Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004343 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-२ परिमाण | Translated Section : | उद्देशक-२ परिमाण |
Sutra Number : | 843 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–असुरकुमारा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिय-मनुस्स-देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो देवेहिंतो उववज्जंति। एवं जहेव नेरइयउद्देसए जाव– पज्जत्ताअसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवत्तिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभाग-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं रयणप्पभागमगसरिसा नव वि गमा भाणियव्वा, नवरं –जाहे अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ भवति ताहे अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्पसत्था तिसु वि गमएसु। अवसेसं तं चेव। जइ सण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदिय-तिरिक्ख- जोणिएहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो-उववज्जंति ? गोयमा! संखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति, असंखेज्जवासाउय जाव उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं–पुच्छा। गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा उववज्जंति। वइरोसभ-नारायसंघयणी। ओगाहणा जहन्नेणं धणुपुहत्तं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं। समचउरंससंठिया पन्नत्ता। चत्तारि लेस्साओ आदिल्लाओ। नो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नो नाणी, अन्नाणी, नियमं दुअन्नाणी–मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी य। जोगो तिविहो वि। उवओगो दुविहो वि। चत्तारि सण्णाओ। चत्तारि कसाया। पंच इंदिया। तिन्नि समुग्घाया आदिल्ला। समोहया वि मरंति, असमोहया वि मरंति। वेदना दुविहा विसायावेदगा, असायावेदगा। वेदो दुविहो वि–इत्थिवेदगा वि पुरिसवेदगा वि, नो नपुंसगवेदगा। ठिती जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। अज्झवसाणा पसत्था वि अप्पसत्था वि। अनुबंधो जहेव ठिती। कायसंवेहो भवादेसेणं दो भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं छप्पलिओवमाइं एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो– एस चेव वत्तव्वया, नवरं–असुरकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु, उक्कोसेण वि तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा– एस चेव वत्तव्वया, नवरं– ठिती से जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं छप्पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा, सेसं तं चेव। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगपुव्वकोडीआउएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं धनुपुहत्तं, उक्कोसेणं सातिरेगं धनुसहस्सं। ठिती जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि सातिरेगा पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उक्कोसेणं सातिरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–असुरकुमारट्ठिइं संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं सातिरेगपुव्वकोडिआउएसु, उक्कोसेण वि सातिरेगपुव्वकोडी-आउएसु उववज्जेज्जा, सेसं तं चेव, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं सातिरेगाओ दो पुव्वकोडीओ, उक्कोसेण वि सातिरेगाओ दो पुव्व-कोडीओ, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, सो चेव पढमगमगो भाणियव्वो, नवरं–ठिती जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। कालादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाइं दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छ पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–असुरकुमारट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो जहन्नेणं तिपलिओवमाइं, उक्कोसेण वि तिपलि-ओवमाइं, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–कालादेसेणं जहन्नेणं छप्पलिओवमाइं, उक्कोसेण वि छप्पलिओवमाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति– किं जलचरेहिंतो उववज्जंति? एवं जाव– पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं एतेसिं रयणप्पभपुढविगमगसरिसा नव गमगा नेयव्वा, नवरं जाहे अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ भवइ ताहे तिसु वि गमएसु, इमं नाणत्तं–चत्तारि लेस्साओ, अज्झवसाणा पसत्था, नो अप्प सत्था। सेसं तं चेव। संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेण कायव्वो। जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति। असंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेण तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। एवं असंखेज्जवासाउयतिरिक्खजोणियसरिसा आदिल्ला तिन्नि गमगा नेयव्वा, नवरं–सरीरोगाहणा पढमबितिएसु गमएसु जहन्नेणं सातिरेगाइं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं, सेसं तं चेव। तइयगमे ओगाहणा जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाइं। सेसं जहेव तिरिक्खजोणियाणं। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि जहन्नकालट्ठितीयतिरिक्खजोणिय-सरिसा तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं–सरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु जहन्नेणं सातिरेगाइं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेण वि सातिरेगाइं पंचधनुसयाइं। सेसं तं चेव। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि ते चेव पच्छिल्ला तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं–सरीरोगाहणा तिसु वि गमएसु जहन्नेणं तिन्नि गाउयाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि गाउयाइं। अवसेसं तं चेव। जइ संखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णि-मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? अपज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, नो अपज्जत्तासंखेज्जवासा-उयसण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति। पज्जत्तासंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए असुरकुमारेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उक्कोसेणं सातिरेगसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव एतेसिं रयणप्पभाए उववज्जमाणाणं नव गमगा तहेव इह वि नव गमगा भाणियव्वा, नवरं–संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेणं कायव्वो। सेसं तं चेव। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। | ||
Sutra Meaning : | राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! असुरकुमार कहाँ से – किस गति से उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं। यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते। नैरयिक उद्देशक अनुसार प्रश्न भगवन् ! पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव, जो असुर – कुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवे भाग काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) रत्नप्रभापृथ्वी के समान – नौ गमक कहने। विशेष यह है कि यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो, तो तीनों गमकों में अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं। भगवन् ! यदि संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो क्या वह संख्यात वर्षों की आयु वाले से अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों से आकर उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह दोनों प्रकार के तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होता है। भगवन् ! असंख्यातवर्ष की आयु वाले संज्ञी – पंचेन्द्रिय – तिर्यंच योनिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं। वे वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले होते हैं। उनकी अवगाहना जघन्य धनुष – पृथक्त्व की और उत्कृष्ट छह गाऊ की होती है। वे समचतुरस्रसंस्थान वाले होते हैं। उनमें प्रारम्भ की चार लेश्याएं होती है। वे केवल मिथ्यादृष्टि होते हैं। वे अज्ञानी होते हैं। नियम से दो अज्ञान होते हैं – मति – अज्ञान और श्रुत – अज्ञान। योग तीनों ही पाए जाते हैं। उपयोग भी दोनों प्रकार के होते हैं। चार संज्ञा, चार कषाय, पाँच इन्द्रियाँ तथा आदि के तीन समुद्घात होते हैं। वे समुद्घात करके भी मरते हैं और समुद्घात किए बिना भी मरते हैं। उनमें साता और असाता दोनों प्रकार की वेदना होती है। वे स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते हैं, नपुंसकवेदी नहीं होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य कुछ अधिक पूर्वकोटि वर्ष की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की होती है। उनके अध्यवसाय प्रशस्त भी और अप्रशस्त भी होते हैं। उनकी अनुबन्ध स्थिति के तुल्य होता है, कायसंवेध – भव की अपेक्षा से – दो भव ग्रहण करते हैं, काल की अपेक्षा से – जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट छह पल्यो – पम, इतने काल तक गमनागमन करते हैं। यदि वह जीव जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो इसकी वक्तव्यता पूर्वोक्तानुसार। विशेष असुरकुमारों की स्थिति और संवेध स्वयं जान लेना चाहिए। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हों, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है, इत्यादि पूर्ववत्। विशेष यह है कि उसकी स्थिति अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम होता है। काल की अपेक्षा से – जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम, इतने काल तक गमनागमन करता है। शेष पूर्ववत्। यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि वर्ष की आयु वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? शेष सब कथन, यावत् भवादेश तक उसी प्रकार जानना। विशेष यह है कि उनकी अवगाहना जघन्य धनुषपृथक्त्व और उत्कृष्ट सातिरेक एक हजार धनुष। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटि की जानना। अनुबन्ध भी इसी प्रकार है। काल की अपेक्षा से – जघन्य दस हजार वर्ष अधिक सातिरेक पूर्वकोटि और उत्कृष्ट सातिरेक दो पूर्वकोटि। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो उसके विषय में भी यही वक्तव्यता कहना। विशेष यह है कि यहाँ असुर – कुमारों की स्थिति और संवेध के विषय में विचार कर स्वयं जान लेना। यदि वह उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पूर्वकोटिवर्ष की आयु वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक दो पूर्वकोटिवर्ष। वही जीव स्वयं उत्कृष्ट – काल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके लिए वही प्रथम गमक कहना चाहिए। विशेष यह है कि उसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योतम है तथा उसका अनुबन्ध भी इसी प्रकार जानना। काल की अपेक्षा से – जघन्य दस हजार वर्ष अधिक तीन पल्योपम और उत्कृष्ट छह पल्योपम। यदि वह जघन्य काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो उसके विषय में भी पूर्वोक्त वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यदि वह उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न हो, तो वह जघन्य और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है; इत्यादि वही पूर्वोक्त वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेष यह है कि काल की अपेक्षा से – जघन्य और उत्कृष्ट छह पल्योपम; इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। भगवन् ! यदि असुरकुमार, संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे जलचरों से आकर उत्पन्न होते हैं, इत्यादि यावत् – पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव जो असुरकुमारों में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य दस हजार वर्ष की स्थिति वाले और उत्कृष्ट सातिरेक एक सागरोपम की स्थिति वाले में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) इनके सम्बन्ध में रत्नप्रभापृथ्वी के विषय में वर्णित नौ गमकों के सदृश यहाँ भी नौ गमक जानने चाहिए। विशेष यह है कि जब वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला होता है, तब तीनों ही गमकों में यह अन्तर जानना चाहिए – इनमें चार लेश्याएं होती हैं। अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं। शेष पूर्ववत्। संवेध सातिरेक सागरोपम से कहना चाहिए। भगवन् ! यदि वे (असुरकुमार) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं तो क्या संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंख्यात वर्ष की आयु वाले से ? गौतम ! वे संख्यात वर्ष की आयु वाले (संज्ञी मनुष्यों से आकर) भी उत्पन्न होते हैं और असंख्यात वर्ष की आयु वाले (संज्ञी मनुष्यों) से (आकर) भी। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाला संज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। इस प्रकार पूर्वोक्त असुरकुमारों की उत्पत्ति के प्रथम के तीनों गमक असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच – योनिक जीवों के गमक के समान जानना। विशेषता यह है कि प्रथम और द्वीतिय गमक में शरीरावगाहना जघन्य सातिरेक पाँच सौ धनुष की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती हैं। तृतीय गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की। शेष तिर्यंचयोनिकों के समान है। यदि वह स्वयं जघन्य काल की स्थिति वाला हो और असुरकुमारों में उत्पन्न हो तो उसके भी तीनों गमक जघन्यकाल की स्थिति वाले तिर्यंचयोनिक के समान कहना। विशेषता यह है कि तीनों ही गमकों में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट सातिरेक पाँच सौ धनुष की होती है। यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो तो उसके विषय में भी पूर्वोक्त अन्तिम तीनों गमक कहना। विशेष यह है कि शरीरावगाहना जघन्य और उत्कृष्ट तीन गाऊ की होती है। भगवन् ! यदि वह (असुरकुमार) संख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, तो क्या वह पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है, अथवा अपर्याप्त से ? गौतम ! वह पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होता है। भगवन् ! पर्याप्त संख्येय वर्षायुष्क संज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले असुरकुमारों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट सातिरेक सागरोपम काल की स्थिति। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के समान नौ गमक कहना। विशेष यह है कि इसका संवेध सातिरेक सागरोपम से कहना। ‘हे भगवन् यह इसी प्रकार है | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] rayagihe java evam vayasi–asurakumara nam bhamte! Kaohimto uvavajjamti–kim neraiehimto uvavajjamti? Tirikkha-joniya-manussa-devehimto uvavajjamti? Goyama! No neraiehimto uvavajjamti, tirikkhajoniehimto uvavajjamti, manussehimto uvavajjamti, no devehimto uvavajjamti. Evam jaheva neraiyauddesae java– Pajjattaasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie asurakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevattikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam paliovamassa asamkhejjaibhaga-tthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam rayanappabhagamagasarisa nava vi gama bhaniyavva, navaram –jahe appana jahannakalatthitio bhavati tahe ajjhavasana pasattha, no appasattha tisu vi gamaesu. Avasesam tam cheva. Jai sannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauyasannipamchimdiya-tirikkha- joniehimto uvavajjamti? Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniehimto-uvavajjamti? Goyama! Samkhejjavasauya java uvavajjamti, asamkhejjavasauya java uvavajjamti. Asamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie asurakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam tipaliovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam–puchchha. Goyama! Jahannenam ekko va do va tinni va, ukkosenam samkhejja uvavajjamti. Vairosabha-narayasamghayani. Ogahana jahannenam dhanupuhattam, ukkosenam chha gauyaim. Samachauramsasamthiya pannatta. Chattari lessao adillao. No sammaditthi, michchhaditthi, no sammamichchhaditthi. No nani, annani, niyamam duannani–matiannani suyaannani ya. Jogo tiviho vi. Uvaogo duviho vi. Chattari sannao. Chattari kasaya. Pamcha imdiya. Tinni samugghaya adilla. Samohaya vi maramti, asamohaya vi maramti. Vedana duviha visayavedaga, asayavedaga. Vedo duviho vi–itthivedaga vi purisavedaga vi, no napumsagavedaga. Thiti jahannenam satirega puvvakodi, ukkosenam tinni paliovamaim. Ajjhavasana pasattha vi appasattha vi. Anubamdho jaheva thiti. Kayasamveho bhavadesenam do bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam satirega puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam chhappaliovamaim evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno– esa cheva vattavvaya, navaram–asurakumaratthitim samveham cha janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam tipaliovamatthitiesu, ukkosena vi tipaliovamatthitiesu uvavajjejja– esa cheva vattavvaya, navaram– thiti se jahannenam tinni paliovamaim, ukkosena vi tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam chhappaliovamaim, ukkosena vi chhappaliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja, sesam tam cheva. So cheva appana jahannakalatthitio jao jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam satiregapuvvakodiauesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avasesam tam cheva java bhavadeso tti, navaram–ogahana jahannenam dhanupuhattam, ukkosenam satiregam dhanusahassam. Thiti jahannenam satirega puvvakodi, ukkosena vi satirega puvvakodi. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam satirega puvvakodi dasahim vasasahassehim abbhahiya, ukkosenam satiregao do puvvakodio, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–asurakumaratthiim samveham cha janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam satiregapuvvakodiauesu, ukkosena vi satiregapuvvakodi-auesu uvavajjejja, sesam tam cheva, navaram–kaladesenam jahannenam satiregao do puvvakodio, ukkosena vi satiregao do puvva-kodio, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, so cheva padhamagamago bhaniyavvo, navaram–thiti jahannenam tinni paliovamaim, ukkosena vi tinni paliovamaim. Evam anubamdho vi. Kaladesenam jahannenam tinni paliovamaim dasahim vasasahassehim abbhahiyaim, ukkosenam chha paliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–asurakumaratthitim samveham cha janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno jahannenam tipaliovamaim, ukkosena vi tipali-ovamaim, esa cheva vattavvaya, navaram–kaladesenam jahannenam chhappaliovamaim, ukkosena vi chhappaliovamaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Jai samkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajoniehimto uvavajjamti– kim jalacharehimto uvavajjamti? Evam java– Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie asurakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam satiregasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam etesim rayanappabhapudhavigamagasarisa nava gamaga neyavva, navaram jahe appana jahannakalatthitio bhavai tahe tisu vi gamaesu, imam nanattam–chattari lessao, ajjhavasana pasattha, no appa sattha. Sesam tam cheva. Samveho satiregena sagarovamena kayavvo. Jai manussehimto uvavajjamti– kim sannimanussehimto uvavajjamti? Asannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Sannimanussehimto uvavajjamti, no asannimanussehimto uvavajjamti. Jai sannimanussehimto uvavajjamti–kim samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Asamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti, asamkhejjavasauyasannimanussehimto vi uvavajjamti. Asamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie asurakumaresu uvavajjittae se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosena tipaliovamatthitiesu uvavajjejja. Evam asamkhejjavasauyatirikkhajoniyasarisa adilla tinni gamaga neyavva, navaram–sarirogahana padhamabitiesu gamaesu jahannenam satiregaim pamchadhanusayaim, ukkosenam tinni gauyaim, sesam tam cheva. Taiyagame ogahana jahannenam tinni gauyaim, ukkosena vi tinni gauyaim. Sesam jaheva tirikkhajoniyanam. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa vi jahannakalatthitiyatirikkhajoniya-sarisa tinni gamaga bhaniyavva, navaram–sarirogahana tisu vi gamaesu jahannenam satiregaim pamchadhanusayaim, ukkosena vi satiregaim pamchadhanusayaim. Sesam tam cheva. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, tassa vi te cheva pachchhilla tinni gamaga bhaniyavva, navaram–sarirogahana tisu vi gamaesu jahannenam tinni gauyaim, ukkosena vi tinni gauyaim. Avasesam tam cheva. Jai samkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti– kim pajjattasamkhejjavasauyasanni-manussehimto uvavajjamti? Apajjattasamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti? Goyama! Pajjattasamkhejjavasauyasannimanussehimto uvavajjamti, no apajjattasamkhejjavasa-uyasannimanussehimto uvavajjamti. Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie asurakumaresu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam dasavasasahassatthitiesu, ukkosenam satiregasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva etesim rayanappabhae uvavajjamananam nava gamaga taheva iha vi nava gamaga bhaniyavva, navaram–samveho satiregena sagarovamenam kayavvo. Sesam tam cheva. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Rajagriha nagara mem gautama svami ne yavat isa prakara puchha – bhagavan ! Asurakumara kaham se – kisa gati se utpanna hote haim\? Kya ve nairayikom se akara utpanna hote haim. Yavat devom se akara utpanna hote haim\? Gautama ! Ve nairayikom se akara utpanna nahim hote, tiryamchayonikom aura manushyom se akara utpanna hote haim, kintu devom se akara utpanna nahim hote. Nairayika uddeshaka anusara prashna bhagavan ! Paryapta asamjnyi pamchendriya tiryamchayonika jiva, jo asura – kumarom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta palyopama ke asamkhyatave bhaga kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? (gautama !) ratnaprabhaprithvi ke samana – nau gamaka kahane. Vishesha yaha hai ki yadi vaha svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho, to tinom gamakom mem adhyavasaya prashasta hote haim. Bhagavan ! Yadi samjnyi – pamchendriya – tiryamchayonika jiva asurakumarom mem utpanna ho to kya vaha samkhyata varshom ki ayu vale se athava asamkhyata varsha ki ayu vale samjnyi tiryamcha pamchendriya jivom se akara utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha donom prakara ke tiryamchom se akara utpanna hota hai. Bhagavan ! Asamkhyatavarsha ki ayu vale samjnyi – pamchendriya – tiryamcha yonika jiva, kitane kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya dasa hajara varsha aura utkrishta tina palyopama ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ityadi prashna. Gautama ! Ve jaghanya eka, do ya tina aura utkrishta samkhyata utpanna hote haim. Ve vajrarishabhanarachasamhanana vale hote haim. Unaki avagahana jaghanya dhanusha – prithaktva ki aura utkrishta chhaha gau ki hoti hai. Ve samachaturasrasamsthana vale hote haim. Unamem prarambha ki chara leshyaem hoti hai. Ve kevala mithyadrishti hote haim. Ve ajnyani hote haim. Niyama se do ajnyana hote haim – mati – ajnyana aura shruta – ajnyana. Yoga tinom hi pae jate haim. Upayoga bhi donom prakara ke hote haim. Chara samjnya, chara kashaya, pamcha indriyam tatha adi ke tina samudghata hote haim. Ve samudghata karake bhi marate haim aura samudghata kie bina bhi marate haim. Unamem sata aura asata donom prakara ki vedana hoti hai. Ve strivedi aura purushavedi hote haim, napumsakavedi nahim hote haim. Unaki sthiti jaghanya kuchha adhika purvakoti varsha ki aura utkrishta tina palyopama ki hoti hai. Unake adhyavasaya prashasta bhi aura aprashasta bhi hote haim. Unaki anubandha sthiti ke tulya hota hai, kayasamvedha – bhava ki apeksha se – do bhava grahana karate haim, kala ki apeksha se – jaghanya dasa hajara varsha adhika satireka purvakoti aura utkrishta chhaha palyo – pama, itane kala taka gamanagamana karate haim. Yadi vaha jiva jaghanya kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna ho to isaki vaktavyata purvoktanusara. Vishesha asurakumarom ki sthiti aura samvedha svayam jana lena chahie. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hom, to vaha jaghanya aura utkrishta tina palyopama ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai, ityadi purvavat. Vishesha yaha hai ki usaki sthiti anubandha jaghanya aura utkrishta tina palyopama hota hai. Kala ki apeksha se – jaghanya aura utkrishta chhaha palyopama, itane kala taka gamanagamana karata hai. Shesha purvavat. Yadi vaha svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho aura asurakumarom mem utpanna ho, to vaha jaghanya dasa hajara varsha ki sthiti vale aura utkrishta satireka purvakoti varsha ki ayu vale asurakumarom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Shesha saba kathana, yavat bhavadesha taka usi prakara janana. Vishesha yaha hai ki unaki avagahana jaghanya dhanushaprithaktva aura utkrishta satireka eka hajara dhanusha. Unaki sthiti jaghanya aura utkrishta satireka purvakoti ki janana. Anubandha bhi isi prakara hai. Kala ki apeksha se – jaghanya dasa hajara varsha adhika satireka purvakoti aura utkrishta satireka do purvakoti. Yadi vaha jaghanya kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna ho to usake vishaya mem bhi yahi vaktavyata kahana. Vishesha yaha hai ki yaham asura – kumarom ki sthiti aura samvedha ke vishaya mem vichara kara svayam jana lena. Yadi vaha utkrishta kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna ho, to jaghanya aura utkrishta satireka purvakotivarsha ki ayu vale asurakumarom mem utpanna hota hai. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya aura utkrishta satireka do purvakotivarsha. Vahi jiva svayam utkrishta – kala ki sthiti vala ho aura asurakumarom mem utpanna ho, to usake lie vahi prathama gamaka kahana chahie. Vishesha yaha hai ki usaki sthiti jaghanya aura utkrishta tina palyotama hai tatha usaka anubandha bhi isi prakara janana. Kala ki apeksha se – jaghanya dasa hajara varsha adhika tina palyopama aura utkrishta chhaha palyopama. Yadi vaha jaghanya kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna ho, to usake vishaya mem bhi purvokta vaktavyata janani chahie. Vishesha yadi vaha utkrishtakala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna ho, to vaha jaghanya aura utkrishta tina palyopama ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai; ityadi vahi purvokta vaktavyata kahani chahie. Vishesha yaha hai ki kala ki apeksha se – jaghanya aura utkrishta chhaha palyopama; itane kala taka yavat gamanagamana karata hai. Bhagavan ! Yadi asurakumara, samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchom se akara utpanna hote haim, to kya ve jalacharom se akara utpanna hote haim, ityadi yavat – paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi pamchendriya – tiryamchayonika jiva jo asurakumarom mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya dasa hajara varsha ki sthiti vale aura utkrishta satireka eka sagaropama ki sthiti vale mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? (gautama !) inake sambandha mem ratnaprabhaprithvi ke vishaya mem varnita nau gamakom ke sadrisha yaham bhi nau gamaka janane chahie. Vishesha yaha hai ki jaba vaha svayam jaghanya kala ki sthiti vala hota hai, taba tinom hi gamakom mem yaha antara janana chahie – inamem chara leshyaem hoti haim. Adhyavasaya prashasta hote haim. Shesha purvavat. Samvedha satireka sagaropama se kahana chahie. Bhagavan ! Yadi ve (asurakumara) manushyom se akara utpanna hote haim, to kya ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim ya asamjnyi manushyom se\? Gautama ! Ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim. Bhagavan ! Yadi ve samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim to kya samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hote haim ya asamkhyata varsha ki ayu vale se\? Gautama ! Ve samkhyata varsha ki ayu vale (samjnyi manushyom se akara) bhi utpanna hote haim aura asamkhyata varsha ki ayu vale (samjnyi manushyom) se (akara) bhi. Bhagavan ! Asamkhyata varsha ki ayu vala samjnyi manushya, kitane kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha ki aura utkrishta tina palyopama ki. Isa prakara purvokta asurakumarom ki utpatti ke prathama ke tinom gamaka asamkhyata varsha ki ayu vale tiryamcha – yonika jivom ke gamaka ke samana janana. Visheshata yaha hai ki prathama aura dvitiya gamaka mem shariravagahana jaghanya satireka pamcha sau dhanusha ki aura utkrishta tina gau ki hoti haim. Tritiya gamaka mem sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta tina gau ki. Shesha tiryamchayonikom ke samana hai. Yadi vaha svayam jaghanya kala ki sthiti vala ho aura asurakumarom mem utpanna ho to usake bhi tinom gamaka jaghanyakala ki sthiti vale tiryamchayonika ke samana kahana. Visheshata yaha hai ki tinom hi gamakom mem sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta satireka pamcha sau dhanusha ki hoti hai. Yadi vaha svayam utkrishta kala ki sthiti vala ho to usake vishaya mem bhi purvokta antima tinom gamaka kahana. Vishesha yaha hai ki shariravagahana jaghanya aura utkrishta tina gau ki hoti hai. Bhagavan ! Yadi vaha (asurakumara) samkhyata varsha ki ayu vale samjnyi manushyom se akara utpanna hota hai, to kya vaha paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi manushyom se akara utpanna hota hai, athava aparyapta se\? Gautama ! Vaha paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi manushyom se akara utpanna hota hai. Bhagavan ! Paryapta samkhyeya varshayushka samjnyi manushya, kitane kala ki sthiti vale asurakumarom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya dasa hajara varsha aura utkrishta satireka sagaropama kala ki sthiti. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Ratnaprabhaprithvi mem utpanna hone vale manushyom ke samana nau gamaka kahana. Vishesha yaha hai ki isaka samvedha satireka sagaropama se kahana. ‘he bhagavan yaha isi prakara hai |