Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004347 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Translated Section : | उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि |
Sutra Number : | 847 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] जइ बेंदिएहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्ता-बेंदिएहिंतो उववज्जंति, अपज्जत्ता-बेंदिएहिंतो वि उववज्जंति। बेंदिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। छेवट्टसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। हुंडसंठिया। तिन्नि लेसाओ। सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। दो नाणा, दो अन्नाणा नियमं। नो मनजोगी, वइजोगी कायजोगी वि। उवओगो दुविहो वि। चत्तारि सण्णाओ चत्तारि कसाया। दो इंदिया पन्नत्ता, तं जहा–जिब्भिंदिए य फासिंदिए य। तिन्नि समुग्घाया। सेसं जहा पुढविक्काइयाणं, नवरं–ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया सव्वा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव बेंदियस्स लद्धी, नवरं–भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्त-मब्भहियाइं, उक्कोसेणं अट्ठासीतिं वाससहस्साइं अडयालीसाए संवच्छरेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि एस चेव वत्तव्वया तिसु वि गमएसु, नवरं–इमाइं सत्त नाणत्ताइं–१. सरीरोगाहणा जहा पुढविकाइयाणं २. नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मा-मिच्छादिट्ठी ३. दो अन्नाणा नियमं ४. नो मणजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी ५. ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं ६. अज्झवसाणा अपसत्था ७. अनुबंधो जहा ठिती। संवेहो तहेव आदिल्लेसु दोसु गमएसु, तइयगमए भवादेसो तहेव अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साइं चउहिं अंतो-मुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, एयस्स वि ओहियगमगसरिसा तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं–तिसु वि गमएसु ठिती जहन्नेणं बारस संवच्छराइं, उक्कोसेण वि बारस संवच्छराइं। एवं अनुबंधो वि। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं उवजुंजिऊण भाणियव्वं जाव नवमे गमए जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं बारसहिं संवच्छरेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साइं अडयालीसाए संवच्छरेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जइ तेइंदिएहिंतो उववज्जंति? एवं चेव नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–आदिल्लेसु तिसु वि गमएसु सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। तिन्नि इंदियाइं। ठितो जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं एगूणपन्नं राइंदियाइं। तइयगमए कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुहुत्तमब्भहियाइं, उक्कोसेणं अट्ठासीतिं वाससहस्साइं छण्ण उयराइंदियसय-मब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। मज्झिमा तिन्नि गमगा तहेव, पच्छिमा वि तिन्नि गमगा तहेव, नवरं–ठिती जहन्नेणं एगूणपन्नं राइंदियाइं, उक्कोसेण वि एगूणपन्नं राइंदियाइं। संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो। जइ चउरिंदिएहिंतो उववज्जंति? एवं चेव चउरिंदियाण वि नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–एतेसु चेव ठाणेसु नाणत्ता जाणियव्वा। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाइं ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण य छम्मासा। एवं अनुबंधो वि। चत्तारि इंदियाइं। सेसं तहेव जाव नवमगमए–कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं छहिं मासेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं अट्ठासीति वाससहस्साइं चउवीसाए मासेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एव-तियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिपंचिंदिय, असण्णिपंचिंदिय। जइ असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं जलचरेहिंतो उववज्जंति जाव किं पज्जत्तएहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तएहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्तएहिंतो वि उववज्जंति, अपज्जत्तएहिंतो वि उववज्जंति। असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठितीएसु, उक्कोसेणं बावीसवाससहस्सट्ठितीएसु। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव बेइंदियस्स ओहियगमए लद्धी तहेव, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। पंच इंदिया। ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। सेसं तं चेव। भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरा-गतिं करेज्जा। नवसु वि गमएसु कायसंवेहो–भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाइं। कालादेसेणं उवजुंजिऊण भाणियव्वं, नवरं–मज्झिमएसु तिसु गमएसु जहेव बेइंदियस्स, पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहा एतस्स चेव पढमगमएसु नवरं–ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। सेसं तं चेव जाव नवमगमएसु–जहन्नेणं पुव्वकोडी बावीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्ज-वासाउय? गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय। जइ संखेज्जवासाउय किं जलयरेहिंतो? सेसं जहा असण्णीणं जाव– ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहा रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स सण्णिस्स तहेव इह वि, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं। सेसं तहेव जाव कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतो मुहुत्ता, उक्कोसेणं चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं संवेहो नवसु वि गमएसु जहा असण्णीणं तहेव निरवसेसो। लद्धी से आदिल्लएसु तिसु वि गमएसु एस चेव, मज्झिल्लएसु तिसु वि गमएसु एस चेव, नवरं–इमाइं नव नाणत्ताइं–ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागे। तिन्नि लेस्साओ। मिच्छादिट्ठी। दो अन्नाणा। कायजोगी। तिन्नि समुग्घाया। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। अप्पसत्था अज्झवसाणा। अनुबंधो जहा ठिती। सेसं तं चेव। पच्छिल्लएसु तिसु वि गमएसु जहेव पढमगमए, नवरं–ठिती अनुबंधो य–जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। सेसं तं चेव। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! यदि वे द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों तो क्या पर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त द्वीन्द्रिय जीवों से ? गौतम ! वे पर्याप्त तथा अपर्याप्त द्वीन्द्रियों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! जो द्वीन्द्रिय जीव पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। सेवार्त्तसंहनन वाले होते हैं। अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग की और उत्कृष्ट बारह योजन की होती है। संस्थान हुण्डक होता है। लेश्याएं तीन और दृष्टियाँ दो – सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होती है। दो ज्ञान या दो अज्ञान अवश्य होते हैं। वे मनोयोगी नहीं होते, वचनयोगी और काययोगी होते हैं। दो उपयोग, चार संज्ञाएं और चार कषाय होते हैं। जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय, ये दो इन्द्रियाँ होती हैं। तीन समुद्घात होते हैं। शेष पृथ्वीकायिकों के समान जाननी चाहिए। विशेष – उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है। भव की अपेक्षा से – वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट संख्यात भव ग्रहण करते हैं। काल की अपेक्षा से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट संख्यात काल तक। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो पूर्वोक्त सभी वक्तव्यता समझना। यदि वह, उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो भी पूर्वोक्त वक्तव्यता कहना। विशेष यह है कि भव की अपेक्षा से – जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से – जघन्य अन्त – र्मुहूर्त्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष तक। यदि वह (द्वीन्द्रिय) स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पन्न हो, तो उसके भी तीनों गमकों में पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यहाँ सात भेद हैं। यथा – शरीर की अवगाहना पृथ्वीकायिकों के समान वह मिथ्यादृष्टि होता है, इसमें दो अज्ञान नियम से होते हैं, वह काययोगी होता है, उसकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की होती है, अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं और अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है। दूसरे त्रिक के पहले के दो गमकों से संवेध भी इसी प्रकार समझना चाहिए। छठे गमक में भवादेश भी उसी प्रकार आठ भव जानने चाहिए। कालादेश – जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चार अन्त – र्मुहूर्त्त अधिक ८८,००० वर्ष तक गमनागमन करता है। यदि वह, स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो उनके भी तीनों गमक औघिक गमकों के समान कहने चाहिए। विशेष यह है कि इन तीनों गमकों में स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट बारह वर्ष की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार समझना। भव की अपेक्षा से – जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से – विचार करके संवेध कहना चाहिए, यावत् नौवें गमक में जघन्य बारह वर्ष अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट ४८ वर्ष अधिक ८८,००० वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है। यदि वह पृथ्वीकायिक त्रीन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हो, तो ? इत्यादि प्रश्न। यहाँ भी इसी प्रकार नौ गमक कहना चाहिए। प्रथम के तीन गमकों में शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग तथा उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। तीन इन्द्रियाँ होती हैं। स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट ४९ अहोरात्र की होती है। तृतीय गमक में काल की अपेक्षा – जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक, २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट १९६ अहोरात्र अधिक ८८,००० वर्ष, इतने काल तक गमनागमन करता है। बीच के तीन गमकों और अन्तिम तीन गमकों की वक्तव्यता भी पूर्ववत् जानना चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट ४९ रात्रि – दिवस की होती है। इनका संवेध उपयोगपूर्वक कहना (भगवन् !) यदि वे पृथ्वीकायिक जीव चतुरिन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न हों, तो ? इत्यादि प्रश्न। चतुरि – न्द्रिय जीवों के विषय में भी इसी प्रकार नौ गमक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इन स्थानों में नानात्व कहना चाहिए – इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट चार