सौधर्म – कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अच्युत से ? गौतम ! वे सौधर्म – तथा ईशान – कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सनत्कुमार – वैमानिकदेवों यावत् अच्युत – कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। भगवन् ! सौधर्मकल्पोपपन्न वैमानिक देव, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के गमक समान कहना। विशेषता यह है कि इनकी स्थिति और अनुबन्ध जघन्य एक पल्योपम और उत्कृष्ट दो सागरोपम है। (संवेध) कालादेश से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष अधिक दो सागरोपम। इसी प्रकार शेष आठ गमक जानना। विशेष यह है कि यहाँ स्थिति और कालादेश (भिन्न) है। भगवन् ! ईशानदेव, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उसकी उत्पत्ति होती है ? (गौतम !) इस सम्बन्ध में पूर्वोक्त नौ ही गमक इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य सातिरेक एक पल्योपम और उत्कृष्ट सातिरेक दो सागरोपम होता है। शेष पूर्ववत्। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai manussehimto uvavajjamti– kim sannimanussehimto uvavajjamti? Asannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Sannimanussehimto uvavajjamti, asannimanussehimto vi uvavajjamti. Asannimanusse nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikala-tthitiesu uvavajjejja? Evam jaha asannipamchimdiyatirikkhajoniyassa jahannakalatthitiyassa tinni gamaga taha eyassa vi ohiya tinni gamaga bhaniyavva taheva niravasesam. Sesa chha na bhannamti. Jai sannimanussehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauya? Asamkhejjavasauya? Goyama! Samkhejjavasauya, no asamkhejjavasauya. Jai samkhejjavasauya kim pajjattasamkhejjavasauya? Apajjattasamkhejjavasauya? Goyama! Pajjattasamkhejjavasauya, apajjattasamkhejjavasauya java uvavajjamti. Sannimanusse nam bhamte! Je bhavie pudhavikaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjamti? Goyama! Jahannenam amtomuhuttatthitiesu, ukkosenam bavisavasasahassatthitiesu. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva rayanappabhae uvavajjamanassa taheva tisu vi gamaesu laddhi, navaram–ogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam pamchadhanusayaim. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Evam anubamdho. Samveho navasu gamaesu jaheva sannipamchimdiyassa. Majjhillaesu tisu gamaesu laddhi jaheva sannipamchimdiyassa majjhillaesu tisu. Sesam tam cheva niravasesam. Pachchhilla tinni gamaga jaha eyassa cheva ohiya gamaga, navaram–ogahana jahannenam pamcha dhanusayaim, ukkosena vi pamcha dhanusayaim. Thiti anubamdho ya jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Sesam taheva. Jai devehimto uvavajjamti– kim bhavanavasidevehimto uvavajjamti? Vanamamtaradevehimto, joisiyadevehimto, vemaniyadevehimto uvavajjamti? Goyama! Bhavanavasidevehimto vi uvavajjamti java vemaniyadevehimto vi uvavajjamti. Jai bhavanavasidevehimto uvavajjamti– kim asurakumarabhavanavasidevehimto uvavajjamti java thaniyakumarabhavanavasidevehimto uvavajjamti? Goyama! Asurakumara-bhavanavasidevehimto uvavajjamti java thaniyakumara-bhavanavasidevehimto uvavajjamti. Asurakumarenam bhamte! Je bhavie pudhavikaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam amtomuhuttatthitiesu, ukkosenam bavisavasasahassatthitiesu. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja va asamkhejja va uvavajjamti. Tesi nam bhamte! Jivanam sariraga kimsamghayani pannatta? Goyama! Chhanham samghayananam asamghayani java parinamamti. Tesi nam bhamte! Jivanam kemahaliya sarirogahana? Goyama! Duviha sarirogahana pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam ja sa bhavadharanijja sa jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam satta rayanio. Tattha nam ja sa uttaraveuvviya sa jahannenam amgulassa samkhejjaibhagam ukkosenam joyanasayasahassam. Tesim nam bhamte! Jivanam sariraga kimsamthiya pannatta? Goyama! Duviha pannatta, tam jaha–bhavadharanijja ya uttaraveuvviya ya. Tattha nam je te bhavadharanijja te samachauramsasamthiya pannatta. Tattha nam je te uttaraveuvviya te nanasamthiya pannatta. Lessao chattari. Ditthi tiviha vi. Tinni nana niyamam, tinni annana bhayanae. Jogo tiviho vi. Uvaogo duviho vi. Chattari sannao. Chattari kasaya. Pamcha imdiya. Pamcha samugghaya. Veyana duviha vi. Itthivedaga vi