Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004340 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-१ नैरयिक | Translated Section : | उद्देशक-१ नैरयिक |
Sutra Number : | 840 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए उववज्जंतगस्स लद्धी सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति। कालादेसं जहन्नेणं सागरोवमं अंतोमुहुत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवत्तियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं रयणप्पभपुढविगमसरिसा नव वि गमगा भाणियव्वा, नवरं–सव्वगमएसु वि नेरइयट्ठिती-संवेहेसु सागरोवमा भाणियव्वा, एवं जाव छट्ठपुढवि त्ति, नवरं–नेरइयठिई जा जत्थ पुढवीए जहण्णुक्कोसिया सा तेणं चेव कमेणं चउगुणा कायव्वा। वालुयप्पभाए पुढवीए अट्ठावीसं सागरोवमाइं चउगुणिया भवंति, पंकप्पभाए चत्तालीसं, धूमप्पभाए अट्ठसट्ठिं, तमाए अट्ठासीइं। संघयणाइं–वालुयप्पभाए पंचविहसंघयणी, तं जहा–वइरोसहनाराय-संघयणी जाव खीलियासंघयणी, पंकप्पभाए चउव्विहसंघयणी, धूमप्पभाए तिविहसंघयणी, तमाए दुविहसंघयणी, तं जहा वइरो-सभनारायसंघयणी य, उसभनारायसंघयणी य, सेसं तं चेव। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं बावीससागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? एवं जहेव रयणप्पभाए नव गमका, लद्धी वि सच्चेव, नवरं–वइरोसभनारायसंघयणी। इत्थिवेदगा न उववज्जंति, सेसं तं चेव जाव अनुबंधो त्ति। संवेहो भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाइं। काला-देसेणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव वत्तव्वया जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं कालादेसो वि तहेव जाव चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव लद्धी जाव अनुबंधो त्ति। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं तिहिं पुव्वकोडीहं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, सच्चेव रयणप्पभपुढविजहन्नकालट्ठितीय- वत्तव्वया भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति, नवरं–पढमं संघयणं, नो इत्थिवेदगा। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं सत्त भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भाणियव्वो जाव कालादेसो त्ति। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव लद्धी जाव अनुबंधो त्ति। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भवग्गहणाइं, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाइं, कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं तिहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जहन्नेणं बावीससागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसा सच्चेव सत्तमपुढवि-पढमगमवत्तव्वया भाणियव्वा जाव भवादेसो त्ति, नवरं–ठिती अनुबंधो य जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी, सेसं तं चेव। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, सच्चेव लद्धी संवेहो वि तहेव सत्तमगमगसरिसो। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव लद्धी जाव अनुबंधो त्ति। भवादेसेणं जहन्नेणं तिन्नि भव-ग्गहणाइं, उक्कोसेणं पंच भवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं दोहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं तिहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो शर्कराप्रभा पृथ्वी में नैरयिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य एक सागरोपम और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होने वाले पर्याप्त संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंच की समग्र वक्तव्यता यहाँ भवादेश पर्यन्त कहनी चाहिए तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त अधिक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक बारह सागरोपम। इस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी के गमक के समान नौ ही गमक जानना। विशेष यह कि सभी नरकों में नैरयिकों की स्थिति और संवेध के सम्बन्ध में ‘सागरोपम’ कहना। इसी प्रकार छठी नरकपृथ्वी पर्यन्त जानना। परन्तु जिस नरकपृथ्वी में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति जितने काल की हो, उसे उसी क्रम से चार गुणी करनी चाहिए। जैसे – वालुकाप्रभापृथ्वी में उत्कृष्ट स्थिति सात सागरोपम की है; उसे चार गुणा करने से अठ्ठाईस सागरोपम होती है। इसी प्रकार पंकप्रभा में चालीस सागरोपम की, धूमप्रभा में अड़सठ सागरोपम की और तमःप्रभा में ८८ सागरोपम की स्थिति होती है। संहनन के विषय में – बालुकाप्रभा में वज्रऋषभनाराच से कीलिका संहनन तक पाँच संहनन वाले जाते हैं। पंकप्रभा में आदि के चार संहनन वाले, धूमप्रभा में प्रथम के तीन संहनन, तमःप्रभा में प्रथम के दो संहनन वाले नैरयिक रूप में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक, जो अधःसप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य हो, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभा – पृथ्वी के समान इसके भी नौ गमक और अन्य सब वक्तव्यता समझनी चाहिए। विशेष यह है कि वहाँ वज्रऋषभ – नाराचसंहनन वाला ही उत्पन्न होता है, स्त्रीवेद वाले जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते। शेष समग्र कथन अनुबन्ध तक पूर्वोक्त प्रकार से जानना। भव की अपेक्षा से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम तक गमनागमन करता है। वे (संज्ञी – पंचेन्द्रियतिर्यंच) जघन्य काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं; इत्यादि सब वक्तव्यता भवादेश तक पूर्वोक्त रूप से जानना। कालादेश से भी जघन्यतः उसी प्रकार यावत् चार पूर्वकोटि अधिक (६६ सागरोपम), काल तक गमनागमन करता है। वह जीव उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो, इत्यादि सब वक्तव्यता, अनुबन्ध तक पूर्ववत् जानना। भव की अपेक्षा से – जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से – जघन्य दो अन्त – र्मुहूर्त्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम। वही जीव स्वयं जघन्य स्थिति वाला हो और वह सप्तम नरकपृथ्वी में नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो समस्त वक्तव्यता रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य जघन्य स्थिति वाले के अनुसार भवादेश तक कहना। विशेष यह है कि वह प्रथम संहननी होता है, वह स्त्रीवेदी नहीं होता। भव की अपेक्षा से – जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव ग्रहण करता है। काल की अपेक्षा से – जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार अन्तर्मुहूर्त्त अधिक ६६ सागरोपम। वही जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उस सम्बन्ध में समग्र चतुर्थ गमक कालादेश तक कहना। वही उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो, इस सम्बन्ध में अनुबन्ध तक पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना। भव की अपेक्षा से – जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त्त अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन अन्तर्मुहूर्त्त अधिक ६६ सागरोपम। वही स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और सप्तम नरकपृथ्वी में उत्पन्न हो तो जघन्य बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? इस विषय में समग्र वक्तव्यता सप्तम नरकपृथ्वी के गमक के समान, भवादेश तक कहनी चाहिए। विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि वर्ष जानना। काल की अपेक्षा से – जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम। यदि वह जघन्य स्थिति वाले सप्तम नरकपृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो उसके सम्बन्ध में वही वक्तव्यता और वही संवेध सप्तम गमक के सदृश कहना। यदि वह उत्कृष्ट स्थिति वाले सप्तम नरक के नैरयिकों में उत्पन्न हो तो, वही पूर्वोक्त वक्तव्यता, यावत् अनुबन्ध तक। भव की अपेक्षा से जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव, तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम, यावत् इतने काल वह गमनागमन करता है। | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie sakkarappabhae pudhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam sagarovamatthitiesu, ukkosenam tisagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva rayanappabhae uvavajjamtagassa laddhi sachcheva niravasesa bhaniyavva java bhavadeso tti. Kaladesam jahannenam sagarovamam amtomuhuttamabbhahiyam, ukkosenam barasa sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evattiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam rayanappabhapudhavigamasarisa nava vi gamaga bhaniyavva, navaram–savvagamaesu vi neraiyatthiti-samvehesu sagarovama bhaniyavva, evam java chhatthapudhavi tti, navaram–neraiyathii ja jattha pudhavie jahannukkosiya sa tenam cheva kamenam chauguna kayavva. Valuyappabhae pudhavie atthavisam sagarovamaim chauguniya bhavamti, pamkappabhae chattalisam, dhumappabhae atthasatthim, tamae atthasiim. Samghayanaim–valuyappabhae pamchavihasamghayani, tam jaha–vairosahanaraya-samghayani java khiliyasamghayani, pamkappabhae chauvvihasamghayani, dhumappabhae tivihasamghayani, tamae duvihasamghayani, tam jaha vairo-sabhanarayasamghayani ya, usabhanarayasamghayani ya, sesam tam cheva. Pajjattasamkhejjavasauyasannipamchimdiyatirikkhajonie nam bhamte! Je bhavie ahesattamae pudhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam bavisasagarovamatthitiesu, ukkosenam tettisasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Evam jaheva rayanappabhae nava gamaka, laddhi vi sachcheva, navaram–vairosabhanarayasamghayani. Itthivedaga na uvavajjamti, sesam tam cheva java anubamdho tti. Samveho bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim, ukkosenam satta bhavaggahanaim. Kala-desenam jahannenam bavisam sagarovamaim dohim amtomuhuttehim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, sachcheva vattavvaya java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam kaladeso vi taheva java chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, sachcheva laddhi java anubamdho tti. Bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim, ukkosenam pamcha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim dohim amtomuhuttehim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim tihim puvvakodiham abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, sachcheva rayanappabhapudhavijahannakalatthitiya- vattavvaya bhaniyavva java bhavadeso tti, navaram–padhamam samghayanam, no itthivedaga. Bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim, ukkosenam satta bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam bavisam sagarovamaim dohim amtomuhuttehim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim chauhim amtomuhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, evam so cheva chauttho gamao niravaseso bhaniyavvo java kaladeso tti. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, sachcheva laddhi java anubamdho tti. Bhavadesenam jahannenam tinni bhavaggahanaim, ukkosenam pamcha bhavaggahanaim, kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim dohim amtomuhuttehim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim tihim amtomuhuttehim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva appana ukkosakalatthitio jahannenam bavisasagarovamatthitiesu, ukkosenam tettisasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avasesa sachcheva sattamapudhavi-padhamagamavattavvaya bhaniyavva java bhavadeso tti, navaram–thiti anubamdho ya jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi, sesam tam cheva. Kaladesenam jahannenam bavisam sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, sachcheva laddhi samveho vi taheva sattamagamagasariso. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, esa cheva laddhi java anubamdho tti. Bhavadesenam jahannenam tinni bhava-ggahanaim, ukkosenam pamcha bhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim dohim puvvakodihim abbhahiyaim, ukkosenam chhavatthim sagarovamaim tihim puvvakodihim abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika, jo sharkaraprabha prithvi mem nairayika rupa se utpanna hone yogya ho, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya eka sagaropama aura utkrishta tina sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Ratnaprabha naraka mem utpanna hone vale paryapta samjnyi – pamchendriyatiryamcha ki samagra vaktavyata yaham bhavadesha paryanta kahani chahie tatha kala ki apeksha se jaghanya antarmuhurtta adhika sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika baraha sagaropama. Isa prakara ratnaprabhaprithvi ke gamaka ke samana nau hi gamaka janana. Vishesha yaha ki sabhi narakom mem nairayikom ki sthiti aura samvedha ke sambandha mem ‘sagaropama’ kahana. Isi prakara chhathi narakaprithvi paryanta janana. Parantu jisa narakaprithvi mem jaghanya aura utkrishta sthiti jitane kala ki ho, use usi krama se chara guni karani chahie. Jaise – valukaprabhaprithvi mem utkrishta sthiti sata sagaropama ki hai; use chara guna karane se aththaisa sagaropama hoti hai. Isi prakara pamkaprabha mem chalisa sagaropama ki, dhumaprabha mem arasatha sagaropama ki aura tamahprabha mem 88 sagaropama ki sthiti hoti hai. Samhanana ke vishaya mem – balukaprabha mem vajrarishabhanaracha se kilika samhanana taka pamcha samhanana vale jate haim. Pamkaprabha mem adi ke chara samhanana vale, dhumaprabha mem prathama ke tina samhanana, tamahprabha mem prathama ke do samhanana vale nairayika rupa mem utpanna hote haim. Bhagavan ! Paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – pamchendriyatiryamchayonika, jo adhahsaptamaprithvi mem utpanna hone yogya ho, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Jaghanya baisa sagaropama ki aura utkrishta taimtisa sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Ratnaprabha – prithvi ke samana isake bhi nau gamaka aura anya saba vaktavyata samajhani chahie. Vishesha yaha hai ki vaham vajrarishabha – narachasamhanana vala hi utpanna hota hai, striveda vale jiva vaham utpanna nahim hote. Shesha samagra kathana anubandha taka purvokta prakara se janana. Bhava ki apeksha se jaghanya tina bhava aura utkrishta sata bhava tatha kala ki apeksha se jaghanya do antarmuhurtta adhika baisa sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika 66 sagaropama taka gamanagamana karata hai. Ve (samjnyi – pamchendriyatiryamcha) jaghanya kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hote haim; ityadi saba vaktavyata bhavadesha taka purvokta rupa se janana. Kaladesha se bhi jaghanyatah usi prakara yavat chara purvakoti adhika (66 sagaropama), kala taka gamanagamana karata hai. Vaha jiva utkrishta sthiti vale nairayikom mem utpanna ho, ityadi saba vaktavyata, anubandha taka purvavat janana. Bhava ki apeksha se – jaghanya tina bhava aura utkrishta pamcha bhava grahana karata hai. Kala ki apeksha se – jaghanya do anta – rmuhurtta adhika baisa sagaropama aura utkrishta tina purvakoti adhika 66 sagaropama. Vahi jiva svayam jaghanya sthiti vala ho aura vaha saptama narakaprithvi mem nairayikom mem utpanna ho, to samasta vaktavyata ratnaprabhaprithvi mem utpanna hone yogya jaghanya sthiti vale ke anusara bhavadesha taka kahana. Vishesha yaha hai ki vaha prathama samhanani hota hai, vaha strivedi nahim hota. Bhava ki apeksha se – jaghanya tina bhava aura utkrishta sata bhava grahana karata hai. Kala ki apeksha se – jaghanya do antarmuhurtta adhika baisa sagaropama aura utkrishta chara antarmuhurtta adhika 66 sagaropama. Vahi jaghanya sthiti vale saptama narakaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho to usa sambandha mem samagra chaturtha gamaka kaladesha taka kahana. Vahi utkrishta sthiti vale saptama narakaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho to, isa sambandha mem anubandha taka purvokta vaktavyata janana. Bhava ki apeksha se – jaghanya tina bhava aura utkrishta pamcha bhava grahana karata hai tatha kala ki apeksha se jaghanya do antarmuhurtta adhika taimtisa sagaropama aura utkrishta tina antarmuhurtta adhika 66 sagaropama. Vahi svayam utkrishta sthiti vala ho aura saptama narakaprithvi mem utpanna ho to jaghanya baisa sagaropama ki aura utkrishta taimtisa sagaropama ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Isa vishaya mem samagra vaktavyata saptama narakaprithvi ke gamaka ke samana, bhavadesha taka kahani chahie. Vishesha yaha hai ki sthiti aura anubandha jaghanya aura utkrishta purvakoti varsha janana. Kala ki apeksha se – jaghanya do purvakoti adhika baisa sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika 66 sagaropama. Yadi vaha jaghanya sthiti vale saptama narakaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho to usake sambandha mem vahi vaktavyata aura vahi samvedha saptama gamaka ke sadrisha kahana. Yadi vaha utkrishta sthiti vale saptama naraka ke nairayikom mem utpanna ho to, vahi purvokta vaktavyata, yavat anubandha taka. Bhava ki apeksha se jaghanya tina bhava aura utkrishta pamcha bhava, tatha kala ki apeksha se jaghanya do purvakoti adhika taimtisa sagaropama aura utkrishta tina purvakoti adhika 66 sagaropama, yavat itane kala vaha gamanagamana karata hai. |