गाऊ की होती है। स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट छह माह की होती है। अनुबन्ध भी स्थिति के अनुसार होता है। चार इन्द्रियाँ होती हैं। शेष पूर्ववत्, यावत् नौवें गमक में कालादेश से जघन्य छह मास अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चौबीस मास अधिक ८८,००० वर्ष; इतने काल तक गमनागमन करता है। (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीवों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या वे संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी से ? गौतम ! वे संज्ञी पंचेन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से भी उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे जलचरों से उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे यावत् सभी के पर्याप्तकों से भी और अपर्याप्तकों से भी आते हैं। भगवन् ! असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! द्वीन्द्रिय के औघिक गमक अनुसार यहाँ कहनी चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि इनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है। पाँचों इन्द्रियाँ होती हैं। स्थिति और अनुबन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष का है। शेष पूर्वोक्तानुसार। भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट ८८ हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि वर्ष। नौ ही गमकों में कायसंवेध – भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव होते हैं। काल की अपेक्षा से कायसंवेध उपयोगपूर्वक कहना। विशेष यह है कि तीनों गमकों में द्वीन्द्रिय के मध्य के तीनों गमकों के समान कहना। पीछले तीन गमकों का कथन प्रथम के तीन गमकों के समान समझना चाहिए। यह स्थिति और अनुबन्ध जघन्य तथा उत्कृष्ट पूर्वकोटि समझना। यावत् – नौवे गमक में जघन्य पूर्वकोटि – अधिक २२,००० वर्ष और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि – अधिक ८८,००० वर्ष। भगवन् ! यदि वे (पृथ्वीकायिक), संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यातवर्ष से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। असंख्यात से नहीं। यदि वे पृथ्वी – कायिक संख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या जलचरों से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। समग्र वक्तव्यता असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिकों के समान जाननी चाहिए। यावत् – भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? रत्नप्रभा में उत्पन्न होने योग्य संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के अनुसार कहनी चाहिए। विशेष यह है कि उनके शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट हजार योजन की होती है। यावत् कालादेश से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट ८८ हजार वर्ष अधिक चार पूर्वकोटि इसी प्रकार नौ ही गमकों में संवेध भी असंज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंच की तरह कहना। प्रथम के तीन और मध्य के तीन गमकों में भी यही वक्तव्यता जाननी। परन्तु मध्य के तीन गमकों में नौ नानात्व हैं। यथा – शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल का असंख्यातवाँ भाग होती है। लेश्याएं तीन होती हैं। वे मिथ्यादृष्टि होते हैं। उनमें दो अज्ञान होते हैं। काययोगी होते हैं। तीन समुद्घात होते हैं। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त होती है। अध्यवसाय अप्रशस्त होते हैं और अनुबन्ध भी स्थिति के अनुसार होता है। अन्तिम तीनों गमकों में प्रथम गमक के समान वक्तव्यता कहनी परन्तु विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि का होता है | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] jai bemdiehimto uvavajjamti– kim pajjatta-bemdiehimto uvavajjamti? Apajjatta-bemdiehimto uvavajjamti? Goyama! Pajjatta-bemdiehimto uvavajjamti, apajjatta-bemdiehimto vi uvavajjamti. Bemdie nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam amtomuhuttatthitiesu, ukkosenam bavisavasasahassatthitiesu. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja va asamkhejja va uvavajjamti. Chhevattasamghayani. Ogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam barasa joyanaim. Humdasamthiya. Tinni lesao. Sammaditthi vi, michchhaditthi vi, no sammamichchhaditthi. Do nana, do annana niyamam. No manajogi, vaijogi kayajogi vi. Uvaogo duviho vi. Chattari sannao chattari kasaya. Do imdiya pannatta, tam jaha–jibbhimdie ya phasimdie ya. Tinni samugghaya. Sesam jaha pudhavikkaiyanam, navaram–thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam barasa samvachchharaim. Evam anubamdho vi. Sesam tam cheva. Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam samkhejjaim bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukkosenam samkhejjam kalam, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno esa cheva vattavvaya savva. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno esa cheva bemdiyassa laddhi, navaram–bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam bavisam vasasahassaim amtomuhutta-mabbhahiyaim, ukkosenam atthasitim vasasahassaim adayalisae samvachchharehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa vi esa cheva vattavvaya tisu vi gamaesu, navaram–imaim satta nanattaim–1. Sarirogahana jaha pudhavikaiyanam 2. No sammaditthi, michchhaditthi, no samma-michchhaditthi 3. Do annana niyamam 4. No manajogi, no vaijogi, kayajogi 5. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam vi amtomuhuttam 6. Ajjhavasana apasattha 7. Anubamdho jaha thiti. Samveho taheva adillesu dosu gamaesu, taiyagamae bhavadeso taheva attha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam bavisam vasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam atthasiti vasasahassaim chauhim amto-muhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, eyassa vi ohiyagamagasarisa tinni gamaga bhaniyavva, navaram–tisu vi gamaesu thiti jahannenam barasa samvachchharaim, ukkosena vi barasa samvachchharaim. Evam anubamdho vi. Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim. Kaladesenam uvajumjiuna bhaniyavvam java navame gamae jahannenam bavisam vasasahassaim barasahim samvachchharehim abbhahiyaim, ukkosenam atthasiti vasasahassaim adayalisae samvachchharehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Jai teimdiehimto uvavajjamti? Evam cheva nava gamaga bhaniyavva, navaram–adillesu tisu vi gamaesu sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam tinni gauyaim. Tinni imdiyaim. Thito jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam egunapannam raimdiyaim. Taiyagamae kaladesenam jahannenam bavisam vasasahassaim amtomuhuttamabbhahiyaim, ukkosenam atthasitim vasasahassaim chhanna uyaraimdiyasaya-mabbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Majjhima tinni gamaga taheva, pachchhima vi tinni gamaga taheva, navaram–thiti jahannenam egunapannam raimdiyaim, ukkosena vi egunapannam raimdiyaim. Samveho uvajumjiuna bhaniyavvo. Jai chaurimdiehimto uvavajjamti? Evam cheva chaurimdiyana vi nava gamaga bhaniyavva, navaram–etesu cheva thanesu nanatta janiyavva. Sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam chattari gauyaim thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosena ya chhammasa. Evam anubamdho vi. Chattari imdiyaim. Sesam taheva java navamagamae–kaladesenam jahannenam bavisam vasasahassaim chhahim masehim abbhahiyaim, ukkosenam atthasiti vasasahassaim chauvisae masehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, eva-tiyam kalam gatiragatim karejja. Jai pamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti– kim sannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti? Asannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti? Goyama! Sannipamchimdiya, asannipamchimdiya. Jai asannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti–kim jalacharehimto uvavajjamti java kim pajjattaehimto uvavajjamti? Apajjattaehimto uvavajjamti? Goyama! Pajjattaehimto vi uvavajjamti, apajjattaehimto vi uvavajjamti. Asannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie pudhavikkaiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam amtomuhuttatthitiesu, ukkosenam bavisavasasahassatthitiesu. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva beimdiyassa ohiyagamae laddhi taheva, navaram–sarirogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasahassam. Pamcha imdiya. Thiti anubamdho ya jahannenam amtomuhuttam, ukkosenam puvvakodi. Sesam tam cheva. Bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam do amtomuhutta, ukkosenam chattari puvvakodio atthasitie vasasahassehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatira-gatim karejja. Navasu vi gamaesu kayasamveho–bhavadesenam jahannenam do bhavaggahanaim, ukkosenam attha bhavaggahanaim. Kaladesenam uvajumjiuna bhaniyavvam, navaram–majjhimaesu tisu gamaesu jaheva beimdiyassa, pachchhillaesu tisu gamaesu jaha etassa cheva padhamagamaesu navaram–thiti anubamdho ya jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Sesam tam cheva java navamagamaesu–jahannenam puvvakodi bavisae vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chattari puvvakodio atthasitie vasasahassehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Jai sannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauya? Asamkhejja-vasauya? Goyama! Samkhejjavasauya, no asamkhejjavasauya. Jai samkhejjavasauya kim jalayarehimto? Sesam jaha asanninam java– Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaha rayanappabhae uvavajjamanassa sannissa taheva iha vi, navaram–ogahana jahannenam amgulassa asamkhejjaibhagam, ukkosenam joyanasahassam. Sesam taheva java kaladesenam jahannenam do amto muhutta, ukkosenam chattari puvvakodio atthasitie vasasahassehim abbhahiyao, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam samveho navasu vi gamaesu jaha asanninam taheva niravaseso. Laddhi se adillaesu tisu vi gamaesu esa cheva, majjhillaesu tisu vi gamaesu esa cheva, navaram–imaim nava nanattaim–ogahana jahannenam amgulassa asamkhejjatibhagam, ukkosenam amgulassa asamkhejjatibhage. Tinni lessao. Michchhaditthi. Do annana. Kayajogi. Tinni samugghaya. Thiti jahannenam amtomuhuttam, ukkosena vi amtomuhuttam. Appasattha ajjhavasana. Anubamdho jaha thiti. Sesam tam cheva. Pachchhillaesu tisu vi gamaesu jaheva padhamagamae, navaram–thiti anubamdho ya–jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Sesam tam cheva. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Yadi ve dvindriya jivom se akara utpanna hom to kya paryapta dvindriya jivom se akara utpanna hote haim ya aparyapta dvindriya jivom se\? Gautama ! Ve paryapta tatha aparyapta dvindriyom se bhi akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Jo dvindriya jiva prithvikayika jivom mem utpanna hone yogya haim, ve kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hote haim\? Gautama ! Ve jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta baisa hajara varsha ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Ve jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata ya asamkhyata utpanna hote haim. Sevarttasamhanana vale hote haim. Avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga ki aura utkrishta baraha yojana ki hoti hai. Samsthana hundaka hota hai. Leshyaem tina aura drishtiyam do – samyagdrishti aura mithyadrishti hoti hai. Do jnyana ya do ajnyana avashya hote haim. Ve manoyogi nahim hote, vachanayogi aura kayayogi hote haim. Do upayoga, chara samjnyaem aura chara kashaya hote haim. Jihvendriya aura sparshendriya, ye do indriyam hoti haim. Tina samudghata hote haim. Shesha prithvikayikom ke samana janani chahie. Vishesha – unaki sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta baraha varsha ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara hota hai. Bhava ki apeksha se – ve jaghanya do bhava aura utkrishta samkhyata bhava grahana karate haim. Kala ki apeksha se – jaghanya do antarmuhurtta aura utkrishta samkhyata kala taka. Yadi vaha jaghanya kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna ho to purvokta sabhi vaktavyata samajhana. Yadi vaha, utkrishtakala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna ho to bhi purvokta vaktavyata kahana. Vishesha yaha hai ki bhava ki apeksha se – jaghanya do bhava aura utkrishta atha bhava grahana karata hai. Kala ki apeksha se – jaghanya anta – rmuhurtta adhika baisa hajara varsha aura utkrishta 48 varsha adhika 88,000 varsha taka. Yadi vaha (dvindriya) svayam jaghanya kala ki sthiti vala ho aura prithvikayika jivom mem utpanna ho, to usake bhi tinom gamakom mem purvokta vaktavyata kahani chahie. Parantu vishesha yaham sata bheda haim. Yatha – sharira ki avagahana prithvikayikom ke samana vaha mithyadrishti hota hai, isamem do ajnyana niyama se hote haim, vaha kayayogi hota hai, usaki jaghanya aura utkrishta sthiti antarmuhurtta ki hoti hai, adhyavasaya aprashasta hote haim aura anubandha sthiti ke anusara hota hai. Dusare trika ke pahale ke do gamakom se samvedha bhi isi prakara samajhana chahie. Chhathe gamaka mem bhavadesha bhi usi prakara atha bhava janane chahie. Kaladesha – jaghanya antarmuhurtta adhika 22,000 varsha aura utkrishta chara anta – rmuhurtta adhika 88,000 varsha taka gamanagamana karata hai. Yadi vaha, svayam utkrishta sthiti vala ho aura prithvikayikom mem utpanna ho to unake bhi tinom gamaka aughika gamakom ke samana kahane chahie. Vishesha yaha hai ki ina tinom gamakom mem sthiti jaghanya aura utkrishta baraha varsha ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara samajhana. Bhava ki apeksha se – jaghanya do bhava aura utkrishta atha bhava grahana karata hai. Kala ki apeksha se – vichara karake samvedha kahana chahie, yavat nauvem gamaka mem jaghanya baraha varsha adhika 22,000 varsha aura utkrishta 48 varsha adhika 88,000 varsha, itane kala taka gamanagamana karata hai. Yadi vaha prithvikayika trindriya jivom se akara utpanna ho, to\? Ityadi prashna. Yaham bhi isi prakara nau gamaka kahana chahie. Prathama ke tina gamakom mem sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga tatha utkrishta tina gau ki hoti hai. Tina indriyam hoti haim. Sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta 49 ahoratra ki hoti hai. Tritiya gamaka mem kala ki apeksha – jaghanya antarmuhurtta adhika, 22,000 varsha aura utkrishta 196 ahoratra adhika 88,000 varsha, itane kala taka gamanagamana karata hai. Bicha ke tina gamakom aura antima tina gamakom ki vaktavyata bhi purvavat janana chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti jaghanya aura utkrishta 49 ratri – divasa ki hoti hai. Inaka samvedha upayogapurvaka kahana (bhagavan !) yadi ve prithvikayika jiva chaturindriya jivom se akara utpanna hom, to\? Ityadi prashna. Chaturi – ndriya jivom ke vishaya mem bhi isi prakara nau gamaka kahane chahie. Vishesha yaha hai ki ina sthanom mem nanatva kahana chahie – inake sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga aura utkrishta chara gau ki hoti hai. Sthiti jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta chhaha maha ki hoti hai. Anubandha bhi sthiti ke anusara hota hai. Chara indriyam hoti haim. Shesha purvavat, yavat nauvem gamaka mem kaladesha se jaghanya chhaha masa adhika 22,000 varsha aura utkrishta chaubisa masa adhika 88,000 varsha; itane kala taka gamanagamana karata hai. (bhagavan !) yadi ve (prithvikayika) pamchendriya tiryamchayonika jivom se akara utpanna hote haim to kya ve samjnyi pamchendriya – tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim ya asamjnyi se\? Gautama ! Ve samjnyi pamchendriya aura asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonikom se bhi utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi ve asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonikom se utpanna hote haim to kya ve jalacharom se utpanna hote haim, athava yavat aparyaptakom se utpanna hote haim\? Gautama ! Ve yavat sabhi ke paryaptakom se bhi aura aparyaptakom se bhi ate haim. Bhagavan ! Asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonika jiva kitane kala ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya antarmuhurtta ki aura utkrishta baisa hajara varsha ki sthiti vale prithvikayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Dvindriya ke aughika gamaka anusara yaham kahani chahie. Parantu vishesha yaha hai ki inake sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatavem bhaga aura utkrishta eka hajara yojana ki hai. Pamchom indriyam hoti haim. Sthiti aura anubandha jaghanya antarmuhurtta aura utkrishta purvakoti varsha ka hai. Shesha purvoktanusara. Bhava ki apeksha se jaghanya do bhava aura utkrishta atha bhava hote haim. Kala ki apeksha se jaghanya do antarmuhurtta aura utkrishta 88 hajara varsha adhika chara purvakoti varsha. Nau hi gamakom mem kayasamvedha – bhava ki apeksha se jaghanya do bhava aura utkrishta atha bhava hote haim. Kala ki apeksha se kayasamvedha upayogapurvaka kahana. Vishesha yaha hai ki tinom gamakom mem dvindriya ke madhya ke tinom gamakom ke samana kahana. Pichhale tina gamakom ka kathana prathama ke tina gamakom ke samana samajhana chahie. Yaha sthiti aura anubandha jaghanya tatha utkrishta purvakoti samajhana. Yavat – nauve gamaka mem jaghanya purvakoti – adhika 22,000 varsha aura utkrishta chara purvakoti – adhika 88,000 varsha. Bhagavan ! Yadi ve (prithvikayika), samjnyi pamchendriya tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim, to kya ve samkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya tiryamcha se akara utpanna hote haim ya asamkhyatavarsha se\? Gautama ! Ve samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya tiryamchayonikom se akara utpanna hote haim. Asamkhyata se nahim. Yadi ve prithvi – kayika samkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi pamchendriya tiryamchom se utpanna hote haim, to kya jalacharom se akara utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Samagra vaktavyata asamjnyi pamchendriya – tiryamchayonikom ke samana janani chahie. Yavat – Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ratnaprabha mem utpanna hone yogya samjnyi pamchendriya tiryamchom ke anusara kahani chahie. Vishesha yaha hai ki unake sharira ki avagahana jaghanya amgula ke asamkhyatave bhaga aura utkrishta hajara yojana ki hoti hai. Yavat kaladesha se jaghanya do antarmuhurtta aura utkrishta 88 hajara varsha adhika chara purvakoti isi prakara nau hi gamakom mem samvedha bhi asamjnyi pamchendriya – tiryamcha ki taraha kahana. Prathama ke tina aura madhya ke tina gamakom mem bhi yahi vaktavyata janani. Parantu madhya ke tina gamakom mem nau nanatva haim. Yatha – sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta amgula ka asamkhyatavam bhaga hoti hai. Leshyaem tina hoti haim. Ve mithyadrishti hote haim. Unamem do ajnyana hote haim. Kayayogi hote haim. Tina samudghata hote haim. Sthiti jaghanya aura utkrishta antarmuhurtta hoti hai. Adhyavasaya aprashasta hote haim aura anubandha bhi sthiti ke anusara hota hai. Antima tinom gamakom mem prathama gamaka ke samana vaktavyata kahani parantu vishesha yaha hai ki sthiti aura anubandha jaghanya aura utkrishta purvakoti ka hota hai |