purisavedaga vi, no napumsagavedaga. Thiti jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam sati-regam sagarovamam. Ajjhavasana asamkhejja pasattha vi appasattha vi. Anubamdho jaha thiti. Bhavadesenam do bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam satiregam sagarovamam bavisae vasasahassehim abbhahiyam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam nava vi gama neyavva, navaram–majjhillaesu pachchhillaesu tisu gamaesu asurakuma-ranam thiiviseso janiyavvo, sesa ohiya cheva laddhi kayasamveham cha janejja. Savvattha do bhavaggahanaim java navamagamae kaladesenam jahannenam satiregam sagarovamam bavisae vasasahassehim abbhahiyam, ukkosena vi satiregam sagarovamam bavisae vasasahassehim abbhahiyam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Nagakumarenam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu? Esa cheva vattavvaya java bhavadeso tti, navaram–thiti jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam desunaim do paliovamaim. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam dasavasasahassaim amtomuhuttama-bbhahiyaim, ukkosenam desunaim do paliovamaim bavisae vasasahassehim abbhahiyaim. Evam nava vi gamaga asurakumaragamagasarisa, navaram–thitim kaladesam cha janejja. Evam java thaniyakumaranam. Jai vanamamtarehimto uvavajjamti–kim pisayavanamamtaradevehimto java gamdhavvavanamamtaradevehimto? Goyama! Pisayavanamamtaradevehimto java gamdhavvavanamamtaradevehimto. Vanamamtaradeve nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae? Etesim pi asurakumaragamagasarisa nava gamaga bhaniyavva, navaram–thitim kaladesam cha janejja. Thiti jahannenam dasavasasahassaim, ukkosenam paliovamam. Sesam taheva. Jai joisiyadevehimto uvavajjamti–kim chamdavimanajoisiyadevehimto uvavajjamti java taravimanajoisiyadevehimto? Goyama! Chamdavimana java taravimana. Joisiyadeve nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae? Laddhi jaha asurakumaranam, navaram–ega teulessa pannatta. Tinni nana, tinni annana niyamam. Thiti jahannenam atthabhagapaliovamam, ukkosenam paliovamam vasasayasahassamabbhahiyam. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam atthabhagapaliovamam amtomuhuttamabbhahiyam, ukkosenam paliovamam vasa-saya-sahassenam bavisae vasasahassehim abbhahiyam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesa vi attha gamaga bhaniyavva navaram–thiti kaladesam cha janejja. Jai vemaniyadevehimto uvavajjamti– kim kappovavemaniyadevehimto? Kappatitavemaniya-devehimto? Goyama! Kappovavemaniyadevehimto, no kappatitavemaniyadevehimto. Jai kappovavemaniyadevehimto uvavajjamti–kim sohammakappovavemaniyadevehimto java achchuya-kappovavemaniyadevehimto? Goyama! Sohammakappovavemaniyadevehimto isanakappovavemaniyadevehimto, no sanamkumara java no achchuyakappovavemaniyadevehimto. Sohammadeve nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Evam jaha joisiyassa gamago, navaram–thiti anubamdho ya jahannenam paliovamam, ukkosenam do sagarovamaim. Kaladesenam jahannenam paliovamam amtomuhuttamabbhahiyam, ukkosenam do sagarovamaim bavisae vasasahassehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam sesa vi attha gamaga bhaniyavva, navaram–thitim kaladesam cha janejja. Isanadeve nam bhamte! Je bhavie? Evam isanadevena vi nava gamaga bhaniyavva, navaram–thiti anubamdho jahannenam satiregam paliovamam, ukkosenam satiregaim do sagarovamaim. Sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | (bhagavan !) yadi ve (prithvikayika) manushyom se akara utpanna hote haim, to kya ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim ya asamjnyi manushyom se\? Gautama ! Ve donom prakara ke manushyom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Asamjnyi manushya, kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai\? Jaghanya kala ki sthiti vale asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonika anusara hai, yaham bhi aughika tina gamaka sampurna kahane chahie. Shesha gamaka nahim kahane chahie. Yadi ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim, to kya samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim ya asamkhyata varsha ki\? Gautama ! Ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim, asamkhyata se nahim. Bhagavan ! Yadi ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim to kya paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim ya aparyapta se\? Gautama ! Ve donom prakara ke samkhyeya varshayushka samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Samkhyeya varshayushka paryapta samjnyi manushya kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta baisa hajara varsha ki. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Ratnaprabha mem utpanna hone yogya manushya ke samana kahani chahie. Vishesha yaha hai ki usake sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hoti hai; sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta purvakoti varsha ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara janana. Samvedha – jaise samjnyi pamchendriya – tiryamcha ka kaha hai, vaise hi yaham nau hi gamakom mem kahana chahie. Bicha ke tina gamakom mem samjnyi pamchendriya ke madhyama tina gamakom samana kahana chahie. Shesha purvavat. Pichhale tina gamakom ka kathana isi ke prathama tina aughika gamakom ke samana kahana chahie. Vishesha yaha hai ki sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hai; sthiti aura anubandha jaghanya aura utkrishta purvakoti ke hote haim. Shesha purvavat. Visheshata yaha hai ki pichhale tina gamakom mem samkhyata hi utpanna hote haim, asamkhyata nahim. Bhagavan ! Yadi ve (prithvikayika) devom se akara utpanna hote haim, to kya bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim, athava vanavyantara, jyotishka ya vaimanika devom se akara\? Gautama ! Ve bhavanavasi yavat vaimanika devom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi ve bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim to kya ve asurakumara – bhavanavasi athava yavat stanitakumara – bhavanavasi devom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve asurakumara yavat stanitakumara – bhavanavasi devom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Asurakumara kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta baisa hajara varsha ki. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata ya asamkhyata utpanna hote haim. Bhagavan ! Una jivom ke sharira kisa prakara ke samhanana vale haim\? Gautama ! Unake sharira chhahom prakara ke samhananom se rahita hote haim. Bhagavan ! Una jivom ke sharira ki avagahana kitani bari hoti hai\? Gautama ! Do prakara ki hai. Yatha – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Unamem jo bhavadharaniya avagahana hai, vaha jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga ki aura utkrishta sapta ratni ki hai tatha unamem jo uttaravaikriya avagahana hai, vaha jaghanya amgula ke samkhyatave bhaga ki aura utkrishta eka lakha yojana ki hai. Bhagavan ! Una jivom ke sharira ka samsthana kauna – sa kaha gaya hai\? Gautama ! Unake sharira do prakara ke haim – bhavadharaniya aura uttaravaikriya. Unamem jo bhavadharaniya sharira haim, ve samachaturasrasamsthana vale kahe gae haim tatha jo uttaravaikriya sharira haim, ve aneka prakara ke samsthana vale kahe gae haim. Unake chara leshyaem, tina drishtiyam niyamatah tina jnyana, tina ajnyana bhajana se, yoga tina, upayoga do, samjnyaem chara, kashaya chara, indriyam pamcha, samudghata pamcha aura vedana do prakara ki hoti hai. Ve strivedi aura purushavedi hote haim, sthiti jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta satireka sagaropama ki hoti hai. Adhyayavasaya samkhyata prakara ke prashasta aura aprashasta donom prakara ke hote haim. Anubandha sthiti ke anusara hota hai. (samvedha) bhavadesha se vaha do bhava grahana karata hai. Kaladesha se – jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta baisa hajara varsha adhika satireka sagaropama. Isa prakara nau hi gamaka janane chahie. Vishesha yaha hai ki madhyama aura antima tina – tina gamakom mem asurakumarom ki sthiti – vishayaka visheshata jana lena. Shesha aughika vaktavyata aura kaya – samvedha janana. Samvedha mem sarvatra do bhava janana. Isa prakara yavat nauvem gamaka mem kaladesha se jaghanya baisa hajara varsha sadhika sagaropama kala taka gamanagamana karata hai. Bhagavan ! Nagakumara deva kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai\? Ityadi