Sutra Navigation: Bhagavati ( भगवती सूत्र )
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Mool File Details |
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Anuvad File Details |
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Sr No : | 1004342 | ||
Scripture Name( English ): | Bhagavati | Translated Scripture Name : | भगवती सूत्र |
Mool Language : | Ardha-Magadhi | Translated Language : | Hindi |
Chapter : |
शतक-२४ |
Translated Chapter : |
शतक-२४ |
Section : | उद्देशक-१ नैरयिक | Translated Section : | उद्देशक-१ नैरयिक |
Sutra Number : | 842 | Category : | Ang-05 |
Gatha or Sutra : | Sutra | Sutra Anuyog : | |
Author : | Deepratnasagar | Original Author : | Gandhar |
Century : | Sect : | Svetambara1 | |
Source : | |||
Mool Sutra : | [सूत्र] पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तिसागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? सो चेव रयणप्पभपुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेणं पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं तं चेव जाव भवादेसो त्ति। कालादेसेणं जहन्नेणं सागरोवमं वासपुहत्तमब्भहियं, उक्कोसेणं बारस सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ-हियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। एवं एसा ओहिएसु तिसु गमएसु मणूसस्स लद्धी, नाणत्तं–नेरइयट्ठिति कालादेसेणं सवेहं च जाणेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव लद्धी, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेण वि रयणिपुहत्तं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेण वि वासपुहत्तं। एवं अनुबंधो वि। सेसं जहा ओहियाणं। संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ। तस्स वि तिसु वि गमएसु इमं नाणत्तं–सरीरोगाहणा जहन्नेण पंच-धनुसयाइं, उक्कोसेण वि पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। सेसं जहा पढम-गमए, नवरं–नेरइयठिइं कायसंवेहं च जाणेज्जा। एवं जाव छट्ठपुढवी, नवरं–तच्चाए आढवेत्ता एक्केक्कं संघयणं परिहायति जहेव तिरिक्खजोणियाणं। कालादेसो वि तहेव, नवरं–मनुस्सठित्ती जाणियव्वा। पज्जत्तसंखेज्जवासाउयसण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए अहेसत्तमाए पुढवीए नेरइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? गोयमा! जहन्नेणं बावीससागरोवमट्ठितीएसु, उक्कोसेणं तेत्तीससागरोवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा। ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसो सो चेव सक्करप्पभा-पुढविगमओ नेयव्वो, नवरं–पढमं संघयणं, इत्थिवेदगा न उववज्जंति, सेसं तं चेव जाव अनुबंधो त्ति। भवादेसेणं दोभवग्गहणाइं। कालादेसेणं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं वासपुहत्त-मब्भहियाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–नेरइयट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो, एस चेव वत्तव्वया, नवरं–संवेहं च जाणेज्जा। सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव वत्तव्वया, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं रयणिपुहत्तं, उक्कोसेण वि रयणिपुहत्तं। ठिती जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेण वि वासपुहत्तं। एवं अनुबंधो वि। संवेहो उवजुंजिऊण भाणियव्वो। सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ, तस्स वि तिसु वि गमएसु एस चेव वत्तव्वया, नवरं–सरीरोगाहणा जहन्नेणं पंचधनुसयाइं, उक्कोसेण वि पंचधनुसयाइं। ठिती जहन्नेणं पुव्वकोडी, उक्कोसेण वि पुव्वकोडी। एवं अनुबंधो वि। नवसु वि एतेसु गमएसु नेरइयट्ठितिं संवेहं च जाणेज्जा। सव्वत्थ भवग्गहणाइं दोन्निजाव नवमगमए। कालादेसेणं जहन्नेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं उक्कोसेण वि तेत्तीसं सागरोवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाइं, एवतियं कालं सेवेज्जा एवतियं कालं गतिरागतिं करेज्जा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। | ||
Sutra Meaning : | भगवन् ! पर्याप्त संख्येयवर्षायुष्क संज्ञी – मनुष्य, जो शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न होने योग्य हो; वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य एक सागरोपम की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति वाले शर्कराप्रभा नैरयिकों में उत्पन्न होता है। भगवन् ! वे जीव वहाँ एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उनके विषय में रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान गमक जानना। विशेष यह है कि उनके शरीर की अवगाहना जघन्य रत्नीपृथक्त्व और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष होती है। उनकी स्थिति जघन्य वर्ष – पृथक्त्व और उत्कृष्ट पूर्वकोटिवर्ष की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना। शेष सब कथन भवादेश तक पूर्ववत्। काल की अपेक्षा से – जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक बारह सागरोपम; इतने काल तक गमनागमन करता है। इस प्रकार औघिक के तीनों गमक मनुष्य की वक्तव्यता के समान जानना। विशेषता नैरयिक की स्थिति और कालादेश से संवेध जान लेना। यदि वह स्वयं जघन्य स्थिति वाला संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त मनुष्य, शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो तीनों गमकों में पूर्वोक्त वही वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट भी रत्नीपृथक्त्व होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी होता है। शेष सब कथन औघिक गमक के समान जानना। संवेध भी उपयोगपूर्वक समझ लेना चाहिए। यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में उत्पन्न हो, तो उसके भी तीनों गमकों में विशेषता इस प्रकार है – उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटिवर्ष की होती है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना। शेष सब प्रथम गमक के समान है। विशेषता यह है कि नैरयिक की स्थिति और कायसंवेध तदनुकूल जानना चाहिए। इसी प्रकार छठी नरकपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। परन्तु विशेष यह है कि तीसरी नरकपृथ्वी से लेकर आगे तिर्यंचयोनिक के समान एक – एक संहनन कम होता है। कालादेश भी इसी प्रकार कहना। परन्तु विशेष यह है कि यहाँ मनुष्यों की स्थिति जाननी चाहिए। भगवन् ! पर्याप्त – संख्येयवर्षायुष्क – संज्ञी मनुष्य, जो सप्तमपृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य है, वह कितने काल की स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह जघन्य बाईस सागरोपम की स्थिति वाले और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वालों में। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? पूर्ववत् शर्कराप्रभा – पृथ्वी के गमक के समान समझना। विशेष यह है कि सातवीं नरकपृथ्वी में प्रथम संहनन वाले ही उत्पन्न होते हैं। वहाँ स्त्रीवेदी उत्पन्न नहीं होते। शेष कथन अनुबन्ध तक पूर्ववत्। भव की अपेक्षा से – दो भव ग्रहण और काल की अपेक्षा से – जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक बाईस सागरोपम और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम। यदि वही मनुष्य, जघन्य काल की स्थिति वाले सप्तमपृथ्वी – नारकों में उत्पन्न हो, तो भी यही वक्तव्यता। विशेष यह है कि यहाँ नैरयिक की स्थिति और संवेध स्वयं विचार करके कहना। यदि वही मनुष्य, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले सप्तमपृथ्वी के नारकों में उत्पन्न हो, तो भी यही वक्तव्यता। विशेष यह है कि इसका संवेध स्वयं जान लेना। यदि वही स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और सप्तमपृथ्वी के नारकों में उत्पन्न हो, तो तीनों गमकों में यही वक्तव्यता समझनी चाहिए। विशेष यह है कि उसके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट रत्नीपृथक्त्व होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व की होती है। अनुबन्ध भी इसी प्रकार होता है। संवेध के विषय में उपयोग पूर्वक कहना चाहिए। यदि वह संज्ञी मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और सप्तम नरकपृथ्वी में उत्पन्न हो, तो उसके भी तीनों गमकों में पूर्वोक्त वक्तव्यता समझना। विशेष इतना ही है की शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष की है। स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटिवर्ष की है। इसी प्रकार अनुबन्ध भी जानना। इन नौ ही गमकों में नैरयिकों की स्थिति और संवेध स्वयं विचार कर जान लेना। यावत् नौंवे गमक तक दो ही भवग्रहण होता है; काल की अपेक्षा से जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम; इतना काल सेवन करता है, गमनागमन करता है। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | ||
Mool Sutra Transliteration : | [sutra] pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie sakkarappabhae pudhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam sagarovamatthitiesu, ukkosenam tisagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? So cheva rayanappabhapudhavigamao neyavvo, navaram–sarirogahana jahannenam rayanipuhattam, ukkosenam pamchadhanusayaim. Thiti jahannenam vasapuhattam, ukkosenam puvvakodi. Evam anubamdho vi. Sesam tam cheva java bhavadeso tti. Kaladesenam jahannenam sagarovamam vasapuhattamabbhahiyam, ukkosenam barasa sagarovamaim chauhim puvvakodihim abbha-hiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. Evam esa ohiesu tisu gamaesu manusassa laddhi, nanattam–neraiyatthiti kaladesenam saveham cha janejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa vi tisu vi gamaesu esa cheva laddhi, navaram–sarirogahana jahannenam rayanipuhattam, ukkosena vi rayanipuhattam. Thiti jahannenam vasapuhattam, ukkosena vi vasapuhattam. Evam anubamdho vi. Sesam jaha ohiyanam. Samveho uvajumjiuna bhaniyavvo. So cheva appana ukkosakalatthitio jao. Tassa vi tisu vi gamaesu imam nanattam–sarirogahana jahannena pamcha-dhanusayaim, ukkosena vi pamchadhanusayaim. Thiti jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Evam anubamdho vi. Sesam jaha padhama-gamae, navaram–neraiyathiim kayasamveham cha janejja. Evam java chhatthapudhavi, navaram–tachchae adhavetta ekkekkam samghayanam parihayati jaheva tirikkhajoniyanam. Kaladeso vi taheva, navaram–manussathitti janiyavva. Pajjattasamkhejjavasauyasannimanusse nam bhamte! Je bhavie ahesattamae pudhavie neraiesu uvavajjittae, se nam bhamte! Kevatikalatthitiesu uvavajjejja? Goyama! Jahannenam bavisasagarovamatthitiesu, ukkosenam tettisasagarovamatthitiesu uvavajjejja. Te nam bhamte! Jiva egasamaenam kevatiya uvavajjamti? Avaseso so cheva sakkarappabha-pudhavigamao neyavvo, navaram–padhamam samghayanam, itthivedaga na uvavajjamti, sesam tam cheva java anubamdho tti. Bhavadesenam dobhavaggahanaim. Kaladesenam jahannenam bavisam sagarovamaim vasapuhatta-mabbhahiyaim, ukkosenam tettisam sagarovamaim puvvakodie abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja, evatiyam kalam gatiragatim karejja. So cheva jahannakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–neraiyatthitim samveham cha janejja. So cheva ukkosakalatthitiesu uvavanno, esa cheva vattavvaya, navaram–samveham cha janejja. So cheva appana jahannakalatthitio jao, tassa vi tisu vi gamaesu esa cheva vattavvaya, navaram–sarirogahana jahannenam rayanipuhattam, ukkosena vi rayanipuhattam. Thiti jahannenam vasapuhattam, ukkosena vi vasapuhattam. Evam anubamdho vi. Samveho uvajumjiuna bhaniyavvo. So cheva appana ukkosakalatthitio jao, tassa vi tisu vi gamaesu esa cheva vattavvaya, navaram–sarirogahana jahannenam pamchadhanusayaim, ukkosena vi pamchadhanusayaim. Thiti jahannenam puvvakodi, ukkosena vi puvvakodi. Evam anubamdho vi. Navasu vi etesu gamaesu neraiyatthitim samveham cha janejja. Savvattha bhavaggahanaim donnijava navamagamae. Kaladesenam jahannenam tettisam sagarovamaim puvvakodie abbhahiyaim ukkosena vi tettisam sagarovamaim puvvakodie abbhahiyaim, evatiyam kalam sevejja evatiyam kalam gatiragatim karejja. Sevam bhamte! Sevam bhamte! Tti java viharai. | ||
Sutra Meaning Transliteration : | Bhagavan ! Paryapta samkhyeyavarshayushka samjnyi – manushya, jo sharkaraprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna hone yogya ho; vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya eka sagaropama ki aura utkrishta tina sagaropama ki sthiti vale sharkaraprabha nairayikom mem utpanna hota hai. Bhagavan ! Ve jiva vaham eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Gautama ! Unake vishaya mem ratnaprabhaprithvi ke nairayikom ke samana gamaka janana. Vishesha yaha hai ki unake sharira ki avagahana jaghanya ratniprithaktva aura utkrishta pamcha sau dhanusha hoti hai. Unaki sthiti jaghanya varsha – prithaktva aura utkrishta purvakotivarsha ki hoti hai. Isi prakara anubandha bhi samajhana. Shesha saba kathana bhavadesha taka purvavat. Kala ki apeksha se – jaghanya varshaprithaktva adhika eka sagaropama aura utkrishta chara purvakoti adhika baraha sagaropama; itane kala taka gamanagamana karata hai. Isa prakara aughika ke tinom gamaka manushya ki vaktavyata ke samana janana. Visheshata nairayika ki sthiti aura kaladesha se samvedha jana lena. Yadi vaha svayam jaghanya sthiti vala samjnyi pamchendriya paryapta manushya, sharkaraprabha prithvi ke nairayikom mem utpanna ho, to tinom gamakom mem purvokta vahi vaktavyata janani chahie. Vishesha yaha hai ki unake sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta bhi ratniprithaktva hoti hai. Unaki sthiti jaghanya aura utkrishta varshaprithaktva ki hoti hai. Isi prakara anubandha bhi hota hai. Shesha saba kathana aughika gamaka ke samana janana. Samvedha bhi upayogapurvaka samajha lena chahie. Yadi vaha manushya svayam utkrishta sthiti vala ho aura sharkaraprabhaprithvi ke nairayikom mem utpanna ho, to usake bhi tinom gamakom mem visheshata isa prakara hai – unake sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hoti hai. Unaki sthiti jaghanya aura utkrishta bhi purvakotivarsha ki hoti hai. Isi prakara anubandha bhi samajhana. Shesha saba prathama gamaka ke samana hai. Visheshata yaha hai ki nairayika ki sthiti aura kayasamvedha tadanukula janana chahie. Isi prakara chhathi narakaprithvi paryanta janana chahie. Parantu vishesha yaha hai ki tisari narakaprithvi se lekara age tiryamchayonika ke samana eka – eka samhanana kama hota hai. Kaladesha bhi isi prakara kahana. Parantu vishesha yaha hai ki yaham manushyom ki sthiti janani chahie. Bhagavan ! Paryapta – samkhyeyavarshayushka – samjnyi manushya, jo saptamaprithvi mem utpanna hone yogya hai, vaha kitane kala ki sthiti vale nairayikom mem utpanna hota hai\? Gautama ! Vaha jaghanya baisa sagaropama ki sthiti vale aura utkrishta taimtisa sagaropama ki sthiti valom mem. Bhagavan ! Ve jiva eka samaya mem kitane utpanna hote haim\? Purvavat sharkaraprabha – prithvi ke gamaka ke samana samajhana. Vishesha yaha hai ki satavim narakaprithvi mem prathama samhanana vale hi utpanna hote haim. Vaham strivedi utpanna nahim hote. Shesha kathana anubandha taka purvavat. Bhava ki apeksha se – do bhava grahana aura kala ki apeksha se – jaghanya varshaprithaktva adhika baisa sagaropama aura utkrishta purvakoti adhika taimtisa sagaropama. Yadi vahi manushya, jaghanya kala ki sthiti vale saptamaprithvi – narakom mem utpanna ho, to bhi yahi vaktavyata. Vishesha yaha hai ki yaham nairayika ki sthiti aura samvedha svayam vichara karake kahana. Yadi vahi manushya, utkrishta kala ki sthiti vale saptamaprithvi ke narakom mem utpanna ho, to bhi yahi vaktavyata. Vishesha yaha hai ki isaka samvedha svayam jana lena. Yadi vahi svayam jaghanyakala ki sthiti vala ho aura saptamaprithvi ke narakom mem utpanna ho, to tinom gamakom mem yahi vaktavyata samajhani chahie. Vishesha yaha hai ki usake sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta ratniprithaktva hoti hai. Unaki sthiti jaghanya aura utkrishta varshaprithaktva ki hoti hai. Anubandha bhi isi prakara hota hai. Samvedha ke vishaya mem upayoga purvaka kahana chahie. Yadi vaha samjnyi manushya svayam utkrishta sthiti vala ho aura saptama narakaprithvi mem utpanna ho, to usake bhi tinom gamakom mem purvokta vaktavyata samajhana. Vishesha itana hi hai ki sharira ki avagahana jaghanya aura utkrishta pamcha sau dhanusha ki hai. Sthiti jaghanya aura utkrishta bhi purvakotivarsha ki hai. Isi prakara anubandha bhi janana. Ina nau hi gamakom mem nairayikom ki sthiti aura samvedha svayam vichara kara jana lena. Yavat naumve gamaka taka do hi bhavagrahana hota hai; kala ki apeksha se jaghanya aura utkrishta purvakoti adhika taimtisa sagaropama; itana kala sevana karata hai, gamanagamana karata hai. ‘he bhagavan ! Yaha isi prakara hai.’ |