prashna. Gautama! Yaham asurakumara deva ki purvokta samasta vaktavyata yavat – bhavadesha taka kahani chahie. Vishesha yaha hai ki usaki sthiti jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta deshona do palyopama ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara samajhana chahie. (samvedha) kalodesha se – jaghanya antarmuhurtta adhika dasa hajara varsha aura utkrishta baisa hajara varsha adhika deshona do palyopama, isa prakara nau hi gamaka asurakumara ke gamakom ke samana janana chahie. Parantu vishesha yaha hai ki yaham sthiti aura kaladesha bhinna janana. Isi prakara yavat stanitakumara paryanta janana chahie. Bhagavan ! Yadi ve (prithvikayika jiva), vanavyantara devom se akara utpanna hote haim to kya pishacha vana – vyantarom se athava yavat gandharva vanavyantarom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve pishacha vanavyantarom yavat, gandharva vanavyantarom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Vanavyantara deva kitane kala ki sthitivale prithvikayikommem utpanna hota hai\?Ityadi prashna. Gautama ! Asurakumara ke nau gamakom sadrisha kahana. Parantu vishesha yaha ki yaham sthiti aura kaladesha (bhinna) janana. Sthiti jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta eka palyopama ki hoti hai. Shesha purvavat. Bhagavan ! Yadi ve (prithvikayika) jyotishka devom se akara utpanna hote haim, to kya ve chandravimana – jyotishka devom se athava yavat taravimana – jyotishka devom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve chandravimana – jyotishka devom yavat taravimana – jyotishkadevom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Jyotishka deva jo prithvikayikom mem utpanna hone yogya haim, ve kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hote haim\? (gautama !) inake vishaya mem utpatti – parimanadi ki labdhi asurakumarom ke samana janana chahie. Visheshata yaha hai ki inake ekamatra tejoleshya hoti hai inamem tina jnyana aura tina ajnyana niyama se hote haim. Sthiti jaghanya palyopama ke athavem bhaga ki aura utkrishta eka lakha varsha adhika eka palyopama ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara janana chahie. (samvedha) kala ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta adhika palyopama ka athava bhaga aura utkrishta baisa hajara varsha adhika eka palyopama tatha eka lakha varsha, itane kala taka gamanagamana karata hai. Isi prakara shesha atha gamaka bhi kahane chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti aura kaladesha (bhinna) samajhane chahie. Bhagavan ! Yadi ve, vaimanika devom se akara utpanna hote haim, to kya ve kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna hote haim athava kalpatita se\? Gautama ! Ve kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna hote haim, kalpatita se nahim (bhagavan !) yadi ve kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna hote haim, to kya ve saudharma – kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna hote haim, athava yavat achyuta se\? Gautama ! Ve saudharma – tatha ishana – kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna hote haim, kintu sanatkumara – vaimanikadevom yavat achyuta – kalpopapanna vaimanika devom se akara utpanna nahim hote. Bhagavan ! Saudharmakalpopapanna vaimanika deva, kitane kala ki sthiti vale prithvikayika mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jyotishka devom ke gamaka samana kahana. Visheshata yaha hai ki inaki sthiti aura anubandha jaghanya eka palyopama aura utkrishta do sagaropama hai. (samvedha) kaladesha se jaghanya antarmuhurtta adhika eka palyopama aura utkrishta baisa hajara varsha adhika do sagaropama. Isi prakara shesha atha gamaka janana. Vishesha yaha hai ki yaham sthiti aura kaladesha (bhinna) hai. Bhagavan ! Ishanadeva, kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem usaki utpatti hoti hai\? (gautama !) isa sambandha mem purvokta nau hi gamaka isi prakara kahana chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti aura anubandha jaghanya satireka eka palyopama aura utkrishta satireka do sagaropama hota hai. Shesha purvavat. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |